Tuesday 6 October, 2009

पहाड़ चढ़ने वाले पेड़-पौधे

पेड़-पौधों की कुछ ऐसी प्रजातियां पाई गई हैं जो धीरे-धीरे पहाड़ पर चढ़ रहे हैं.. अगर आपको ये मज़ाक लग रहा है तो फिर सतर्क हो जाईए...क्यों कि पेड़-पौधे के पहाड़ पर चढ़ने की बात बिलकुल सच है...और ये सब हो रहा है अमेरिका और यूरोप में...तो आईए जानते हैं कि कैसे ये पेड़-पौधे पहाड़ और ऊपरी इलाकों में चढ़ रहे हैं।

फ्रांस के वैज्ञानिकों ने पेड़-पौधे के ऊपरी इलाकों में चढ़ने की ख़बर से दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चौंका दिया है...लेकिन जब अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी इसकी पड़ताल की तो उन्होने भी इसे सही पाया। ये पूरा शोध पश्चिमी यूरोप के 6 पर्वत श्रृंखलाओं के आस-पास के इलाकों में किया गया। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि इन इलाकों के पेड़ पौधे हर दशक में 29 मीटर की रफ़्तार से ऊंचे स्थान की ओर रुख कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पेड़-पौधों की इस प्रवृति को जांचने के लिए वर्ष 1905 से लेकर वर्ष 2005 तक पेड़-पौधों के स्थानों की जांच की...इस दौरान वैज्ञानिकों ने 175 प्रजाति के पेड़-पौधों का अध्यन किया...जिसमें से 118 प्रजाति के पेड़ पौधों ने अब ऊंचाई की ओर रुख कर लिया है...लेकिन पेड़-पौधों का ऊंचाई की ओर रुख करना वैसा नहीं है जैसा कि आप सोच रहे हैं।

दरअसल ग्लोबल वार्मिंग के कारण इन पेड़-पौधे को मैदानी इलाकों में सही वातावरण नहीं मिल रहा है...जिसके कारण जब इन पेड़-पौधों के बीज हवा के द्वारा बिखरते हैं तो ये अपनी पुरानी जगह पर नहीं उग पाते हैं और इन्ही में से जो बीज हवा के झोंके से थोड़े ऊपरी इलाकों में पहुंच जाते वो वहां पर उग आते हैं...इस तरह से ये पेड़-पौधे धीरे-धीरे गर्म मैदानी इलाकों को छोड़कर थोड़े ठंडे वातावरण में ऊपरी इलाकों में पहुंच जाते हैं। हालाकि ये प्रवृति बड़े पेड़ों की तुलना में छोटे पौधों और झाड़ियों में ज्यादा पाई जा रही है। क्यों कि इन पौधों और झाड़ियों की आयु काफी कम होती है और इसमें प्रजनन की क्रिया काफी जल्दी-जल्दी होती है। जिस तरह से तापमान में फर्क होने के कारण इन पौधों के पहाड़ी इलाकों का रुख करने के प्रमाण मिले हैं उससे भारत के वैज्ञानिक भी चिंतित हैं...उन्होने भी अब इस मामले में जांच पड़ताल शुरू कर दी है कि क्या पेड़-पौधों की कोई ऐसी प्रजाति है जो मैदानी इलाकों को छोड़कर अब ऊपरी इलाकों में चली गई हो। और अगर ऐसा हो रहा है तो ये हमारे लिए एक तरह की चेतावनी है...

Monday 5 October, 2009

जीवन की उत्पत्ति का रहस्य

क्या आपने कभी सोचा है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई...शायद ये आपके लिए ये एक बड़ा रहस्य होगा...तो आईए जीवन की उत्पत्ति के रहस्यों पर से उठाते हैं पर्दा। दरअसल इस रहस्य पर से पर्दा उठाया है यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने। धार्मिक मान्यताओं से हटकर इन वैज्ञानिकों ने जीवन और उसके उत्पत्ति के बीच की कड़ी को ढूंढ़ निकाला है...जीवन की उत्पत्ति कैसे और कब हुई...जीवन का मूल आधार क्या है...क्या ये कोई दैवीय कृपा है या फिर वायुमंडलीय परिवर्तन का नतीज़ा। जीवन की उत्पत्ति से जुड़े इन्ही सवालों का जवाब ना जाने कब से ढ़ूढ़ा जा रहा था। वैज्ञानिकों की लगातार खोज और शोध का नतीजा अब जाकर सामने आया है।

इन वैज्ञानिकों ने अब दावा किया है कि जीवन की उत्पत्ति अंतरिक्ष से आए उल्का पिंडो की वजह से हुई है। उन्होने इसके पीछे आस्ट्रेलिया में 1969 में टकराने वाले मरचीसन नाम के उल्का पींड के टुकड़ों को आधार बनाया है। वैज्ञानिकों को इन टुकड़ों में एमीनो एसीड नाम का वो तत्व मिल गया है जो किसी भी जीवन का मूल तत्व है। डीएनए और आरएनए में इस तत्व का जो स्वरूप होता है वो धरती पर कहीं नहीं मौजूद था। इन दोनों में कार्बन जिस रूप में मौजूद होता है वो केवल अंतरिक्ष में ही मिलता है। इसे आधार बना कर जब वैज्ञानिकों ने शोध शुरू किया तो उन्हे ऐसे कई उल्का पिंडों के टुकड़े मिले जिसमें जीवन का आधार तत्व मौजूद था।

इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने जो नतीजा निकाला है उसके मुताबिक करोड़ों साल पहले जब पृथ्वी अपने निर्माण के शुरूआती दौर में था तो उस दौरान कई उल्का पिंडों की टक्कर पृथ्वी से हुई। इसी टक्कर के दौरान इन उल्का पिंडों में मौजूद जीवन के तत्व पृथ्वी पर आए और कई रासायनिक परिवर्तनों के बाद पानी के समावेश से जीवन की शुरुआती उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिकों की एक दूसरी दलील के मुताबिक धरती से टकराने वाले ये उल्का पिंड....टकराने से पहले कई तारों के आसपास से गुजरे जिससे उसमें मौजूद जीवन के तत्व में काफी बदलाव हुए और आख़िरकार धरती पर गिरने के बाद जीवन के इस मूल तत्व में कुछ और बदलाव आए और धीरे-धीरे कलान्तर में इसी तत्व से जीवन की उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे उल्का पिंड कई और ग्रहों पर गिरे हैं और अगर वहां भी जीवन की उत्पत्ति के लिए अनुकूल वातावरण मिला होगा तो वहां भी जीवन की उत्पत्ति से इंकार नहीं किया जा सकता है...

Wednesday 30 September, 2009

साइकिल बनाए नामर्द, पार्ट-2

आईए अब हम आपको वो उपाय बताते हैं....जिससे आप साईकिल चलाते हुए भी तंदरुस्त रह सकते हैं। मैं अपने इस पोस्ट में आपको बताउंगा कि आखिर क्यों साइकिल चलाने से लोग नामर्द हो जाएंगे। साथ ही आपको ये भी बताउंगा कि इससे आप बच कैसे सकते हैं। आप जब साइकिल चला रहे होते हैं तो आपके साईकिल की सीट आपके जनेन्द्र को दबा रही होती है और साथ ही वो वहां तक पहुंचने वाली खून की नली को दबाती है जिससे अंग में सही अनुपात में खून नहीं पहुंच पाता है। साथ ही कई बार ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर चलते वक्त अगर आपकी साइकिल अरामदेह नहीं है तो भी वो आपके जनेन्द्र को नुकसान पहुंचा सकती है। कई बार अधिक दबाव के कारण आपके स्पर्म के उत्पत्ति स्थल को भी नुकसान पहुंच सकता है। ऐसा नहीं है कि इससे सभी साइकिल सवारों को नुकसान होता है। बल्कि इस नुकसान की आशंका वैसे साइकिल सवारों को ज़्यादा है जो अपने कद के मुताबिक साइकिल का चुनाव नहीं करते...और साथ ही सही तरह की सीट नहीं लगवाते।


आईए अब आपको बताते हैं कि आपको किस तरह की सतर्कता साइकिल ख़रीदते और उसे चलाते वक्त बरतनी चाहिए। साइकिल ख़रीदते वक्त इस बात का ख़ास ख़्याल रखें कि वो आपके कद के मुताबिक सही ऊंचाई वाली हो। इसके लिए आप साइकिल पर बैठकर अपने पांव को जमीन पर टिका कर देख लें...अगर आपका पांव बिना किसी ख़ास परेशानी के ज़मीन तक पहुंच रहा है तो वो साइकिल आपके लिए उपयुक्त है। साथ ही आप साइकिल के सीट का ख़ास ध्यान रखें कि वो आपके जनेन्द्र के ख़ास हिस्सों पर ज़्यादा दबाव ना डाल रहा हो...इसके अलावा साइकिल चलाते वक्त ये याद रखें कि अधिक दूरी की सवारी करने के दौरान बीच-बीच में थोड़ी देर के लिए साइकिल से उतर कर विश्राम जरूर कर लें। क्यों कि अधिक देर तक साईकिल चलाने से आपके कमर के अंदरुनी वाले भाग में ज़्यादा गर्मी पैदा होगी...इससे आपके स्पर्म की संख्या और गुणवत्ता पर फर्क पड़ सकता है। और अगर कभी आपको किसी ढ़लान पर चढ़ने की नौबत आ जाए तो ये बेहतर होगा कि आप साइकिल से उतर कर टहलते हुए ही उसपर चढ़ाई करें....अगर आपने इतनी सतर्कता बरती तो आपकी साइकिल आपके लिए वास्तव में शान की सवारी साबित हो सकती है साथ ही ये पर्यावरण की रक्षा और आपकी सेहत को भी बनाए रखने में मददगार साबित होगी..

Tuesday 29 September, 2009

साइकिल बनाए नामर्द, पार्ट-1

वैज्ञानिकों ने अब ये साबित कर दिया है कि साइकिल चलाने वाले बन सकते हैं नामर्द...अगर आप कुंवारे हैं या फिर शादीशुदा और अगर आप चाहते हैं आपकी गोद में आपकी संतान खिलखिलाए...तो आपको अभी से हो जाना पड़ेगा सतर्क। आपको साइकिल चलाने और ख़रीदने से पहले काफी सावधानी बरतनी होगी ताकि आपकी एक छोटी सी लापरवाही आपके दांपत्य जीवन पर ग्रहण ना लगा दे।

साईकिल है शान की सवारी...और ये आपकी सेहत को भी बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है...जिसमें ये आपको नामर्द भी बना सकती है....जी हां आपने ठीक सुना...साईकिल आपको नामर्द बना सकती है। ये निष्कर्ष निकला है वैज्ञानिकों के काफी दिनों से चल रहे शोध से..भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक ने लंदन में पेश किए गए अपने शोध में इस बात का उल्लेख किया है। उन्होने इसके लिए कई साइकिल सवारों पर निरंतर किए गए शोध को अपना आधार बनाया है। इस शोध में जितने भी साइकिल सवारों को शामिल किया गया था उसमें से लगभग 60 फीसदी लोगों में नपुंशकता के लक्षण पाए गए। इन लोगों में से लगभग सभी के जनेन्द्रियों में होने वाले रक्त प्रवाह में फर्क आया था। इसके अलावा इन साइकिल सवारों के जनन्द्रियों और उसके आस पास की त्वचा भी शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में सुस्त पाई गई।

वैज्ञानिकों ने जब इस शोध को आगे बढ़ाया तो उन्होने पाया कि इन साइकिल सवारों के स्पर्म की गिनती में भी काफी कमी आई थी। इस तरह से वैज्ञानिकों ने साईकिल से होने वाले नुकसानों को दो वर्गों में बांटा...एक नुकसान तो ये कि हो सकता है कि आपके जनेन्द्र में किसी तरह की कमी आ जाए और वो आपके दांम्पत्य सुख में बाधा पैदा कर दे....और दूसरा नुकसान ये हो सकता है कि आपने जनेन्द्र में तो कोई ख़ास कमी ना आए लेकिन आपके स्पर्म की संख्या या गुणवत्ता में ऐसी कमी आ जाए कि आप कभी बाप ना बन पाएं।... पर ऐसा नहीं है कि इससे बचने के उपाय नहीं है...इससे कैसे बचा जा सकता है ये मैं आपको कल बताउंगा

Monday 28 September, 2009

जानलेवा खर्राटे, पार्ट-2

अब हम आपको बताएंगे कि किस तरह से आप अपने खर्राटे के संदेश को पढ़ पाएंगे। आपको कैसे पता चलेगा कि आप वाकई ख़तरे की दहलीज पर पैर रख चुके हैं। और अगर ऐसा है भी तो आप किस तरह से इससे बच सकते हैं। अगर आप खर्राटे लेते हैं तो घबराईए नहीं...इसका ये मतलब नहीं है कि आपको हार्ट अटैक, डायबिटिज या फिर भूलने की बीमारी होगी है...पर जरूरत है ख़तरे के संदेश को समझने की। तो आईए उन लक्षणों के बारे में जानते हैं जिससे आपको सतर्क हो जाने की जरूरत है।


अगर आप खर्राटे लेते हैं और सोने के दौरान आपको सांस लेने में दिक्कत होती है तो आप सतर्क हो जाएं। क्यों कि अगर आपकी नींद एक घंटे में पंद्रह या उससे ज़्यादा बार सांस रुकने के कारण टूट जाती है तो फिर आप ख़तरे से ज़्यादा दूर नहीं हैं इसलिए जरूरत है कि आप जितनी जल्दी हो सके अपने डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें...और अगर ये समस्या आपको एक घंटे में दस बार के क़रीब झेलनी पड़ रही है तो भी आपको निश्चिंत नहीं होना चाहिए। और अगर आपकी नींद एक घंटे में पांच या उससे कम बार टूटती है तो आप ख़तरे के घेरे से बाहर हैं...हालांकि चिकित्सा के माध्यम से इस बीमारी से छुटकारा पाने में थोड़ी मशक्कत करनी पड़ती है फिर भी जरूरत है कि आप नियमित व्यायाम और परहेज से इस बीमारी को काबू में रखें।

अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बीमारी से बचने के लिए आपको क्या उपाय करने चाहिए। अगर आप शराब के शौकीन हैं तो या तो आप उसे छोड़ दें या फिर कम कर दें...धूम्रपान से भी आपको बचना चाहिए। सुबह की सैर आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। साथ ही अगर आप प्राणायाम का योगाभ्यास करें तो ये आपके लिए रामबाण साबित हो सकता है।

Sunday 27 September, 2009

जानलेवा खर्राटे, पार्ट-1

अगर आप अभी तक किसी के खर्राटे की मज़ाक उड़ाते थे तो इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद उसके ख़तरे के बारे में उनको जरूर आगाह कर दें। क्यों कि खर्राटे मज़ाक का विषय नहीं है। बल्कि ये संकेत करता है आने वाले ख़तरे के बारे में। ये सुनकर आपको अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन ये सौ फीसदी सच है। और इस सच को सामने लाया है चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने....तो आईए अब आपको बताते हैं कि क्यों आपको खर्राटे से सावधान हो जाना चाहिए। आपने और हमने कभी ना कभी ऐसे शख़्स को सोते हुए जरूर देखा होगा जो नींद में जोर जोर से खर्राटे लेता था...ये अलग बात है कि जगने के बाद वो आपकी बात का ऐतबार नहीं करता हो...। आज हम आपको बता रहे हैं खर्राटे के संदेश के बारे में...हम ये नहीं कह रहे कि खर्राटा लेना अपने आप में कोई बीमारी है लेकिन जिस वजह से आदमी को खर्राटा लेना पड़ता है....दरअसल बीमारी वो है।
अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि वो बीमारी क्या है। इस बीमारी को इंग्लिश में स्लीपिंग एपनिया कहते हैं....स्लीपिंग एपनिया होने की स्थिति में सोते वक्त आदमी के गले की पेशी, जीभ और अन्य उत्तक आराम की स्थिति में पहुंच जाते हैं जिससे धीरे-धीरे वो सांस की नली को दबाने लगते हैं और नतीज़ा ये होता है कि...ये नली लगभग बंद होने की स्थिति में आ जाती है। इस स्थिति में फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है...और जब नली को खोलने के लिए सांस का प्रवाह तेज होता है तो खर्राटे की आवाज़ आने लगती है। जब कभी ये समस्या काफी बढ़ जाती है तो कई बार आपके दिमाग में पहुंचने वाले ऑक्सिजन की मात्रा काफी कम हो जाती है जो दिमाग के उस हिस्से को प्रभावित करती है...जिसका काम किसी चीज को याद रखना है...और यहीं से शुरू हो जाती है भूलने की बीमारी...इस बीमारी में लापरवाही करने की सूरत में आपकी याद्दाश्त भी जा सकती है। इसके अलावा इस बीमारी से आपको डायबीटिज होने की आशंका भी बनी रहती है

इस बीमारी में कई बार आपके दिल में पहुंचने वाले ऑक्सिजन पर भी फर्क पड़ता है जिससे हार्ट अटैक का ख़तरा बना रहता है। जिससे आपकी मौत भी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने इस नतीजे पर पहुंचने से पहले हार्ट अटैक हो चुके 132 मरीजों पर दस साल तक शोध किया जिसमें से 23 मरीजों में स्लीपिंग एपनिया की बीमारी पाई गई। एक बात तो तय है कि अगर हमारे शरीर में ऑक्सिजन की तय मात्रा से कमी आई तो उससे परेशानियां आना तो लाजिमी...इसलिए जरूरत है कि हम समय रहते सतर्क हो जाएं और खर्राटे को मजाक ना बनाए...अगर आप भी इस खतरे के संकेत और इससे बचने के उपाय के बारे में जानना चाहते हैं.. तो मेरा कल का पोस्ट जरूर पढ़ें

Sunday 20 September, 2009

डरना मना है

क्या आपको बता है आजकल अमेरिकी फौज के जवान काफी डरे हुए हैं ...यही वजह है कि अमेरिका के डॉक्टर उन्हे निडर बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। अमेरिकी फौजियों के अंदर जो भय समाया हुआ है वो हमारे और आपके अंदर नहीं है लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि कुछ लोगों को छोड़ दें तो बाकि पूरी मानव जाति किसी ना किसी डर से भयभीत है। अब सवाल ये है कि क्या कुछ ऐसा हो सकता है कि लोगों के भीतर बैठा डर गायब हो जाए...इराक और अफगानिस्तान से वापस स्वदेश लौट रहे अमेरिकी फौज के क़रीब 20 फीसदी जवानों में एक अजीब सा डर देखने को मिल रहा है। उनके भीतर के इस डर को ख़त्म करने के लिए उनका विशेष तरीके से इलाज़ भी किया जा रहा है। इसी तरह से एक शोध के मुताबिक हर साल पूरी दुनिया के क़रीब 4 करोड़ लोग किसी अनजाने डर के शिकार हो रहे हैं। और यही डर कई बीमारियों को जन्म दे रहा है।


अब हम आपको बताते हैं कि दरअसल ये डर आता कहां से है...क्या इसका वजूद किसी ख़ास वजह से है...जी हां हमारे और आपके अंदर जो डर समाया हुआ है...वो हमारे ही दिमाग की उपज है...ये डर दिमाग के एक ख़ास हिस्से में मौजूद एमीगडाला नाम के एक न्यूरॉन की देन है। इस हिस्से का पता कुछ साल पहले एक शोध के माध्यम से चला था। डॉक्टर और वैज्ञानिक इस शोध के आधार पर किसी डरे हुए व्यक्ति या फोबिया के शिकार किसी मरीज को एक ख़ास तरह की ट्रेनिंग देते थे। जिसके दौरान जिस वजह से वो शख्स डर या फोबिया का शिकार हो रहा है उससे उसे बराबर दो चार कराया जाता था और उसके डर को दूर करने की कोशिश की जाती थी लेकिन एक नए शोध के मुताबिक ये ट्रेनिंग भी कुछ ख़ास हालात पर निर्भर करता है...और वो हालात नहीं होने की सूरत में उस शख़्स के अंदर बैठा डर ख़त्म नहीं होता है। इसी समस्या का समाधान खोज रहे वैज्ञानिकों को एमीगडाला के उस हिस्से का पता चल गया है जो किसी भी डर को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ITC न्यूरॉन नामक इस हिस्से का काम दिमाग को भेजे जा रहे डर के संकेत को रोकना है। दरअसल ये हिस्सा दिमाग में बने हुए डर की याद्दाश्त को ख़त्म नहीं करता है बल्कि एक अलग भयमुक्त याद्दाश्त का निर्माण करता है।


यही वजह कि कुछ लोग जिस वजह से डरते हैं वही वजह दूसरे के लिए डरने का कारण बने ऐसा जरूरी नही हैं। या ये भी हो सकता है कोई शख़्स पहले जिस वजह से डरता हो वो कुछ समय बाद उस वजह से ना डरे। ऐसा होता है इसी ITC न्यूरॉन की सक्रिय भूमिका से....वैज्ञानिक अब इसी कोशिश में लगे हुए हैं कि क्या कभी ऐसे हालात बनाए जा सकते हैं जब इस ITC न्यूरॉन की सक्रियता को किसी तरह से बढ़ाया या घटाया जा सके । अगर वैज्ञानिकों ने अपनी कोशिश से ऐसा कुछ करने में सफलता पा ली तो वो दिन दूर नहीं कि जब निडर बनने के लिए भी बाज़ार में दवाई मिलने लगे। वैसे आजकल अमेरिकी सैनिकों को डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की देख रेख में वैसे हालात से गुजारा जा रहा है जिससे उनके अंदर का डर ख़त्म किया जा सके..

Wednesday 16 September, 2009

प्राचीन कंप्यूटर, पार्ट-2

और आईए अब खुलासा करते हैं प्राचीन कंप्यूटर से जुड़े रहस्यों का....वैज्ञानिकों को ये प्राचीन कंप्यूटर जिस हालत में मिला था उससे...उसके बारे में कुछ भी समझ पाना काफी मुश्किल था लेकिन ग्रीस के पुराने साहित्यों से मिली जानकारी के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस यंत्र की कड़ी को आपस में जोड़ना शुरू कर दिया...लेकिन हज़ारों साल बीत जाने के कारण वैज्ञानिकों को इसमें काफी मुश्किलें आईं। लेकिन इस यंत्र में छिपे रहस्य वैज्ञानिकों में काफी उत्साहित कर रहे थे...आखिरकार उन्होने इसके लिए कंप्यूटर एक्स-रे तकनीक का सहारा लिया। इसके बाद यंत्र से जुड़े सभी राज एक-एक करके सामने आने लगे।

रहस्यों पर से जैसे-जैसे पर्दा उठता जा रहा था वैसे-वैसे वैज्ञानिकों की हैरानी भी बढ़ती जा रही थी। वैज्ञानिकों को ये उम्मीद नहीं थी कि दो हज़ार साल पहले की तकनीक इतनी विकसित होगी। वैज्ञानिक जिस निष्कर्ष पर पहुंचे उसके मुताबिक...ये प्राचीन कंप्यूटर खगोलीय गतिविधियों पर नज़र रखता था और इससे ग्रहों और नक्षत्रों पर आधारित भविष्यवाणियां भी की जाती थी। ये कंप्यूटर कुंडली में सूर्य और चंद्रमा के स्थान परिवर्तन के बारे में भी सटीक जानकारी देता था। इसके अलावा इस यंत्र से चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के बारे में भी सटीक भविष्यवाणी की जाती होगी। वैज्ञानिकों को और ज़्यादा हैरानी ये बात जानकर हुई कि ये प्राचीन कंप्यूटर दो हज़ार साल पहले ही चंद्रमा के कक्षा के बारे में जानकारी रखता था।

यहां पर ये बात भी काफी दिलचस्प है कि इस यंत्र के बाद 18वीं शताब्दी तक इतने विकसित किसी यंत्र का निर्माण नहीं हो पाया था। वैज्ञानिक अब इस बात का भी पता लगाने में जुटे हुए हैं कि इस तरह के और कितने यंत्र दो हज़ार साल पहले ग्रीस में मौजूद थे। हालांकि वैज्ञानिकों ने एक बात जरूर मानी है कि जिस जमाने में इस यंत्र का अविष्कार हुआ था उससे उस अविष्कारक के अपार बौद्धिक क्षमता का पता चलता है.

Monday 14 September, 2009

प्राचीन कंप्यूटर, पार्ट-1

अगर मैं आपसे कहूं कि हजारों साल पहले भी कंप्यूटर था..तो शायद आप इसे मजाक समझेंगे.. लेकिन ये सच है.. आज मैं आपको एक ऐसे कंप्यूटर के बारे में बताने जा रहा हूं...जो वाकई दो हज़ार साल पुराना है। अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि दरअसल ये कंप्यूटर कैसे काम करता है और वैज्ञानिकों के हाथ कैसे लगा। दरअसल वैज्ञानिकों को ये प्राचीन कंप्यूटर कई साल पहले हाथ लगा था लेकिन उस वक्त ये उनके लिए एक बहुत बड़ा रहस्य था। क्यों कि उन्होने ये कल्पना भी नहीं की थी कि दो हज़ार साल पहले का तकनीक इतना विकसित हो सकता है। घड़ी के जैसा दिखने वाला ये यंत्र वैज्ञानिकों के हाथ लगना एक संयोग मात्र था।

ये यंत्र वैज्ञानिकों को ग्रीस के एंटीकायथेरा आइलैंड के पास समुद्रतल में मिला था। इस खोज का श्रेय उस दल के गोताखोरों को जाता है जो एक डूबे हुए जहाज के अवशेष को ढूढ़ने के लिए समुद्रतल पर गए हुए थे। यहां उन्हे दो हज़ार साल पहले डूबे हुए ग्रीस के व्यापारियों के एक जहाज का अवशेष मिला और उसी अवशेष में मिला उन्हे ये प्राचीन कंप्यूटर। गोताखोरों को ये यंत्र 70 टुकड़ों में एक टूटे हुए लकड़ी और कांस्य के बक्से के साथ मिला। जब इस यंत्र को बाहर निकालकर जोड़ने की कोशिश की गई तो पता चला कि वो 70 टुकड़े उन 30 गियर के थे जिससे मिलकर ये प्राचीन कंप्यूटर बना था।

काफी मशक्कत के बाद वैज्ञानिकों ने इसकी आपस की कड़ियों को जोड़ने में सफलता प्राप्त की लेकिन वो इसमें छुपे रहस्य को नहीं जान पाए। इस यंत्र के रहस्य को जानने के लिए एक विशेष टीम का गठन किया गया जिसमें खगोलविद, कंप्यूटर विशेषज्ञ, गणितज्ञ, पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार शामिल थे। इस यंत्र के रहस्यों को जानने के लिए इसे एथेंस में काफी सुरक्षित तरीके से रखा गया जहां इसे छूने की भी किसी को इज़ाजत नहीं थी। लेकिन इस प्राचीन कंप्यूटर ने वैज्ञानिकों की ग्रीस की तकनीक के बारे में फिर से सोचने पर विवश कर दिया...ये कंप्यूटर कैसे काम करता था और इसमें कौन सा रहस्य छिपा है इसके बारे में मैं आपको कल बताउंगा...

Sunday 13 September, 2009

हीरे से मिला जीवन

वैज्ञानिकों के ताज़ा शोध के मुताबिक इस बात की प्रबल संभावना है कि जीवन की उत्पत्ति में हीरे की अहम भूमिका रही हो। वैज्ञानिकों की माने तो करोड़ों साल पहले हीरे की हाइड्रोजन के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया हुई होगी...जिसके बाद हीरे के सतह पर एक ऐसे जलीय सतह का निर्माण हुआ होगा...जो धरती से उल्कापिंड के टकराने के बाद उसमें मौजूद जीवन कारकों के लिए काफी मददगार साबित हुआ होगा...और इसी जीवन कारक के हीरे के सतह पर मौजूद जलीय सतह से प्रतिक्रिया करने से जीवन की उतपत्ति हुई होगी। हालांकि ये वैज्ञानिकों का अनुमान मात्र ही है...और अभी भी इस मामले में शोध चल रहा है।
अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसे जानकर आपको और भी हैरानी होगी...आपने कभी ना कभी काले हीरे के बारे में जरूर सुना होगा...इसे विज्ञान की भाषा में कार्बोनेडो कहते हैं...वैज्ञानिक इस काले हीरे की उत्पत्ति को भी उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने से जोड़कर देखते हैं। उनके मुताबिक पृथ्वी से टकराने वाले एक उल्कापिंड में ही कुछ किलोमीटर की परिधि वाला कार्बोनेडो मौजूद था...अगर ये सच है तो हम कह सकते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कुछ किलोमीटर लंबा-चौड़ा था....वैज्ञानिकों ने कार्बोनेडो की उत्पत्ति पर किए गए अपने दावे की पुष्टि के लिए उसके उत्पत्ति स्थल को आधार बनाया है...दरअसल दुनियाभर में ये काला हीरा केवल ब्राजील और मध्य अफ्रीका के ही कुछ इलाकों में पाए जाते हैं...इसके आगे वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि दुनियाभर में 1900 ईस्वी से लेकर अभी तक क़रीब 600 टन हीरे ख़दानों से निकाले जा चुके हैं लेकिन इनमें से एक भी काला हीरा नहीं था। इससे ये बात साफ हो जाती है कि काला हीरा एक विशेष स्थान में ही मिल रहा है...जिससे ये बात लगभग सही मालूम पड़ती है कि ये काला हीरा दूसरे हीरों की तरह प्राकृतिक तरीके से नहीं बना है। इसलिए आप जब भी कभी हीरे की ख़रीददारी करें तो आपको ये मालूम रहे कि ये वाकई अनमोल हैं...और जिस तरह से ये हीरे करोड़ो साल बाद हमारे पास मौजूद हैं उससे तो ये बस यही बात साबित होती है कि...हीरा है सदा के लिए...

Thursday 10 September, 2009

अंतरिक्ष से आए हीरे


क्या आपको पता है कि एक बेशकीमती हीरा आप तक पहुंचने में कितना लंबा सफर तय करता है। वैसे आपलोगों को इस बात की जानकारी तो होगी ही कि हीरे कैसे तराशे जाते हैं लेकिन शायद आपको ये पता नहीं होगा कि जिस पत्थर को तराश कर हीरा बनाया जाता है वो कैसे बनता है और कैसे धरती के सतह पर आता है। आईए इसी की पड़ताल करते हैं


आपमें से कई लोगों के पास हीरे के आभूषण होंगे...लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि इस हीरे को आपतक पहुंचने में कितना समय लगा होगा। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि एक प्राकृतिक हीरे को आप तक पहुंचने में करोड़ों साल का समय तय करना पड़ता है। अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा है तो आईए हम आपको इसे विस्तार से बताएं...


जो हीरे आप और हम बाज़ारों में देखते हैं उसमें से अधिकतर कृत्रिम हीरे होते हैं...लेकिन जो हीरे प्राकृतिक होते हैं उसे इंसानों तक पहुंचने में एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है...दरअसल ये हीरे धरती के सतह से सौ किलोमीटर से भी ज़्यादा नीचे पाए जाते हैं अब सवाल ये उठता है कि ये हम तक पहुंचते कैसे हैं...जिन पत्थरों को तराश कर हीरा बनाया जाता है वो ज्वालामुखी के लावे के साथ धरती के सतह तक पहुंचते हैं और फिर खदानों की खुदाई के वक्त हमें मिलते हैं....इसके बाद उन्हे तराश कर हीरे का रूप दिया जाता है।


वैज्ञानिकों के एक सिद्धांत के मुताबिक इन हीरों में मौजूद कार्बन सूखे हुए पेड़-पौधों और मरे हुए प्राणियों से आए हैं...उनके मुताबिक ये चीज़ें धरती के काफी अंदर पहुंचने के बाद वहां की गर्मी और दबाव के कारण जीवाश्म और कार्बन में तब्दील हो गए जहां से हीरे को कार्बन मिला...लेकिन अब आधुनिक वैज्ञानिक इस सिद्धांत को नहीं मानते...क्योंकि हीरे में जो कार्बन पाए गए हैं वो पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से भी करोड़ों साल पहले के हैं। अब सवाल ये उठता है कि हीरे को आखिरकार ये कार्बन कहां से मिले...इसके जवाब में वैज्ञानिकों ने बताया कि ये कार्बन पृथ्वी से टकराए उल्कापिंड और टूटे हुए तारों से मिले होंगे। इससे ये बात लगभग साबित हो गई है कि हीरे में मौजूद कार्बन अंतरिक्ष से आए हैं।

Tuesday 8 September, 2009

बदल रहा है अंटार्कटिका

अंटार्कटिका जैसा आज है वैसा हमेशा से था..बिलकुल नहीं बल्कि बहुत पहले अंटार्कटिका में लगभग जम्मू जैसे हालात थे। वहां पर बहुत कुछ आज के जैसा नहीं था...हो सकता है अंटार्कटिका का नाम सुनते ही आपकी कंपकपी छूट जाती हो...लेकिन अंटार्कटिका सब दिन से ऐसा नहीं था। यहां पर एक वक्त ऐसा भी था जब या तो बर्फ बिलकुल नहीं थे या फिर बहुत कम मात्रा में थे। अब सवाल ये उठता है कि हम किस वक्त की बात कर रहे हैं...तो आपको बता दें कि वो वक्त था आज से चार करोड़ साल पहले का। इस बात का पता चला है न्यूज़ीलैंड में मिले एक जीवाश्म से....अब आपको लग रहा होगा कि अंटार्कटिका का भला न्यूजीलैंड से क्या रिश्ता है...तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जहां पर न्यूज़ीलैंड आज मौजूद है करोड़ों साल पहले वो वहां पर नहीं था बल्कि वो अपने मौजूदा जगह से क़रीब 1100 किलोमीटर दक्षिण की ओर अंटार्कटिका के पास मौजूद था।


वैज्ञानिकों ने जब उस जीवाश्म की पड़ताल की तो उन्हे ये भी पता चला कि अंटार्कटिका के पास समुद्र के पानी का तापमान भी 23 से 25 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था। आजकल जिस तरह से आइस शेल्फ और ग्लेशियर पिघल रहे हैं उससे तो यही लगता है कि..हो सकता है एक दिन ऐसा आए कि अंटार्कटिका फिर से अपने पुराने रूप में लौट जाए। इसका कुछ-कुछ असर इसके आसपास के आइलैंड पर देखने को मिल रहा है जहां पर रहन-सहन और फसलों के तरीके बदलने लगे हैं।


अब हम आपको जो बतलाने जा रहे हैं वो और भी चौंकाने वाली जानकारी है...वैज्ञानिकों ने जब अंटार्टिका के अंदरुनी सतहों का बारिक अध्यन किया तो उन्हे पता चला कि अंटार्कटिका के बर्फ की मोटी सतहों के नीचे अथाह तेल और प्राकृतिक गैस का भंडार है...एक अनुमान के मुताबिक उस तेल और गैस के भंडार से दुनिया भर के तीन साल की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। उस भंडार पर क़ब्जा करने के लिए कई देशों के बीच होड़ भी लग चुकी है...पर जरूरत होगी ऐहतियात कि ताकि कुदरत के साथ हो रहे छेड़छाड़ को और बढ़ावा ना मिल सके...

Monday 7 September, 2009

चमत्कारी दांत

आज हम जिक्र कर रहे हैं एक चमत्कारी दांत की..इस दांत ने पुरातत्व विशेषज्ञों को भी हैरत में डाल दिया है...इसने करोड़ों साल के इतिहास को एक झटके में बदल दिया है.. ये दांत करोड़ों साल पुराना है और ये गुजरात में मिला है। इस दांत के मिलने से कई रहस्यों पर से पर्दा हट गया है.. ये दांत मिला है गुजरात के वस्तन कोयला खादान में। इस दांत ने वैज्ञानिकों के उस धारणा को ग़लत साबित कर दिया है जिसमें ये माना गया है कि मानव के विकास की शुरूआत अफ्रीका से हुई...और धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैला। लेकिन अब तक अफ्रीका और आस-पास के देशों में जो जीवाश्म मिले हैं वो चार से पांच करोड़ साल ही पुराने हैं। ऐसे में पांच करोड़ साल से भी पुराने जीवाश्म का भारत में मिलना वाकई चौंकाने वाली ख़बर है। अफ्रीका और ख़ास करके इजिप्ट में मिले जीवाश्म के आधार पर मानव के विकास की कई कड़ियों को जोड़ने में सफलता मिली थी लेकिन एशिया में जिस तरह से लगातार मानव के शुरूआती रूपों के जीवाश्म मिले हैं उससे अब ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं मानव इतिहास की शुरूआत एशिया से ही तो नहीं हुई थी और कहीं उसके बाद की कड़ी अफ्रीका तो नहीं पहुंच गई थी।
चलिए ये तो बात हुई उस धारणा की जिसके आधार पर वैज्ञानिक मानव विकास की कड़ियों को आपस में जोड़ रहे हैं। लेकिन अब एक बार फिर बात करते हैं उसी पांच करोड़ साल से भी ज़्यादा पुराने दांत की। इस दांत के विश्लेषण से इस बात का खुलासा हुआ है कि ये जिस प्राणी का है वो एक छोटे कद का लंगूर जैसा हो सकता है और उसका भोजन फल-फूल और छोटे-छोटे कीड़े हो सकते हैं। इस बात का खुलासा होते ही अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भारत के वैज्ञानिकों से संपर्क साधा और अब वो लगातार IIT में इस दांत पर हो रहे शोध में मदद कर रहे हैं। लेकिन इस नए खुलासे ने एक बात तो जरूर साबित कर दिया है कि शुरू से ही मानव विकास की धुरी भारत ही रहा है...

Thursday 3 September, 2009

अंतरिक्ष में भूत

आपमें से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होने भूतों के बारे में देखा सुना और जाना होगा...लेकिन आज हम अंतरिक्ष के भूतों की बात कर रहे हैं...जी हां अंतरिक्ष में भी भूतों को देखा गया है..और इनको वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है...तो चलिए आपको रूबरू करवाते हैं अंतरिक्ष के ऐसे ही भूतों से...


अंतरिक्ष में कई ऐसी चीजें हैं जो बहुत रहस्यमयी है...अंतरिक्ष के बारें में जितना ही जानने की कोशिश की जाती है उतनी ही उलझन बढती जाती है। ऐसी ही एक चीज है अंतरिक्ष में मौजूद गेलेक्सी...ऐसी ही एक गेलेक्सी का हिस्सा हमारा पृथ्वी भी है..इन गेलेक्सी में असंख्य छोटे बड़े तारे होते हैं और ऐसी ना जाने कितनी गेलेक्सी अंतरिक्ष में मौजूद है...पर अंतरिक्ष विज्ञान के इतने विकसित हो जाने के बावजूद इसके बारे में अभी तक वैज्ञानिक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाएं हैं...लेकिन एक अनुमान के आधार पर ये माना जाता है कि जिन दिनों अंतरिक्ष अस्तित्व में आया था उन्ही दिनों कई प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप गेलेक्सी का निर्माण हुआ होगा। अब आप कहेंगे कि हम अंतरिक्ष के भूत को छोड़कर आपको गेलेक्सी के बारे में क्यों जानकारी दे रहे हैं...तो आपको बता दें कि उस भूत के बारे में जानने के लिए पहले गेलेक्सी के बारे में जानना जरूरी है...दरअसल इस भूत के पीछे कहीं ना कहीं गेलेक्सी का भी हाथ है। अंतरिक्ष में मौजूद कई गेलेक्सी हैं जिनके बारे में हमें अभी तक पता नहीं है।


अब आईए मु्ददे की बात करते हैं....हम यहां पर जिस अंतरिक्ष के भूत कर रहे हैं... उसको देखा है एक स्कूली शिक्षक ने...जो शौकिया तौर पर टेलिस्कोप से अंतरिक्ष की नई चीजों की खोज कर रहा था। लेकिन अचानक उसने टेलिस्कोप पर जो देखा उसपर उसे विश्वास नहीं हुआ...लेकिन वो हक़ीक़त था....उसके बाद कई अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने भी इस स्कूल शिक्षक की खोज को देखा....और सब लोग उस खोज को देखकर हैरान थे...किसी के पास भी उस नई खोज का जवाब नहीं था....दरअसल ये खोज थी एक ऐसे गेलेक्सी की जो गेलेक्सी के जैसा नहीं दिख रहा था। बल्कि उसका आकार बेहद डरावना था...यही वजह थी कि विशेषज्ञों ने उसे नाम दिया अंतरिक्ष के भूत का। ये दूसरे गेलेक्सी से इसलिए भी अलग है क्योंकि इसमें तारे मौजूद नहीं है और ये पूरी तरह से काफी गर्म गैस से बना हुआ है। अब इस गेलेक्सी को अंतरिक्ष में मौजूद हब्बल टेलिस्कोप से नज़दीक से देखने की तैयारी चल रही है। क्योंकि ये हमारी पृथ्वी से लाखों प्रकाश वर्ष दूर है। हालांकि इससे पहले भी कई डरावनी आकृतियों वाले गेलेक्सी को देखा गया है...हालांकि एक शिक्षक की इस खोज ने वैज्ञानिकों को सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया है कि अंतरिक्ष की जिस चीज को वो नहीं खोज पाए उसे एक आम इंसान ने खोज निकाला.

Wednesday 2 September, 2009

समुद्र में फैल रहा है ज़हर

आज हम बात करेंगे समुद्र में फैल रहे ज़हर की...वैज्ञानिकों में इसको लेकर काफी चिंता है...क्योंकि ये घटना करोड़ों साल बाद हो रही है...इससे पहले पूरे समुद्र में ज़हर फैलने की घटना डायनासोर के विलुप्त होने के दौरान घटी थी। अगर इसे नहीं रोका गया तो समुद्री जीवों के जीवन पर संकट खड़ा हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो इसका असर मानव जाति पर देखने को मिल सकता है...वैज्ञानिकों के एक ताज़ा शोध के मुताबिक समुद्र का पानी अब धीरे-धीरे एसीडिक होता जा रहा है। इसके पानी का पीएच क़रीब 25 फीसदी नीचे चला गया है। यहां आपको बता दें कि पीएच स्केल वो यंत्र है जिससे किसी के एसीडिक या बेसिक होने का पता चलता है। समुद्र के पानी का पीएच 8 से ऊपर होता है लेकिन ये अब इससे नीचे आ गया है। वैज्ञानिकों की माने तो ये स्थिति करोड़ों साल बाद निर्मित हुई है....समुद्र के पानी की ये स्थिति उस वक्त थी जब धरती पर डायनासोर का राज हुआ करता था। अब समुद्र में इसका असर भी दिखने लगा है। समुद्र के कुछ जीवों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और अगर ये सिलसिला जारी रहा तो समुद्र में रहने वाले छोटे-बड़े सभी जीवों का जीवन संकट में पड़ जाएगा....अगर ऐसा होता है तो इसका असर मानव जाति पर भी पड़ेगा।


अब सवाल ये उठता है कि समुद्र का पानी इस कदर एसीडिक क्यों होता जा रहा है। तो आईए आपको बताते हैं इसकी वजह। दरअसल ये हो रहा है समुद्र के पानी में लगातार मिल रहे कार्बन डाइऑक्साइड के कारण। और ये कार्बन डाइऑक्साइड हमारी नासमझी के कारण ही समुद्र के पानी में मिल रहा है। ये कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस के जलने के बाद समुद्र के पानी में मिलने से परेशानी पैदा कर रहा है। ऐसा नहीं है कि ये केवल मानव निर्मित ही होता है बल्कि प्राकृतिक तौर से ज्वालामुखी विस्फोट से निकले लावा से भी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा समुद्र के पानी में बढ़ रही है। हम प्राकृतिक आपदाओं पर तो काबू नहीं पा सकते लेकिन मानव निर्मित प्रदूषण पर तो जरूर लगाम लगा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर समय रहते इसपर काबू नहीं पाया गया तो इस शताब्दी के अंत तक काफी विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं...क्योंकि लगभग साढ़े 6 करोड़ साल पहले डायनासोर के विलुप्त होने के समय भी समुद्र का पानी काफी एसीडिक हो गया था...तो आप भी जाग जाईए..संभल जाईए...क्योंकि अभी भी वक्त है...

Friday 28 August, 2009

अनोखी बंदूक

आपने बहुत सी ऐसी बंदूकें देखी होंगी जिससे निकली गोली किसी की जान ले सकती है। हालांकि वहां पर एक चीज से उसके प्रभाव क्षेत्र में फर्क आता है...और वो है उस बंदूक में इस्तेमाल की जा रही गोली...जी हां बंदूक में गोली डालने से पहले बंदूक चलाने वाला अपने मकसद के मुताबिक एक निश्चित मारक क्षमता वाली गोली का इस्तेमाल करता है। लेकिन आज हम जिस अनोखी बंदूक के बारे में आपको बता रहे हैं...उसमें बिलकुल अलग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।


तो आईए आपको बताते हैं कि दरअसल ये बंदूक दूसरी आधुनिक बंदूकों से किस तरह से अलग और इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है कि अमेरिका की सेना भी इस बंदूक को पाना चाह रही है। आपको बता दें कि ये बंदूक मौके और हालात के मुताबिक काम करती है। अगर आप चाहते हैं कि इस बंदूक से निकली गोली किसी की जान ले ले तो ऐसा हो सकता है और अगर आप चाहते हैं कि बंदूक की गोली किसी को केवल घायल ही करे तो ऐसा ही होगा इन सबके अलावा अगर आप चाहते हैं कि आपके निशाने पर जो शख़्स है उसे बहुत हल्का सा जख़्म ही आए तो ऐसा भी मुमकिन हो सकता है। लेकिन आपको अपने इरादे के मुताबिक अलग-अलग गोलियों का इस्तेमाल नहीं करना होगा बल्कि एक ही बंदूक से एक ही मारक क्षमता वाली गोली से आप अलग-अलग काम ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो किसी भीड़ को काबू में करने के लिए उनपर इस बंदूक से रबड़ की गोलियां भी बरसा सकते हैं.


अब सवाल ये उठता है कि एक ही बंदूक से एक साथ इतने अलग-अलग काम कैसे लिए जा सकते हैं...तो आईए आपको इसकी तकनीक के बारे में बताते हैं। दरअसल इस बंदूक में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिससे आप किसी भी गोली के गति को नियंत्रित कर सकते हैं..अगर आप किसी की जान लेना चाहते हैं तो आपको गति की सीमा को उच्चतम स्तर पर रखना होगा और उसके बाद अपने इरादे के मुताबिक गोली की गति की सीमा को कम कर सकते हैं। हालांकि बंदूक के शौकीनों को ये जानकर काफी निराशा होगी कि इस बंदूक को भारतीय बाज़ार में आने में काफी समय और अड़चनों को पार करना होगा..

Wednesday 26 August, 2009

गणपति की शिकायत

कल रात मेरे पास गन्नू भाई मुंह पर स्वाइन फ्लू का मास्क लगाकर आए..अरे आप कन्फ्यूज मत होईए..गन्नू भाई से मेरा आशय गणपति बप्पा से है.. तो चलिए मुलाक़ात की बात को आगे बढ़ाते हैं.. गन्नू भाई काफी थके हुए पसीने से तर-बतर थे.. उन्होने अपनी पीठ पर काफी बड़ा सा बैग टांगा हुआ था.. लेकिन एक बात जो मुझे काफी अजीब लगी, वो था उनका 8 पैक एब्स..उसे देखकर मैं काफी हैरान था क्यों कि मेरे मन में जो उनकी छवि थी उसमें उनकी अच्छी खासी तोंद निकली हुई थी...मुझे चौंकते हुए देखकर उन्होने अपनी पीठ पर से अपना भारी बैग उतारा और धम्म से सोफे पर पसर गए... मैने उन्हे पानी पिलाया और खाने के लिए थाली भरकर लड्डू परोस दिया... पानी तो उन्होने पी लिया लेकिन लड्डू खाने से मना कर दिया..बाद में उन्होने बताया कि आजकल वो डायटिंग कर रहे हैं...

मुझे लगा कि मेरे स्वागत सत्कार से वो प्रसन्न हो गए होंगे और अब वो अपने भारी बैग से निकालकर मुझे कुछ तोहफे देंगे... ऐसा ख़्याल आते ही मैं हसरत भरी नज़रों से उनके बैग की ओर एकटक देखने लगा... गन्नू भाई तो अंतर्यामी हैं उन्होने मेरे भाव को ताड़ लिया और अपना बैग खोलने लगे... जैसे-जैसे उनके बैग की गांठ खुलती जा रही थी वैसे-वैसे मेरे दिल की धड़कने तेज होती जा रही थी.. मन ही मन मैने दिल्ली के पॉश इलाके में पांच सौ गज का प्लॉट खरीद लिया था..और जबतक उनके बैग की आखिरी गांठ खुलती तबतक मैने उस प्लॉट पर एक आलीशान बंगला और उस बंगले के गैरेज में दो-तीन लंबी गाड़ियां पार्क कर चुका था..

आख़िरकार इंतजार की घड़ियां ख़त्म हुई.. गन्नू भाई ने उस बैग से सामान निकालना शुरू किया... उन सामानों को देखकर मेरे अरमानों पर एक साथ ना जाने कितना लीटर पानी फिर गया था... उस पानी में मेरा पांच सौ गज का प्लॉट, आलीशान बंगला और लंबी गाड़ियां एक झटके में बह गए.. ऐसा लग रहा था जैसे मैं बिहार के सुपौल ज़िले में खड़ा हूं और एक बार फिर कोसी नदी ने अपना रास्ता बदल कर सबकुछ अपने में समेट लिया हो... अचानक गन्नू भाई की थकी हुई आवाज से मैं अपने ख़्यालों से वापस आया...मेरे सामने गन्नू भाई अपने बैग से निकाले गए, एके-47, बैट, टीम इंडिया की जर्सी, फुटबॉल जैसे अनगिनत सामानों के साथ खड़े थे.. मैने जब उनसे उन सामानों के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि ये सब सामान उनके अति उत्साहित भक्तों ने दिया है...

उन्होने बताया कि कैसे गणेश उत्सव के दौरान कुछ नया करने की होड़ में उनके भक्तगण उनको कलयुगी बनाने पर तुले हुए हैं.. हद तो तब हो गई जब उनके कुछ भक्तों ने उन्हे मूषकराज से उठा कर डायनासोर पर बैठा दिया... मैने भी थोड़े मजाकिया अंदाज में गन्नू भाई से पूछ ही लिया कि उन्हे डायनासोर पर बैठने में परेशानी क्यों हो रही है..क्यों कि उनका डिल-डौल तो डायनासोर पर बैठने के लिए बिलकुल फिट है..मुझे लगा कि शायद गन्नू भाई डायनसोर की उबड़-खाबड़ पीठ से परेशान हो रहे होंगे..लेकिन ऐसा नहीं था उनकी शिकायत थी पृथ्वीलोक पर हो रही पार्किंग की समस्या से..उन्होने बताया कि डायनासोर के मुक़ाबले चूहे को पार्क करना काफी आसान है.. और चूहे पर सवारी करना सस्ता भी है। इस बारे में वो आगे कुछ बताते इससे पहले ही मैने उनसे मेरे घर पधारने की वजह पूछ ली...लेकिन इस सवाल पर गन्नू भाई की प्रतिक्रिया को देखकर लगा जैसे वो इसी सवाल का इंतजार कर रहे थे..

उन्होने सवाल ख़त्म होते ही बताया कि कैसे इंसानों की नित नई जिम्मेदारी संभालते-संभालते वो परेशान हो गए हैं...जब भी कोई नई मुसीबत आती है तो इंसान गणेश उत्सव में मुंह लटकाए हुए उनके पास पहुंच जाते हैं और फिर उन्हे कभी, बैट पकड़ा देते हैं तो कभी आतंकवादियों से लड़ने के लिए एके-47 थमा देते हैं..और तो और उन्हे ऐसे मॉडर्न पोशाक पहना देते हैं कि स्वर्ग लोक में जहां देखो वहीं देवतागण उनकी खिल्ली उड़ाते नज़र आते हैं.. गन्नू भाई ने ये भी बताया कि उन्हे गणेश उत्सव के दौरान क्यों डायटिंग करनी पड़ रही है.. उन्होने बताया कि कैसे मूर्तिकार उनके ऊपर प्लास्टर ऑफ पेरिस थोप कर उनको और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं...और इसी पीओपी के कारण वो पूरे दस दिन कुछ नहीं खा पाते हैं...

गन्नू भाई चाहते थे कि मैं मीडिया के माध्यम से इस मामले में जागरुकता फैलाऊं ताकि उनके भक्तजन अपनी समस्याओं का ठीकरा उनपर फोड़ने के बजाए अपने स्तर पर भी उनसे निपटने की कोशिश करें...वैसे भगवान तो अंतर्यामी हैं ही उन्हे कुछ बताने की जरूरत भी नहीं.. वो तो बिना बताए ही अपने भक्तों का कष्ट हर लेते हैं...फिर उनके प्रतिमा से खिलवाड़ करना आस्था के साथ खिलवाड़ करने जैसा ही है..मैं गन्नू भाई से कुछ और सवाल पूछ पाता उससे पहले ही बारिश शुरू हो गई..जबतक मैं कुछ समझ पाता..मेरी आंख खुल गई और सामने हाथ में पानी का गिलास लिए हुए मेरी भतीजी खड़ी थी... तब जाकर मुझे लगा कि गणपति बप्पा से मेरी मुलाक़ात महज एक सपना था

Tuesday 25 August, 2009

चेहरा बनेगा रिमोट


आज मैं आपको बताने जा रहा हूं एक ऐसे टीवी के बारे में जो आपकी पसंद और नापसंद को समझ लेता है और आपके मन मुताबिक कार्यक्रम आपको दिखाता है यानि इस टीवी में रिमोट कंट्रोल की जरूरत नहीं होती है..ये टीवी उनके लिए उपयोगी साबित हो सकता है जो टीवी पर आ रहा उबाऊ कार्यक्रम देखना नहीं चाहते हैं..भारत का टीवी जगत अभी तक पूरी तरह परिपक्व नहीं हुआ है..यही वजह है कि दूरदर्शन से शुरू हुआ ये सफर आज सैकड़ों चैनल तक पहुंच चुका है लेकिन आज भी एक कार्यक्रम के सफल होते ही सारे चैनल उसके पीछे भेड़चाल की तरह चल पड़ते हैं...कभी धार्मिक कार्यक्रमों की धूम होती है तो कभी सास-बहू के किस्से चल निकलते हैं...


इन सब से निजात पाने के लिए वैज्ञानिकों ने जो कारनामा किया है वो आपको चौंका देगा...उन्होने शुरूआती तौर पर एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे कोई भी टीवी या कंप्यूटर आपके चेहरे को देखकर निर्देश लेगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने आम आदमी के चेहरे पर आने वाले हाव भावों का गहन अध्यन किया और उसे आंकड़ों की शक्ल में उतारकर कंप्यूटर और टीवी में डाल दिया। वैज्ञानिकों ने लोगों के चेहरों पर आने वाले हाव भाव को जानने के लिए एक छोटा सा विडियो कैमरा उस कंप्यूटर और टीवी पर लगा दिया। इसके बाद उन्होने परीक्षण के तौर पर उस टीवी के आगे अपने चेहरे पर हाव भाव लाए और दूसरे ही पल टीवी ने चेहरे से मिल रहे संकेतों को पहचानकर उसके मुताबिक काम करना शुरू कर दिया। वैज्ञानिकों ने अपने ईजाद को सफल बनाने के लिए आम इंसानों के चेहरे पर आने वाले हाव-भाव को 6 वर्गों में बांटा है, जो हैं गुस्सा, नाराज़गी, डर, खुशी, उदासी और आश्चर्य। इन भावों के आने पर आम इंसान के चेहरे की बनावट में कैसे-कैसे बदलाव आते हैं इसका उन्होने गहन अध्यन करके उसे आंकड़ों की शक्ल में ढ़ाल दिया। इतना कुछ करने के बाद वैज्ञानिकों को अपने मन मुताबिक परिणाम मिलने लगे। अब वो अपने इस ईजाद को और बेहतर बनाने की मुहिम जुट गए हैं। और हम ये आशा कर सकते हैं कि जल्दी ही वैज्ञानिकों की ये ईजाद हमारे हाथों में भी आ जाएगी...

Monday 24 August, 2009

समुद्र देवता की चेतावनी

सेटेलाइट से अंटार्कटिक के एक ख़ास हिस्से के लिए गए चित्रों ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। इस चित्र के मुताबिक अंटार्कटिक का एक हिस्सा जो कि विलकिन्स आइस सेल्फ़ के नाम से जाना जाता है वो कुछ ही वर्षों में उससे अलग हो जाएगा। 16,000 वर्ग किलोमीटर लंबे चौड़े ये आइस सेल्फ़ उत्तरी आयरलैंड के बराबर है। विलकिन्स आइस सेल्फ़ में पिछली शताब्दी में लगभग कोई परिवर्तन नहीं हुआ था लेकिन 1990 के बाद से इसमें तेजी से परिवर्तन होने लगा...वर्तमान में छारकोट आईलैण्ड से लगे हुए इस आइस सेल्फ़ का वो हिस्सा जो इसे आईलैण्ड से जोड़े हुआ था पिघलने लगा है। अब हालात ये है कि विलकिन्स आइस सेल्फ़ केवल 2.7 किलोमीटर चौड़ी पट्टी से आईलैण्ड से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिकों ने भी जब आइस सेल्फ का मुआयना किया तो सेटेलाइट से लिए गए चित्र को सही पाया। इससे पहले 1990 में वैज्ञानिकों ने ये अनुमान लगाया था कि विलकिन्स आइस सेल्फ़ आने वाले 30 साल में आईलैण्ड से अलग हो जाएगा लेकिन उनका ये अनुमान ग़लत निकला अब ये घटना उनके अनुमान से भी पहले ही घटित हो जाएगी।

अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है और आने वाले दिनों में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा...वैज्ञानिकों ने इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को ही जिम्मेदार ठहराया है लेकिन आइस सेल्फ का एक बड़ा हिस्सा ऐसे वक्त में टूटा है जब उस इलाके में तापमान काफी नीचे था...ऐसे में वातावरण के तापमान से बर्फ के पिघलने की आशंका कम हो जाती है...एक दूसरे अनुमान के मुताबिक वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दक्षिणी समुद्र से आने वाले गर्म पानी के कारण ही आइस सेल्फ के हिस्से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिक इस घटना से काफी चिंतित हैं क्यों कि इससे पहले भी 6 छोटे-छोटे आइस सेल्फ़ अंटार्कटिक से टूट कर अलग हो चुके हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इन घटनाओं से समुद्र के जलस्तर में भी फर्क आएगा। वैज्ञानिकों ने इस शताब्दी के अंत तक जलस्तर में 28 से 43 सेंटीमीटर के इज़ाफे का अनुमान लगाया था लेकिन अब एक ताज़े शोध के मुताबिक समुद्र का जलस्तर एक से डेढ़ मीटर तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो दुनिया भर में समुद्र किनारे के शहरों में समुद्र का पानी घुस जाएगा। इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होगा बांग्लादेश जिसके क़रीब आधे शहर समुद्र की भेंट चढ़ जाएंगे...साथ ही चीन में भी करोड़ों की आबादी को विस्थापित करने की नौबत आ जाएगी। समुद्र के जलस्तर बढ़ने से होने वाले परिणाम से हमारा देश भी अछूता नहीं बचेगा...क्योंकि हमारे देश के भी कई शहर समुद्र के किनारे बसे हुए हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि हम आने वाले समय को बेहतर बनाने के लिए आज सतर्क हो जाएं और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए अपने स्तर पर ही सही लेकिन कोशिश जरूर करें..

Saturday 22 August, 2009

शनि के चंद्रमा पर पानी

शनि के चंद्रमा पर पानी है....जी हां आपने ठीक पढ़ा...शनि के चंद्रमा पर पानी है...दरअसल शनि के इस चंद्रमा का नाम इनसेलाडस है और वैज्ञानिकों ने यहां पर पानी होने की संभावना व्यक्त की है। वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर कैसीनी नामक अंतरिक्ष यान की भेजी गई जानकारियों के आधार पर पहुंचे हैं। ये अंतरिक्ष यान इनसेलाडस के बिलकुल क़रीब से गुजरा था और वहां से उसने इस उपग्रह के सतह की कई तस्वीरें ली साथ ही कई ऐसी जानकारियां इकट्ठी की जिससे वहां पर पानी होने के संकेत मिलते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक कैसीनी ने शनि ग्रह के ई रिंग में सोडियम की मौजूदगी का पता लगाया है जो इनसेलाडस से आया था। आपको बता दें कि शनि के चारों तरफ जो रिंग मौजूद है उसे वैज्ञानिकों ने 6 भागों में बांटा है और उसे A,B,C,D,E,F का नाम दिया था। इन्ही में से ई रिंग में सोडियम के मौजूद होने का प्रमाण मिला है। इस मामले में वैज्ञानिक तमाम शोधों के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इनसेलाडस में बिना पानी की मौजूदगी के ये सोडियम शनि के ई रिंग में नहीं पहुंच सकते थे। इसी आधार पर जब वैज्ञानिकों ने कैसीनी के भेजे गए चित्रों का विश्लेषण किया तो उन्हे शनि के चंद्रमा पर वाष्प और बर्फ के कण दिखे जो उपग्रह पर बने एक गीजर के कारण बन रहे थे। ये गीजर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बन रहे दरारों में साफ-साफ देखे गए। उपग्रह का उत्तरी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव के मुकाबले ज़्यादा पुराना और गड्ढ़ों से भरा हुआ है।

इससे पहले भी शनि के ही एक दूसरे उपग्रह टाइटन पर भी पानी और जीवन के संकेत मिले थे...वैज्ञानिक उसपर भी शोध करने में जुटे हुए हैं। आपको बता दें कि अभी तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक शनि के लगभग 61 उपग्रह हैं और इसमें से ही एक छोटा उपग्रह इनसेलाडस भी है। वैज्ञानिकों ने कैसीनी से मिली जानकारी के आधार पर ये संभावना व्यक्त की है कि इनसेलाडस के ऊपरी बर्फीली सतह से कई मीटर नीचे पानी का जबरदस्त भंडार है जो एक छोटे समुद्र की तरह हो सकता है। वैज्ञानिकों ने अपने अनुमान का परीक्षण करने के लिए शनि के इस उपग्रह पर और अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी शुरू कर दी है। वैज्ञानिकों ने पानी मिलने की सूरत में वहां पर जीवन की संभावनाओं को तलाशने की दिशा में भी शोध करना शुरू कर दिया है।

Thursday 20 August, 2009

आज भी मौजूद हैं डायनासोर


क्या आपको पता है कि डायनासोर आज भी मौजूद हैं...ये सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है लेकिन ये सौ फीसदी सच है.. डायनासोर, ये शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों डायनोस और साउरोस को मिलाने से बना है। इसका मतलब होता है डरावनी छिपकली। ये शब्द सबसे पहले 1842 में सामने आया और इसके बाद प्रचलित हो गया। आज हम जिस डायनासोर की बात कर रहे हैं उसने आज से तकरीबन 23 करोड़ साल पहले से लेकर साढ़े 6 करोड़ साल पहले तक पूरी धरती पर राज किया। इसके बाद कुछ कारणवश इनकी पूरी प्रजाति विलुप्त हो गई। हालांकि इनके विलुप्त होने को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है लेकिन यहां हम उस घटना को प्रलय मानकर चल रहे हैं।


अब सवाल ये उठता है कि उस प्रलय से बचकर कुछ डायनासोर आज भी कैसे ज़िदा हैं। दरअसल क़रीब 3400 प्रजातियों वाले इस डायनासोर में तो कुछ 60 मीटर लंबे चौड़े थे तो कुछ का आकार आज के मुर्गे के बराबर भी था। इसमें से कुछ उड़ सकते थे तो कुछ पानी में तैर सकते थे। कुल मिलाकर इनके अंदर काफी विभिन्नताएं थीं। वैज्ञानिकों के अंदर ये धारणा थी कि मगरमच्छ और घड़ियाल, डायनासोर के ही परिवर्तित रूप हैं लेकिन उनकी ये धारणाएं ग़लत साबित हुई...हालांकि ये जरूर है कि इनका आपस में काफी नज़दीकी संबंध है।


वैज्ञानिकों ने जब डायनासोर के अस्थियों और हड्डियों से प्रोटीन को निकाल कर विश्लेषण किया तो उन्हे ये जानकर हैरानी हुई कि ये प्रोटीन आज के कुछ पक्षियों से काफी मिलते थे। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने एक एनिमेशन के माध्यम से डायनसोर के पक्षी बनने तक के सफर को बयां किया..पहले वर्ष 2003 में वैज्ञानिकों ने डायनासोर की हड्डियों में से मिले प्रोटीन का विश्लेषण किया और बाद में वर्ष 2005 में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के t-rex हड्डियों से मिले मुलायम ऊत्तकों का विश्लेषण किया...दोनों विश्लेषणों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि डायनासोर की थेरोपॉड प्रजाति धीरे-धीरे पक्षी में परिवर्तित हो गई होगी। इस आधार पर उन्होने आज के पक्षियों का विश्लेषण किया... जिसमें उन्होने शुतरमुर्ग और उसके समवर्ग पक्षियों और डायनासोर की थेरोपॉड प्रजाति की शारीरिक बनावट और उनके अंदर मौजूद तत्वों में काफी समानताएं पाई।

Wednesday 19 August, 2009

अचानक बदल जाएगा मौसम

दुनिया भर के मौसम में अचानक बदलाव आएगा लेकिन ये अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरीके से अपना प्रभाव दिखलाएगा। ये चेतावनी हम नहीं बल्कि वो वैज्ञानिक दे रहे हैं जो पिछले सौ साल के मौसम में आए बदलाव का वैज्ञानिक पद्धति से अध्यन कर रहे हैं। उन्होने पिछले कई साल में कई इलाकों के तापमान में आए परिवर्तन का भी गहन अध्यन किया है। इसके आधार पर उन्होने उस अनुमान को ठुकरा दिया है जिसमें मौसम में धीरे-धीरे बदलाव आने की बात कही गई थी।

वैज्ञानिकों ने इसके लिए अमेरिका के अलास्का और दक्षिण अफ्रीका के कुछ इलाकों के मौसम में तेजी से आए बदलाव का उदाहरण दिया है। दक्षिण अफ्रीका के कुछ इलाकों में तो 1960 में इतनी तेजी से मौसम में बदलाव आया कि वहां की उपजाऊ ज़मीन रेगिस्तान में तब्दील हो गई। अभी के ताज़ा उदाहरण में नार्वे और आयरलैंड को भी शामिल किया गया है जहां पर बहुत तेजी से मौसम में बदलाव आ रहा है।

वैज्ञानिकों ने यूरोप, उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस, अफ्रीका, खाड़ी देशों, बांग्लादेश और भारत के कई इलाकों को चिन्हित किया है जहां के मौसम में तेजी से बदलाव आ सकता है। और अगर हम अपने भारत की बात करें तो कई इलाकों इसका आंशिक असर भी दिखने लगा है। शोध के मुताबिक बारिश में सामान्य से दस प्रतिशत की गिरावट सूखा आने के संकेत दे सकते हैं। मौसम में आने वाले ये बदलाव दस से बीस साल तक जारी रह सकता है। वैज्ञानिकों ने इस बदलाव के लिए ग्लोबल वार्मिंग के अलावा समुद्री हवाओं के रुख में आ रहे बदलाव को बड़ी वजह बताया है।

समुद्री हवाओं के तेजी और रुख में ये बदलाव समुद्र के किसी छोर में एक हल्के से परिवर्तन से हो सकता है। वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक शीत युग के लिए भी इसी हवा को जिम्मेदार ठहराया है। समुद्री हवाओं में आने वाला ये बदलाव सतही हवाओं में भी परिवर्तन ला सकता है जिससे मौसम में बदलाव आना स्वाभाविक ही होगा। लेकिन वैज्ञानिकों के इस चेतावनी को हमें सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए ताकि हम इस बदलाव को आने से पहले ही उसे रोक दें...क्यों कि अगर ऐसा होता है तो पिछली घटनाओं की तरह ही करोड़ों लोग प्रभावित होंगे...इसमें से लाखों की मौत हो सकती है और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है।

Tuesday 18 August, 2009

एलियंस से संवाद

कई वैज्ञानिकों का ये दावा है कि एलियंस तरंगों की भाषा समझते हैं... और उनकी इसी समझ ने उन्हें तरंगों का पैग़ाम भेजने के लिए उत्साहित किया...नासा ने मशहूर बैंड बीटल्स का गीत आकाशगंगा में भेज दिया है। उद्देश्य ये है कि शायद हमारे सौरमंडल के बाहर कोई सुन ले और प्यार का ये तराना उसको पसंद आ जाये। ये गीत पोलर स्टार यानि ध्रुव तारे की तरफ भेजा गया। जहां उसे पंहुचने में 431 प्रकाश वर्ष लगेंगे।
4 फरवरी 1968 को बीटल्स ने अपना मशहूर गीत एक्रोस द यूनीवर्स को रिकार्ड किया। इसने दुनिया भर में धूम मचा दी। चालीस साल बाद इसी दिन नासा ने इस गीत को यूनिवर्स में भेज दिया....। इसकी गति करीब 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड होगी....। लेकिन इस गति से चलते हुए भी इसको 431 वर्ष लग जाएंगे....। यानि अगर ये मान भी लिया जाए कि ध्रुव तारे पर अगर कोई इस गीत को सुनेगा भी....तब तक धरती पर करीब 6 पीढ़ियां गुजर जाएंगी और अगर कोई सुनकर जवाब भी देगा....तो जवाब आने में इसका दोगुना यानि करीब 900 साल लग जाएंगे....। तो यह सबकुछ प्रकाश गति पर चलेगा...। जाहिर है इतने लंबे समय में कोई भी एलियन धरती पर जिंदा पहुंच सके....इसकी गुंजाईश बहुत कम है। लेकिन इन सबसे परे नासा फिलहाल इसे बड़ी उपलब्धि मानकर चल रहा है। पहले वो तरंगें एस्ट्रोनॉट्स के लिये भेजा करते थे। अब इसका उपयोग एलियंस के लिए भी किया गया है....तो ऐसे में अपनी धुन का उपयोग होने पर बीटल्स ग्रुप के पॉल मैकार्टनी भी इसे बडी उपलब्धि मान रहे हैं।

Sunday 16 August, 2009

एलियंस का रहस्य

एलियंस की मौजूदगी कहां कहां हो सकती है...ये जानकारी हासिल करने के लिए दुनिया के तमाम वैज्ञानिक जुटे रहे हैं ये कहानी तब से शुरू हुई जब पहला इंसानी कदम ने चांद को छुआ
दुनिया में पहली बार चांद पर कदम रखने वाले अमेरिकी नागरिक नील आर्मस्ट्रांग ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि चांद पर बाकायदा एलियन की कॉलोनी है ...उन्होंने यह भी कहा था कि एलियंस ने उन्हें इशारों में लौटने का संकेत भी किया था ...नील ने ये भी कहा कि मैं उनके बारे में ज्यादा बात कर दुनिया में दहशत नहीं फैलाना चाहता..लेकिन इतना जरुर था कि उनके शिप हमारे शिप से आकार में काफी बड़े थे। उनकी टेक्नोलॉजी हमसे ज्यादा विकसित लगी।

1969 से लेकर 1972 तक अमेरिका के छह अपोलो मिशन चांद पर गए। बताया जाता है कि अंतरिक्ष यात्री जब चांद पर पहुंचे....तो सबसे पहले उनका वास्ता..वहां पहले से बसे दूसरे ग्रह के जीवों से यानि एलियंस से पड़ा, जिन्होंने अमेरिकियों को चांद छोड़कर जाने की चेतावनी दी...। ये खबर रुसी अखबार प्रावदा ने रुस के एक टीवी न्यूज़ चैनल पर एक डोक्यूमैंट्री के हवाले से प्रसारित भी की। प्रावादा ने शक जताया कि जो भी चांद पर पहुंचा उन सभी का एलियंस से पाला पड़ा लेकिन नासा ने पुरी दुनिया से लगातार ये बात छुपाए रखी। जबकि नासा का कहना है कि अपोलो मिशन से जुड़े कई द्स्तावेज, तस्वीरें और फुटेज खो गई है जबकि सूत्र कहते हैं कि तस्वीरें खोने की बात महज सी आई ए का एक बहाना है। प्रावादा के मुताबिक अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों ने अपनी ओर से मैसेज सेंटर को जो मैसेज भेजे थे उनमें यू एफ ओ यानि अन आईडेंटिफाईड फ्लाईंग ऑब्जेक्ट्स देखे जाने और चांद पर कुछ उजड़ी हुई बस्तियां देखे जाने की बात है लेकिन इन कम्यूनिकेशन डॉक्यूमेंट्स को गायब कर दिया गया .

ध्यान देने की बात है कि 1972 के बाद कोई भी व्यक्ति चांद पर नहीं गया ...तो सवाल ये उठता है कि नित नए खोज करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों सहित नासा ने आखिर चांद पर दूसरे लोगों को भेजना क्यों बंद कर दिया है ... 1972 से लेकर 2008 तक ...नासा ने चांद पर किसी को क्यों नहीं भेजा ...तो क्या इस बात से जाहिर नहीं होता कि हो न हो ...अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चांद पर जो कुछ देखा उसे दुनिया से छुपाने की कोशिश कर रहे हों या फिर ऐसा तो नहीं कि एलियंस से निपटने के लिए नासा नई तैयारियों में जुटा है .. जाहिर सी बात ये भी है कि इस सच को छुपाने में अमेरिका कहीं न कहीं अपने हित की भी सोच रहा है ...पर अहम सवाल अब भी वहीं रह जाता है कि आखिर अमेरिका का इसमें कौन सा हित छिपा है ...

हाउस वाइफ को मिलेगा 6 हज़ार रुपये महीना

हाउस वाइफ की आमदनी 6 हज़ार रुपए प्रति महीना कर दी गई है...ये फ़ैसला तीस हजारी कोर्ट ने किया है...इसके लिए उसने सुप्रीम कोर्ट के 'लता वाधवा बनाम स्टेट ऑफ बिहार' मामले के फ़ैसले को आधार बनाया है...इसके लिए महिला की उम्र सीम 34-59 साल रखी गई है.. तीस हज़ारी कोर्ट ने ये फ़ैसला 1989 में एक सड़क दुर्घटना में मारी गई एक महिला को मुआवज़ा देने के लिए सुनाया...कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को 6 हज़ार रुपए प्रति माह के हिसाब से मृतक के परिजनों को क़रीब साढ़े 7 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया है...

इस ख़बर की शुरुआती पंक्तियों को पढ़ते वक्त मैने सोचा कि लगता है हमारे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ये सरकार को ये नया प्रावधान सुझाया है...फिर मुझे लगा कि इस ख़बर से मुझे खुश होना चाहिए की दुखी...क्यों कि मुझे इतना तो यकीन था कि सरकार हाउस वाइफ को 6 हज़ार रुपए महीना तो देने से रही...हां ये जरूर हो सकता है कि सरकार इसी बहाने उनपर इन्कम टैक्स देने का दबाव बना दे..और फिर उनसे मिले राजस्व को नेताओं की मौज मस्ती पर उड़ा दे...खैर मेरी सांस में सांस तब आई जब देखा कि ये मामला महज मुआवजे का है और कोर्ट ने एक अनुमान के आधार पर हाउस वाइफ की ये आमदनी बताई...हां उसने इतना जरूर किया सुप्रीम कोर्ट के 3 हज़ार रुपए प्रति महीने की आमदनी के फ़ैसले को बदलते हुए 6 हज़ार प्रति महीने कर दिया...चलिए कम से कम न्यायपालिका को तो महंगाई का अहसास हुआ

Saturday 15 August, 2009

गंगा मैय्या की विदाई

भारत की मोक्षदायिनी गंगा नदी सूखने की कगार पर है। वैज्ञानिकों के भविष्यवाणी को अगर सही माने तो जीवन दायिनी गंगा अब कुछ ही वर्षों की मेहमान है। और जब ऐसी स्थिति आएगी तो हमें अपने पाप धोने के लिए गंगा का पानी नसीब नहीं होगा। क्या गंगा मैया इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगी...ये जानने के लिए पहले गंगा नदी के उदगम के बारे में जानना होगा

हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से निकल कर करीब 200 किलोमीटर का सफर तय करके गंगा नदी गोमुख होते हुए हरिद्वार पहुंचती है। इससे पहले गंगा नदी में 6 नदियों का विलय होता है...अलकनंदा नदी विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा से मिलती है...उसके बाद थोड़ा आगे चलकर नंदप्रयाग में नंदाकिनी नदी का विलय होता है...कर्णप्रयाग में पिंडर नदी मिलती है...रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी से मिलन होता है... आखिर में देव प्रयाग में भागिरथी से मिलकर गंगा नदी अपने वास्तविक रूप में आती है और शिवालिक पहाड़ी से होती हुई हरिद्वार में अवतरित होती है।

इसके बाद ये नदी क़रीब 2,510 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस दौरान ये मुरादाबाद, रामपुर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, और राजशाही जैसे शहरों से होकर गुजरती है। इसमें से हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं से काफी जुड़े हुए हैं। ये गंगा नदी भारत की लगभग आधी आबादी के लिए जीवन दायिनी बनी हुई है। कहीं इसके पानी का इस्तेमाल पीने के लिए हो रहा है तो कहीं इससे निकाली गई नहरों से सिंचाई की जा रही है। और अगर धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो हिन्दुओं ने इसे माता का दर्जा दिया है और वे इसकी पूजा करते हैं। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थों में भी इस नदी का जिक्र मिलता है।

अब वही गंगा मैया इतिहास के पन्नों में सिमटने की तैयारी कर रही है और इसकी वजह है हमलोगों के पाप जो ग्लोबल वार्मिंग बनकर पल पल इसे आखिरी मुकाम की ओर ढ़केल रहे हैं। जी हां वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग को ही गंगा नदी के सूखने की वजह बताई है। उनके मुताबिक गंगा नदी जिस गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है वो तेजी से पिघल रहा है। गंगा नदी का क़रीब 70 फीसदी पानी इस ग्लेशियर से आता है और ये हर साल 50 यार्ड की रफ़्तार से पिघल रहा है। जो कि दस साल पहले किए गए अनु्मान से दोगुना है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्लेशियर के पिघलने की रफ़्तार इस तरह से जारी रही तो 2030 तक ये ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल जाएगा और सूखने लगेगी गंगा नदी। वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक उस स्थिति में गंगा नदी मौसमी नदी बनकर रह जाएगी...जो केवल बरसात के मौसम में ही नज़र आएगी। अगर ऐसा कुछ होता है तो जरा सोचिए उस पूरी आबादी का क्या होगा जो इस जीवन दायिनी और मोक्ष दायिनी के सहारे जी रहे हैं साथ ही उन करोड़ों लोगों का क्या होगा जिनकी आस्था इस नदी से जुड़ी हुई है....इसलिए यही सही वक्त है कि हम सचेत हो जाएं और गंगा नदी को बचाने का संकल्प लें...

Friday 14 August, 2009

सिकुड़ता ग्रह


आईए आज हम आपको बताते हैं कि बुध ग्रह पर क्या हलचलें चल रही है। क्यों इस ग्रह को लेकर वैज्ञानिकों के बीच गहमा गहमी बढ़ गई है। क्या ये ग्रह छोटा हो रहा है...क्या ये ग्रह धीरे-धीरे ख़त्म हो जाएगा...और इससे हमारी धरती पर क्या प्रभाव पड़ सकता है

बुध ग्रह...सूर्य के सबसे नजदीक का ग्रह...इस ग्रह को सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने में केवल 88 दिन ही लगते हैं। इस ग्रह का आकार पृथ्वी का लगभग एक तिहाई है लेकिन ये चंद्रमा से थोडा़ बड़ा है। बुध ग्रह चुंकि सूर्य के काफी नजदीक है इसलिए इसके सतह पर तापमान काफी ज़्यादा रहता है लेकिन इसका गुरुत्वाकर्षण शक्ति काफी कम होने के कारण इसके दिन और रात के तापमान में ही करीब 600 डिग्री का फर्क रहता है। मार्च 1975 से पहले तक ये ग्रह एक अबूझ पहेली बना हुआ था...पर मैरीनर नाम के एक अंतरिक्ष यान ने इस ग्रह के पास पहुंचकर उसके बारे में काफी जानकारियां वैज्ञानिकों को मुहैया कराई.. जिससे ग्रह के बारे में काफी भ्रांतियां ख़त्म हो गई। लेकिन तब भी उस अंतरिक्ष यान ने बुध ग्रह के केवल 45 फीसदी हिस्से का मुआयना किया था।


अब जो हम आपको बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आपको काफी हैरानी होगी...दरअसल नासा के मैसेंजर अंतरिक्ष यान ने इसी साल जनवरी में बुध ग्रह की कई तस्वीरें और जानकारियां धरती पर भेजी है...जिसके विश्लेषण के बाद वैज्ञानिकों को काफी हैरतअंगेज परिणाम मिले हैं। उसके मुताबिक ग्रह पर ज्वालामुखी विस्फोटों का काफी लंबा इतिहास रहा है...जिसके कारण ग्रह पर काफी लंबी चौड़ी खाईयां बन गई है ये खाईयां 4-5 फीट से लेकिर 1000 किलोमीटर की परिधि वाली हैं। ग्रह पर सब ओर लावा ही लावा छाया हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस ग्रह से आए दिन उल्का पिंड टकराते रहते हैं जिससे भी ग्रह की ये हालत हुई है। वैज्ञानिकों को ये जानकर भी काफी हैरानी हुई है कि ये पूरा ग्रह अब धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है...इस ग्रह के आकार में वैज्ञानिकों की सोच से ज़्यादा सिकुड़न आई है। ये ग्रह लगभग डेढ़ किलोमीटर छोटा हो गया है...और ऐसा इस ग्रह के कच्चे लोहे के जमने से हुआ है। हालांकि मैसेंजर ने इस ग्रह का लगभग 75 प्रतिशत हिस्से का ही मुआयना किया है लेकिन इस दौरान जो सबसे चौकाने वाला तथ्य सामने आया है वो है ग्रह के वातावरण में मिले सिलीकन, सोडियम और पानी के कण...वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्रह में पानी के कण मिलना अपने आप में काफी चौंकाने वाली बात....वैसे वैज्ञानिकों के पास इसके बारे में काफी तर्क हैं। और जहां तक इस ग्रह पर होने वाली हलचलों का धरती पर प्रभाव पड़ने का सवाल है तो...वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर इसका कोई असर नहीं होगा।...अब इंतजार है वर्ष 2011 का जब मैसेंजर अपनी यात्रा के दौरान एक बार फिर बुध ग्रह के पास पहुंचेगा और फिर उस ग्रह के कई रहस्यों पर से पर्दा उठेगा....

Thursday 13 August, 2009

छोटा हो रहा है दिमाग

किसी ने शायद ठीक ही कहा है..."खाली दिमाग शैतान का घर"...लेकिन अगर हमने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो ये घर छोटा हो सकता है...जी हां वैज्ञानिकों का यही कहना है कि अगर हमने अपने दिमाग से काम नहीं लिया और उसे खाली छोड़ दिया तो वो धीरे-धीरे छोटा हो जाएगा।
आईए अब हम आपको बताते हैं कि ये कैसे संभव होगा....दरअसल हम जो फैसले लेते हैं उसमें दिमाग के दो हिस्सों की अहम भूमिका होती है...ये हमपर निर्भर करता है कि हम दिमाग के किस हिस्से से ज़्यादा काम लेते हैं...इसके लिए हमें दिमाग के काम करने के तरीके को समझना होगा...दिमाग के जो हिस्से फैसले लेने का काम करते हैं उसमें से एक होता है सब-कॉर्टिकल ब्रेन और दूसरा हिस्सा है उसको चारो तरफ घेरे हुए आउटर कॉर्टेक्स। सब-कॉर्टिकल ब्रेन से हम जल्दबाजी वाले फैसले लेते हैं जैसे किसी जानवर के हमला करने की स्थिति में..किसी गर्म चीज के छू जाने पर...या फिर ऐसी कुछ स्थिति में जब तुरत फैसला लेना जरूरी होता है...लेकिन ऐसी स्थिति में कई बार दिमाग का ये हिस्सा ग़लत फ़ैसले भी ले लेता है। सब-कॉर्टिकल ब्रेन के बाहरी भाग में मौजूद आउटर कॉर्टेक्स से कोई भी फ़ैसला काफी सोच समझ कर और कई जानकारी जुटा कर लिया जाता है लेकिन इससे फैसला लेने में थोड़ा वक्त चाहिए होता है। कोई भी नीतिगत और महत्वपूर्ण फैसला लेना दिमाग के इसी हिस्से का काम होता है। दिमाग का ये हिस्सा मानव जाति के विकास के शुरूआती दिनों में नहीं था...और धीरे धीरे काफी समय बीतने के बाद दिमाग के इस हिस्से का विकास हुआ....अब वैज्ञानिकों ने जो ताज़ा शोध किया है उसके मुताबिक हमारी जीवन शैली में जिस तरह से बदलाव आ रहा है उससे दिमाग के एक हिस्से से हम बहुत कम काम ले रहे हैं...अगर ऐसी स्थिति लगातार बनी रही तो हो सकता है कि वो हिस्सा धीरे-धीरे छोटा होने लगे।

आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के एक दल ने अपने ताज़ा शोध में कई चौंकाने वाले आंकड़े जुटाए हैं जिसके मुताबिक कई बुजुर्गों का दिमाग उन्होने छोटा पाया। जांच करने पर पाया गया कि उन बुजुर्गों ने दिमाग लगाने वाले ज़्यादा काम नहीं किए थे। इस आधार पर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अगर दिमाग को छोटा होने से बचाना है तो एक आम आदमी को भी ज़्यादा से ज़्यादा दिमाग का इस्तेमाल करते रहना चाहिए। इसके लिए उन्हे दिमागी कसरत, पहेलियों का खेल, नई भाषा सीखने और अन्य दिमागी काम में अपने आप को व्यस्त रखना चाहिए

Wednesday 12 August, 2009

सच का सामना

आजकल एक निजी चैनल पर चल रहा एक कार्यक्रम "सच का सामना" काफी चर्चा में है..लेकिन कई बार किसी प्रतियोगी के सच्चे बात को मशीन झूठा बता देता है...आज मैं आपको बताता हूं इसके पीछे की सच्चाई, कि क्यों कोई शख़्स सच बोलने के बावजूद झूठा बन जाता है..आप ये भी जानना चाहेंगे कि आखिर वो क्या वजह है जिससे हम अनजाने में भी झूठ बोल जाते हैं...यहां तक की कई बार हमें ही पता नहीं होता है कि हम जो बोल रहे हैं दरअसल वो झूठ है

इन सारी उलझनों का जवाब है आपका दिमाग...जी हां आपने बिलकुल ठीक पढ़ा...झूठ बोलकर आपको धोखा कोई और नहीं बल्कि आपका दिमाग ही दे रहा है। आईए आपको बताते हैं कि ये कैसे मुमकिन होता है...दरअसल हमारा दिमाग कंप्यूटर की तरह काम नहीं करता...और किसी भी बात को याद करने का उसका तरीका कंप्यूटर से बिलकुल अलग है। वैज्ञानिकों के एक शोध के मुताबिक जब भी हम किसी बात को याद रखने के लिए अपने दिमाग को आदेश देते हैं तो दिमाग उसे अपने हिप्पोकैम्पस नाम के हिस्स में सुरक्षित रख लेता है। और जब उस जानकारी को दोबारा याद करने की कोशिश करते हैं तो वो जानकारी दिमाग से सीधे नहीं निकलता है बल्कि दिमाग उस जानकारी को फिर से लिखता है और इस दौरान वो पूरी जानकारी दिमाग के एक दूसरे हिस्से में सेरिब्रल कॉर्टेक्स में आ जाती है। जिससे ये पूरी जानकारी दिमाग के पुराने हिस्से से बाहर आ जाती है। और अगर हमने उसे बार-बार याद करने की कोशिश नहीं की तो वो पूरी जानकारी फिर से दिमाग के उस सुरक्षित हिस्से में नहीं जा पाती है...जिससे समय समय पर उसमें कुछ और भी जानकारियां जुट जाती है...नतीज़ा होता है कि दिमाग अब पुरानी जानकारियों को नई जानकारियों के साथ आपके सामने पेश करता है...और यहीं से शुरू होता है उसके झूठ बोलने का सिलसिला...

और जब दिमाग की ये ख़ुराफ़ात बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो वो एक बीमारी का शक्ल ले लेती है जिसे हम एम्नेशिया कहते हैं....लेकिन साधारण तौर पर एक साधारण आदमी से दिमाग कई बार झूठ बोलता है...और यही वजह है कि आप....कई जगहों...कई लोगों के नाम...कई घटनाओं...और कई अन्य चीजों के बारे में दिमाग का कहा मानकर ग़लत जानकारी दे देते हैं।

मिल गई एक और धरती

पूरे विश्व में जिस तरह से जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है उससे ये लगने लगा है कि जल्दी ही पूरी जनसंख्या को सभालने के लिए हमारी धरती छोटी पड़ जाएगी...इसी को देखते हुए वैज्ञानिकों ने नई धरती की खोज शुरू कर दी है..और इस खोज में उन्हे काफी हद तक सफलता भी मिली है..तो आईए आपको बताते हैं इस नई धरती के बारे में...इस धरती की खोज को वैज्ञानिक बहुत बड़ी कामयाबी मान रहे हैं। लेकिन अभी उनका शोध बहुत शुरुआती दौर में है। वैज्ञानिकों की शोध को अगर सच माने तो ये नई धरती अपनी धरती से काफी मिलती जुलती है...

वैज्ञानिकों के कई वर्षों की कड़ी मेहनत का नतीज़ा है ये धरती। इस धरती की आयु है एक से डेढ़ करोड़ वर्ष। हालांकि इस धरती की उम्र अपनी धरती से काफी कम है। लेकिन दोनों ही ग्रहों में काफी समानताएं पाई गई हैं। धरती से क़रीब 430 प्रकाश वर्ष दूर मिले इस ग्रह का पता नासा के स्पीट्जर स्पेस टेलिस्कोप से चला है...ये टेलिस्कोप धरती से बाहर अंतरिक्ष में स्थित है और इन्फ्रारेड लाईट की पद्धति पर काम करती है। इसी टेलिस्कोप की सहायता से वैज्ञानिकों ने इस नई धरती के बारे में कई दिलचस्प जानकारियां इकट्ठी की है। हालांकि इससे पहले भी ऐसे कुछ ग्रहों का पता चला था... लेकिन उन ग्रहों में धरती से इतनी समानता नहीं थी। हम आपको जिस नई धरती के बार में बता रह हैं वो भी सूर्य की तरह के ही एक तारे के चारो तरफ धूमती है...साथ ही साथ ये अपने अक्ष पर भी धरती के समान ही धुर्णन करती है। इसके अलावा इस ग्रह की अपने तारे से दूरी भी पृथ्वी और सूर्य की दूरी के बराबर ही है। सबसे चौंकाने वाली जानकारी जो इस ग्रह के बारे में पता चली है वो है इस ग्रह पर पानी पाए जाने की संभावना... क्योंकि पृथ्वी के समान ही वायुमंडल वाले इस ग्रह का बाहरी आवरण बर्फ से ढ़का हुआ है।
पृथ्वी से मिल रही समानताओं ने वैज्ञानिकों को ये सोचने पर भी मजबूर कर दिया है कि क्या इस नई धरती पर भी जीवन है। और अगर यहां जीवन है तो वो किस अवस्था में है। और अगर वो काफी विकसित है तो क्या यहीं से धरती पर उड़न तश्तरियां आती हैं। इन्ही सब संभावनाओं को खंगालने के लिए वैज्ञानिक इस ग्रह पर और शोध करने में जुट गए हैं। लेकिन इन सब के बीच जो सबसे बड़ी अड़चन है...वो है इस नई धरती की पृथ्वी से दूरी....ये दूरी अरबों किलोमीटर होने के कारण...इस ग्रह के आस-पास किसी अंतरिक्ष यान का पहुंचना मौजूदा तकनीक के मुताबिक असंभव सा लग रहा है...

Thursday 7 May, 2009

ज़िंदगी यूं भी....


ज़िंदगी यूं भी बसर होती है
बिन चरागों के सहर होती है

कोई बादल साया परस्त नहीं होता
धूप होती है, क़हर होती है

पानी कहां गया ये किसे मालूम
मेरे खेतों में तो नहर होती है

कोई रंग नहीं आसमां पे तो क्या
ज़िंदगी बेरंग सही मगर होती है

वक्त के हाथों में हर शक्स थमा है
यहां किसको किसकी ख़बर होती है

हुकूकों को वही हासिल किया करते हैं
हालात पे जिनकी नज़र होती है

Saturday 28 March, 2009

जागते रहो

चैन स‌े स‌ोना है तो जाग जाइए। आज रात फिर यही शब्द मेरे कानों में बार-बार गूंज रहे हैं। क्योंकि आज रात फिर मैंने गलती स‌े टीवी पर आ रहा क्राईम शो देख लिया था। मुझे तो अब तक ये स‌मझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ये शो दिखाकर न्यूज़ चैनल वाले किसका भला करना चाहते हैं। ये स‌ोचते-सोचते मुझे पड़ोस के शर्मा जी की बेटी का वो वाकया याद आ गया जब नौंवी क्लास में पढ़ने वाली उस लड़की के स‌ाथ मनचलों ने जबरदस्ती करनी चाही। शर्मा जी ने हिम्मत करके उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी, और पुलिस वालों ने स‌क्रियता दिखाते हुए उन मनचलों को दबोच लिया। हमने चैन की स‌ांस ली और स‌ोचा चलो मामला खत्म हुआ। लेकिन उन मनचलों के बाद इस क्राइम शो के रिपोर्टरों ने मोर्चा थाम लिया था। उन्होंने उस नाबालिग लड़की स‌े ऎसे-ऎसे स‌वाल पूछे कि वो दो घंटे में ही बालिग हो गयी। अब तो वो लड़की अपने पिता स‌े भी नज़रें चुराने लगी है। लेकिन जब उस क्राइम शो वालों ने इस खबर को अपने चैनल पर दिखाया तो एक पल के लिए मैं भी हैरान रह गया क्योंकि उस मामले को मसाला लगाकर इस तरह स‌े दिखाया जा रहा था कि वो खबर कर कोई स‌ी ग्रेड की फिल्म ज्यादा लग रही थी। उस शो में कुछ ऎसी बातें भी दिखाई जा रही थी जिसकी जानकारी खुद लड़की, पुलिस और हमलोगों को भी नहीं थी। इस शो ने शर्मा जी की लड़की को रातों-रात चर्चा का विषय बना दिया था। अब तो वो जिधर स‌े भी गुजरती थी उस पर कई स‌वालिया निगाहें उठने लगती थीं। मानों पूछ रही हों कि इस लड़की का उन मनचलों के स‌ाथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था क्या मनचलों ने केवल जबरदस्ती की कोशिश ही कि या ? और न जाने क्या-क्या...उन स‌बकी नज़रों से घबरा कर उस लड़की ने स‌्कूल जाना ही छोड़ दिया। पहले शर्मा जी फुर्सत के क्षणों में मेरे घर आ जाया करते थे लेकिन अब वो भी मुझसे नजरें चुराने लगे हैं। इस दमघोटू हालात स‌े उबरकर जब मैंने उस न्यूज़ चैनल के एडिटर स‌े बात की तो वो उल्टा मुझे नियम कानून स‌मझाने लगा। मैं ने जब पूछा कि आपने उस लड़की की पहचान क्यों नहीं छुपाई तो उसने स‌फाई देते हुए कहा कि लड़की के स‌ाथ बलात्कार तो हुआ नहीं था, ऎसे में हमलोग पहचान क्यों छुपाते ? हो स‌कता है कि कानून में पहचान छुपाने के लिए बलात्कार का होना जरुरी बताया गया हो लेकिन इस मामले में स‌ब कुछ उल्टा हो रहा था। भले ही उस लड़की ने उन मनचलों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया हो लेकिन क्राइम शो ने स‌रेआम उस लड़की की इज्जत तार-तार कर दी। चैनल पर हुए इस बलात्कार को लाखों लोगों ने देखा। क्या कोई कानून अब इन बलात्कारियों को स‌बक स‌ीखा स‌कता है। शायद नहीं...अब शर्मा जी उस पल को कोस रहे हैं उन्होंने इस क्राइम शो वालों के बहकावे में आकर अपनी बेटी को उनसे बात करने की इजाजत दे दी। अगर केवल इसी एपीसोड की बात की जाए तो फायदे में रहा केवल वो न्यूज़ चैनल जिसे इस मसालेदार खबर ने टीआरपी की दौड़ में थोड़ा और उपर धकेल दिया था। स‌ाथ ही फायदे में रहा दर्शकों का खास वर्ग जिसने खूब चटखारे लेकर इस शो को देखा। अब तो मुझे ये स‌मझ में नहीं आ रहा है कि दोषी कौन है ? वो मनचले जिसने लड़की के स‌ाथ जबरदस्ती करनी चाही या फिर वो क्राइम शो जिसने लड़की की इज्जत को तार-तार कर दिया था या फिर हम और आप, जो ऎसी खबरों और कार्यक्रमों को पूरी कल्पना शक्रि के स‌ाथ देखते और पढ़ते हैं।

Friday 13 March, 2009

सतरंगी गठबंधन उर्फ चुनावी खेल

भारतीय राजनीति में एक कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि दोस्त और दुश्मन कभी स्थायी नहीं होते हैं....लोकसभा चुनावों की घोषणा ने इस कहावत को दोबारा सही साबित कर दिया है..
उड़ीसा में ग्यारह साल पुराना बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन टूट गया है...वहां वामपंथी दलों, जेएमएम और एनसीपी के विधायकों की मदद से नवीन पटनायक की सरकार बच गई है...नवीन पटनायक की पार्टी अभी ये तय नहीं कर पाई है कि वो लोकसभा चुनाव में किसके साथ गठबंधन करेगी....पश्चिम बंगाल में भी गठबंधन के लिए कई बार नाकाम कोशिश कर चुकी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने इस बार लोकसभा का चुनाव साथ पड़ने का फ़ैसला किया है...कहना न होगा की तृणमूल कांग्रेस के इस फ़ैसले ने एनडीए के साथ उसके अलगाव को साफ कर दिया है...असम में भी असम गण परिषद और बीजेपी ने कांग्रेस को हराने के लिए कमर कस ली है...आंध्रप्रदेश में तेलगुदेशम और तेलंगाना राष्ट्र समिति कभी एक दूसरे को पानी पी पीकर गरियाते थे...लेकिन आज लोकसभा चुनाव में दोनों एक दूसरे का हाथ थामे हुए हैं...महाराष्ट्र में दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधन में दरार जगजाहीर हो चुकी है...शिवसेना-बीजेपी में दरार उस वक्त खुलकर सामने आ गई जब शिवसेना ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी को समर्थन देने का ऐलान किया...शिवसेना और एनसीपी की नजदीकी से कांग्रेस भी असहज हो गई है...दरअसल शरद पवार एक तरफ कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं..दूसरी तरफ शिवसेना जिसके ख़िलाफ़ वो चुनाव लड़ने उससे भी मधुर संबंध चाहते हैं...औऱ चुनाव के बाद के फायदे के लिए तीसरे मोर्चे को भी अंदरखाने समर्थन देते रहना चाहते हैं....

सबसे बड़ा दंगल उत्तर प्रदेश का है...उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं...अगर किसी एक दल या गठबंधन को राज्य में एकमुश्त कामयाबी मिलती है तो वो दल केंद्र में सत्ता की चाबी अपनी जेब में रख सकता है... प्रदेश में बीएसपी की सरकार है...बीएसपी तीसरे मोर्चे में शामिल होने की घोषणा तो करती है लेकिन प्रदेश में किसी के साथ सीटों का तालमेल नहीं करने का एलान भी लगे हाथ कर रही है...विपक्ष में बैठे मुलायम सिंह के लिए ये चुनाव जीवन-मरण का सवाल बने हुए हैं...लिहाजा किसी भी सूरत में कामयाबी पाने के लिए मुलायम सिंह ने बेमेल गठबंधन तैयार कर लिया है...कभी धुर कांग्रेस विरोध की बदौलत अपनी पहचान बनाने वाले नेताजी ने अब कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर लिया है...मंदिर आंदोलन के दौरान रामभक्तों के ख़िलाफ़ सख्त रुख अपनाने वाले मुलायम आज तब के सबसे बड़े रामभक्त कल्याण सिंह के साथ गलबहियां करते घूम रहे हैं....

और अब बात तीसरे मोर्चे की...यूपीए और एनडीए का विकल्प बनाने के नाम पर वामदलों के समर्थन से ये गठबंधन खड़ा हुआ है...गठबंधन के प्रमुख नेताओं का नाम ले तो सबसे पहले नाम आता है चंद्रबाबू नायडू का...नायडू साहब वाजपेयी के शासनकाल में एनडीए के सबसे चर्चित समर्थक थे...आंध्र में नायडू हारे और देश में एनडीए गठबंधन की हार हुई तो उन्हें अचानक से धर्मनिरपेक्षता की याद आ गई...सो एनडीए से बाहर हो गए...कांग्रेस से हाथ नहीं मिला सकते क्योंकि आंध्र में उसी से सत्ता की लड़ाई है...इसलिए तीसरे मोर्चे के हाथ डटे हुए हैं...सपना केंद्र में मोर्चे की सरकार बनवाने और आंध्र में वामपंथियों के सहयोग से कुर्सी पर कब्जा करना है...

तीसरे मोर्चे के दूसरे और कहें तो सबसे चर्चित नेता है जनता दल सेक्युलर के पूर्व प्रधानमंत्री श्री देवेगौड़ा साहब...इनकी राजनीति और सिद्धांत सिर्फ कुर्सी है...कर्नाटक के इस दिग्गज के कुर्सी औऱ पुत्र मोह को देश की जनता देख चुकी है...कर्नाटक में कभी कांग्रेस और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं...बीजेपी के साथ गए तब भी इनका दल सेक्युलर ही बना रहा...अब लोकसभा चुनाव का समय है...एक बार लक काम कर गया था प्रधानमंत्री बन चुके हैं ...इसलिए इस बार चुनाव के पहले ही तीसरे मोर्चे में शामिल हो रेस में बने रहना चाहते हैं...

तीसरे मोर्चे में कई और दिग्गज भी शामिल है...भजनलाल...जनाब का नाम लेते ही कांग्रेस की याद आ जाती है...लेकिन हरियाणा की गद्दी हाथ से गई तो अपनी पार्टी बना ली...अब तीसरे मोर्चे में शामिल हैं....अरसे तक स्वयंसेवक रहे बाबूलाल मरांडी भी अब तीसरे मोर्चे के साथ ताल मिला रहे हैं...

इन सबसे अलग वाम मोर्चे की कहानी है...हमेशा कांग्रेस विरोधी राजनीति करनेवाले ये मोर्चा हाल तक बीजेपी के विरोध के नाम पर केंद्र सरकार को समर्थन देता रहा था...जिस पश्चिम बंगाल, केरल औऱ त्रिपुरा में वाम मोर्चा का जनाधार है वहां उसका मुक़ाबला हमेशा कांग्रेस से ही रहा है...लेकिन विरोध में जीतने के बाद भी उदार हृदय के वामपंथियों ने अरसे तक डॉ मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दिया...जब परमाणु डील पर डील नहीं बनी तो देश की याद आ गई...सराकर को विरोध किया और अब तीसरे मोर्चे का गठन करवा दिया है..

लेकिन लाख टके की बात ये है कि क्या चुनाव के बाद ये सभी समीकरण वैसे ही रहेंगे जैसे दिख रहे हैं...क्या गारंटी है की उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी अजीत सिंह चुनाव के बाद किसी और के साथ नहीं जा सकते हैं...क्या गारंटी हैं कि तमिलनाडु में तीसरे मोर्चे की झंडाबदार जयललिता चुनाव के बाद यूपीए और एनडीए में से किसी एक से साथ हाथ नहीं मिला सकती हैं....क्या चुनाव के बाद भी चंद्रबाबू नायडू तीसरे मोर्चे के साथ बने रहेंगे...क्या कर्नाटक में नए समीकरण बनते ही देवेगौड़ा तीसरे मोर्चा का हाथ झटक बीजेपी या कांग्रेस के साथ नहीं जा सकते हैं...क्या उड़ीसा में अपनी पार्टी की सीटें कम पड़ने पर नवीन पटनायक दोबारा बीजेपी के गले नहीं मिल सकते हैं...

दोस्तों मौसम चुनाव का है....चुनावी आसमान पर कई सतरंगी और बेमेल गठबंधन दिख रहे हैं...इंतज़ार करें लोकसभा चुनाव के नतीजों का...फिर देखिए किस तरह देश और जनता के नाम पर आज एक दूसरे को कोस रहे नेता कल कैसे रंग बदलते है..

Monday 9 March, 2009

हाय ये बैंक

आज फिर तीसरी बार मेरे मोबाईल की घंटी घनघनाई...लेकिन मैं मोबाईल उठाने में टालमटोल करता रहा...क्योंकि मुझे मालूम था कि किसका फोन आया है...अब आपको लग रहा होगा कि मैं फोन करने वाले को टालना चाहता था...पर ऐसा नहीं है...दरअसल उस वक्त मेरे बगल में मेरी बीवी मौजूद थी...आप अब भी गलत समझ रहे हैं...ये मेरी किसी गर्लफ्रेंड का भी फोन नहीं है...पर फोन करनेवाली गर्ल जरूर है...चलिए अब इस राज से पर्दा उठा ही देता हूं....दरअसल मेरे मोबाईल पर वो फोन उसी बैंक से आया है जिसका क्रेडिट कार्ड मैं इस्तेमाल करता हूं...

पिछले तीन महीने से बैंक से रोज दो तीन कॉल तो आ ही जाते हें..और फोन पर मादक आवाज उभरती है...कि सर आपके क्रेडिट कार्ड का 506 रुपया बकाया है...जितनी जल्दी हो उसका पेमेंट करा दीजिए...पहली बार तो मैं उसे कोई जवाब भी नहीं देता हूं...आप ही सोचिए..अगर मैंने पहली बार में ही जवाब दे दिया तो बातचीत वहीं खत्म नहीं हो जायेगी...फोन पर फिर वही मदभरी आवाज आती है...और फिर मैं बड़े ही शालीनता से उसकी बातों का जवाब देता हूं...आखिर इंप्रेशन जो झाड़ना हैं...क्योंकि मुझे याद नहीं आता कि आज तक कभी किसी लड़की ने मेरे से उते प्यार से बात की हो...

मन तो करता है कि फोन करनेवाली लड़की की हर बात मान लूं...आखिर 506 रुपए में रखा ही क्या है...पर फिर सोचता हूं कि ऐसा करने से कहीं बाचतीत का सिलसिला खत्म ही ना हो जाए...वैसे अगर सही गलत को भी आधार बनाया जाए तब भी मुझे लड़की की बात नहीं माननी चाहिए...क्योंकि बैंक जिस पैसे के लिए मुझे बार-बार फोन कर रहा है उसका कोई वजूद ही नहीं है...बैंक भी मानता है कि बिल बनाने में उससे गलती हुई है...फिर भी घूम-फिरकर बात फिर वही ढाक के तीन पात की हो जाती है...

बैंक वालों ने भी चुपके-चुपके पेनाल्टी पर पेनाल्टी लगा कर मेरे बिल का कॉलम बड़ा कर दिया है...बैंक वाले पेनाल्टी पर पेनाल्टी इस तरह से लगा रहा हैं जैसे बर्गर में बड़ा पाव के बीच में आलू की टिक्की, चीज़, टमाटर और प्याज की स्लाइल एक से ऊपर एक लगाई जाती है...लेकिन मुझे ताज्जुब इस बात पर होता है कि बैंक वालों का मुंह इतना कैसे फैल जाता है कि वो एक बार में ही मोटे से मोटा बर्गर खाने के लिए बेताब हो जाते हैं...

एक दो बार तो बैंक के किसी भद्र पुरुष ने भी मुझे तकादा करने के लिए फोन किया...लेकिन मेरी जली कटी सुनकर उसने फोन रख दिया...उसके बाद से कभी किसी पुरूष ने मुझे फोन करने की जुर्रत नहीं की...अब तो रोज़ ही दो तीन बार इस बैंक की भद्र महिलाएं मुझे फोन करके सर-सर करती रहती हैं...मैं फोन पर थोड़ा अकड़ता हूं...और वो महिलाएं ऐसे मान मनौव्वल करती हैं जैसे...

खैर छोड़िए...इस जैसे...में क्या रखा हैं...भले ही ये बैंक अपनी गलती छुपाने के लिए मुझसे अनाप-शनाप पैसे वसूलने में लगा हुआ है...पर वो जिस प्यार से मेरी गर्दन पर मीठी छुरी फेर रहा है...उससे तो मैं वैसे ही मर मिटा हूं...इसी मामले से मुझे पता चल गया कि क्यों ये बैंक अपनी महिला कर्मियों की इनती तनख्वाह देते हैं...

अगर आप थोड़े से जागरूत हैं तो आप बैंकों के पिछले रिकॉर्ड जरूर देखिए...इन रिकॉर्डों से आपको पता चल जाएगा कि पिछले दिनों इन बैंकों ने मंदी के बहाने कितने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया...मजे की बात ये है कि इसमें बहुत कम ही महिला कर्चमारी थीं...

अब ऐसा लगने लगा है कि इसी मंदी की मार अब बैंक वाले अपने उपभोक्ताओं पर डालना चाहते हैं....वो किसी न किसी बहाने अपने उपभोक्ताओं से ज्यादा से ज्यादा वसूली कर लेना चाहते हैं....और इस काम में वो अकेले नहीं हैं...बल्कि उनके साथ पूरी व्यवस्था है...हो सकता है कि आपके अकाउंट में पैसा होते हुए भी आपका चेक बाउंस ही जो जाए...वजह पूछने पर आपको कुछ ऐसा बता दिया जाएगा जिसके बारे में आपकी जानकारी शून्य हो...ऐसा भी हो सकता है कि आपके पोस्ट पेड फोन के बिल में आपको चेक बाउंस और लेट फीस का कॉलम भी दिख जाए...और जब आप अपने बैंक से पूछें तो वो इससे साफ-साफ इंकार कर दे... और फिर इस बिल को सुधरवाने में आपको इतनी भागदौड़ करनी पड़ेगी कि आपको लगेगा कि इससे अच्छा तो पेनाल्टी ही दे दिया जाए...

खैर मैं तो इन बातों में दिमाग ही नहीं लगाता हूं...मैं तो उतना हीं पैसे दे रहा हूं जीतना वाजिब है और साथ ही बैंक से आने वाले फोन का मजा भी ले रहा हूं...बैंक वालों को क्या पता की मैं उनसे भी ब्याज वसूल रहा हूं...

Tuesday 3 March, 2009

राजनितिक दलों से अपेक्षा

चुनाव आयोग ने चुनावों की घोषणा कर दी है। पंद्रहवी लोकसभा की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। लोकतंत्र के इस महापर्व में करीब ७१ करोड़ से ज्यादा मतदाता मतदान कर सकेंगे। इस चुनाव में आम जनता के साथ-साथ सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी राजनीतिक दलों की। इस देश की जनता को उन्हीं उम्मीदवारों को वोट देने का हक होगा जो राजनीतिक दल चुनाव में उतारेंगे। ऐसे में लोकतंत्र के इस महासमर में राजनीतिक दलों से अपेक्षा बढ़ जाती है। राजनीतिक दलों को चाहिए की वे ऐसे उम्मीदवार चुनाव में उतारें जो कम से कम इस देश की परम्परा के वाहक हो। उनके अन्दर किसी धर्म, जाति के प्रति द्वेष न हो। उन्हें देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का आदर करना आता हो। उन्हें देश के हर कोने पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण का सम्मान हो और वे इसी आधार पर अपना चुनावी प्रचार न करें। कहना न होगा की यह आज की पार्टियों को नागवार गुजर सकता है। क्योंकि ऐसी पार्टी गिने चुने ही दिखती है। जो दिखती है उसकी इतनी ताकत नहीं की वे राजनीतिक जोड़-तोड़ कर सत्ता की सीढियों पर चढ़ सकें। ऐसे में जनता बेचारी क्या करे ये एक बड़ा सवाल है।