Thursday 2 October, 2008

ख़बरिया चैनलों से गायब होती ख़बर ?

जब अपने देश में टीवी चैनल के नाम पर केवल सरकारी चैनल दूरदर्शन हुआ करत था उस वक्त इसके प्राइम टाइम पर ख़बरों का नियत समय शाम आठ बजकर चालीस मिनट था...समय आगे बढ़ा और उसके बाद दर्जनों ख़बरिया चैनल आए लेकिन काफी दिनों तक उनके प्राइम टाइम में कोई बदलाव नहीं आया...यानी प्राइम टाइम पर ख़बर दिखाने का सिलसिला जारी रहा...ख़बरिया चैनल्स में प्राइम टाइम शाम आठ बज़े से लेकर रात दस बजे तक माना जाता है...थोड़ा हेरफेर कर प्राइम टाइम को शाम सात बजे से रात के ग्यारह बजे तक खिंचा जा सकता है...समाचार की दुनिया में बड़ी-बड़ी ख़बरे अपने पूर्ण रूप में प्राइम टाइम में ही न्यूज़ चैनल्स पर देखने को मिलती थी..इस पूरे चार घंटे के स्लाट में आज कुछ समय तक ख़बरों का बोलबाला रहता है...लेकिन उसके बाद जो होता है उसे देखकर फर्क करना मुश्किल होता है कि ये चैनल समाचार चैनल हैं या मनोरंजन चैनल... शाम का ये समय सिर्फ न्यूज़ चैनल्स के लिए ही नहीं मनोरंजन चैनलों के लिए भी प्राइम टाइम कहलाता है...ये मनोरंजन चैनल भी टीवी देखने वाले लोगों सीधे सीधे कहें तो दर्शकों को लुभाने के लिए ख़ास कार्यक्रम इसी समय पेश करते हैं...और यहां से शुरू होता है दर्शकों को रिझाने का खेल... जब से समाचार चैनलों के कर्ताधर्ताओं को अपने उपर भरोसा कम होने लगा अपने कंटेन्ट से विश्वास उठ गया तभी से प्राइम टाइम पर ख़बरों की जगह ले ली मनोरंजन चैनलों के कार्यक्रमों ने...अब धीरे-धीरे प्राइम टाइम पर ख़बरे कम होती गई और मनोरंजन चैनलों पर दिखाए जाने वाले डांस और हास्य के कार्यक्रमों की क्लिप्स ने समाचार चैनलों पर जगह बनानी शुरू कर दी...इन कार्यक्रमों में मनोरंजन के नाम पर जमकर फूहड़ता परोसी जाती है..न्यूज़ देखने वाले गंभीर दर्शकों को अब समाचार चैनलों के जरिए ये भोंडे कार्यक्रम परोसे जाने लगे हैं....
अब सवाल ये उठता है कि अगर न्यूज़ चैनल मनोरंजन के कार्यक्रम दिखा रहे हैं तो फिर इन्हें क्यों न्यूज़ चैनल कहा जाए...आखिर वजह क्या है प्राइम टाइम में ख़बरों के गायब होने का.. दरअस्ल सारा मामला फिर वहीं टीआरपी पर आकर टिकता है...जब से न्यूज़ चैनलों में कमजोर लोगों के हाथों में कमान दी जाने लगी है..ऐसे लोगों को चैनलों के अंदर महत्व दिया जाने लगा है जो शायद पुराने लोगों की तरह काबिल नहीं हैं तब से ख़बरों पर गाज गिरनी शुरू हो गई है....अब कामयाबी का सबसे बड़ा शार्टकॅट है कि किसी भी मनोरंजन चैनल के कार्यक्रम की फीड काट लो औऱ दर्शकों को तनाव दूर करने की दवा बताकर उसे परोस दो...आपके पास कुछ करने के लिए भी नहीं रह जाएगा और इस तरह आपकी पोल भी नहीं खुलेगी... दरअस्ल जब ये न्यूज चैनल सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास जाते हैं तो कहते हैं कि हमें लाइसेंस चाहिए एक चौबिस घंटे न्यूज़ चैनल का..लेकिन लाइसेंस मिलने के बाद जब चैनल लांच होता है तो चौबिस घंटे में से सिर्फ दस से बारह घंटे हीं समाचार को मिल पाता है बाकी का समय चला जाता है मनोरंजन चैनलों के कार्यक्रम के पास...लांचिग से पहले जो लोग दावा खालिस न्यूज़ चैनल का होता है लेकिन जब चैनल सामने आता है तो वही अधकचरा मिक्स न्यूज़ और मनोरंजन का....सवाल ये उठता है कि क्या आम आदमी से जुड़ी ख़बरों में इतना दम नहीं की वो दर्शकों को न्यूज़ चैनल तक खिंच कर लाए...क्या वाकई में न्यूज चैनलों को लोकप्रिय होने के लिए मनोरंजन दिखाने की जरूरत नहीं...शायद नहीं.... दरअस्ल खालिस न्यूज़ चैनल बनना ही आज के समाचार चैनलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है...ये एक ऐसी चुनौती ही जिससे इक्का-दुक्का न्यूज़ चैनल ही दो-चार होना चाहते हैं....लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि अच्छी चीज बनाने के लिए हमेशा ही जी-तोड़ मेहनत करने और पक्के इरादे की जरूरत होती है

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अप ने सही लिखा आज न्यूज चैनल एक मजाक बन कर रह गए हैं।या तो लोगो के निजि जीवन से संबध रखने वाली खबरों को ही चटकारे ले ले कर दिखाते हैं \लगता है अब यह न्यूज न हो कर कोई मंनोरजन चैनल हो गए हो।

manoj said...

BADI LAMBI BHUMIKA BANDHI HAI