Friday 3 October, 2008

ख़बरों का अर्धसत्य ?

समाचार चैनल पर चलती है ब्रेकिंग न्यूज़....सांसद की पिटाई...मध्यप्रदेश के सांसद की पिटाई...सांसद वीरेंद्र कुमार की पिटाई...सागर से सांसद हैं वीरेंद्र कुमार...आरपीएफ,जीआरपी जवानों ने की पिटाई...इस ब्रेकिंग के थोड़ी ही देर बाद शाट्स चलते हैं..खून से सने सांसद वीरेंद्र कुमार...समाचार वाचक चिल्ला-चिल्ला के बता रहा है कि कैसे जवानों ने सांसद महोदय की धुनाई कर दी...विजुअल्स को इस तरह से एडिट किया गया है कि खून,भीड़ और हंगामा पूरे स्क्रीन पर दिखे...अब जाकर जमा है मजमा...लोकतांत्रिक देश में जनता का प्रतिनिधि सांसद पीट गया..देखिए खून से सने हैं सांसद महोदय...आरपीएफ और जीआरपी के जवानो ने कितनी बेदर्दी से मारा है....चूकी देखने में फुटेज या कहें शाट्स जानदार हैं इसलिए इस ख़बर को तान दिया जाता है...बार बार दिखाया जाता है...फुटेज में गोला बनाकर दिखाया जाता है....हम सब देखते हैं और मान लेते हैं कि इस महान लोकतंत्र में एक जनप्रतिनिधि पीट गया...प्रशासन ने उसे पीटा...आखिर क्यों पीट गया हमारा प्रतिनिधि...और पूरी ख़बर क्या है...क्या जो ख़बर दिखाई जा रही है उसमें कुछ लोचा है...
अब हम आपको इस ख़बर को पूरी हक़ीकत बताते हैं...दरअस्ल सागर के सांसद हैं वीरेंद्र कुमार...सागर के पास बीना में एक जगह है छोटी बज़रिया...यहां रेलवे की ज़मीन पर कुछ लोगों ने सालों से अवैध कब्ज़ा कर रखा था...बार-बार चेतावनी देने के बाद भी जब कब्ज़ा खाली नहीं हुआ तो रेलवे में अवैध कब्ज़े को मुक्त कराने के लिए अभियान चलाता...बक़ायदा कब्जा कर दुकान लगाए बैठे लोगों को नोटिस भेजा गया और जगह खाली करने की चेतावनी दी गई...तय समय तक कब्जा नहीं छोड़ने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू हुई...सब कुछ जवानों की मौजूदगी में शांति से चल रहा था..इतने में किसी गुर्गे ने नेताजी को ख़बर कर दी...मैदान तैयार है...जनता के हित की बात है...लोगों पर जुल्म हो रहा है .लिहाजा नेताजी चले आए...आते के साथ ही अधिकारी पर पील पड़े...जैसा की ऐसे मौक़ों पर होता है बातचीत की शुरुआत गाली से हुई...नेताज़ी ने अफसरों को जमकर गलियाया...नेताजी का हौसला देख समर्थकों को भी जोश आ गया..गाली से बात नहीं बनी तो पत्थर बाज़ी शुरू हो गई...सुरक्षाकर्मी घायल हुए...जब बेइज्जती की इंतहा हो गई और भीड़ बेकाबू हो गई तो जीआरपी और आऱपीएफ के जवानों ने कार्रवाई शुरू की...हर बार ऐसे मौक़ों पर हमारे नेतागण अंतरध्यान हो जाते हैं...लेकिन पता नहीं क्यों यहां वीरेंद्र कुमार क्यों फंस गए...लाठी चली तो बीच में आ गए..जब बीच में आ गए तो चोट भी लग गई...फुटेज में साफ दिख रहा है कि कुछ जवानों ने नेताजी को बचाने की कोशिश भी की..लेकिन नेताजी को चोट लगी और खून निकला...बस क्या था..खबरिया चैनलों को दमदार ख़बर हाथ लग गई...फ्रेम में भीड़, हंगामा और खून..इससे बेहतर ख़बर और क्या हो सकती थी...सब जुट गए ख़बर को तानने में...
किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर पूरा वाक्या क्या था...सागर से जो पूरी फीड़ आई थी उसे नहीं देखा गया..नेताजी की बदसलूकी को किसी ने हाईलाइट नहीं किया...बस एक लाइन को पंचलाइन बनाया गया की सांसद की पिटाई..
ये तो सिर्फ एक घटना की बानगी भर है...पता नहीं ऐसी कितनी ख़बरें होती हैं जो हम तक इसी तरह आधी अधूरी पहुंचाई जाती है...हम इस अर्धसत्य को ही सत्य मानने को मजबूर होते हैं...क्योंकि दिल्ली में बैठे आदमी को क्या पता की बीना में आखिर हुआ क्या...लेकिन जीनको पता है..क्या ये उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती की वो पूरा सच दिखाए...क्या लोगों को आधी-अधूरी ख़बर दिखा कर हम उन्हें बरगला नहीं रहे हैं.
.क्या सांसद महोदय का पिटना ही ख़बर थी...क्या हमें ये नहीं देखने चाहिए की हमारा एक जनप्रतिनिधि क्यों उन लोगों की मदद कर रहा है जो गलत हैं...क्या रेलवे को कब्जा की गई ज़मीन को वापस लेने का अधिकार नहीं है...औऱ आखिर में ये सवाल की अगर सांसद महोदय की ज़मीन पर किसी ने कब्जा किया होता तो क्या तब भी सांसद महोदय उसके पक्ष में सड़क पर उतरते और लाठी खाते...
खैर सांसद महोदय ने जो किया वो किया...हमारी शिकायत तो उन न्यूज़ चैनलों से है जो जिन्होंने आधी-अधूरी ख़बर दिखाकर लोगों को बरगलाने की कोशिश की..क्या पत्रकारों की ये जिम्मेदारी नहीं बनती की वो पूरा सच दिखाते और बाकी दर्शकों पर छोड़ते की आखिर गलत है क्यों...कब्जा करने वाले...उनका समर्थन करनेवाले सांसद...या कब्जे को खाली करनवाले की कोशिश में जुटे रेलवे अधिकारी...
आप भी सोचिए की आखिर गलत है कौन...कब्जा करने वाले...उनका समर्थन करनेवाले सांसद...या कब्जे को खाली करनवाले की कोशिश में जुटे रेलवे अधिकारी...या ख़बर को आधे-आधूरे तरीके से पेश करने वाले पत्रकार

1 comment:

Anonymous said...

खबर पढ़ कर घोर आश्चर्य हुआ...ये खबर हमाने भी चलाई थी और किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं गया कि आखिर असली माजरा क्या था...और अब पता चला कि असली खबर क्या थी...भाई क्या बताउं...मन मसोसकर रह जाना पड़ता है...