Thursday, 30 October 2008

देश बिकता है...बोलो, खरीदोगे

पिछले दिनों साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ़्तार कर लिया गया और उसपर आतंकवादी होने का आरोप चस्पा कर दिया गया। इस मुद्दे पर बीजेपी ने काफी बवाल मचाया लेकिन उनका सरोकार बस इतना भर था कि वो इस
साध्वी का अपनी पार्टी से किसी तरह के रिश्ते से इंकार कर रहे थे। उन्होने इस बात का विरोध करने की कभी कोशिश नहीं की कि साध्वी ने मालेगांव में विस्फोट नहीं किया।
खुद को हिन्दुत्व का सबसे बड़ा पैरोकार बताने वाली इस पार्टी का ये रवैया भले ही कट्टर हिन्दुवादी ताकतों को रास नहीं आया हो...लेकिन अगर देशहित में सोचा जाए तो बीजेपी का ये रवैया वाकई सराहनीय है। बीजेपी के इस रवैये से वोट की राजनीति कर रहे उन नेताओं को सबक लेना चाहिए जो बाटला हाउस इनकाउंटर को फर्जी बताने पर तुले हुए हैं...वो भी तब जब इस इनकाउंटर के बाद पकड़े गए आरोपितों ने अपना जुर्म कबूल लिया है।
यहां पर ये भी देखने वाली बात है कि चाहे वो बाटला हाउस में पकड़े गए आज़मगढ़ के युवक हों या फिर मालेगांव विस्फोट के आरोप में पकड़ी गई साध्वी...दोनों ही मामलों में उनके परिजनों ने साफ कर दिया कि अगर उन पर आरोप साबित हो जाए तो कानून के तहत उन्हे सजा दी जाए।
आपको बता दें कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पिता ने उसकी फोटो अपने मंदिर में लगा रखी है और रोज उसकी पूजा करते हैं...इससे इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि एक शख़्स ने अपने मुल्क के आगे अपने भगवान को भी नहीं बख्शा। मेरा मन ऐसे जज्बे को सलाम करना चाहता है। इससे इस नतीज पर भी पहुंचा जा सकता है कि
हर देशभक्त को अपने कौम, अपने भगवान और अपने हितों से ऊपर अपने देश को रखना चाहिए।
लेकिन ऐसे लोगों पर मुझे तरस आता है जो बाटला हाउस मामले में एक शहीद की शहादत को भी साजिश का र्जा दे देते हैं। मैं ये नहीं कहता हूं कि बाटला हाउस में जो भी हुआ वो सही हुआ लेकिन... जो कुछ भी हुआ वो गलत हुआ...इस नतीजे पर पहुंचने में भी हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए...वो भी केवल इस लालच में कि हमें अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मिल जाए।
अल्पसंख्यक आयोग के एक रिपोर्ट का हवाला दें तो आज भारत में पढ़े लिखे डिग्री धारक बेराजगार मुसलमानों की संख्या बढ़ती जा रही है...क्या कभी इन अमरबेल की तरह पेड़ रूपी देश को खोखला करने वाले नेताओं ने उन अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कुछ किया ? क्या कभी उनकी काबिलियत के मुताबिक उन्हे नौकरी दिलाने की कोशिश की ? इस बात का जिक्र आते ही ये नेता आरक्षण की डफली बजाने लगते हैं...क्या इस समस्या का समाधान आरक्षण है ?
कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है...और ऐसा ही कुछ इन आतंक फैला रहे नासमझ युवाओं के साथ भी हो रहा है। इस वोट बैंक की राजनीति के जीते जागते उदाहरण मध्यप्रदेश के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी हैं जिन्होने साध्वी को क्लीन चिट दे दी। अपनी पार्टी कीलाइन से हटकर क्लीन चिट देने की मंत्री जी की मजबूरी भी मध्यप्रदेश में नवम्बर में होने वाला चुनाव हो सकती है। कुल मिलाकर यहां पर ये कहना उचित होगा कि आज के कुछ राजनेता देश पर राज करने के लिए उसका सौदा करने को भी तैयार हैं।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

राजनीति में देश की किस को पड़ी है। पड़ी होती तो आज देश कुछ और ही होता।