Wednesday 30 September, 2009

साइकिल बनाए नामर्द, पार्ट-2

आईए अब हम आपको वो उपाय बताते हैं....जिससे आप साईकिल चलाते हुए भी तंदरुस्त रह सकते हैं। मैं अपने इस पोस्ट में आपको बताउंगा कि आखिर क्यों साइकिल चलाने से लोग नामर्द हो जाएंगे। साथ ही आपको ये भी बताउंगा कि इससे आप बच कैसे सकते हैं। आप जब साइकिल चला रहे होते हैं तो आपके साईकिल की सीट आपके जनेन्द्र को दबा रही होती है और साथ ही वो वहां तक पहुंचने वाली खून की नली को दबाती है जिससे अंग में सही अनुपात में खून नहीं पहुंच पाता है। साथ ही कई बार ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर चलते वक्त अगर आपकी साइकिल अरामदेह नहीं है तो भी वो आपके जनेन्द्र को नुकसान पहुंचा सकती है। कई बार अधिक दबाव के कारण आपके स्पर्म के उत्पत्ति स्थल को भी नुकसान पहुंच सकता है। ऐसा नहीं है कि इससे सभी साइकिल सवारों को नुकसान होता है। बल्कि इस नुकसान की आशंका वैसे साइकिल सवारों को ज़्यादा है जो अपने कद के मुताबिक साइकिल का चुनाव नहीं करते...और साथ ही सही तरह की सीट नहीं लगवाते।


आईए अब आपको बताते हैं कि आपको किस तरह की सतर्कता साइकिल ख़रीदते और उसे चलाते वक्त बरतनी चाहिए। साइकिल ख़रीदते वक्त इस बात का ख़ास ख़्याल रखें कि वो आपके कद के मुताबिक सही ऊंचाई वाली हो। इसके लिए आप साइकिल पर बैठकर अपने पांव को जमीन पर टिका कर देख लें...अगर आपका पांव बिना किसी ख़ास परेशानी के ज़मीन तक पहुंच रहा है तो वो साइकिल आपके लिए उपयुक्त है। साथ ही आप साइकिल के सीट का ख़ास ध्यान रखें कि वो आपके जनेन्द्र के ख़ास हिस्सों पर ज़्यादा दबाव ना डाल रहा हो...इसके अलावा साइकिल चलाते वक्त ये याद रखें कि अधिक दूरी की सवारी करने के दौरान बीच-बीच में थोड़ी देर के लिए साइकिल से उतर कर विश्राम जरूर कर लें। क्यों कि अधिक देर तक साईकिल चलाने से आपके कमर के अंदरुनी वाले भाग में ज़्यादा गर्मी पैदा होगी...इससे आपके स्पर्म की संख्या और गुणवत्ता पर फर्क पड़ सकता है। और अगर कभी आपको किसी ढ़लान पर चढ़ने की नौबत आ जाए तो ये बेहतर होगा कि आप साइकिल से उतर कर टहलते हुए ही उसपर चढ़ाई करें....अगर आपने इतनी सतर्कता बरती तो आपकी साइकिल आपके लिए वास्तव में शान की सवारी साबित हो सकती है साथ ही ये पर्यावरण की रक्षा और आपकी सेहत को भी बनाए रखने में मददगार साबित होगी..

Tuesday 29 September, 2009

साइकिल बनाए नामर्द, पार्ट-1

वैज्ञानिकों ने अब ये साबित कर दिया है कि साइकिल चलाने वाले बन सकते हैं नामर्द...अगर आप कुंवारे हैं या फिर शादीशुदा और अगर आप चाहते हैं आपकी गोद में आपकी संतान खिलखिलाए...तो आपको अभी से हो जाना पड़ेगा सतर्क। आपको साइकिल चलाने और ख़रीदने से पहले काफी सावधानी बरतनी होगी ताकि आपकी एक छोटी सी लापरवाही आपके दांपत्य जीवन पर ग्रहण ना लगा दे।

साईकिल है शान की सवारी...और ये आपकी सेहत को भी बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है...जिसमें ये आपको नामर्द भी बना सकती है....जी हां आपने ठीक सुना...साईकिल आपको नामर्द बना सकती है। ये निष्कर्ष निकला है वैज्ञानिकों के काफी दिनों से चल रहे शोध से..भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक ने लंदन में पेश किए गए अपने शोध में इस बात का उल्लेख किया है। उन्होने इसके लिए कई साइकिल सवारों पर निरंतर किए गए शोध को अपना आधार बनाया है। इस शोध में जितने भी साइकिल सवारों को शामिल किया गया था उसमें से लगभग 60 फीसदी लोगों में नपुंशकता के लक्षण पाए गए। इन लोगों में से लगभग सभी के जनेन्द्रियों में होने वाले रक्त प्रवाह में फर्क आया था। इसके अलावा इन साइकिल सवारों के जनन्द्रियों और उसके आस पास की त्वचा भी शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में सुस्त पाई गई।

वैज्ञानिकों ने जब इस शोध को आगे बढ़ाया तो उन्होने पाया कि इन साइकिल सवारों के स्पर्म की गिनती में भी काफी कमी आई थी। इस तरह से वैज्ञानिकों ने साईकिल से होने वाले नुकसानों को दो वर्गों में बांटा...एक नुकसान तो ये कि हो सकता है कि आपके जनेन्द्र में किसी तरह की कमी आ जाए और वो आपके दांम्पत्य सुख में बाधा पैदा कर दे....और दूसरा नुकसान ये हो सकता है कि आपने जनेन्द्र में तो कोई ख़ास कमी ना आए लेकिन आपके स्पर्म की संख्या या गुणवत्ता में ऐसी कमी आ जाए कि आप कभी बाप ना बन पाएं।... पर ऐसा नहीं है कि इससे बचने के उपाय नहीं है...इससे कैसे बचा जा सकता है ये मैं आपको कल बताउंगा

Monday 28 September, 2009

जानलेवा खर्राटे, पार्ट-2

अब हम आपको बताएंगे कि किस तरह से आप अपने खर्राटे के संदेश को पढ़ पाएंगे। आपको कैसे पता चलेगा कि आप वाकई ख़तरे की दहलीज पर पैर रख चुके हैं। और अगर ऐसा है भी तो आप किस तरह से इससे बच सकते हैं। अगर आप खर्राटे लेते हैं तो घबराईए नहीं...इसका ये मतलब नहीं है कि आपको हार्ट अटैक, डायबिटिज या फिर भूलने की बीमारी होगी है...पर जरूरत है ख़तरे के संदेश को समझने की। तो आईए उन लक्षणों के बारे में जानते हैं जिससे आपको सतर्क हो जाने की जरूरत है।


अगर आप खर्राटे लेते हैं और सोने के दौरान आपको सांस लेने में दिक्कत होती है तो आप सतर्क हो जाएं। क्यों कि अगर आपकी नींद एक घंटे में पंद्रह या उससे ज़्यादा बार सांस रुकने के कारण टूट जाती है तो फिर आप ख़तरे से ज़्यादा दूर नहीं हैं इसलिए जरूरत है कि आप जितनी जल्दी हो सके अपने डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें...और अगर ये समस्या आपको एक घंटे में दस बार के क़रीब झेलनी पड़ रही है तो भी आपको निश्चिंत नहीं होना चाहिए। और अगर आपकी नींद एक घंटे में पांच या उससे कम बार टूटती है तो आप ख़तरे के घेरे से बाहर हैं...हालांकि चिकित्सा के माध्यम से इस बीमारी से छुटकारा पाने में थोड़ी मशक्कत करनी पड़ती है फिर भी जरूरत है कि आप नियमित व्यायाम और परहेज से इस बीमारी को काबू में रखें।

अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बीमारी से बचने के लिए आपको क्या उपाय करने चाहिए। अगर आप शराब के शौकीन हैं तो या तो आप उसे छोड़ दें या फिर कम कर दें...धूम्रपान से भी आपको बचना चाहिए। सुबह की सैर आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। साथ ही अगर आप प्राणायाम का योगाभ्यास करें तो ये आपके लिए रामबाण साबित हो सकता है।

Sunday 27 September, 2009

जानलेवा खर्राटे, पार्ट-1

अगर आप अभी तक किसी के खर्राटे की मज़ाक उड़ाते थे तो इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद उसके ख़तरे के बारे में उनको जरूर आगाह कर दें। क्यों कि खर्राटे मज़ाक का विषय नहीं है। बल्कि ये संकेत करता है आने वाले ख़तरे के बारे में। ये सुनकर आपको अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन ये सौ फीसदी सच है। और इस सच को सामने लाया है चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने....तो आईए अब आपको बताते हैं कि क्यों आपको खर्राटे से सावधान हो जाना चाहिए। आपने और हमने कभी ना कभी ऐसे शख़्स को सोते हुए जरूर देखा होगा जो नींद में जोर जोर से खर्राटे लेता था...ये अलग बात है कि जगने के बाद वो आपकी बात का ऐतबार नहीं करता हो...। आज हम आपको बता रहे हैं खर्राटे के संदेश के बारे में...हम ये नहीं कह रहे कि खर्राटा लेना अपने आप में कोई बीमारी है लेकिन जिस वजह से आदमी को खर्राटा लेना पड़ता है....दरअसल बीमारी वो है।
अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि वो बीमारी क्या है। इस बीमारी को इंग्लिश में स्लीपिंग एपनिया कहते हैं....स्लीपिंग एपनिया होने की स्थिति में सोते वक्त आदमी के गले की पेशी, जीभ और अन्य उत्तक आराम की स्थिति में पहुंच जाते हैं जिससे धीरे-धीरे वो सांस की नली को दबाने लगते हैं और नतीज़ा ये होता है कि...ये नली लगभग बंद होने की स्थिति में आ जाती है। इस स्थिति में फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है...और जब नली को खोलने के लिए सांस का प्रवाह तेज होता है तो खर्राटे की आवाज़ आने लगती है। जब कभी ये समस्या काफी बढ़ जाती है तो कई बार आपके दिमाग में पहुंचने वाले ऑक्सिजन की मात्रा काफी कम हो जाती है जो दिमाग के उस हिस्से को प्रभावित करती है...जिसका काम किसी चीज को याद रखना है...और यहीं से शुरू हो जाती है भूलने की बीमारी...इस बीमारी में लापरवाही करने की सूरत में आपकी याद्दाश्त भी जा सकती है। इसके अलावा इस बीमारी से आपको डायबीटिज होने की आशंका भी बनी रहती है

इस बीमारी में कई बार आपके दिल में पहुंचने वाले ऑक्सिजन पर भी फर्क पड़ता है जिससे हार्ट अटैक का ख़तरा बना रहता है। जिससे आपकी मौत भी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने इस नतीजे पर पहुंचने से पहले हार्ट अटैक हो चुके 132 मरीजों पर दस साल तक शोध किया जिसमें से 23 मरीजों में स्लीपिंग एपनिया की बीमारी पाई गई। एक बात तो तय है कि अगर हमारे शरीर में ऑक्सिजन की तय मात्रा से कमी आई तो उससे परेशानियां आना तो लाजिमी...इसलिए जरूरत है कि हम समय रहते सतर्क हो जाएं और खर्राटे को मजाक ना बनाए...अगर आप भी इस खतरे के संकेत और इससे बचने के उपाय के बारे में जानना चाहते हैं.. तो मेरा कल का पोस्ट जरूर पढ़ें

Sunday 20 September, 2009

डरना मना है

क्या आपको बता है आजकल अमेरिकी फौज के जवान काफी डरे हुए हैं ...यही वजह है कि अमेरिका के डॉक्टर उन्हे निडर बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। अमेरिकी फौजियों के अंदर जो भय समाया हुआ है वो हमारे और आपके अंदर नहीं है लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि कुछ लोगों को छोड़ दें तो बाकि पूरी मानव जाति किसी ना किसी डर से भयभीत है। अब सवाल ये है कि क्या कुछ ऐसा हो सकता है कि लोगों के भीतर बैठा डर गायब हो जाए...इराक और अफगानिस्तान से वापस स्वदेश लौट रहे अमेरिकी फौज के क़रीब 20 फीसदी जवानों में एक अजीब सा डर देखने को मिल रहा है। उनके भीतर के इस डर को ख़त्म करने के लिए उनका विशेष तरीके से इलाज़ भी किया जा रहा है। इसी तरह से एक शोध के मुताबिक हर साल पूरी दुनिया के क़रीब 4 करोड़ लोग किसी अनजाने डर के शिकार हो रहे हैं। और यही डर कई बीमारियों को जन्म दे रहा है।


अब हम आपको बताते हैं कि दरअसल ये डर आता कहां से है...क्या इसका वजूद किसी ख़ास वजह से है...जी हां हमारे और आपके अंदर जो डर समाया हुआ है...वो हमारे ही दिमाग की उपज है...ये डर दिमाग के एक ख़ास हिस्से में मौजूद एमीगडाला नाम के एक न्यूरॉन की देन है। इस हिस्से का पता कुछ साल पहले एक शोध के माध्यम से चला था। डॉक्टर और वैज्ञानिक इस शोध के आधार पर किसी डरे हुए व्यक्ति या फोबिया के शिकार किसी मरीज को एक ख़ास तरह की ट्रेनिंग देते थे। जिसके दौरान जिस वजह से वो शख्स डर या फोबिया का शिकार हो रहा है उससे उसे बराबर दो चार कराया जाता था और उसके डर को दूर करने की कोशिश की जाती थी लेकिन एक नए शोध के मुताबिक ये ट्रेनिंग भी कुछ ख़ास हालात पर निर्भर करता है...और वो हालात नहीं होने की सूरत में उस शख़्स के अंदर बैठा डर ख़त्म नहीं होता है। इसी समस्या का समाधान खोज रहे वैज्ञानिकों को एमीगडाला के उस हिस्से का पता चल गया है जो किसी भी डर को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ITC न्यूरॉन नामक इस हिस्से का काम दिमाग को भेजे जा रहे डर के संकेत को रोकना है। दरअसल ये हिस्सा दिमाग में बने हुए डर की याद्दाश्त को ख़त्म नहीं करता है बल्कि एक अलग भयमुक्त याद्दाश्त का निर्माण करता है।


यही वजह कि कुछ लोग जिस वजह से डरते हैं वही वजह दूसरे के लिए डरने का कारण बने ऐसा जरूरी नही हैं। या ये भी हो सकता है कोई शख़्स पहले जिस वजह से डरता हो वो कुछ समय बाद उस वजह से ना डरे। ऐसा होता है इसी ITC न्यूरॉन की सक्रिय भूमिका से....वैज्ञानिक अब इसी कोशिश में लगे हुए हैं कि क्या कभी ऐसे हालात बनाए जा सकते हैं जब इस ITC न्यूरॉन की सक्रियता को किसी तरह से बढ़ाया या घटाया जा सके । अगर वैज्ञानिकों ने अपनी कोशिश से ऐसा कुछ करने में सफलता पा ली तो वो दिन दूर नहीं कि जब निडर बनने के लिए भी बाज़ार में दवाई मिलने लगे। वैसे आजकल अमेरिकी सैनिकों को डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की देख रेख में वैसे हालात से गुजारा जा रहा है जिससे उनके अंदर का डर ख़त्म किया जा सके..

Wednesday 16 September, 2009

प्राचीन कंप्यूटर, पार्ट-2

और आईए अब खुलासा करते हैं प्राचीन कंप्यूटर से जुड़े रहस्यों का....वैज्ञानिकों को ये प्राचीन कंप्यूटर जिस हालत में मिला था उससे...उसके बारे में कुछ भी समझ पाना काफी मुश्किल था लेकिन ग्रीस के पुराने साहित्यों से मिली जानकारी के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस यंत्र की कड़ी को आपस में जोड़ना शुरू कर दिया...लेकिन हज़ारों साल बीत जाने के कारण वैज्ञानिकों को इसमें काफी मुश्किलें आईं। लेकिन इस यंत्र में छिपे रहस्य वैज्ञानिकों में काफी उत्साहित कर रहे थे...आखिरकार उन्होने इसके लिए कंप्यूटर एक्स-रे तकनीक का सहारा लिया। इसके बाद यंत्र से जुड़े सभी राज एक-एक करके सामने आने लगे।

रहस्यों पर से जैसे-जैसे पर्दा उठता जा रहा था वैसे-वैसे वैज्ञानिकों की हैरानी भी बढ़ती जा रही थी। वैज्ञानिकों को ये उम्मीद नहीं थी कि दो हज़ार साल पहले की तकनीक इतनी विकसित होगी। वैज्ञानिक जिस निष्कर्ष पर पहुंचे उसके मुताबिक...ये प्राचीन कंप्यूटर खगोलीय गतिविधियों पर नज़र रखता था और इससे ग्रहों और नक्षत्रों पर आधारित भविष्यवाणियां भी की जाती थी। ये कंप्यूटर कुंडली में सूर्य और चंद्रमा के स्थान परिवर्तन के बारे में भी सटीक जानकारी देता था। इसके अलावा इस यंत्र से चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के बारे में भी सटीक भविष्यवाणी की जाती होगी। वैज्ञानिकों को और ज़्यादा हैरानी ये बात जानकर हुई कि ये प्राचीन कंप्यूटर दो हज़ार साल पहले ही चंद्रमा के कक्षा के बारे में जानकारी रखता था।

यहां पर ये बात भी काफी दिलचस्प है कि इस यंत्र के बाद 18वीं शताब्दी तक इतने विकसित किसी यंत्र का निर्माण नहीं हो पाया था। वैज्ञानिक अब इस बात का भी पता लगाने में जुटे हुए हैं कि इस तरह के और कितने यंत्र दो हज़ार साल पहले ग्रीस में मौजूद थे। हालांकि वैज्ञानिकों ने एक बात जरूर मानी है कि जिस जमाने में इस यंत्र का अविष्कार हुआ था उससे उस अविष्कारक के अपार बौद्धिक क्षमता का पता चलता है.

Monday 14 September, 2009

प्राचीन कंप्यूटर, पार्ट-1

अगर मैं आपसे कहूं कि हजारों साल पहले भी कंप्यूटर था..तो शायद आप इसे मजाक समझेंगे.. लेकिन ये सच है.. आज मैं आपको एक ऐसे कंप्यूटर के बारे में बताने जा रहा हूं...जो वाकई दो हज़ार साल पुराना है। अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि दरअसल ये कंप्यूटर कैसे काम करता है और वैज्ञानिकों के हाथ कैसे लगा। दरअसल वैज्ञानिकों को ये प्राचीन कंप्यूटर कई साल पहले हाथ लगा था लेकिन उस वक्त ये उनके लिए एक बहुत बड़ा रहस्य था। क्यों कि उन्होने ये कल्पना भी नहीं की थी कि दो हज़ार साल पहले का तकनीक इतना विकसित हो सकता है। घड़ी के जैसा दिखने वाला ये यंत्र वैज्ञानिकों के हाथ लगना एक संयोग मात्र था।

ये यंत्र वैज्ञानिकों को ग्रीस के एंटीकायथेरा आइलैंड के पास समुद्रतल में मिला था। इस खोज का श्रेय उस दल के गोताखोरों को जाता है जो एक डूबे हुए जहाज के अवशेष को ढूढ़ने के लिए समुद्रतल पर गए हुए थे। यहां उन्हे दो हज़ार साल पहले डूबे हुए ग्रीस के व्यापारियों के एक जहाज का अवशेष मिला और उसी अवशेष में मिला उन्हे ये प्राचीन कंप्यूटर। गोताखोरों को ये यंत्र 70 टुकड़ों में एक टूटे हुए लकड़ी और कांस्य के बक्से के साथ मिला। जब इस यंत्र को बाहर निकालकर जोड़ने की कोशिश की गई तो पता चला कि वो 70 टुकड़े उन 30 गियर के थे जिससे मिलकर ये प्राचीन कंप्यूटर बना था।

काफी मशक्कत के बाद वैज्ञानिकों ने इसकी आपस की कड़ियों को जोड़ने में सफलता प्राप्त की लेकिन वो इसमें छुपे रहस्य को नहीं जान पाए। इस यंत्र के रहस्य को जानने के लिए एक विशेष टीम का गठन किया गया जिसमें खगोलविद, कंप्यूटर विशेषज्ञ, गणितज्ञ, पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार शामिल थे। इस यंत्र के रहस्यों को जानने के लिए इसे एथेंस में काफी सुरक्षित तरीके से रखा गया जहां इसे छूने की भी किसी को इज़ाजत नहीं थी। लेकिन इस प्राचीन कंप्यूटर ने वैज्ञानिकों की ग्रीस की तकनीक के बारे में फिर से सोचने पर विवश कर दिया...ये कंप्यूटर कैसे काम करता था और इसमें कौन सा रहस्य छिपा है इसके बारे में मैं आपको कल बताउंगा...

Sunday 13 September, 2009

हीरे से मिला जीवन

वैज्ञानिकों के ताज़ा शोध के मुताबिक इस बात की प्रबल संभावना है कि जीवन की उत्पत्ति में हीरे की अहम भूमिका रही हो। वैज्ञानिकों की माने तो करोड़ों साल पहले हीरे की हाइड्रोजन के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया हुई होगी...जिसके बाद हीरे के सतह पर एक ऐसे जलीय सतह का निर्माण हुआ होगा...जो धरती से उल्कापिंड के टकराने के बाद उसमें मौजूद जीवन कारकों के लिए काफी मददगार साबित हुआ होगा...और इसी जीवन कारक के हीरे के सतह पर मौजूद जलीय सतह से प्रतिक्रिया करने से जीवन की उतपत्ति हुई होगी। हालांकि ये वैज्ञानिकों का अनुमान मात्र ही है...और अभी भी इस मामले में शोध चल रहा है।
अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसे जानकर आपको और भी हैरानी होगी...आपने कभी ना कभी काले हीरे के बारे में जरूर सुना होगा...इसे विज्ञान की भाषा में कार्बोनेडो कहते हैं...वैज्ञानिक इस काले हीरे की उत्पत्ति को भी उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने से जोड़कर देखते हैं। उनके मुताबिक पृथ्वी से टकराने वाले एक उल्कापिंड में ही कुछ किलोमीटर की परिधि वाला कार्बोनेडो मौजूद था...अगर ये सच है तो हम कह सकते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कुछ किलोमीटर लंबा-चौड़ा था....वैज्ञानिकों ने कार्बोनेडो की उत्पत्ति पर किए गए अपने दावे की पुष्टि के लिए उसके उत्पत्ति स्थल को आधार बनाया है...दरअसल दुनियाभर में ये काला हीरा केवल ब्राजील और मध्य अफ्रीका के ही कुछ इलाकों में पाए जाते हैं...इसके आगे वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि दुनियाभर में 1900 ईस्वी से लेकर अभी तक क़रीब 600 टन हीरे ख़दानों से निकाले जा चुके हैं लेकिन इनमें से एक भी काला हीरा नहीं था। इससे ये बात साफ हो जाती है कि काला हीरा एक विशेष स्थान में ही मिल रहा है...जिससे ये बात लगभग सही मालूम पड़ती है कि ये काला हीरा दूसरे हीरों की तरह प्राकृतिक तरीके से नहीं बना है। इसलिए आप जब भी कभी हीरे की ख़रीददारी करें तो आपको ये मालूम रहे कि ये वाकई अनमोल हैं...और जिस तरह से ये हीरे करोड़ो साल बाद हमारे पास मौजूद हैं उससे तो ये बस यही बात साबित होती है कि...हीरा है सदा के लिए...

Thursday 10 September, 2009

अंतरिक्ष से आए हीरे


क्या आपको पता है कि एक बेशकीमती हीरा आप तक पहुंचने में कितना लंबा सफर तय करता है। वैसे आपलोगों को इस बात की जानकारी तो होगी ही कि हीरे कैसे तराशे जाते हैं लेकिन शायद आपको ये पता नहीं होगा कि जिस पत्थर को तराश कर हीरा बनाया जाता है वो कैसे बनता है और कैसे धरती के सतह पर आता है। आईए इसी की पड़ताल करते हैं


आपमें से कई लोगों के पास हीरे के आभूषण होंगे...लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि इस हीरे को आपतक पहुंचने में कितना समय लगा होगा। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि एक प्राकृतिक हीरे को आप तक पहुंचने में करोड़ों साल का समय तय करना पड़ता है। अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा है तो आईए हम आपको इसे विस्तार से बताएं...


जो हीरे आप और हम बाज़ारों में देखते हैं उसमें से अधिकतर कृत्रिम हीरे होते हैं...लेकिन जो हीरे प्राकृतिक होते हैं उसे इंसानों तक पहुंचने में एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है...दरअसल ये हीरे धरती के सतह से सौ किलोमीटर से भी ज़्यादा नीचे पाए जाते हैं अब सवाल ये उठता है कि ये हम तक पहुंचते कैसे हैं...जिन पत्थरों को तराश कर हीरा बनाया जाता है वो ज्वालामुखी के लावे के साथ धरती के सतह तक पहुंचते हैं और फिर खदानों की खुदाई के वक्त हमें मिलते हैं....इसके बाद उन्हे तराश कर हीरे का रूप दिया जाता है।


वैज्ञानिकों के एक सिद्धांत के मुताबिक इन हीरों में मौजूद कार्बन सूखे हुए पेड़-पौधों और मरे हुए प्राणियों से आए हैं...उनके मुताबिक ये चीज़ें धरती के काफी अंदर पहुंचने के बाद वहां की गर्मी और दबाव के कारण जीवाश्म और कार्बन में तब्दील हो गए जहां से हीरे को कार्बन मिला...लेकिन अब आधुनिक वैज्ञानिक इस सिद्धांत को नहीं मानते...क्योंकि हीरे में जो कार्बन पाए गए हैं वो पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से भी करोड़ों साल पहले के हैं। अब सवाल ये उठता है कि हीरे को आखिरकार ये कार्बन कहां से मिले...इसके जवाब में वैज्ञानिकों ने बताया कि ये कार्बन पृथ्वी से टकराए उल्कापिंड और टूटे हुए तारों से मिले होंगे। इससे ये बात लगभग साबित हो गई है कि हीरे में मौजूद कार्बन अंतरिक्ष से आए हैं।

Tuesday 8 September, 2009

बदल रहा है अंटार्कटिका

अंटार्कटिका जैसा आज है वैसा हमेशा से था..बिलकुल नहीं बल्कि बहुत पहले अंटार्कटिका में लगभग जम्मू जैसे हालात थे। वहां पर बहुत कुछ आज के जैसा नहीं था...हो सकता है अंटार्कटिका का नाम सुनते ही आपकी कंपकपी छूट जाती हो...लेकिन अंटार्कटिका सब दिन से ऐसा नहीं था। यहां पर एक वक्त ऐसा भी था जब या तो बर्फ बिलकुल नहीं थे या फिर बहुत कम मात्रा में थे। अब सवाल ये उठता है कि हम किस वक्त की बात कर रहे हैं...तो आपको बता दें कि वो वक्त था आज से चार करोड़ साल पहले का। इस बात का पता चला है न्यूज़ीलैंड में मिले एक जीवाश्म से....अब आपको लग रहा होगा कि अंटार्कटिका का भला न्यूजीलैंड से क्या रिश्ता है...तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जहां पर न्यूज़ीलैंड आज मौजूद है करोड़ों साल पहले वो वहां पर नहीं था बल्कि वो अपने मौजूदा जगह से क़रीब 1100 किलोमीटर दक्षिण की ओर अंटार्कटिका के पास मौजूद था।


वैज्ञानिकों ने जब उस जीवाश्म की पड़ताल की तो उन्हे ये भी पता चला कि अंटार्कटिका के पास समुद्र के पानी का तापमान भी 23 से 25 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था। आजकल जिस तरह से आइस शेल्फ और ग्लेशियर पिघल रहे हैं उससे तो यही लगता है कि..हो सकता है एक दिन ऐसा आए कि अंटार्कटिका फिर से अपने पुराने रूप में लौट जाए। इसका कुछ-कुछ असर इसके आसपास के आइलैंड पर देखने को मिल रहा है जहां पर रहन-सहन और फसलों के तरीके बदलने लगे हैं।


अब हम आपको जो बतलाने जा रहे हैं वो और भी चौंकाने वाली जानकारी है...वैज्ञानिकों ने जब अंटार्टिका के अंदरुनी सतहों का बारिक अध्यन किया तो उन्हे पता चला कि अंटार्कटिका के बर्फ की मोटी सतहों के नीचे अथाह तेल और प्राकृतिक गैस का भंडार है...एक अनुमान के मुताबिक उस तेल और गैस के भंडार से दुनिया भर के तीन साल की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। उस भंडार पर क़ब्जा करने के लिए कई देशों के बीच होड़ भी लग चुकी है...पर जरूरत होगी ऐहतियात कि ताकि कुदरत के साथ हो रहे छेड़छाड़ को और बढ़ावा ना मिल सके...

Monday 7 September, 2009

चमत्कारी दांत

आज हम जिक्र कर रहे हैं एक चमत्कारी दांत की..इस दांत ने पुरातत्व विशेषज्ञों को भी हैरत में डाल दिया है...इसने करोड़ों साल के इतिहास को एक झटके में बदल दिया है.. ये दांत करोड़ों साल पुराना है और ये गुजरात में मिला है। इस दांत के मिलने से कई रहस्यों पर से पर्दा हट गया है.. ये दांत मिला है गुजरात के वस्तन कोयला खादान में। इस दांत ने वैज्ञानिकों के उस धारणा को ग़लत साबित कर दिया है जिसमें ये माना गया है कि मानव के विकास की शुरूआत अफ्रीका से हुई...और धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैला। लेकिन अब तक अफ्रीका और आस-पास के देशों में जो जीवाश्म मिले हैं वो चार से पांच करोड़ साल ही पुराने हैं। ऐसे में पांच करोड़ साल से भी पुराने जीवाश्म का भारत में मिलना वाकई चौंकाने वाली ख़बर है। अफ्रीका और ख़ास करके इजिप्ट में मिले जीवाश्म के आधार पर मानव के विकास की कई कड़ियों को जोड़ने में सफलता मिली थी लेकिन एशिया में जिस तरह से लगातार मानव के शुरूआती रूपों के जीवाश्म मिले हैं उससे अब ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं मानव इतिहास की शुरूआत एशिया से ही तो नहीं हुई थी और कहीं उसके बाद की कड़ी अफ्रीका तो नहीं पहुंच गई थी।
चलिए ये तो बात हुई उस धारणा की जिसके आधार पर वैज्ञानिक मानव विकास की कड़ियों को आपस में जोड़ रहे हैं। लेकिन अब एक बार फिर बात करते हैं उसी पांच करोड़ साल से भी ज़्यादा पुराने दांत की। इस दांत के विश्लेषण से इस बात का खुलासा हुआ है कि ये जिस प्राणी का है वो एक छोटे कद का लंगूर जैसा हो सकता है और उसका भोजन फल-फूल और छोटे-छोटे कीड़े हो सकते हैं। इस बात का खुलासा होते ही अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भारत के वैज्ञानिकों से संपर्क साधा और अब वो लगातार IIT में इस दांत पर हो रहे शोध में मदद कर रहे हैं। लेकिन इस नए खुलासे ने एक बात तो जरूर साबित कर दिया है कि शुरू से ही मानव विकास की धुरी भारत ही रहा है...

Thursday 3 September, 2009

अंतरिक्ष में भूत

आपमें से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होने भूतों के बारे में देखा सुना और जाना होगा...लेकिन आज हम अंतरिक्ष के भूतों की बात कर रहे हैं...जी हां अंतरिक्ष में भी भूतों को देखा गया है..और इनको वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है...तो चलिए आपको रूबरू करवाते हैं अंतरिक्ष के ऐसे ही भूतों से...


अंतरिक्ष में कई ऐसी चीजें हैं जो बहुत रहस्यमयी है...अंतरिक्ष के बारें में जितना ही जानने की कोशिश की जाती है उतनी ही उलझन बढती जाती है। ऐसी ही एक चीज है अंतरिक्ष में मौजूद गेलेक्सी...ऐसी ही एक गेलेक्सी का हिस्सा हमारा पृथ्वी भी है..इन गेलेक्सी में असंख्य छोटे बड़े तारे होते हैं और ऐसी ना जाने कितनी गेलेक्सी अंतरिक्ष में मौजूद है...पर अंतरिक्ष विज्ञान के इतने विकसित हो जाने के बावजूद इसके बारे में अभी तक वैज्ञानिक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाएं हैं...लेकिन एक अनुमान के आधार पर ये माना जाता है कि जिन दिनों अंतरिक्ष अस्तित्व में आया था उन्ही दिनों कई प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप गेलेक्सी का निर्माण हुआ होगा। अब आप कहेंगे कि हम अंतरिक्ष के भूत को छोड़कर आपको गेलेक्सी के बारे में क्यों जानकारी दे रहे हैं...तो आपको बता दें कि उस भूत के बारे में जानने के लिए पहले गेलेक्सी के बारे में जानना जरूरी है...दरअसल इस भूत के पीछे कहीं ना कहीं गेलेक्सी का भी हाथ है। अंतरिक्ष में मौजूद कई गेलेक्सी हैं जिनके बारे में हमें अभी तक पता नहीं है।


अब आईए मु्ददे की बात करते हैं....हम यहां पर जिस अंतरिक्ष के भूत कर रहे हैं... उसको देखा है एक स्कूली शिक्षक ने...जो शौकिया तौर पर टेलिस्कोप से अंतरिक्ष की नई चीजों की खोज कर रहा था। लेकिन अचानक उसने टेलिस्कोप पर जो देखा उसपर उसे विश्वास नहीं हुआ...लेकिन वो हक़ीक़त था....उसके बाद कई अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने भी इस स्कूल शिक्षक की खोज को देखा....और सब लोग उस खोज को देखकर हैरान थे...किसी के पास भी उस नई खोज का जवाब नहीं था....दरअसल ये खोज थी एक ऐसे गेलेक्सी की जो गेलेक्सी के जैसा नहीं दिख रहा था। बल्कि उसका आकार बेहद डरावना था...यही वजह थी कि विशेषज्ञों ने उसे नाम दिया अंतरिक्ष के भूत का। ये दूसरे गेलेक्सी से इसलिए भी अलग है क्योंकि इसमें तारे मौजूद नहीं है और ये पूरी तरह से काफी गर्म गैस से बना हुआ है। अब इस गेलेक्सी को अंतरिक्ष में मौजूद हब्बल टेलिस्कोप से नज़दीक से देखने की तैयारी चल रही है। क्योंकि ये हमारी पृथ्वी से लाखों प्रकाश वर्ष दूर है। हालांकि इससे पहले भी कई डरावनी आकृतियों वाले गेलेक्सी को देखा गया है...हालांकि एक शिक्षक की इस खोज ने वैज्ञानिकों को सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया है कि अंतरिक्ष की जिस चीज को वो नहीं खोज पाए उसे एक आम इंसान ने खोज निकाला.

Wednesday 2 September, 2009

समुद्र में फैल रहा है ज़हर

आज हम बात करेंगे समुद्र में फैल रहे ज़हर की...वैज्ञानिकों में इसको लेकर काफी चिंता है...क्योंकि ये घटना करोड़ों साल बाद हो रही है...इससे पहले पूरे समुद्र में ज़हर फैलने की घटना डायनासोर के विलुप्त होने के दौरान घटी थी। अगर इसे नहीं रोका गया तो समुद्री जीवों के जीवन पर संकट खड़ा हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो इसका असर मानव जाति पर देखने को मिल सकता है...वैज्ञानिकों के एक ताज़ा शोध के मुताबिक समुद्र का पानी अब धीरे-धीरे एसीडिक होता जा रहा है। इसके पानी का पीएच क़रीब 25 फीसदी नीचे चला गया है। यहां आपको बता दें कि पीएच स्केल वो यंत्र है जिससे किसी के एसीडिक या बेसिक होने का पता चलता है। समुद्र के पानी का पीएच 8 से ऊपर होता है लेकिन ये अब इससे नीचे आ गया है। वैज्ञानिकों की माने तो ये स्थिति करोड़ों साल बाद निर्मित हुई है....समुद्र के पानी की ये स्थिति उस वक्त थी जब धरती पर डायनासोर का राज हुआ करता था। अब समुद्र में इसका असर भी दिखने लगा है। समुद्र के कुछ जीवों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और अगर ये सिलसिला जारी रहा तो समुद्र में रहने वाले छोटे-बड़े सभी जीवों का जीवन संकट में पड़ जाएगा....अगर ऐसा होता है तो इसका असर मानव जाति पर भी पड़ेगा।


अब सवाल ये उठता है कि समुद्र का पानी इस कदर एसीडिक क्यों होता जा रहा है। तो आईए आपको बताते हैं इसकी वजह। दरअसल ये हो रहा है समुद्र के पानी में लगातार मिल रहे कार्बन डाइऑक्साइड के कारण। और ये कार्बन डाइऑक्साइड हमारी नासमझी के कारण ही समुद्र के पानी में मिल रहा है। ये कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस के जलने के बाद समुद्र के पानी में मिलने से परेशानी पैदा कर रहा है। ऐसा नहीं है कि ये केवल मानव निर्मित ही होता है बल्कि प्राकृतिक तौर से ज्वालामुखी विस्फोट से निकले लावा से भी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा समुद्र के पानी में बढ़ रही है। हम प्राकृतिक आपदाओं पर तो काबू नहीं पा सकते लेकिन मानव निर्मित प्रदूषण पर तो जरूर लगाम लगा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर समय रहते इसपर काबू नहीं पाया गया तो इस शताब्दी के अंत तक काफी विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं...क्योंकि लगभग साढ़े 6 करोड़ साल पहले डायनासोर के विलुप्त होने के समय भी समुद्र का पानी काफी एसीडिक हो गया था...तो आप भी जाग जाईए..संभल जाईए...क्योंकि अभी भी वक्त है...