Friday 24 October, 2008

राज एक रक्तबीज अनेक

महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के साथ जो कुछ भी हुआ निसन्देह वो ग़लत हुआ लेकिन उसके बाद जो कुछ हो रहा है उसे भी सही तो नहीं ठहराया जा सकता। राज ठाकरे ने तो अपने चाचा के दिखाए रास्ते पर चलकर काफी शोहरत बटोर ली। आपको याद दिला दें कि शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे ने भी अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत इसी तरह से की थी। फर्क था केवल प्रान्त का...बाला साहेब ने दक्षिण भारतीयों को महाराष्ट्र से खदेड़ा था तो राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों को अपना निशाना बनाया।
इस पूरे मामले ने मुझे एक पौराणिक घटना की याद दिला दी जिसमें मां दुर्गा ने जब एक राक्षस रक्तबीज का वध किया तो उसके कटे धड़ से निकलने वाले खून के हर बूंद से एक-एक राक्षस का जन्म होने लगा। शायद ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हुआ और ऐसा ही कुछ बिहार में भी हुआ। दोनों ही जगह अलग-अलग मिशन को अंजाम देने के लिए एक ही जैसे अनगिनत उपद्रवियों ने जन्म लिया।
महाराष्ट्र में तो उत्तर भारतीयों को निशाना बनाकर उन्हे वहां से खदेड़ा गया...लेकिन बिहार में किसे निशाना बनाया जा रहा है ? राज ठाकरे को ज़मानत मिलने के बाद से बिहार में शुरू हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है।वहां पर खुद को छात्र कहने वाले गुण्डे सड़कों पर उतर आए हैं और खुलेआम प्रशासन की नाक के नीचे तांडव कर रहे हैं। उन्होने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया...काफी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया...ये छात्र शायद अपनी इस करनी पर अपनी पीठ ठोंक रहे हों...पर मैं तो एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि ये जितना भी नुकसानहुआ है वो बिहार का ही हुआ है...महाराष्ट्र का नहीं।
उपद्रवियों ने कई ट्रेनों को रोक कर उसमें आग लगा दी और यात्रियों से लूटपाट की और ऐसे हालात बना दिए कि मजबूरन रेल विभाग को देश के कई हिस्सों में जाने वाली ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। दिल्ली, मुंबई, मद्रास और ना जाने देश के कई हिस्सों में बिहार आने की तैयारी कररहे बिहारी फंसे हुए हैं...इनमें से ज़्यादातर यात्री ऐसे हैं जो त्योहारों के मौके पर अपने परिजनों के बीच अपने गृह प्रदेश लौटना चाहते हैं। ट्रेन रद्द होने के कारण बिहार के भी कई हिस्सों में वो यात्री हताश हैं जो कई महत्वपूर्ण कार्यों के कारण देश के दूसरे हिस्से जा रहे थे...हो सकता है कि इनमें से कई लोगों को समय पर काम पर नहीं लौटने के कारण नौकरी गंवानी पड़े॥या सबसे बुरा ये भी हो सकता है कि कोई यात्री बेहतर इलाज़ के लिए दिल्ली या मुंबई नहीं पहुंच पाने के कारण स्टेशन पर ही दम तोड़ दे।
क्या इन सब हालातों का जिम्मेदार भी राज ठाकरे ही होगा या फिर वे मौका परस्त बिहारी जो इस नफरत की आग को और भड़का कर अपनी रोटी सेंकने के चक्कर में हैं।
शायद इन उपद्रवियों को ये नहीं पता होगा कि राज ठाकरे को सलाखों के साए से निकालने का काम भी एक उत्तर भारतीय वकील ने ही किया है जो उत्तर प्रदेश के जौनपुर का रहने वाला है। इन सबसे अलग शायद राज ठाकरे को ये नहीं पता होगा कि उनके महाराष्ट्र में जितने उद्योग धंधे हैं उसका एक बड़ा बाज़ार उत्तर भारत ही है...अगर उस बाज़ार ने महाराष्ट्र में बनी चीजों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया तो राज ठाकरे को अपने उन्ही भूमि पुत्रों को जवाब देना भारी पड़ जाएगा...जिसके तथाकथित सम्मान की लड़ाई वो लड़ रहे हैं।
राज ठाकरे को तो उत्तर भारत में हिंसा कर रहे उन उपद्रवियों को धन्यवाद देना चाहिए जो उनके ही काम को अपने तरीके से कर रहे हैं। क्यों कि अगर उत्तर भारत लोगों नफरत की आग को शक्ति बनाकर योजनाबद्ध तरीके से आंदोलन करने की कुशलता आ गई तो राज ठाकरे को ये सौदा महंगा पड़ सकता है।

1 comment:

Anonymous said...

जम्बु द्वीप मे इश्वरीय तथा आसुरी शक्ति दोनो काम कर रही है। ईश्वरी शक्ति इस भुमि को अपने पुर्वजो की पुण्य भुमि मानती है, तथा विभिन्न जाति तथा क्षेत्रो के बीच एकात्मकता की आकंक्षा रखती है। आसुरी शक्ति विधर्मी साम्रज्यवादी देशो से संचालित है। वह इस पुण्य भुमि मे क्षेत्रियता तथा जातियता फैलाने के लिए काम कर रही है। हमे आसुरी शक्तियो को अपने मंसुबो मे सफल नही होने देना है। राज का जवाब सम्पुर्ण भारत को एकात्मकता प्रदर्शित कर देना चाहिए। जय आर्यावर्त, जय जम्बु द्वीप, जय दक्षिण एसिया ! ! !