Wednesday 1 October, 2008

डूबता संसेक्स, मरता निवेशक ?

हर बात में अमेरिकी की तरफ देखनेवाले हमारे आधुनिक देश ने लगता है इस आर्थिक मंदी के दौर में भी अमेरिका हो हीं देखा है...अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी है लिहाजा हमारा महान देश भी आर्थिक मंदी के जद में आ गया है...पिछले हफ़्ते तक सोमवार से शुक्रवार तक हर दिन लागातार बग़ैर रूके शेयर बाज़ार का हमारा सांड बैठे जा रहा था..पिछले कुछ दिनों में बाज़ार यहां मतलब शेयर बाज़ार से है...तकरीबन तीन हज़ार प्वाइंट गिर चुका है...रोज़ ब रोज़ हो रही इस गिरावट में निवेशकों का अरबों रुपया स्वाहा हो गया... गिरती हुई मार्केट कुछ लोगों के लिए जानवेला साबित हुई...मध्यप्रदेश के इंदौर में दो और आंध्रप्रदेश के हैदराबाद में एक परिवार के चार लोगों ने कुल मिलाकर छे लोगों ने खुदकुशी कर ली...वजह सेंसेक्स में रोज़ हो रही गिरवाट के कारण हो रहा नुकसान....सवाल ये उठता है कि आखिर लोग अपनी जान क्यों दे रहे हैं.. रोज़ सुबह बिजनेस न्यूज़ चैनल्स पर आने वाले विशेषग्यों की माने तो हमारे देश में हालात अमेरिका जैसे बिगड़े नहीं है..ये विशेषग्य बताते हैं कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था दुरुस्त है और डरने की कोई बात नहीं है..लेकिन आखिर क्यों ऐसा हो रहा है कि संसेक्स लुढ़क रहा है और लोग अपनी जान दे रहे हैं.. क्या हमारा देश अमेरिका नाम के उस देश से वाकई इस क़दर नाभिनालबद्ध है कि वहां छिंक भी आती है तो हमें बुखार हो जाता है...क्या हमारी कोई अलग पहचान नहीं है...कहां हम दंभ भरते हैं कि हम अब एक महाशक्ति हो गए है..अगर इस दावे में थोड़ी भी सच्चाई है तो क्यों हम अमेरिका को छिंका आने पर बुखार से ग्रसित हो जाते है..आखिर क्यों एक आम निवेशक का पैसा हलाल स्ट्रीट में डूब रहा है... अब सवाल उन लोगों से जो शेयर बाजा़र में पैसा लगाते हैं...हम सभी जानते हैं कि सभी व्यापार कुछ विषेशयग्यता मांगते हैं..शेयर बाज़ार एक काफी पेंचिदा डगर है...उस रास्ते पर जो भी चलना चाहता है उसे वहां की तकनीकी जानकारी से लैस होना चाहिए...बाज़ार में रोज उठा पटक होती है..कोई माई का लाल पक्के तौर पर ये नहीं बता सकता है कि मार्केट कब कितना चढ़ेगा और कब कितना गिरेगा...फिर इस संकट को जानने के बाद भी आम निवेशक बाज़ार में पैसा कूटने का मोह लिए अपनी जमा पूंजी को दांव पर क्यों लगाता है... जब बाजा़र उपर की तरफ सरपट दौड़ लगा रहा होता है तो हर वो आदमी जीसने गलती से सही शेयरों में पैसा लगाया होता है खुद को शेयर बाज़ार का बाजीगर घोषित कर देता है...जश्न का दौर चलता है... और टीवी पर अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश की जाती है..लोग बताते हैं कि कैसे उन्होंने हज़ारों लगाए और लाखों बनाए..लेकन जब मार्केट औंधे मुंह गिरता है तो न्यूज़ चैनल्स पर ख़बर आती है कि फलां जगह फलां आदमी ने जान दी...आखिर पैसा बनाने के लिए इतनी बेसब्री क्यों... मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं की जब हमें शेयर बाज़ार से जुड़ी बुनियादी चीजों का ग्यान नहीं है तो हम शेयर बाज़ार में पैसा लगाते हीं क्यों है..जब सबकुछ हमारे मुताबिक चल रहा होता है तो हम कहते हैं कि हमारा ग्यान सबसे महान लेकिन जैसे ही तस्वीर बदलती है हम जान देने पर उतारू हो जाते हैं....आखिर माजरा क्या है... जब हम पैसा बना रहे होते हैं तो कहते हैं कि ये हमारा हुनर है..लेकिन जब हम पिटने लगते हैं तो कहते हैं कि सरकार हमें बचाएं..क्यों हम सरकार से उम्मीद बांधते हैं कि वो हमें बचाने आए...और इन सब बातों से अगल अहम सवाल ये की हर मुश्किल घड़ी में हमें जान देने की ही क्यों सूझती है...हमारा मानस कब इतना बड़ा होगा की हम बुरी परिस्थियों के सामने डटकर खड़ा होने की सोचेंगे...कब हमारे अंदर वैग्यानिक सोच पैदा होगी की हार कर जान देने के बजाए लड़कर जीतना हमारा मकसद होना चाहिए...आखिर हम ये क्यों नहीं सोचते की हमारे जाने के बाद उन लोगों का क्या होगा जो हमारे सबसे करीबी बेहद अपने हैं...क्या बिगाड़ा है उन लोगों ने हमारा की हम जीते जी उनका जीवन नरक कर जाते हैं...

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