Sunday 26 October, 2008

राज ठाकरे का उत्तर प्रेम

दीवाली नजदीक है और आजकल विदेशों से भी दीवाली के मौके पर समारोह आयोजित करने की ख़बरें आ रही हैं।इससे पहले दशहरे के मौके पर भी विदेशों में गरबे का आयोजन किया गया था...लेकिन मुंबई में रह रहे उत्तर
भारतीय वहां पर छठ मनाने से घबड़ा रहे हैं।
पिछले दिनों जब मुंबई में उत्तर भारतीयों पर जुल्म ढ़ाया जा रहा था तो रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने जूहू के समुद्र तट पर छठ मनाने का ऐलान किया था...ये अलग बात है शायद अब वो अपने विचार बदल दें॥क्यों कि हमेशा से ही राजनेताओं के बारे में ये कहा जाता रहा है कि वो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। बहरहाल हाथ कंगन को आरसी क्या छठ आने में अब चंद रोज ही बचे हैं...जहां इतने महीने कट गए वहां ये चंद रोज भी जल्दी ही गुजर जाएंगे।
अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मुंबई में छठ के मौके पर लाउड स्पीकर बजाने की अनुमति दे दी है॥इससे मुंबई में रह रहे उत्तर भारतीयों का मनोबल भी ऊंचा हुआ है क्यों कि उनको अब लगता है कि मुंबई में छठ मनाने के उनके अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी मुहर लगा दी है।
अब तो उत्तर भारतीयों को चाहिए कि वो छठ के मौके पर सूर्य भगवान से राज ठाकरे को सदबुद्धि देने की कामना जरूर करें...क्यों कि अब तक जब भी राज ठाकरे मुसीबत में घिरे हैं उत्तर भारतीयों ने ही उनका बेड़ा पार किया है। अब सवाल ये उठता है कि अगर राज ठाकरे पूरे महाराष्ट्र से उत्तर भारतीयों को खदेड़ देना चाहते हैं तो उन्हे गणपति बप्पा मोरया के नारे लगाने का भी कोई हक नहीं है। इसके पीछे की वजह भी भगवान गणेश का उत्तर भारतीय होना ही है क्यों कि अगर धार्मिक ग्रन्थों को सही माने तो भगवान शिव का पूरा परिवार हिमालय के कैलाश पर्वत पर निवास करता है॥और भगवान शिव के पुत्र होने के नाते भगवान गणेश भी तो कैलास पर्वत के ही निवासी हुए...और ये बताने की जरूरत नहीं है कि कैलास पर्वत भी उत्तर भारत में ही है। यहां ये बताना भी जरूरी हो
जाता है कि राज ठाकरे समेत उनके कई परिजनों की शिक्षा दीक्षा में भी कई उत्तर भारतीय शिक्षकों का हाथ रहा है।
ऐसे में अगर राज ठाकरे उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र से बाहर निकालना ही चाहते हैं...तो शुरूआत उन्हे इन्ही उत्तर
भारतीयो से करना चाहिए क्यों कि इन उत्तर भारतीयों से ज़्यादा क़रीब उनके शायद ही कोई हो।
संविधान में भी इस बात का उल्लेख है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है...हो सकता है कि राज ठाकरे को ऐसा लग रहा हो कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक अगर एक लाइन खींची जाए तो वो महाराष्ट्र को छूकर नहीं जाती है इसलिए महाराष्ट्र का भारत में बने रहना उसका ऐच्छिक अधिकार हो...पर हक़ीक़त क्या है ये सब जानते हैं...
अगर थोड़े तल्ख लहजे में कहा जाए तो महाराष्ट्र राज ठाकरे की मिलकियत नहीं है कि उन्होने जिसे चाहा राज्य में आने दिया और जिनसे नाराज़ हुए उन्हे राज्य से तड़ीपार करने का हुक्म जारी कर दिया

1 comment:

कुन्नू सिंह said...

दिपावली की शूभकामनाऎं!!


शूभ दिपावली!


- कुन्नू सिंह