Saturday 28 March, 2009

जागते रहो

चैन स‌े स‌ोना है तो जाग जाइए। आज रात फिर यही शब्द मेरे कानों में बार-बार गूंज रहे हैं। क्योंकि आज रात फिर मैंने गलती स‌े टीवी पर आ रहा क्राईम शो देख लिया था। मुझे तो अब तक ये स‌मझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ये शो दिखाकर न्यूज़ चैनल वाले किसका भला करना चाहते हैं। ये स‌ोचते-सोचते मुझे पड़ोस के शर्मा जी की बेटी का वो वाकया याद आ गया जब नौंवी क्लास में पढ़ने वाली उस लड़की के स‌ाथ मनचलों ने जबरदस्ती करनी चाही। शर्मा जी ने हिम्मत करके उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी, और पुलिस वालों ने स‌क्रियता दिखाते हुए उन मनचलों को दबोच लिया। हमने चैन की स‌ांस ली और स‌ोचा चलो मामला खत्म हुआ। लेकिन उन मनचलों के बाद इस क्राइम शो के रिपोर्टरों ने मोर्चा थाम लिया था। उन्होंने उस नाबालिग लड़की स‌े ऎसे-ऎसे स‌वाल पूछे कि वो दो घंटे में ही बालिग हो गयी। अब तो वो लड़की अपने पिता स‌े भी नज़रें चुराने लगी है। लेकिन जब उस क्राइम शो वालों ने इस खबर को अपने चैनल पर दिखाया तो एक पल के लिए मैं भी हैरान रह गया क्योंकि उस मामले को मसाला लगाकर इस तरह स‌े दिखाया जा रहा था कि वो खबर कर कोई स‌ी ग्रेड की फिल्म ज्यादा लग रही थी। उस शो में कुछ ऎसी बातें भी दिखाई जा रही थी जिसकी जानकारी खुद लड़की, पुलिस और हमलोगों को भी नहीं थी। इस शो ने शर्मा जी की लड़की को रातों-रात चर्चा का विषय बना दिया था। अब तो वो जिधर स‌े भी गुजरती थी उस पर कई स‌वालिया निगाहें उठने लगती थीं। मानों पूछ रही हों कि इस लड़की का उन मनचलों के स‌ाथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था क्या मनचलों ने केवल जबरदस्ती की कोशिश ही कि या ? और न जाने क्या-क्या...उन स‌बकी नज़रों से घबरा कर उस लड़की ने स‌्कूल जाना ही छोड़ दिया। पहले शर्मा जी फुर्सत के क्षणों में मेरे घर आ जाया करते थे लेकिन अब वो भी मुझसे नजरें चुराने लगे हैं। इस दमघोटू हालात स‌े उबरकर जब मैंने उस न्यूज़ चैनल के एडिटर स‌े बात की तो वो उल्टा मुझे नियम कानून स‌मझाने लगा। मैं ने जब पूछा कि आपने उस लड़की की पहचान क्यों नहीं छुपाई तो उसने स‌फाई देते हुए कहा कि लड़की के स‌ाथ बलात्कार तो हुआ नहीं था, ऎसे में हमलोग पहचान क्यों छुपाते ? हो स‌कता है कि कानून में पहचान छुपाने के लिए बलात्कार का होना जरुरी बताया गया हो लेकिन इस मामले में स‌ब कुछ उल्टा हो रहा था। भले ही उस लड़की ने उन मनचलों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया हो लेकिन क्राइम शो ने स‌रेआम उस लड़की की इज्जत तार-तार कर दी। चैनल पर हुए इस बलात्कार को लाखों लोगों ने देखा। क्या कोई कानून अब इन बलात्कारियों को स‌बक स‌ीखा स‌कता है। शायद नहीं...अब शर्मा जी उस पल को कोस रहे हैं उन्होंने इस क्राइम शो वालों के बहकावे में आकर अपनी बेटी को उनसे बात करने की इजाजत दे दी। अगर केवल इसी एपीसोड की बात की जाए तो फायदे में रहा केवल वो न्यूज़ चैनल जिसे इस मसालेदार खबर ने टीआरपी की दौड़ में थोड़ा और उपर धकेल दिया था। स‌ाथ ही फायदे में रहा दर्शकों का खास वर्ग जिसने खूब चटखारे लेकर इस शो को देखा। अब तो मुझे ये स‌मझ में नहीं आ रहा है कि दोषी कौन है ? वो मनचले जिसने लड़की के स‌ाथ जबरदस्ती करनी चाही या फिर वो क्राइम शो जिसने लड़की की इज्जत को तार-तार कर दिया था या फिर हम और आप, जो ऎसी खबरों और कार्यक्रमों को पूरी कल्पना शक्रि के स‌ाथ देखते और पढ़ते हैं।

Friday 13 March, 2009

सतरंगी गठबंधन उर्फ चुनावी खेल

भारतीय राजनीति में एक कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि दोस्त और दुश्मन कभी स्थायी नहीं होते हैं....लोकसभा चुनावों की घोषणा ने इस कहावत को दोबारा सही साबित कर दिया है..
उड़ीसा में ग्यारह साल पुराना बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन टूट गया है...वहां वामपंथी दलों, जेएमएम और एनसीपी के विधायकों की मदद से नवीन पटनायक की सरकार बच गई है...नवीन पटनायक की पार्टी अभी ये तय नहीं कर पाई है कि वो लोकसभा चुनाव में किसके साथ गठबंधन करेगी....पश्चिम बंगाल में भी गठबंधन के लिए कई बार नाकाम कोशिश कर चुकी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने इस बार लोकसभा का चुनाव साथ पड़ने का फ़ैसला किया है...कहना न होगा की तृणमूल कांग्रेस के इस फ़ैसले ने एनडीए के साथ उसके अलगाव को साफ कर दिया है...असम में भी असम गण परिषद और बीजेपी ने कांग्रेस को हराने के लिए कमर कस ली है...आंध्रप्रदेश में तेलगुदेशम और तेलंगाना राष्ट्र समिति कभी एक दूसरे को पानी पी पीकर गरियाते थे...लेकिन आज लोकसभा चुनाव में दोनों एक दूसरे का हाथ थामे हुए हैं...महाराष्ट्र में दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधन में दरार जगजाहीर हो चुकी है...शिवसेना-बीजेपी में दरार उस वक्त खुलकर सामने आ गई जब शिवसेना ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी को समर्थन देने का ऐलान किया...शिवसेना और एनसीपी की नजदीकी से कांग्रेस भी असहज हो गई है...दरअसल शरद पवार एक तरफ कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं..दूसरी तरफ शिवसेना जिसके ख़िलाफ़ वो चुनाव लड़ने उससे भी मधुर संबंध चाहते हैं...औऱ चुनाव के बाद के फायदे के लिए तीसरे मोर्चे को भी अंदरखाने समर्थन देते रहना चाहते हैं....

सबसे बड़ा दंगल उत्तर प्रदेश का है...उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं...अगर किसी एक दल या गठबंधन को राज्य में एकमुश्त कामयाबी मिलती है तो वो दल केंद्र में सत्ता की चाबी अपनी जेब में रख सकता है... प्रदेश में बीएसपी की सरकार है...बीएसपी तीसरे मोर्चे में शामिल होने की घोषणा तो करती है लेकिन प्रदेश में किसी के साथ सीटों का तालमेल नहीं करने का एलान भी लगे हाथ कर रही है...विपक्ष में बैठे मुलायम सिंह के लिए ये चुनाव जीवन-मरण का सवाल बने हुए हैं...लिहाजा किसी भी सूरत में कामयाबी पाने के लिए मुलायम सिंह ने बेमेल गठबंधन तैयार कर लिया है...कभी धुर कांग्रेस विरोध की बदौलत अपनी पहचान बनाने वाले नेताजी ने अब कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर लिया है...मंदिर आंदोलन के दौरान रामभक्तों के ख़िलाफ़ सख्त रुख अपनाने वाले मुलायम आज तब के सबसे बड़े रामभक्त कल्याण सिंह के साथ गलबहियां करते घूम रहे हैं....

और अब बात तीसरे मोर्चे की...यूपीए और एनडीए का विकल्प बनाने के नाम पर वामदलों के समर्थन से ये गठबंधन खड़ा हुआ है...गठबंधन के प्रमुख नेताओं का नाम ले तो सबसे पहले नाम आता है चंद्रबाबू नायडू का...नायडू साहब वाजपेयी के शासनकाल में एनडीए के सबसे चर्चित समर्थक थे...आंध्र में नायडू हारे और देश में एनडीए गठबंधन की हार हुई तो उन्हें अचानक से धर्मनिरपेक्षता की याद आ गई...सो एनडीए से बाहर हो गए...कांग्रेस से हाथ नहीं मिला सकते क्योंकि आंध्र में उसी से सत्ता की लड़ाई है...इसलिए तीसरे मोर्चे के हाथ डटे हुए हैं...सपना केंद्र में मोर्चे की सरकार बनवाने और आंध्र में वामपंथियों के सहयोग से कुर्सी पर कब्जा करना है...

तीसरे मोर्चे के दूसरे और कहें तो सबसे चर्चित नेता है जनता दल सेक्युलर के पूर्व प्रधानमंत्री श्री देवेगौड़ा साहब...इनकी राजनीति और सिद्धांत सिर्फ कुर्सी है...कर्नाटक के इस दिग्गज के कुर्सी औऱ पुत्र मोह को देश की जनता देख चुकी है...कर्नाटक में कभी कांग्रेस और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं...बीजेपी के साथ गए तब भी इनका दल सेक्युलर ही बना रहा...अब लोकसभा चुनाव का समय है...एक बार लक काम कर गया था प्रधानमंत्री बन चुके हैं ...इसलिए इस बार चुनाव के पहले ही तीसरे मोर्चे में शामिल हो रेस में बने रहना चाहते हैं...

तीसरे मोर्चे में कई और दिग्गज भी शामिल है...भजनलाल...जनाब का नाम लेते ही कांग्रेस की याद आ जाती है...लेकिन हरियाणा की गद्दी हाथ से गई तो अपनी पार्टी बना ली...अब तीसरे मोर्चे में शामिल हैं....अरसे तक स्वयंसेवक रहे बाबूलाल मरांडी भी अब तीसरे मोर्चे के साथ ताल मिला रहे हैं...

इन सबसे अलग वाम मोर्चे की कहानी है...हमेशा कांग्रेस विरोधी राजनीति करनेवाले ये मोर्चा हाल तक बीजेपी के विरोध के नाम पर केंद्र सरकार को समर्थन देता रहा था...जिस पश्चिम बंगाल, केरल औऱ त्रिपुरा में वाम मोर्चा का जनाधार है वहां उसका मुक़ाबला हमेशा कांग्रेस से ही रहा है...लेकिन विरोध में जीतने के बाद भी उदार हृदय के वामपंथियों ने अरसे तक डॉ मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दिया...जब परमाणु डील पर डील नहीं बनी तो देश की याद आ गई...सराकर को विरोध किया और अब तीसरे मोर्चे का गठन करवा दिया है..

लेकिन लाख टके की बात ये है कि क्या चुनाव के बाद ये सभी समीकरण वैसे ही रहेंगे जैसे दिख रहे हैं...क्या गारंटी है की उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी अजीत सिंह चुनाव के बाद किसी और के साथ नहीं जा सकते हैं...क्या गारंटी हैं कि तमिलनाडु में तीसरे मोर्चे की झंडाबदार जयललिता चुनाव के बाद यूपीए और एनडीए में से किसी एक से साथ हाथ नहीं मिला सकती हैं....क्या चुनाव के बाद भी चंद्रबाबू नायडू तीसरे मोर्चे के साथ बने रहेंगे...क्या कर्नाटक में नए समीकरण बनते ही देवेगौड़ा तीसरे मोर्चा का हाथ झटक बीजेपी या कांग्रेस के साथ नहीं जा सकते हैं...क्या उड़ीसा में अपनी पार्टी की सीटें कम पड़ने पर नवीन पटनायक दोबारा बीजेपी के गले नहीं मिल सकते हैं...

दोस्तों मौसम चुनाव का है....चुनावी आसमान पर कई सतरंगी और बेमेल गठबंधन दिख रहे हैं...इंतज़ार करें लोकसभा चुनाव के नतीजों का...फिर देखिए किस तरह देश और जनता के नाम पर आज एक दूसरे को कोस रहे नेता कल कैसे रंग बदलते है..

Monday 9 March, 2009

हाय ये बैंक

आज फिर तीसरी बार मेरे मोबाईल की घंटी घनघनाई...लेकिन मैं मोबाईल उठाने में टालमटोल करता रहा...क्योंकि मुझे मालूम था कि किसका फोन आया है...अब आपको लग रहा होगा कि मैं फोन करने वाले को टालना चाहता था...पर ऐसा नहीं है...दरअसल उस वक्त मेरे बगल में मेरी बीवी मौजूद थी...आप अब भी गलत समझ रहे हैं...ये मेरी किसी गर्लफ्रेंड का भी फोन नहीं है...पर फोन करनेवाली गर्ल जरूर है...चलिए अब इस राज से पर्दा उठा ही देता हूं....दरअसल मेरे मोबाईल पर वो फोन उसी बैंक से आया है जिसका क्रेडिट कार्ड मैं इस्तेमाल करता हूं...

पिछले तीन महीने से बैंक से रोज दो तीन कॉल तो आ ही जाते हें..और फोन पर मादक आवाज उभरती है...कि सर आपके क्रेडिट कार्ड का 506 रुपया बकाया है...जितनी जल्दी हो उसका पेमेंट करा दीजिए...पहली बार तो मैं उसे कोई जवाब भी नहीं देता हूं...आप ही सोचिए..अगर मैंने पहली बार में ही जवाब दे दिया तो बातचीत वहीं खत्म नहीं हो जायेगी...फोन पर फिर वही मदभरी आवाज आती है...और फिर मैं बड़े ही शालीनता से उसकी बातों का जवाब देता हूं...आखिर इंप्रेशन जो झाड़ना हैं...क्योंकि मुझे याद नहीं आता कि आज तक कभी किसी लड़की ने मेरे से उते प्यार से बात की हो...

मन तो करता है कि फोन करनेवाली लड़की की हर बात मान लूं...आखिर 506 रुपए में रखा ही क्या है...पर फिर सोचता हूं कि ऐसा करने से कहीं बाचतीत का सिलसिला खत्म ही ना हो जाए...वैसे अगर सही गलत को भी आधार बनाया जाए तब भी मुझे लड़की की बात नहीं माननी चाहिए...क्योंकि बैंक जिस पैसे के लिए मुझे बार-बार फोन कर रहा है उसका कोई वजूद ही नहीं है...बैंक भी मानता है कि बिल बनाने में उससे गलती हुई है...फिर भी घूम-फिरकर बात फिर वही ढाक के तीन पात की हो जाती है...

बैंक वालों ने भी चुपके-चुपके पेनाल्टी पर पेनाल्टी लगा कर मेरे बिल का कॉलम बड़ा कर दिया है...बैंक वाले पेनाल्टी पर पेनाल्टी इस तरह से लगा रहा हैं जैसे बर्गर में बड़ा पाव के बीच में आलू की टिक्की, चीज़, टमाटर और प्याज की स्लाइल एक से ऊपर एक लगाई जाती है...लेकिन मुझे ताज्जुब इस बात पर होता है कि बैंक वालों का मुंह इतना कैसे फैल जाता है कि वो एक बार में ही मोटे से मोटा बर्गर खाने के लिए बेताब हो जाते हैं...

एक दो बार तो बैंक के किसी भद्र पुरुष ने भी मुझे तकादा करने के लिए फोन किया...लेकिन मेरी जली कटी सुनकर उसने फोन रख दिया...उसके बाद से कभी किसी पुरूष ने मुझे फोन करने की जुर्रत नहीं की...अब तो रोज़ ही दो तीन बार इस बैंक की भद्र महिलाएं मुझे फोन करके सर-सर करती रहती हैं...मैं फोन पर थोड़ा अकड़ता हूं...और वो महिलाएं ऐसे मान मनौव्वल करती हैं जैसे...

खैर छोड़िए...इस जैसे...में क्या रखा हैं...भले ही ये बैंक अपनी गलती छुपाने के लिए मुझसे अनाप-शनाप पैसे वसूलने में लगा हुआ है...पर वो जिस प्यार से मेरी गर्दन पर मीठी छुरी फेर रहा है...उससे तो मैं वैसे ही मर मिटा हूं...इसी मामले से मुझे पता चल गया कि क्यों ये बैंक अपनी महिला कर्मियों की इनती तनख्वाह देते हैं...

अगर आप थोड़े से जागरूत हैं तो आप बैंकों के पिछले रिकॉर्ड जरूर देखिए...इन रिकॉर्डों से आपको पता चल जाएगा कि पिछले दिनों इन बैंकों ने मंदी के बहाने कितने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया...मजे की बात ये है कि इसमें बहुत कम ही महिला कर्चमारी थीं...

अब ऐसा लगने लगा है कि इसी मंदी की मार अब बैंक वाले अपने उपभोक्ताओं पर डालना चाहते हैं....वो किसी न किसी बहाने अपने उपभोक्ताओं से ज्यादा से ज्यादा वसूली कर लेना चाहते हैं....और इस काम में वो अकेले नहीं हैं...बल्कि उनके साथ पूरी व्यवस्था है...हो सकता है कि आपके अकाउंट में पैसा होते हुए भी आपका चेक बाउंस ही जो जाए...वजह पूछने पर आपको कुछ ऐसा बता दिया जाएगा जिसके बारे में आपकी जानकारी शून्य हो...ऐसा भी हो सकता है कि आपके पोस्ट पेड फोन के बिल में आपको चेक बाउंस और लेट फीस का कॉलम भी दिख जाए...और जब आप अपने बैंक से पूछें तो वो इससे साफ-साफ इंकार कर दे... और फिर इस बिल को सुधरवाने में आपको इतनी भागदौड़ करनी पड़ेगी कि आपको लगेगा कि इससे अच्छा तो पेनाल्टी ही दे दिया जाए...

खैर मैं तो इन बातों में दिमाग ही नहीं लगाता हूं...मैं तो उतना हीं पैसे दे रहा हूं जीतना वाजिब है और साथ ही बैंक से आने वाले फोन का मजा भी ले रहा हूं...बैंक वालों को क्या पता की मैं उनसे भी ब्याज वसूल रहा हूं...

Tuesday 3 March, 2009

राजनितिक दलों से अपेक्षा

चुनाव आयोग ने चुनावों की घोषणा कर दी है। पंद्रहवी लोकसभा की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। लोकतंत्र के इस महापर्व में करीब ७१ करोड़ से ज्यादा मतदाता मतदान कर सकेंगे। इस चुनाव में आम जनता के साथ-साथ सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी राजनीतिक दलों की। इस देश की जनता को उन्हीं उम्मीदवारों को वोट देने का हक होगा जो राजनीतिक दल चुनाव में उतारेंगे। ऐसे में लोकतंत्र के इस महासमर में राजनीतिक दलों से अपेक्षा बढ़ जाती है। राजनीतिक दलों को चाहिए की वे ऐसे उम्मीदवार चुनाव में उतारें जो कम से कम इस देश की परम्परा के वाहक हो। उनके अन्दर किसी धर्म, जाति के प्रति द्वेष न हो। उन्हें देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का आदर करना आता हो। उन्हें देश के हर कोने पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण का सम्मान हो और वे इसी आधार पर अपना चुनावी प्रचार न करें। कहना न होगा की यह आज की पार्टियों को नागवार गुजर सकता है। क्योंकि ऐसी पार्टी गिने चुने ही दिखती है। जो दिखती है उसकी इतनी ताकत नहीं की वे राजनीतिक जोड़-तोड़ कर सत्ता की सीढियों पर चढ़ सकें। ऐसे में जनता बेचारी क्या करे ये एक बड़ा सवाल है।