Tuesday 14 October, 2008

क्या मैं काफिर हो गया हूं ?

क्या हमारे देश में पढ़े लिखे और जागरूक लोगों में हिंदुत्व और कट्टरता की भावना बढ़ रही हैं...मेरा अनुभव कहता है कि हां..हम लोग धीरे-धीरे हिंदू होते जा रहे हैं..बापू के हिंदुत्व को मानने वाले लोगों की संख्या कम हो
रही है.बढ़ रही है तो गोडसे से हिंदुत्व को मानने वाले लोगों की संख्या.... मैं जो कुछ कह रहा हूं इसके लिए मेरे पास बहुत बड़े सबूत नहीं लेकिन जो कुछ भी वो उसी के आधार पर मैंने ये निष्कर्ष निकाले है....

आखिर आज मैंने ये सवाल चुना हीं क्यों...दरअस्ल दो दिन पहले यानी सोमवार को राष्ट्रीय एकता परिषद
की बैठक थी..बैठक से पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा में कहा कि ईसाई समाज पर जो हमले जो रहे हैं उसके लिए ईसाई समाज खुद जिम्मेदार है...वजह बताया उन्होंने धर्म परिवर्तन और सत्य दर्शिनी नाम की एक पुस्तिका को... मुझे एक जागरूक नागरिक होने के नाते येदुरप्पा का तर्क समझ में नहीं आया..कोई भी तटस्थ व्यक्ति इस तर्क को हजम नहीं कर सकता...आखिर आप किसी राज्य के मुख्यमंत्री हैं तो आप सिर्फ एक वर्ग, समाज या राज्य के एक खास इलाक़े के मुख्यमंत्री नहीं हैं....आपसे उम्मीद की जाती है कि आप अपने राज्य में रहनेवाले हर धर्म, जाति और वर्ग के आदमी की सुरक्षा करेंगे....लेकिन कर्नाटक में क्या हुआ..कुछ लोग ईसाई समाज पर हमले करते रहे और पूरे राज्य की मशिनरी चुपचाप उन हमलों को देखती रही....

मेरा सवाल ये हैं था कि येदुरप्पा क्यों नहीं पहले हालात को सुधारते हैं...क्यों नहीं हिंसा करनेवाले लोगों को
दंडित करते हैं...अगर ईसाई समाज कुछ लोगों ने गलती की है तो पूरे समाज को दंडित करना ये कहां का
न्याय हैं....और दंड भी कौन दे रहा है..क्या हिंसा करने वाले लोगों को वैधानिक अधिकार था हिंसा करने का...
अगर ईसाई समाज के कुछ लोगों ने अपराध किया है तो उन्हें क्यों नहीं सज़ा दी जाती...जाहिर है आपकी सरकार और प्रशासन निकम्मा है...

खैर मैने अपना पिछला पोस्ट येदुरप्पा को फोकस करते हुए लिखा था...मैंने कहा था कि ईसाई समाज पर हमले से जुड़ा येदुरप्पा का बयान कुतर्क है...  उस पोस्ट के बदले में मुझे कुल 6 टिप्पणियां मिली...उनमें से चार
टिप्पणियां बेहद रोष भरे अंदाज़ में लिखी गईं थी...मैंने येदुरप्पा के तर्क को कुतर्क कहा था तो टिप्पणी
करने वाले चार लोगों ने मेरे तर्क को कुतर्क कहा... 

ख़ैर ये सवाल उन न्यायप्रिय लोगों के लिए मैं छोड़ देता हूं कि आखिर कुतर्क कर कौन रहा है...मैं आज के सवाल पर लौटता हूं....क्या हम गोडसे वादी हिंदू होते जा रहे हैं....जो लोग इंटरनेट पर सर्फिंग करते हैं जाहिर है वो
ज्यादा जागरूक हैं....ऐसे जागरूक लोगों से हम जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण की उम्मीद कर सकते हैं...हम ऐसे लोगों से उम्मीद कर सकते हैं कि वो किसी भी घटना को तर्क और तथ्यों के ज़रिए परखने के बाद ही कोई फ़ैसला करेंगे...अगर तर्क और तथ्य की दृष्टि से देंखे तो कर्नाटक में हिंसा गलत थी...उस हिंसा को सही ठहराना उससे भी गलत था...कुर्तक था...मैंने यही कहा था...

लेकिन उसके बदले मुझे जो प्रतिक्रिया मिली वो बेहद हिला देने वाली थी.. आम तौर पर माना जाता है कि देश का पढ़ा लिखा तबका सेक्युलर और सहिष्णुता से रहनेवाला है...लेकिन मेरा ये भ्रम टूटा है... मैं कहना चाहता हूं की मैं हिंदू हूं...लेकिन जीवन के प्रति मेरा नज़रिया वैज्ञानिक हैं...मैं बापू के हिंदुत्व को मानता हूं...मैं गोडसे वादी हिंदुत्व को नहीं मानता...

अपनी बात मुक्तिबोध के शब्दों में कहूं तो मैं कहना चाहूंगा की

समस्या एक मेरे सभ्य नगरों और गांवों की
सभी मानव, सुखी सुंदर व शोषण मुक्त कब होंगे


क्या मैं गलत हूं....
क्या मैं काफिर हो गया हूं ?

5 comments:

Manuj Mehta said...

kafi had tak aapka lekh saarthak hai par yeh godse ka hindutav kya hai? godse koi vichadhara to nahi hai ho uska hindutav alag ho gaya? aapki kuntha ko main bhali bhanti samjh sakta hoo. isi vishay mein maine bhi do din pehle kuch likha hai, aap pah sakte hain.. merakamra.blogspot.com par

Unknown said...

काफ़िर तो नहीं हुए हैं, लेकिन तटस्थता से विचार करने की क्षमता अवश्य कम हो रही है, जब भाजपा-संघ-बजरंग दल पर उंगली उठाई जाती है तब कांग्रेस का काला इतिहास भुला दिया जाता है… यदि कांग्रेस 50% भी सुधर जाये तो देश का कायाकल्प हो सकता है, "गोड़सेवाद" को कोसने से पहले थोड़ा विचार कर लें…

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

srimaan ji, desh tabhi tak dharm-nirpeksh hai, jab tak muslimon ki tulna men hindoo adhik hain, itihaas ko dekhiye aur sikhiye

ab inconvenienti said...

तुम हिंदू न होते हुए भी हिन्दुओं पर अंगुली कैसे उठा रहे हो? और बापू ने भी मुसलमानों को गुंडा और हिन्दुओं को कायरों की कौम कहा था. गाँधी ईसाई मिशनरियों और धर्मान्तरण के भी सख्त खिलाफ थे. गाँधी गाँधी अलापने से पहले गाँधी को पढ़ तो लेते! और तुम्हारी पिछली पोस्ट पर मैंने एक सवाल पुछा था उसका जवाब दोगे? की बस हिलते-हिलाते रहोगे?

ab inconvenienti said...

हिंदू भी जब तक हिंदू रहता है दुश्मन को अतिथि से अच्छे मेजबान की तरह पेस आता है, पर जब ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो खून का प्यासा हो जाता है, हिन्दुओं को भी समझ लेना चाहिए की उनकी अतिथि देवो भवः, उदारता और अहिंसा की नीति उन्ही के लिए ज़हर बन चुकी है, एक पाकिस्तान, और बांग्लादेश अलग हो चुके हैं, असाम और पूरा उत्तर पूर्व अलग होने की तयारी कर रहा है. अभी नहीं तो कभी नहीं.