Friday, 17 October 2008

क्या बीबीसी पर लटकेगा ताला ?

तो क्या अब बीबीसी के दिन गिने चुन रह गए हैं...ये बीबीसी लंदन है....ये उद्घोषणा शायद अब इतिहास की बात हो जाए....भारत के गांवों में ऑल इंडिया रेडियो के समाचारों के बाद शायद बीबीसी की हिन्दी सर्विस के ही सबसे ज्यादा श्रोता होंगे....रेडियो के श्रोता आज भी बीबीसी का नाम निष्पक्ष रिपोर्टिंग के पर्याय के रुप में जानते हैं...

अगर हम ब्रिटिश दैनिक 'डेली टेलीग्राफ' की ख़बरों पर गौर करें तो ब्रिटिश सरकार बीबीसी के बजट में कटौती करने जा रही है.....इस कटौती से बीबीसी को अपनी गुणवत्ता और स्तर को बरकरार रखने में मुश्किल होगी...बीबीसी के लिए चालीस वर्षों तक रिपोर्टिग करने वाले पत्रकार जॉन सिम्पसन की बातों को माने तो बीबीसी के दिन अब गिने-चुने रह गए हैं...सिम्पसन ने बीबीसी की सेवा करते हुए करीब 120 देशों की यात्रा की है...उनके मुताबिक बीबीसी के बजट में कटौती से उसके ऑपरेशन्स में सभी जगह कटौती करनी पड़ रही है...उसे अपने लाइसेंस फीस में भी कटौती करनी पड़ी है...इस कटौती से बीबीसी से जुड़े कई पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है...सिम्पसन के अनुमानों के मुताबिक करीब ढाई हजार पदों को कम किया गया है...इसके साथ ही न्यूज़ और करंट अफेयर्स के लिए बजट में कटौती की गयी है...रेडियो-टू के प्रेजेन्टर टेरी वोगान ने कहा है कि अगर ये सिलसिला चलता रहा तो बीबीसी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ब्रॉडकास्टर नहीं रह पाएगा  

बीबीसी की स्थापना 18 अक्टूबर 1922 को इस उद्देश्य के साथ की गयी थी कि ये निष्पक्ष रिपोर्टिंग करेगा और सरकार का इसमें कोई दखल नहीं होगा। बीबीसी के आय का मुख्य स्रोत चैनलों से मिलनेवाली लाइसेंस फीस है। लेकिन अब उसके बजट और लाइसेंस फीस में जिस तरीके से कटौती की गयी है उससे उसकी निष्पक्षता जरुर प्रभावित होगी। दिलचस्प है कि बीबीसी उस देश की संस्था है जो अपने को लोकतंत्र का सबसे बड़ा झंडाबरदार बताता है। लोकतंत्र को स्थापित करने के नामपर वो जाने-अनजाने दुनिया के कई देशों में अमेरिकी सैनिक कार्रवाई का साथ दे चुका है। ब्रिटेन ने ईराक पर आक्रमण करनेमें भी कोताही नहीं बरती। ईराक पर आक्रमण करने के पीछे उसके तर्कों में सद्दाम हुसैन के निरंकुश शासन को खत्म करना भी था। लेकिन जिस तरह बीबीसी ने रिपोर्टिंग की उससे ब्रिटिश सरकार को अपने फैसले को सही ठहराने में मुश्किल आ रही थी। शायद ब्रिटिश सरकार ये नहीं चाहेगी कि उसी के पैसे पर चलने वाली कोई ब्रॉस्टकास्टिंग संस्था उसकी नीतियों की किसी भी रुप में आलोचना करे। जैसा कि भारत में केंद्र में आने वाली किसी भी दल की सरकार प्रसार भारती के साथ करती 

1 comment:

onair said...

rochak jankari hai......