Thursday 30 October, 2008

अधर्मियों ने की धर्मदेव की हत्या...

दृश्य एक-
मुंबई की बेस्ट बस को पटना के एक युवक राहुल राज ने की अगवा करने की कोशिश...मुंबई पुलिस ने ग़जब की फुर्ती दिखाते हुए उसे मौत के घाट उतार दिया...महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल का बयान- अगर राहुल राज को गोली नहीं मारी जाती तो वो यात्रियों को नुकसान पहुंचा सकता था। महाराष्ट्र में अमन चैन को कायम रखने की दुहाई देते हुए पाटिल साहब पुलिस की कार्रवाई को सही ठहराते हैं।

दृश्य दो-
मुंबई की लोकल ट्रेन का नज़ारा..सब ओर गहमा गहमी का आलम...तभी कुछ लोग इस ट्रेन के एक डिब्बे में घुसते हैं और ऐलान करते हैं- अगर कोई भईया लोग सीट पर बैठा है तो वो खाली कर दे...इस बीच उन लोगों ने सीट पर बैठे धर्मदेव राय और उसके तीन साथियों से उनका नाम पता पूछा और फिर उतर आए मुंबईया गुंडागर्दी र...उन्होने धर्मदेव की लात घूंसों से वो हालत बना दी कि उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। खचाखच भरी लोकल ट्रेन में सबके सामने ये घटना हुई...लेकिन किसी ने इसका विरोध नहीं किया..क्यों कि वहां मौजूद ज़्यादातर लोग मराठी थे और जिसपर जुल्म हो रहा था वो उत्तर भारतीय था। यानि उनलोगों की भी इस पूरे मामले में मौन हमति थी। डिब्बे में मौजूद जो मुट्ठी भर उत्तर भारतीय लोग थे वो अपने अंजाम को सोचकर चुपचाप बैठे थे।

दृश्य एक में जिस मुंबई पुलिस ने अपनी कार्य कुशलता पर अपनी पीठ थपथपाई थी..वो भी चुप थी। जीआरपी केजवान भी खामोश थे...पर सबसे अलग महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कह दिया कि ये मामला महज सीट की लड़ाई को लेकर था और इसमें क्षेत्रवाद की कोई भूमिका नहीं थी।

दो दृश्य..दोनों ही जगह मामले में काफी समानता... लेकिन एक ही प्रशासन और एक ही उपमुख्यमंत्री के नजरिए में दो ध्रुवों जितना फासला। क्या इस मामले में जीआरपी के जवानों ने इसलिए दखल नहीं दिया क्यों कि इस बार पीड़ित कोई उत्तर भारतीय था ?

क्या मुंबई पुलिस ने 18 घंटे तक इसलिए मामला दर्ज नहीं किया क्यों कि इस बार आरोपित मराठी थे ? क्यों इस बार उपमुख्यमंत्री आर आर पाटील को धर्मदेव की हत्या करने वाले लोग ख़तरनाक नहीं लगे केवल इसलिए क्यों
कि वो राज ठाकरे के चमचे थे ?
क्यों विलासराव देशमुख को कड़ी कार्रवाई करने का बयान देने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल के फोन का इंतजार करना पड़ा ? क्यों जीआरपी के अधिकारियों को रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की फटकार सुनने के बाद
होश आया ? इन सब दबावों के बाद तुरत में ऐसे क्या सुराग हाथ लग गए कि शक के आधार पर बीस लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया ? क्या ये गिरफ़्तारी पहले भी हो सकती थी ? अगर ऐसे राजनीतिक दबाव नहीं बनाए जाते तो क्या बीस लोगों की गिरफ्तारी हो पाती ?
खैर मेरे सवालों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है...और मुझे ये भी पता है कि मुंबई के हुक्मरान और प्रशासन इन सवालों के गोलमोल जवाब दे भी देंगे...लेकिन क्या ये लोग गोरखपुर में इंतजार कर रहे धर्मदेव के उस छोटे से बेटे को मना पाएंगे- जो दिवाली पर घर नहीं आने से अपने पापा से कुट्टी होकर बैठ गया है ? क्या ये लोग धर्मदेव की विधवा की सूनी मांग का सिंदूर और टूटे हुए सपनों को वापस ला पाएंगे ? कहते हैं कि पुराने जमाने में राजयोग पाने के लिए लोग पशुओं की बलि देते थे लेकिन अब राज ठाकरे जैसे मुट्ठी भर थाकथित नेता अपने राजयोग केलिए इंसानों की बलि दे रहे हैं। अब तो मेरी आस्था महाराष्ट्र के हुक्मरानों से उठ चुकी है पर भगवान से मैं ये विनती जरूर करूंगा कि या तो राज ठाकरे जैसे नेता को सदबुद्धी दे दो या फिर उसके राजयोग का रास्ता साफ कर दो ..ताकि कम से कम इस नरबलि का सिलसिला तो रुके।

साध्वी को साध्वी का सहारा....

मध्यप्रेदश की एक साध्वी को मध्यप्रदेश की ही दूसरी साध्वी ने सहारा दिया है। इसमें पहली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर हैं जिसे मालेगांव ब्लास्ट के मामले में गिरफ़्तार किया गया है..जबकि दूसरी साध्वी हैं मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती।
वैसे उमा भारती ने तो पहले ही प्रज्ञा सिंह ठाकुर को क्लीन चीट दे दी थी..लेकिन अब उमा भारती की पार्टी भारतीय जनशक्ति पार्टी ने प्रज्ञा को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने की पेशकश की है। ये बात कोई चोरी-छिपे नहीं की जा रही है बल्कि इस प्रस्ताव का ऐलान पार्टी के राष्ट्रीय सचिव इंदर प्रजापत ने डंके की चोट पर किया है। उन्होने प्रज्ञा को मध्यप्रदेश के किसी भी इलाके से चुनाव लड़ने की सहूलियत देने की भी पेशकश की है।
उमा भारती की पेशकश यहीं ख़त्म नहीं होती है...उन्होने इससे भी एक कदम आगे बढ़कर प्रज्ञा को कानूनी मदददेने का भी प्रस्ताव दिया है। इंदर प्रजापत ने ये दावा किया है कि प्रज्ञा जल्दी ही बेगुनाह साबित होकर मामले से बाइज्जत बरी हो जाएंगी।
अब सवाल ये उठता है कि क्या वाकई उमा भारती को प्रज्ञा के बेगुनाह होने का भरोसा है या फिर वो हिन्दुत्व की बहती बयार में प्रज्ञा के तुरुप का पत्ता फेंककर विधानसभा में एक सीट पक्की करना चाहती है। क्यों कि उमा भारती ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली है...उसे पता है कि जिस तरह पिछले चुनाव में वो हिन्दुत्व की आंधी में दिग्विजय सिंह की सरकार को बहा ले गई थी...शायद इस बार भी ऐसा ही कोई करिश्मा हो जाए।
इससे पहले बीजेपी ने ये कहकर प्रज्ञा से किनारा कर लिया था कि...पार्टी का उससे कोई लेना देना नहीं है जबिक राजनीतिक गलियारे का हर आदमी जानता है कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर गिरफ़्तार होने से पहले तक बीजेपी के विभिन्न संगठनों से जुड़ी रही हैं। उमा भारती ने बीजेपी के इसी रवैये को भुनाने की कोशिश की है ताकि बीजेपी के बयानों से आहत प्रज्ञा सिंह ठाकुर को वो अपने फ्रेम में उतार सके।
अब सवाल ये उठता है कि क्या ये भारतीय जनशक्ति पार्टी का दिवालियापन है कि वो एक आतंकी कार्रवाई की आरोपित को अपना उम्मीदवार बनाने की पहल कर रही है। ऐसा नहीं है कि पहले किसी पार्टी ने किसी अपराधी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है लेकिन ऐसे मामलों में खुद अपराधी ही राजनीतिक दलों से संपर्क बनाते रहे हैं...और इस बार बीजेएसपी ने प्रज्ञा सिंह के सामने पेशकशों की झड़ी लगाकर अपनी विचारधारा को जगजाहिर कर दिया है।

देश बिकता है...बोलो, खरीदोगे

पिछले दिनों साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ़्तार कर लिया गया और उसपर आतंकवादी होने का आरोप चस्पा कर दिया गया। इस मुद्दे पर बीजेपी ने काफी बवाल मचाया लेकिन उनका सरोकार बस इतना भर था कि वो इस
साध्वी का अपनी पार्टी से किसी तरह के रिश्ते से इंकार कर रहे थे। उन्होने इस बात का विरोध करने की कभी कोशिश नहीं की कि साध्वी ने मालेगांव में विस्फोट नहीं किया।
खुद को हिन्दुत्व का सबसे बड़ा पैरोकार बताने वाली इस पार्टी का ये रवैया भले ही कट्टर हिन्दुवादी ताकतों को रास नहीं आया हो...लेकिन अगर देशहित में सोचा जाए तो बीजेपी का ये रवैया वाकई सराहनीय है। बीजेपी के इस रवैये से वोट की राजनीति कर रहे उन नेताओं को सबक लेना चाहिए जो बाटला हाउस इनकाउंटर को फर्जी बताने पर तुले हुए हैं...वो भी तब जब इस इनकाउंटर के बाद पकड़े गए आरोपितों ने अपना जुर्म कबूल लिया है।
यहां पर ये भी देखने वाली बात है कि चाहे वो बाटला हाउस में पकड़े गए आज़मगढ़ के युवक हों या फिर मालेगांव विस्फोट के आरोप में पकड़ी गई साध्वी...दोनों ही मामलों में उनके परिजनों ने साफ कर दिया कि अगर उन पर आरोप साबित हो जाए तो कानून के तहत उन्हे सजा दी जाए।
आपको बता दें कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पिता ने उसकी फोटो अपने मंदिर में लगा रखी है और रोज उसकी पूजा करते हैं...इससे इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि एक शख़्स ने अपने मुल्क के आगे अपने भगवान को भी नहीं बख्शा। मेरा मन ऐसे जज्बे को सलाम करना चाहता है। इससे इस नतीज पर भी पहुंचा जा सकता है कि
हर देशभक्त को अपने कौम, अपने भगवान और अपने हितों से ऊपर अपने देश को रखना चाहिए।
लेकिन ऐसे लोगों पर मुझे तरस आता है जो बाटला हाउस मामले में एक शहीद की शहादत को भी साजिश का र्जा दे देते हैं। मैं ये नहीं कहता हूं कि बाटला हाउस में जो भी हुआ वो सही हुआ लेकिन... जो कुछ भी हुआ वो गलत हुआ...इस नतीजे पर पहुंचने में भी हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए...वो भी केवल इस लालच में कि हमें अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मिल जाए।
अल्पसंख्यक आयोग के एक रिपोर्ट का हवाला दें तो आज भारत में पढ़े लिखे डिग्री धारक बेराजगार मुसलमानों की संख्या बढ़ती जा रही है...क्या कभी इन अमरबेल की तरह पेड़ रूपी देश को खोखला करने वाले नेताओं ने उन अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कुछ किया ? क्या कभी उनकी काबिलियत के मुताबिक उन्हे नौकरी दिलाने की कोशिश की ? इस बात का जिक्र आते ही ये नेता आरक्षण की डफली बजाने लगते हैं...क्या इस समस्या का समाधान आरक्षण है ?
कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है...और ऐसा ही कुछ इन आतंक फैला रहे नासमझ युवाओं के साथ भी हो रहा है। इस वोट बैंक की राजनीति के जीते जागते उदाहरण मध्यप्रदेश के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी हैं जिन्होने साध्वी को क्लीन चिट दे दी। अपनी पार्टी कीलाइन से हटकर क्लीन चिट देने की मंत्री जी की मजबूरी भी मध्यप्रदेश में नवम्बर में होने वाला चुनाव हो सकती है। कुल मिलाकर यहां पर ये कहना उचित होगा कि आज के कुछ राजनेता देश पर राज करने के लिए उसका सौदा करने को भी तैयार हैं।

Wednesday 29 October, 2008

एक और निठारी...

28 अक्टूबर को जब देश भर में दिवाली मनाई जा रही थी...तो दिल्ली में यमुना पार के 254 घरों में अंधेरा छाया था..क्यों कि उनके घर को जो चिराग रौशन कर सकता था...वो महानगर की चकाचौंध में ना जाने कहां खो गया
था।
यहां हम बात कर रहे हैं उन घरों की जहां से पिछले चार महीनों में 254 बच्चे लापता हो गए हैं। ये चार महीनों
का वक्त है जून से लेकर अक्टूबर तक का...। ये आंकड़े हैं पुलिस रिकॉर्ड के...यहां आपको बता दें कि जो आंकड़े हम आपको बता रहे हैं वो ऐसे बच्चों के हैं जिनके बारे में पुलिस के पास ना तो कोई सुराग है और ना ही वो उन बच्चों का पता लगाने की कोशिश कर रही है। अगर हम लापता होने वाले कुल च्चों की बात करें तो ये आंकड़ा 875 तक पहुंच जाता है।
गृह मंत्रालय का भी इस दिशा में ध्यान खींचने की कोशिश की गई। गृह मंत्रालय ने इन मामलों की पड़ताल की और
बयान जारी कर दिया कि लापता हुए ज़्यादातर बच्चे ग़रीब तबकों के हैं...और उसके बाद छा गई लम्बी खामोशी...उस खामोशी के पीछे से रह-रह कर आवाजें आ रही थी..."कांग्रेस का हाथ ग़रीबों के साथ"..."हमारी
मुख्यमंत्री कैसी हो, शीला दीक्षित जैसी हो"...इन नारों को सुनते ही मुझे एहसास हो गया कि चुनाव का मौसम आ गया है और ऐसी स्थिति में दस जनपथ का चक्कर लगा रहे राज्य के मंत्रियों से किसी तरह की मदद की उम्मीद करना बेमानी है और प्रशासनिक अमलों में भी मदद के लिए लगाई गई गुहार चुनाव की तैयारियों की गहमा-गहमी
दब कर रह गई।
पुलिस विभाग के पास भी सुरक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने का निर्देश आ चुका था...ऐसे में ग़रीब तबके के बच्चों का ध्यान किसे रहता है...ये बात है कि पिछले दिनों जब एक रसूखदार का कुत्ता खो गया था तो उसे ढ़ूंढ़ने के लिए पुलिसकर्मियों ने अपनी पूरी क़ाबिलियत झोंक दी थी। तो क्या हम ये मान लें कि ग़रीब इंसानों के जान की कीमत कुत्तों से भी कम है।
पुलिस विभाग की ऐसी ही लापरवाही नोएडा के निठारी इलाके में भी सामने आई थी और जब उसका खुलासा हुआ...तब तक कई बच्चों की बलि चढ़ चुकी थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद भी एक मां हैं॥क्या हम उनसे लापता हुए उन 254 के लिए ममता की उम्मीद कर सकते हैं। इन सबके अलावा यमुना पार के उन्ही इलाकों की बात करें तो उन्ही चार महीनों में 828 लोगों की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी थाने में दर्ज है...उसमें से अब भी 400 लोग ऐसे हैं जिनके बारे में पुलिस कोई सुराग नहीं जुटा पाई है।
अगर इन दोनों मामलों को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो यही सवाल उठता है कि क्या इन इलाकों में
कोई ऐसा गिरोह आ गया है जो एक साजिश के तहत लोगों का अपहरण कर रहा है..या फिर इसकी वजह कुछ और
है...हालांकि इन मामलों में अभी पक्के तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी

जाग जाओ कॉल सेंटर वालों...

अगर आप किसी बीपीओ यानि कॉल सेंटर में काम करतें हैं तो आने वाले समय के लिए सतर्क हो जाईए।
क्यों कि हो सकता है कि आने वाला समय आज की तरह सुनहरा ना हो
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओबामा के बयानों से तो कम से कम ऐसा ही लगता है। उन्होने प्रचार अभियान के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वो अमेरिका में नए रोजगार पैदा करने के लिए माहौल बनाएंगे और आउटसोर्सिंग पर रोक लगाएंगे। ओबामा के इस बयान के पीछे अमेरिका का माली हालत जिम्मेदार है जहां पर बाजार की मंदी के बीच बेरोजगारी ने पिछले पांच वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। फिलहाल वहां पर बेरोजगारी दर 6।1 फीसदी पर पहुंच गई है और देश भर में क़रीब 21 फीसदी लोग बेरोजगार हैं। ऐसी स्थिति में लगातार गिर रहा शेयर बाजार अमेरिकी लोगों की हताशा को और बढ़ा रहा है।
और जैसा कि आप जानते ही हैं कि नेता चाहे भारत के हों या फिर अमेरिका के, सबका नस्ल एक ही होता है। अमेरिका के नेता ओबामा ने भी अपनी नस्ल के दूसरे नेताओं की तरह ही जनमानस की हताशा को वोट बैंक में तब्दील करने का जुगाड़ खोज लिया। अगर ओबामा दूसरे नेताओं की तरह राज योग मिलने के बाद अपना वादा भूल गए...तब तो भारत के नौजवानों पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा...लेकिन अगर वो अपने वादे को निभाने पर उतारू हो गए...तब भारत में मकड़ जाल की तरह फैल चुके बहुराष्ट्रीय कॉल सेंटर में काम कर रहे लोगों का क्या होगा।
जिस तरह इस साल कई निजी एयरलाइन्स में काम कर रहे लोगों की दिवाली का दिवाला निकल गया, कहीं ऐसा ना हो कि अगली दिवाली में कॉल सेंटर के लोगों को अपनी नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़े। ऐसी स्थिति में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्यों का तो ज़्यादा कुछ नहीं बिगड़ेगा...क्यों कि वहां पर अब भी कॉल सेंटर में काम करने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा नहीं है लेकिन ऐसे हालात में मुंबई और दिल्ली जैसे विकसित शहरों का क्या होगा जहां के युवाओं में इन कॉल सेंटरों का सबसे ज़्यादा क्रेज है। ये क्रेज इसलिए भी ज़्यादा है क्यों कि ये युवा कॉल सेंटर की अपनी पहली ही नौकरी में इतना वेतन पाने लगते हैं जितना पाने के लिए उनके पिता ने ना जाने कितनी ठोकरें खाई होंगी। ये अलग बात है कि उनके पिता उनसे ज़्यादा शिक्षित और ज़्यादा काबिल हैं।
अब सवाल ये भी उठता है कि अगर मुंबई में कॉल सेन्टरों पर ताला लटक गया तो राज ठाकरे इसके लिए किसे दोषी ठाहराएंगे और किन लोगों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ेंगे और ऐसी स्थिति में अगर मुंबई के मराठी मानुष रोजगार की तलाश में देश के दुसरे हिस्सों में ख़ासकर उत्तर भारत में गए तो क्या राज ठाकरे उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करेंगे।
खैर ये बातें तो मुद्दे से भटकने वाली हो गई....पर वो सवाल अब भी वहीं पर है कि अगर भारत में कॉल सेंटर का करोबार बंद हो गया तो क्या ऐसी स्थिति से निपटने के लिए देश के नीति निर्धारक और कॉल सेंटर में काम कर रहे लोग मानसिक और आर्थिक स्तर पर तैयार हैं ?

आखिर कब तक

मध्यप्रदेश....भारत का हृदय प्रदेश...मध्यप्रदेश में 25 नवंबर को चुनाव होने हैं....प्रदेश में मौजूदा सरकार है
बीजेपी की...230 विधानसभा सीट और 29 लोकसभा सीट हैं मध्यप्रदेश में..पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं प्रदेश की यहां 29 लोकसभा की सीटें हैं...
अब चुनाव सर पर हैं तो चुनाव के कुछ मुद्दे भी होंगे...बीजेपी की मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ कांग्रेस भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही है...मुद्दा बिजली, सड़क और पानी भी है...इन्हीं को मुद्दा बना कर पिछले चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को पटखनी दी है... लेकिन अब तस्वीर का रुख उल्टा हो गया है....बीजेपी के ही मुद्दों पर कांग्रेस बीजेपी को घेर रही
है...
प्रदेश में पिछले पांच सालों में कितना विकास हुआ इसका हिसाब विपक्ष बीजेपी की सरकार से मांग रहा है... ऐसे में बीजेपी सरकार बचाने के लिए क्या करे...अब लगता है काफी सोच समझ कर बीजेपी ने हिंदुत्व का तीर चलाने का मन बना लिया है... इसकी एक बानगी दिखी इंदौर में...मालेगांव ब्लास्ट मामले में गिरफ़्तार श्याम साहू के घर पहुंचे प्रदेश के ताकतवर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय....कैलाश विजयवर्गीय की छवि मध्यप्रदेश में वही है जो गुजरात में नरेंद्र मोदी की है...इन महाशय को मध्यप्रदेश का मोदी भी कहा जाता है...इंदौर दंगों के समय इन्होंने ही दंगों में सिमी का हाथ बताया था....लेकिन कोई ठोस सबूत मुहैया नहीं करा पाए थे..
तो श्याम साहू के घर कैलाश विजयवर्गीय का पहुंचान अचानक नहीं था....मध्यप्रदेश की मौजूदा सरकार अपने विकास के एजेंडे पर तो अपनी गद्दी बचाने से रही...उसके बाद जो कसर बची थी उसे साध्वी उमा भारती की बग़ावत ने पूरा कर दिया....उमा बीजेपी को हिंदुत्व के मुद्दे पर घेरने की कोशिश कर रही हैं....
मालेगांव ब्लास्ट में गिरफ़्तार साध्वी प्रज्ञा के समर्थन में सबसे पहले उमा भारती हीं उतरीं थी...उमा ने साफ-साफ कहा था कि प्रज्ञा एबीवीपी की कार्यकर्ता थी....उमा से वार से बीजेपी के नेता तीलमिला उठे...गले की फांस बन गईं प्रज्ञा...न तो उगलते बनता था न निगलते...काफी ना नुकर के बाद माना की प्रज्ञा का बीजेपी से संबंध था.... बात इतने से बनती नज़र नहीं आई तो कैलाश विजयवर्गीय पहुंच गए श्याम साहू के घर...कहा वो हमारे पुराने कार्यकर्ता हैं...कांग्रेस चुनावी लाभ के लिए हिंदुओं को आंतकवादी घोषित कर रही है...
यानी बीजेपी ने अब तय कर लिया है कि और कहीं हो न हो मध्यप्रदेश में उसका मुख्य मुद्दा हिंदुत्व ही होगा....हिंदुत्व के इस एक वार से साध्वी उमा भारती और कांग्रेस दोनों को चित करना चाहती है बीजेपी... मान लें
हिंदुत्व का मुद्दा एक बार सही भी है...लेकिन क्या प्रदेश की जनता को ये जानने का अधिकार नहीं है कि बीजेपी की मौजूदा सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए क्या किया...आखिर क्यों नहीं बीजेपी अपनी उपलब्धियों को आधार
बनाकर मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ रही है....
आखिर कब तक आम लोगों को भावनात्मक शोषण करती रहेगी बीजेपी....आखिर कब तक

Tuesday 28 October, 2008

शिखंडियों का राज

बात सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन ये सच है...अगर देश में सबकुछ इसी तरह से चलता रहा तो आज से पांच छह साल बाद देश कहे जाने वाले भारत का एक बड़ा हिस्सा गृह युद्ध की चपेट में होगा...
मुंबई में जिस तरह से बिहार के एक युवक को गोली मार दी गई उससे साफ हो गया है कि अब भारत नाम के इस देश में कानून और व्यवस्था संभालने वाले लोग भी प्रादेशिक भावनाओं के शिकार हो गए है...
कुछ ऐसे तथ्यों की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा जो स्थितियों को साफ करते हैं...श्रीलंका और मलेशिया में अगर तमिलों को कुछ होता है तो तमिलनाडु के राजनीतिक दल आसमान सर पर उठा लेते हैं...सारी मर्यादाओं को ताक पर रखकर केंद्र को उन देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ता है...
फिजी में अगर महेंद्र चौधऱी को सत्ता से हटाया गया तो भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई...
लेकिन क्या महाराष्ट्र में जो हो रहा है उसे रोकने में हमारी सरकार नाकाम है...
कहते हैं बिहारी इस देश को डोमिनेट करते हैं...बिहार का अगर नाम ले तो सिर्फ बिहार ही नहीं झारखंड और आधा यूपी....इस पूरे इलाक़े की राजनीतिक ताकत को तौले तो वो तमिलनाडु और महाराष्ट्र की राजनीतिक ताकत पर भारी पड़ती है....
आखिर क्यों अर्से से एक कौम की गैरत को ललकारा जा रहा है...क्या वाकई उत्तर के लोग इतने निकम्मे और नकारा हो गए है कि उन्हें सिर्फ मारपीट कर ही दुरुस्त किया जा सकता है...उत्तर भारतियों के प्रति कैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं ये मुंबई के नपुंसक नेता...
तो आखिर मुंबई में जो हो रहा है उसको क्यों नहीं रोका जा रहा है...इस पूरे घटनाक्रम में तीन मुख्य किरदार है...एक शिखंडी जो राजा बनना चाहता है नाम है राज ठाकरे...एक विलासी और बेहया मुख्यमंत्री जो किसी भी क़ीमत पर अपनी कुर्सी बचाए रखना चाहता है...और धृतराष्ट्र जो महाराष्ट्र की गद्दी पर कब्ज़ा करना चाहते हैं....शरद पवार और शिवराज पाटिल...
शिखंडी राज को विलासी देशमुख का समर्थन हासिल है....और बीसीसीआई में नंगा नाच करवाने वाले पवार को महाराष्ट्र का पावर चाहिए...तो शिवराज पाटिल की नपुंसकता को देश ने कई बार देखी है...आखिर क्या इन लोगों के अपने क्षुद्र हित इतने प्रभावी हो गए हैं कि ये लोग पूरे देश को दांव पर लगा दें....
याद आता है जब कुछ साल पहले महाराष्ट्र में इसी तरह से उत्तर भारतीयों को पीटा गया था...किसी ने कुछ नहीं बोला था...पिछले साल जब ये वारदात हुई तो रांची में लोगों ने मराठी लोगों को निशाना बनाया था...इस साल बिहार का एक साहसी युवक अपना विरोध दर्ज कराने मुंबई पहुंच गया..किसी ने ये कल्पना भी नहीं की होगी की एक बिहारी अपना विरोध दर्ज कराने के लिए मुंबई जा सकता है...मुंबई में कुछ नपुंसकों ने उसकी हत्या कर दी...तो अगर इस आधार पर देखे तो इतना तो तय लगता है कि अगर अगले पांच छह सालों में घटनाए इसी रफ्तार से आगे बढ़ती रही तो हो न हो बिहार के लोग एक दिन इस देश से अगल अपने लिए नए देश की तलाश में आवाज़ बुलंद करेंगे...तो ये तो तय रहा की ये देश अब गृहयुद्ध की दिशा में आगे बढ़ रहा है...
धृतराष्ट्र शरद पवार के
पट्ठे और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री आरआर पाटिल ने पुलिस कार्रवाई का बचाव किया और कहा कि किसी को भी ख़ुलेआम गोली चलाने की छूट नहीं दी जा सकती...उसने कहा कि पुलिस ने अपना कर्तव्य सही से निभाया है और किसी को भी अपने हाथ में क़ानून लेने की छूट नहीं...पाटिल ने कहा, “जो कानून अपने हाथ में लेगा और लोगों को डराने की कोशिश करेगा उसे गोली से ही जवाब मिलेगा. पुलिस ने सिर्फ़ अपना कर्तव्य निभाया है.”
क्या इस मूर्ख से कोई ये सवाल पूछ सकता है कि आखिर शिखंडी राज मुंबई में क्या कर रहा है...वो किस कानून का पालन करता है...आखिर वो शिखंडी जब कानून हाथ में लेता है तो धृतराष्ट्र शरद पवार के इस अदने से दरबारी को क्यों कुछ दिखाई नहीं देता...इस आरआर पाटिल पर महाराष्ट्र के कानून व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी है...इससे पहले भी कई बार अपने कारनामों से ये बता चुका है कि उसमें कितना पौरुष शेष है...राज जैसे शिखंडी की आवाज़ सुनते ही चूहे की तरह बिल में समा जाता है ये आर आर पाटिल....आखिर क्यों नहीं रोकता है शिखंडी राज को...
और अब बात बिहार के विभिषणों की...केंद्र में राज कर रही यूपीए सरकार की कुंजी बताते हैं इन विभिषणों लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के पास है...आखिर ये सत्ता में मद में कितने अंधे हो गए हैं...क्यों नहीं सिख लेते ये करुणानिधि से....श्रीलंका में थोड़ा सा बवाल होने पर करुणानिधि केंद्र सरकार की ईंट से ईंट बजा देते हैं....फिर ये बिहार के विभिषण अपने लोगों को पिटता देखकर भी क्यों कोई बड़ा कदम नहीं उठाते....आखिर उन्हीं बेचारे गरीब लोगों के वोट के बदौलत तो ये दो कौड़ी के विभिषण सत्ता के सौदागर बन गए हैं....
अब सवाल देश के लोगों से
क्यों नहीं देश के न्यायप्रिय और बुद्धीजीवी कहे जाने वाले लोग सड़क पर उतर पर इस अन्याय का विरोध करते हैं...क्यों नहीं इस देश को बर्बाद होने से रोकने की पहल होती है....आखिर क्यों पूरा देश खल नायकों के हाथ में चला गया है...
आखिर में सभी बिहारियों से पूछना चाहूंगा कि क्या वाकई बिहार की मिट्टी का गौरव खत्म हो गया है...कब तक बिहार की माटी के लोग अपमान बर्दाश्त करते रहेंगे...आखिर क्यों न अपने लिए नई संभावना तलाश की जाए...किसी बड़े भू भाग में दोयम दर्जे का नागरिक बनने से क्या ये बेहतर नहीं होगा की अपना भविष्य खुद तय किया जाए...क्या अब समय नहीं आ गया है कि जय हिन्द के बजाए जय बिहार बोला जाए

Monday 27 October, 2008

एक और बिहारी की मौत...

राज ठाकरे का फैलाया गया उन्माद अब अपना रंग दिखाने लगा है। मुंबई में एक और बिहारी मारा गया है...ये अलग बात है कि इस बार इस बिहारी को यमलोक का रास्ता महाराष्ट्र पुलिस ने दिखाया। इस तरह से अब तक इस क्षेत्रवाद की आंधी ने तीन बिहारियों की जान ले ली है।
पहला शिकार बना बिहार का पवन जिसे मुंबई में तथाकथित महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कार्यकर्ताओं के कोप का भाजन बनना पड़ा ....दूसरा शिकार बना वो बिहारी जो बिहार में राज ठाकरे के उन्माद का जवाब हिंसक आंदोलन से दे रहा था। तीसरा और सबसे ताज़ा शिकार बना है मुंबई में बेस्ट की बस को अगवा करने की कोशिश कर रहा पटना का राहुल राज।
ये महज एक इत्तेफाक ही है कि एक राज (ठाकरे) को ख़त्म करने की चाहत में दूसरा राज (राहुल) इस दुनिया से चला गया।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान को सही माने तो महाराष्ट्र पुलिस राहुल राज को ज़िंदा पकड़ सकती थी। तो क्या अब हमें ये मान लेना चाहिए कि महाराष्ट्र पुलिस भी राज ठाकरे की राह पर चल पड़ी है..अगर ऐसा है तो मुंबई में रह रहे बिहारियों का तो भगवान ही मालिक है...
पर यहां सोचने वाली बात ये भी है कि जिन दिनों राज ठाकरे के चमचे उत्तर भारतीयों के ख़िलाफ़ सड़कों पर नंगा नाच कर रहे थे....तब मुंबई पुलिस ने तो कभी ऐसी कठोर कार्रवाई नहीं की...तो क्या मनसे के कार्यकर्ता आज जिस हद तक पहुंच गए हैं उसके लिए महाराष्ट्र पुलिस के नरम रवैये को भी दोषी माना जाना चाहिए...या फिर कहीं ऐसा तो नहीं है कि बिहार के मुख्यमंत्री का बयान महज राजनीतिक वजहों से दिया गया बयान हो...क्यों कि हो सकता है कि उन्हे आने वाले लोकसभा चुनाव में बिहार पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने की मजबूरी हो...
लेकिन जिस तरह से कमान से निकला हुआ तीर वापस नहीं लौट सकता वैसे ही नीतिश कुमार का बयान भी अब जंगल में आग की तरह फैल चुका है...हो सकता है कि उनका ये बयान क्षेत्रवाद के इस आग को और भड़का दे और इस आग में जलकर ना जाने और कितने पवन और राहुल राज दम तोड़ दें।
बहरहाल इस पूरी घटना ने मुझे भीष्म पितामह की वो बात याद दिला दी जो उन्होने महाभारत शुरू होने से पहले कही थी...उन्होने कहा था कि हार चाहे कौरव की हो या पांडव की उनकी (भीष्म पितामह) हार तो निश्चित ही है..इसी आधार पर यहां ये कहा जा सकता है कि इस क्षेत्रवाद की बयार मेंचाहे किसी बिहारी की मौत हो या फिर किसी मराठी की...खंजर तो भारत माता के सीने पर ही चलेगा।
वाद विवाद

Sunday 26 October, 2008

कुछ यक्ष प्रश्न

दिवाली है...चारो तरफ खुशियां मनाने की तैयारी चल रही है...लेकिन एक ख़बर अभी सामने आई है...आप भी पढ़िए
दिवाली की पूर्व संध्या पर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में छह किसानों ने आत्महत्या कर ली है.....विदर्भ जन आंदोलन समिति के अनुसार कीड़े लगने के कारण कपास, सोयाबीन और धान की फसल को नुकसान पहुंचने से किसानों ने यह कदम उठाया है.....ये किसान वर्धा, चंद्रपु, अकोला, भंडारा, यवतमाल और अमरावती जिलों से थे.....समिति के मुताबिक इस घटना के साथ इस वर्ष आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 626 हो गई है
श्रीलंका ने भारत को तमिलों की सुरक्षा का भरोसा दिलाया है....साथ ही श्रीलंका ने यह भी संकेत दिया है कि एलटीटीई के साथ संघर्ष से प्रभावित इलाक़े में भारत की ओर से चिकित्सा सहायता की अनुमति दी जा सकती है.श्रीलंका के राष्ट्रपति के विशेष सलाहकार ने भारतीय विदेश मंत्री से मुलाक़ात की और तमिलों की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे क़दमों की जानकारी दी.भारत ने पिछले दिनों श्रीलंका सरकार से कहा था कि वह तमिलों के अधिकारों की रक्षा करे.श्रीलंका के तमिलों के मुद्दे पर केंद्र की सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में सहयोगी द्रमुक ने कड़ा रुख़ अपनाया है.तमिलनाडु में सत्ताधारी द्रमुक के कई सांसद इस मुद्दे पर पार्टी प्रमुख करुणानिधि को अपना इस्तीफ़ा तक सौंप चुके हैं.चेन्नई में 14 अक्तूबर को श्रीलंका के तमिलों के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक हुई थी। जिसमें यह फ़ैसला हुआ था कि अगर 29 अक्तूबर तक केंद्र सरकार श्रीलंका के उत्तर में संघर्षविराम करवाने के लिए क़दम नहीं उठाती तो राज्य के सभी सांसद इस्तीफ़ा दे देंगे.
मलेशिया में प्रधानमंत्री आवास के बाहर इकट्ठा होने के कारण गिरफ्तार किए गए हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स (हिंद्राफ) संगठन के 10 सदस्यों को दोषी सिद्ध होने पर पांच साल की कैद हो सकती है.....हिंद्राफ के इन कार्यकर्ताओं को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वे अपने पांच नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अहमद बदावी को एक ज्ञापन सौंपने वाले थे।
कृषि मंत्री और क्रिकेट बोर्ड अध्य्क्ष, शरद पवार हैं...इसलिए जब विदर्भ के किसान कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या करते हैं तो शरद पवार उन्हें सलाह देते हैं कि जमीन बेच दो और नौकरी करो, खेती में कुछ नहीं रखा है...और जब भारतीय क्रिकेट टीम 20-20 नाम का एक तमाशाई टूर्नामेंट जीत जाती है तो वे बोर्ड की तरफ से टीम को 12 करोड़ रुपए और युवराज सिंह को एक ओवर में 6 छक्के लगाने के लिए 1 करोड़ रुपए के इनाम का एलान करते हैं।
कुछ ख़बरें थी...कुछ आज की और कुछ पुरानी...विदर्भ हमारे ही देश का एक हिस्सा है..रिपोर्ट की माने तो ३२ लाख किसानों का ये इलाक़ा हर रोज तीन लोगों की आत्महत्या का गवाह बनता है...दक्षिण भारत की एक पार्टी श्रीलंका के तमीलों की सुरक्षा के लिए मरी जा रही है...क्या हम तमीलों के मामले में हस्तक्षेप कर श्रीलंका के आतंरिक मामले में दखल नहीं दे रहे हैं...यही पार्टी मलेशिया में हिंद्राफ कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी पर भी हंगामा काटती है...लेकिन क्या वाकई हम अपने दुखों से उबर चुके हैं कि अब हमें दूसरों के दुख दूर करने की तरफ ध्यान देने की जरूरत है....
आखिर क्यों नहीं किसी पार्टी के सांसद विदर्भ को मुद्दा बनाकर संसद से इस्तीफ़ा देते हैं...आखिर तब अपनी जान देते रहेंगे विदर्भ के किसान...क्या शऱद पवार सिर्फ बीसीसीआई के नेता हैं...एक क्रिकेटर को 6 छक्के मारने पर एक करोड़ और टूर्नामेंट जीतने पर टीम को बारह करोड़ लेकिन विदर्भ के किसानों को क्या....क्या पवार वाकई दिवाली मनाने के हक़दार हैं...
मुंबई से बिहारियों को बाहर निकालने के मुहिम चलाए राज ठाकरे क्यों नहीं विदर्भ से गरीबी को बाहर निकालने की मुहिम चलाते हैं...क्यों नहीं राज ठाकरे विदर्भ के किसानों को मौत के मुंह से बाहर निकालने की मुहिम चलाते हैं...क्या वाकई राज ठाकरे दिवाली मनाने के हक़दार हैं....
हर रोज़ विदर्भ में किसान जान दे रहे हैं...हर रोज कुछ घरों के चिराग बुझ रहे हैं...हर रोज महानगरों में नए-नए माल खुल रहे हैं...हर रोज शेयर बाज़ार में नई कंपनियां लिस्ट हो रही है...क्या वाकई माहौल ऐसा है कि उत्सवधर्मी हुआ जाए...

राज ठाकरे का उत्तर प्रेम

दीवाली नजदीक है और आजकल विदेशों से भी दीवाली के मौके पर समारोह आयोजित करने की ख़बरें आ रही हैं।इससे पहले दशहरे के मौके पर भी विदेशों में गरबे का आयोजन किया गया था...लेकिन मुंबई में रह रहे उत्तर
भारतीय वहां पर छठ मनाने से घबड़ा रहे हैं।
पिछले दिनों जब मुंबई में उत्तर भारतीयों पर जुल्म ढ़ाया जा रहा था तो रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने जूहू के समुद्र तट पर छठ मनाने का ऐलान किया था...ये अलग बात है शायद अब वो अपने विचार बदल दें॥क्यों कि हमेशा से ही राजनेताओं के बारे में ये कहा जाता रहा है कि वो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। बहरहाल हाथ कंगन को आरसी क्या छठ आने में अब चंद रोज ही बचे हैं...जहां इतने महीने कट गए वहां ये चंद रोज भी जल्दी ही गुजर जाएंगे।
अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मुंबई में छठ के मौके पर लाउड स्पीकर बजाने की अनुमति दे दी है॥इससे मुंबई में रह रहे उत्तर भारतीयों का मनोबल भी ऊंचा हुआ है क्यों कि उनको अब लगता है कि मुंबई में छठ मनाने के उनके अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी मुहर लगा दी है।
अब तो उत्तर भारतीयों को चाहिए कि वो छठ के मौके पर सूर्य भगवान से राज ठाकरे को सदबुद्धि देने की कामना जरूर करें...क्यों कि अब तक जब भी राज ठाकरे मुसीबत में घिरे हैं उत्तर भारतीयों ने ही उनका बेड़ा पार किया है। अब सवाल ये उठता है कि अगर राज ठाकरे पूरे महाराष्ट्र से उत्तर भारतीयों को खदेड़ देना चाहते हैं तो उन्हे गणपति बप्पा मोरया के नारे लगाने का भी कोई हक नहीं है। इसके पीछे की वजह भी भगवान गणेश का उत्तर भारतीय होना ही है क्यों कि अगर धार्मिक ग्रन्थों को सही माने तो भगवान शिव का पूरा परिवार हिमालय के कैलाश पर्वत पर निवास करता है॥और भगवान शिव के पुत्र होने के नाते भगवान गणेश भी तो कैलास पर्वत के ही निवासी हुए...और ये बताने की जरूरत नहीं है कि कैलास पर्वत भी उत्तर भारत में ही है। यहां ये बताना भी जरूरी हो
जाता है कि राज ठाकरे समेत उनके कई परिजनों की शिक्षा दीक्षा में भी कई उत्तर भारतीय शिक्षकों का हाथ रहा है।
ऐसे में अगर राज ठाकरे उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र से बाहर निकालना ही चाहते हैं...तो शुरूआत उन्हे इन्ही उत्तर
भारतीयो से करना चाहिए क्यों कि इन उत्तर भारतीयों से ज़्यादा क़रीब उनके शायद ही कोई हो।
संविधान में भी इस बात का उल्लेख है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है...हो सकता है कि राज ठाकरे को ऐसा लग रहा हो कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक अगर एक लाइन खींची जाए तो वो महाराष्ट्र को छूकर नहीं जाती है इसलिए महाराष्ट्र का भारत में बने रहना उसका ऐच्छिक अधिकार हो...पर हक़ीक़त क्या है ये सब जानते हैं...
अगर थोड़े तल्ख लहजे में कहा जाए तो महाराष्ट्र राज ठाकरे की मिलकियत नहीं है कि उन्होने जिसे चाहा राज्य में आने दिया और जिनसे नाराज़ हुए उन्हे राज्य से तड़ीपार करने का हुक्म जारी कर दिया

Friday 24 October, 2008

खून का प्यासा बैंक....

कल मेरे एक मित्र का फोन आया वो मुझसे किराए पर मकान दिलाने की मिन्नत कर रहे थे। ये सुनकर मुझे
ताज्जुब हुआ...क्यों कि महाशय का तो खुद का मकान है..तो ऐसी क्या वजह हो गई कि उन्हे अब किराए का
मकान चाहिए...लेकिन जब मैने उनकी मजबूरी सुनी तो मुझे भी लगा उनका अपना मकान बेचने का इरादा ग़लत नहीं है।
दरअसल मेरे मित्र होम लोन की EMI को लेकर काफी परेशान हैं। उन्हे अपने होम लोन की EMI और अपनी दाढ़ी में कोई फर्क दिखाई नहीं दे रहा है। उनकी दोनों ही चीजें समय के साथ-साथ बढ़ रही है। उन्होने वर्ष 2005 में आईसीआईसीआई बैंक से 7. फीसदी के ब्याज दर पर होम लोन लिया था। अब वही ब्याज दर बढ़कर 13 फीसदी का आंकड़ा पार कर गया है। उस वक्त उन्होने बस एक छोटी सी गलती कर दी थी कि उन्होने ये लोन
फ्लोटिंग रेट पर ले लिया था। उसी ग़लती ने उन्हे अब अपना मकान बेचने पर मजबूर कर दिया है।
उन्होने जब बैंक के अधिकारियों से बात की तो उन्होने सारा दोष रिजर्व बैंक के मत्थे मढ़ दिया। पिछले दिनों ये देखने में भी आया कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया महीने में दो-दो, तीन-तीन बार सीआरआर और रेपो रेट में इज़ाफ़ा कर रहा था। पता नहीं आईसीआईसीआई बैंक और रिजर्व बैंक के बीच सूचना संचार का ऐसा कौन सा तंत्र काम कर रहा था कि रिजर्व बैंक के सारे फैसलों की जानकारी आईसीआईसीआई बैंक को पलक झपकते ही पता चल जाती थी...और फिर वो उसके मुताबिक यथाशीघ्र ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की घोषणा कर देता था...लेकिन अब जबकि रिजर्व बैंक लगातार रेपो रेट और सीआरआर में कटौती कर रहा है तो ICICI बैंक का वही सूचना संचार तंत्र ठप्प हो गया है। रिजर्व बैंक ने पिछले कुछ ही दिनो में रेपो रेट में एक फीसदी की कटौती की है। जिसकी वजह से आरबीआई से बैंको को मिलने वाले कर्ज की दर फीसदी से घटकर 8 फीसदी हो गई। आपको बता दें कि २००४ के बाद पहली बार रेपो रेट घटाई गई है। इससे पहले रबी ने CRR में भी 2. फीसदी की कमी की थी... और ये घटकर 6।5 फीसदी हो गया है...।
जानकारों के मुताबिक केंद्रीय बैंक के इस कदम से ब्याज दरों में भी कमी होनी चाहिए...ऐसा हुआ भी कई निजी और सरकारी बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की लेकिन ये कटौती पिछले दिनों की गई बढ़ोत्तरी की तुलना में काफी कम थी। इस बात से ये तो पता चला कि आरबीआई के इस कदम का बैंकों ने अनुसरण किया॥पर आईसीआईसीआई बैंक को तो जैसे अपनी डफली अपना राग अलापने की आदत हो गई है...इस बैंक ने ब्याज दरों में कटौती तो नहीं की अलबत्ता उसे बढ़ा जरूर दिया...वो भी चोरों की तरह दबे पांव।
पिछले दिनों इस बैंक के दिवालिया होने की ख़बर जोर शोर से उठी थी लेकिन ये ख़बर बाद में अफवाह साबित हुई...अब इस बैंक के ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी करने के फैसले ने ये साबित कर दिया कि॥ हो सकता है कि उनके खजाने में बेशुमार दौलत पड़ी हो पर इस बैंक के नीति निर्धारक अधिकारी मानसिक तौर पर दिवालिया जरूर हो गए हैं। अब तो मेरे वो मित्र भी बेसब्री से उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब उनके लिए जोंक बन चुका ये बैंक हक़ीक़त में दिवालिया हो जाए।

क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू हो पाएगा मुंबई में ?

सुप्रीम कोर्ट ने छठ पूजा के दौरान मुंबई में लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति दे दी है...अब अगर राज ठाकरे की एमएनएस कोई हुड़दंग करती है तो ये सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन माना जाएगा।
इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने जुहु बीच पर लाउडस्पीकर लगाने पर रोक लगाने का फैसला किया था। इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए सु्प्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के जी बालकृष्णन की खंडपीठ ने ये निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के एक एनजीओ सिटीजन्स ग्रुप की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि छठ पूजा में भीड़ को नियंत्रित करने के नाम पर राजनीतिक भाषण दिए जाते हैं। सिटीजन्स ग्रुप ने दलील दी थी कि इसी छूट का लाभ उठाते हुए पिछले वर्ष छठ पूजा के दौरान रात भर सांस्कृतिक कार्यक्रमचलते रहे।
दिलचस्प है कि एमएनएस हमेशा ही मुंबई में छठ पूजा के आयोजन का विरोध करती रही है। यहां देखना ये होगा कि हमेशा ही कानून को अपने हाथ में लेने वाली एमएनएस क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करेगी। इसके पहले भी उसने कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए गुण्डागर्दी की थी। क्या महाराष्ट्र की पुलिस इस बार छठ में उनकी गुण्डागर्दी रोक पाएंगे। क्या इस बार बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगों को ये अहसास होगा कि मुंबई उनकी भी है। या फिर 'मुंबई मेरे बाप की है' कहने वाले नेताओं के शह पर गुण्डा तत्व सड़कों पर नंगई करेंगे।
ये महाराष्ट्र की उस कांग्रेसी सरकार के लिए भी बड़ा सवाल होगा क्योंकि उसी कांग्रेस पार्टी की सरकार को बिहार और यूपी के लोगों की झंडाबरदारी करने वाले बड़े-बड़े नेता केंद्र में उसका समर्थन करते हैं। यहां उल्लेखनीय ये है कि जब राज ठाकरे ने ये घोषणा की थी कि मुंबई में छठ पूजा नहीं होने दी जाएगी उसी समय बिहार के नेता और केंद्र में रेल मंत्री लालू प्रसाद ने कहा था कि वे खुद मुंबई में छठ पूजा करने जाएंगे।
कहीं बिहार के ये नेता केवल गीदड़भभकी ही देकर न रह जाएं कि राज ठाकरे पर कार्रवाई होनी चाहिए और कार्रवाई के नाम पर केवल राज ठाकरे को गिरफ्तार किया जाए और फिर हल्की धाराएं लगाकर छोड़ दिया जाए। इसलिए बिहार और यूपी के इन नेताओं से निवेदन है कि इस बार छठ पूजा के दौरान वे अपनी और अपने लोगों की अस्मिता की रक्षा करें।

राज एक रक्तबीज अनेक

महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के साथ जो कुछ भी हुआ निसन्देह वो ग़लत हुआ लेकिन उसके बाद जो कुछ हो रहा है उसे भी सही तो नहीं ठहराया जा सकता। राज ठाकरे ने तो अपने चाचा के दिखाए रास्ते पर चलकर काफी शोहरत बटोर ली। आपको याद दिला दें कि शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे ने भी अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत इसी तरह से की थी। फर्क था केवल प्रान्त का...बाला साहेब ने दक्षिण भारतीयों को महाराष्ट्र से खदेड़ा था तो राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों को अपना निशाना बनाया।
इस पूरे मामले ने मुझे एक पौराणिक घटना की याद दिला दी जिसमें मां दुर्गा ने जब एक राक्षस रक्तबीज का वध किया तो उसके कटे धड़ से निकलने वाले खून के हर बूंद से एक-एक राक्षस का जन्म होने लगा। शायद ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हुआ और ऐसा ही कुछ बिहार में भी हुआ। दोनों ही जगह अलग-अलग मिशन को अंजाम देने के लिए एक ही जैसे अनगिनत उपद्रवियों ने जन्म लिया।
महाराष्ट्र में तो उत्तर भारतीयों को निशाना बनाकर उन्हे वहां से खदेड़ा गया...लेकिन बिहार में किसे निशाना बनाया जा रहा है ? राज ठाकरे को ज़मानत मिलने के बाद से बिहार में शुरू हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है।वहां पर खुद को छात्र कहने वाले गुण्डे सड़कों पर उतर आए हैं और खुलेआम प्रशासन की नाक के नीचे तांडव कर रहे हैं। उन्होने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया...काफी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया...ये छात्र शायद अपनी इस करनी पर अपनी पीठ ठोंक रहे हों...पर मैं तो एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि ये जितना भी नुकसानहुआ है वो बिहार का ही हुआ है...महाराष्ट्र का नहीं।
उपद्रवियों ने कई ट्रेनों को रोक कर उसमें आग लगा दी और यात्रियों से लूटपाट की और ऐसे हालात बना दिए कि मजबूरन रेल विभाग को देश के कई हिस्सों में जाने वाली ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। दिल्ली, मुंबई, मद्रास और ना जाने देश के कई हिस्सों में बिहार आने की तैयारी कररहे बिहारी फंसे हुए हैं...इनमें से ज़्यादातर यात्री ऐसे हैं जो त्योहारों के मौके पर अपने परिजनों के बीच अपने गृह प्रदेश लौटना चाहते हैं। ट्रेन रद्द होने के कारण बिहार के भी कई हिस्सों में वो यात्री हताश हैं जो कई महत्वपूर्ण कार्यों के कारण देश के दूसरे हिस्से जा रहे थे...हो सकता है कि इनमें से कई लोगों को समय पर काम पर नहीं लौटने के कारण नौकरी गंवानी पड़े॥या सबसे बुरा ये भी हो सकता है कि कोई यात्री बेहतर इलाज़ के लिए दिल्ली या मुंबई नहीं पहुंच पाने के कारण स्टेशन पर ही दम तोड़ दे।
क्या इन सब हालातों का जिम्मेदार भी राज ठाकरे ही होगा या फिर वे मौका परस्त बिहारी जो इस नफरत की आग को और भड़का कर अपनी रोटी सेंकने के चक्कर में हैं।
शायद इन उपद्रवियों को ये नहीं पता होगा कि राज ठाकरे को सलाखों के साए से निकालने का काम भी एक उत्तर भारतीय वकील ने ही किया है जो उत्तर प्रदेश के जौनपुर का रहने वाला है। इन सबसे अलग शायद राज ठाकरे को ये नहीं पता होगा कि उनके महाराष्ट्र में जितने उद्योग धंधे हैं उसका एक बड़ा बाज़ार उत्तर भारत ही है...अगर उस बाज़ार ने महाराष्ट्र में बनी चीजों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया तो राज ठाकरे को अपने उन्ही भूमि पुत्रों को जवाब देना भारी पड़ जाएगा...जिसके तथाकथित सम्मान की लड़ाई वो लड़ रहे हैं।
राज ठाकरे को तो उत्तर भारत में हिंसा कर रहे उन उपद्रवियों को धन्यवाद देना चाहिए जो उनके ही काम को अपने तरीके से कर रहे हैं। क्यों कि अगर उत्तर भारत लोगों नफरत की आग को शक्ति बनाकर योजनाबद्ध तरीके से आंदोलन करने की कुशलता आ गई तो राज ठाकरे को ये सौदा महंगा पड़ सकता है।

Thursday 23 October, 2008

पहले राजनीति का चेहरा थोड़ा ही सही बेहतर हुआ करता था....राजनेताओं का एक स्तर होता था...आज की तरह कोई घालमेल नहीं....लेकिन दौर बदला..नस्लें बदलीं...औऱ...हालात...पलटी खा गए..औऱ राजनीतिक विचारधारा का एक अनूठा अध्याय एकाएक सामने खुल गया...वो राजनीति जिसकी विचारधारा ही नपुंसक
है.....
राजनीति में नपुंसक विचारधारा का आना क्या हुआ कि कुछ ऐसे चेहरे सामने आ गए...जिन्हें आज कल टीवी चैनलों पर सबसे ज्यादा दिखाया जा रहा है....मामला चाहे राज का हो या ममता का...इन्हें इलेक्ट्रानिक मीडिया ने
भरपूर कवरेज दी..औऱ इसी कवरेज का फायदा इन्होंने भुनाया भी......
बात अगर राज ठाकरे की करें....तो उनकी राजनीति ना पुरुषों वाली है औऱ ना ही महिलाओं वाली....वो एक अजीब सी राजनीति है....जिसे कह सकते हैं नपुंसक राजनीति.....इसमें ना तो अच्छा सोचा जाता है ना ही बुरे की फिक्र होती है.....बस देखा जाता है तो क्षणिक फायदा....अब इस छोटे से फायदे में कितने ही लोगों का नुकसान हो जाए...कोई फर्क नहीं ...कम से कम राज ठाकरे का सिद्धांत तो यही कहता है....इनके समर्थन में नारायण राणे भी आ गए....आखिर कुंए के मेढक को साथी मिल ही गया....राज की जो सोचने की दिशा है.....उसमें कुंठा अधिक है....औऱ कुंठा की अधिकता ही जाने अनजाने प्रतिशोध का रुप ले लेती है...वो प्रतिशोध जिसका हकीकत से कोई वास्ता ही नहीं....
हाल में रेलवे की भर्ती परीक्षा के दौरान उत्तर भारतीय युवकों के साथ जो वहशियाना सलूक एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने किया वो साफ करता है....एमएनएस की मानसिक दशा गंभीर है...मराठियों को कौन रोकता है...केंद्र में नौकरी पाने से....कोई नहीं....अखाड़े में उतरने का इतना शौक है...तो पहले तैयार तो हों लें....नौकरी चाहिए...लेकिन नौकरी के लिए जद्दोजहद से परहेज....अंगूठा छाप रहें लेकिन क्लास वन अधिकारी बनने की चाहत.....कैसे संभव है....दम हो तो तथाकथित मराठी मानुष अपना टैलेंट शो करें....फिर दूसरे पर सवाल उठाएं....यूपी और बिहार...के लोग..मेहनती है...उन्हें ज़िंदगी की जंग लड़नी आती है...इसी लिए वो सफल हैं....वो जीवन जीने के घटिया तरीके नहीं पनाते...जैसा कि राज के मराठी गुंडे करते हैं.....
बॉलीवुड में कई नामचीन कलाकार है जो दिल्ली यूपी और बिहार से हैं......सब जानते हैं....उनको पिछाडने का दम हो तो आओ आगे लेकिन योग्यता के साथ...सचिन मुंबई के है....किसी यूपी बिहार के आदमी ने उनका विरोध नहीं किया...औऱ करे भी क्यों...वो देश के लिए खेलते हैं....और महाराष्ट्र देश के बाहर नहीं है....यही बात राज को नहीं समझ में आती.....आज मुंबई में सैंकड़ों की तादात में टैक्सी ड्राईवर हैं....जो यूपी बिहार के हैं .....मज़दूर हैं.....डिब्बेवाले....रिक्शे वाले हैं.....क्या इनके बगैर महाराष्ट्र आगे बढ़ सकता है.....किसी राज्य या ज़मीन पर पैदा हो जाने से वो राज्य आपकी विरासत नहीं हो जाती...राज्य पूरे देश का है.....महाराष्ट्र को महाराष्ट्र बनाया किसने देश के तमाम हिस्सों से आये चंद युवाओं ने....औऱ आज जब महाराष्ट्र तरक्की की नित नई सीढ़ियां तय कर रहा है...तो बाकी देश के योगदान का कोई मायने नहीं...
राजठाकरे महाराष्ट्र के दूसरे शिवाजी बनने की कोशिश कर रहे हैं....लेकिन वो भूल रहे हैं...कि ना तो उनके पास शिवाजी महाराज जैसी तीक्ष्ण बुद्धि नहीं.....अंत इतना ही...भगवान राज ठाकरे को हीं मालूम वो क्या रहे हैं.....हो सके तो उनको उनके पापों से मुक्त कर देना....और भगवान आप करोगे भी....क्यों कि आप ही तो हो जो इंसानों में फर्क नहीं करते.....

ये स्कूल है पार्लियामेंट नहीं....

कल मेरा बेटा रोते हुए घर आया...उसे स्कूल में डांट पड़ी थी....क्योकि वो लगभग एक महीने से स्कूल नहीं गया था...ये अलग बात है कि जब उसकी बीमारी की बात टीचर को पता चली तो उन्हे अपनी डांट पर पछतावा हुआ...लेकिन तब तक देर हो चुकी थी मेरे बेटेका कोमल मन मर्माहत हो चुका था...मेरे बेटे ने जब टीचर के डांटने के अंदाज के बारे में मुझे बताया तो एक पल के लिए मैं भी चौंक गया...क्योंकि टीचर ने जिस अंदाज में उसे डांटा था उसने मुझे भी जगा दिया औरमुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हमारे देश की बागडोर ऐसे नेताओं के हाथ में है...
अब आप ये सोच रहे होंगे कि स्कूल के एक टीचर की डांट का नेताओं से क्या सरोकार है...तो आपको बता दें कि टीचर ने मेरे बेटे को किस अंदाज मेंडांटा...टीचरने मेरे बेटे को कहा...अगर स्कूल नहीं आना है तो स्कूल से अपना नाम टवा लो...ये स्कूल है कोई पार्लियामेंट नहीं है।मुझे टीचर की इस डांट से अपने जमाने के मास्टर जी की डांट याद आ गई जो स्कूल नहीं आने पर डांट कर कहते थे कि ये स्कूल है कोई धर्मशाला नहीं...कि जब चाहा आ गए और जब चाहा नहीं आए।
शायद मेरे बेटे के स्कूल टीचर काफी हद तक सही हैं क्यों कि जिस तरह से वर्ष 2008 में केवल 32 दिन ही संसद की कार्यवाही चली उससे तो यही लगता है कि सांसदों का जब मन करता है वो मुंह उठाकर कार्यवाही में भाग लेने के लिए आ जाते हैं...और जब उनका मौजमस्ती करने का मन करता हैतो कार्यवाही से मुंह फेर लेते हैं। अगर संसद के रिकॉर्ड की जांच की जाए तो इन 32 दिनों की कार्यवाही में शायद ही किसी ऐसे मुद्दे पर सहमति बनी होगी जो आम लोगों के हित में हो।
अब सवाल ये उठता है कि अगर सांसदों की यही मर्जी है तो क्यों ना संसद को राजनीति का केवल औपचारिक केन्द्र बना दिया जाए जहां केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को आकर सांसद इसकी औपचारिकता पूरी कर दें।इससे कम से कम ये तो होगा कि संसद को चलाने में जो एक साल में 440 करोड़ रुपए का खर्च आता है वो बच जाएगा और इस राशि से देशभर में हर साल कम से कम 440 स्कूल तो खोले जा सकेंगे....जिसमें देश के नौनिहालों को पढ़ाया जा सकेगा या फिर ऐसे बेरोजगारों को पैसे मुहैया कराए जा सकेंगे जो खुद का कोई लघु उद्योग लगाना चाहतेहैं...इससे कम से कम हम लघु उद्योगों के क्षेत्र मेंचीन का मुकाबला तो कर पाएंगे क्योंकि हर साल 440 करोड़ रुपए खर्च करके अभी तक तो संसद में ऐसी कोई योजना तैयार नहीं हो पाई है जो चीन से मुकाबला करने में हमारी मदद कर सके। जिससे अब हालात ऐसे हो गए हैं बाजार तो हमारा है लेकिन मालचीन का बिक रहा है।
अगर हम एक साल के कार्यवाही के खर्च का हिसाब लगाएं तो वर्ष 2008 में एक दिन की कार्यवाही के लिए 13 करोड़ 75 लाख रुपए खर्च किए गए। अब अगर यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के दो दिनों की कार्यवाही के खर्च का आकलन करें तो ये 27 करोड़ 50लाख रुपए बैठता है। अब जनाब, अगर किसी सज्जन ने कुछ करोड़ रुपए देकर कुछ सांसदों को ख़रीदने की कोशिश की तो उस पर छींटाकशी क्यों की जा रही है। मुझे तो लगता है कि उस सज्जन के ऐसा देशभक्त कोई दूसरा हो ही नहीं सकता है क्यों कि उस महाशय ने कुछ करोड़ देकर इस पूरे मामले पर विराम तो लगा दिया नहीं तो ना जाने संसद की कितनी कार्यवाही इसी तू तू मैं मैं की भेंट चढ़ जाती है और इससे ना जाने देश के आम लोगों की गाढ़ी कमाई के कित नेकरोड़ रुपए बर्बाद हो जाते।
ये तो हमारे लिए गर्व की बात होनी चाहिए कि आज़ादी के बाद देश भर का काम निपटाने के लिए महान नेताओं को संसद की कार्यवाही 150से 160 दिनों तक चलानी पड़ती थी लेकिन आजकल के हाईटेक नेता उससे ज़्यादा कामों को 32दिनों में ही निपटा देते हैं। ये अलग बात है कि इसके लिए एक साल में कम से कम 100 दिनों का प्रावधान रखा गया है।अगर क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो अगर कोई खिलाड़ी 32 गेंदों में शतक जमा देता है तो उसे तो सम्मानित किया ही जाना चाहिए।
वैसे भी आजकल सांसद लोगों पर बहुत सी जिम्मेदारियां भी आ गई है.... तो नहीं होना चाहिए कि कोई आदमी सांसद बन जाए तो उसकी पिछली जिंदगी एकदम से ख़त्म होजाए...आखिरकार उसे अपना और अपने परिवार का पेट भी पालना होता है और आज कल वैसे भी राजनीति के पैसे पर मीडिया की भी बहुत पैनी नज़र लगी हुई है ऐसे में राजनेताओं का पेट तो खाली ही रह जाता है। अगर वर्तमान के संसद की बात करें तो इसमें 125 सांसद ऐसे हैं जिनके ख़िलाफ़ कभी ना कभी आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं.. तो क्या ऐसे सांसद पांच साल तक अपने उस धंधे को बंद कर दें..ये तो उनके साथ सरासर ना इंसाफी होगी...क्यों अगर वो पांच साल बाद वापस अपने पुराने धंधे में लौटें तो हो सकता है कि उस धंधे के बाकि लोग उनसे पांच साल आगे निकल चुके हों। अब ऐसी स्थिति में अगर कोई सांसद संसद में अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाए तो इसमें उसका क्या कसूर।
अब अगर बात की जाए सांसदों के सरकारी बंगलों की तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इसमें से ज़्यादातर सांसदों के बंगले ऐसे पॉश इलाके में हैं कि अगर उनकी कीमत आंकी जाए तो एक बंगले की कीमत 100 से 150 करोड़ रुपए आएगी। और अगर बात उसके भाड़े की की जाए तो वो अनुमानित तौर पर प्रतिमाह एक लाख से ज़्यादा आएगा। अगर हमये मान लें कि दिल्ली में ऐसे बंगलों की संख्या चार सौ है तो ऐसे में केवल भाड़े के तौर पर सरकारी ख़जाने में ४ करोड़ रुपए प्रतिमाह आएगा। और एक साल में ये रकम 48 करोड़ हो जाएगी।सरकार अगर थोड़ा सा सोच समझ कर कदम उठाए तो संसद के कार्यवाही के दिनों में सांसदों के लिए होटल में एक एक कमरा बुक करवा दे...आखिर उन्हे वहां रहना ही कितने दिनों है। अगर सरकार केवल संसद से ही इतने पैसे बचा ले तो आर्थिक मंदी से जूझ रहे हमारे देश का कुछ तो भला हो ही जाएगा।

<आलेख सुरजीत सिंह का है...सुरजीत पत्रकार हैं और सहारा समय में काम करते हैं...>