Thursday 4 December, 2008

शहीदों की जान कितनी सस्ती

मुंबई में पिछले 26 नवंबर से लेकर 29 नवंबर तक जो कुछ हुआ वो तब जानते हैं..लेकिन क्या हमने उसके पीछे की हक़ीक़त को खंगालने की कोशिश की...देशवासियों, राजनेताओं और मीडिया ने उस कार्रवाई में शहीद हुए जवानों को सिर आंखों पर बिठाया...पर जब ये खुमारी उतर जाएगी तब क्या होगा....उन शहीदों की चिंता क्या पहले कभी किसी राजनेता को हुई..
अब आपको जिस हक़ीक़त से रूबरू करवा रहे हैं  वो आपकी पेशानियों पर बल ला देगा...जैसा कि आपको भी पता है इन शहीदों में कई ऐसे  थे जिन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट पहना हुआ था...इसके बावजूद आतंकावदियों की गोली उनका सीना चीर गई...इस घटना के बाद जब उन बुलेट प्रूफ जैकेटों पर मुंबई पुलिस ने परीक्षण के दौरान गोलियां चलाई तो उनके चीथड़े उड़ गए...हैरानी की बात तो ये हैं कि ये जैकेट पुलिसकर्मियों के पास मौजूद आम रायफल की गोलियां भी नहीं झाल पाई...आपने पुलिसकर्मियों के पास द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की छिटकनी वाली रायफलें तो देखी होगी...और आप उसकी क्षमता से भी भली भांति परिचित भी होंगे...जब इन रायफलों की गोलियां भी ये बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं झेल पाई तो आतंकवादियों के अत्याधुनिक हथियारों का वार कैसे झेल पाती..
पिछले दिनों दिल्ली में बटला हाउस मुठभेड़ भी आप नहीं भूले होंगे...उन दिनों शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की ये कहकर आलोचना की गई थी कि उन्होंने लापरवाही के कारण बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहना था...मुंबई कांड में शहीद हुए इंस्पेक्टर विजय सालस्कर ने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहनी थी..दोनों ही में एक समानत थी...दोनों ही इनकाउंटर स्पेसलिस्ट थे...और शायद वो बुलेट प्रूफ जैकेट की हक़ीक़त से वाकीफ थे...यही वजह रही होगी की उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहना था....
इस हक़ीक़त से रूबरू होने के बाद तो मुझे इन जैकेटों की खरीदी में भी घोटाले की बू आने लगी है...इन जैकेटों की खराब गुणवत्ता के बारे में समय-समय पर राजनेताओं को बताया जाता रहा है...पर इस मामले में कई कार्रवाई नहीं हुई...क्या ये राजनेता हमारे जांबाज लड़ाकों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं....ये लड़ाके अगर बुलेट प्रूफ जैकेट में ना रहें तो कम से कम वो ज्यादा सतर्क होकर अपनी जान बचाने की कोशिश तो करेंगे...पर जैकेट पहनने के बाद वो थोड़े ज्यादा निडर या यूं कहिए की थोड़े बेपरवाह जो जाते हैं...और फिर निशाने पर चलाई गई आतंकवादियों की केवल एक गोली उनका शहीद बना जाती है...क्या ये हमारे जांबाज लड़ाकों के साथ धोखाधड़ी नहीं है....
चलिए अब आपको एक दूसरे हक़ीक़त से रूबरूब करवाते हैं...आपको याद होगा पिछले दिनों खेला गया क्रिकेट का ट्वेंटी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप....इस वर्ल्ड कप में जीकर हमारे खिलाड़ियों ने हमारे देश का नाम रौशन किया था...उस टीम में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में पंद्रह खिलाड़ी थे और साथ में था 5-6 लोगों का प्रबंधन दल...यानि पूरा आंकड़ा बीस के पास पहुंचा है...और लगभग यही संख्या थी मुंबई में शहीद हुए जांबाजों की....वर्ल्ड कप जीतने के बाद जब क्रिकेट टीम वापस भारत पहुंची तो उनका जबरदस्त सम्मान किया गया...उन्हें पुरस्कारों से लाद दिया गया...एक अनुमान के मुताबिक इस टीम के हर सदस्य को एक से तीन करोड़ रुपए मिले...अब जरा गौर किजिए उन शहीदों के परिवार वालों को मिले सम्मान पर...जो महज कुछ लाख रुपए हैं....इस पूरी कार्रवाई में कुछ जांबज ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी पर खेलकर दूसरों की जान बचाई...साथ ही आंतकवादियों को उनके अंजाम तक भी पहुंचाया...पर उन्हें क्या मिला...मै ये मानता हूं कि इन कुर्बानियों को पैसों से नहीं तौला जा सकता ....
पर क्या केवल सम्मान से उन शहीदों के परिवार वालों का चूल्हा जलता रहेगा....क्या हमारे शहीदों की जान इनती सस्ती हो गई है