Thursday 30 October, 2008

अधर्मियों ने की धर्मदेव की हत्या...

दृश्य एक-
मुंबई की बेस्ट बस को पटना के एक युवक राहुल राज ने की अगवा करने की कोशिश...मुंबई पुलिस ने ग़जब की फुर्ती दिखाते हुए उसे मौत के घाट उतार दिया...महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल का बयान- अगर राहुल राज को गोली नहीं मारी जाती तो वो यात्रियों को नुकसान पहुंचा सकता था। महाराष्ट्र में अमन चैन को कायम रखने की दुहाई देते हुए पाटिल साहब पुलिस की कार्रवाई को सही ठहराते हैं।

दृश्य दो-
मुंबई की लोकल ट्रेन का नज़ारा..सब ओर गहमा गहमी का आलम...तभी कुछ लोग इस ट्रेन के एक डिब्बे में घुसते हैं और ऐलान करते हैं- अगर कोई भईया लोग सीट पर बैठा है तो वो खाली कर दे...इस बीच उन लोगों ने सीट पर बैठे धर्मदेव राय और उसके तीन साथियों से उनका नाम पता पूछा और फिर उतर आए मुंबईया गुंडागर्दी र...उन्होने धर्मदेव की लात घूंसों से वो हालत बना दी कि उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। खचाखच भरी लोकल ट्रेन में सबके सामने ये घटना हुई...लेकिन किसी ने इसका विरोध नहीं किया..क्यों कि वहां मौजूद ज़्यादातर लोग मराठी थे और जिसपर जुल्म हो रहा था वो उत्तर भारतीय था। यानि उनलोगों की भी इस पूरे मामले में मौन हमति थी। डिब्बे में मौजूद जो मुट्ठी भर उत्तर भारतीय लोग थे वो अपने अंजाम को सोचकर चुपचाप बैठे थे।

दृश्य एक में जिस मुंबई पुलिस ने अपनी कार्य कुशलता पर अपनी पीठ थपथपाई थी..वो भी चुप थी। जीआरपी केजवान भी खामोश थे...पर सबसे अलग महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कह दिया कि ये मामला महज सीट की लड़ाई को लेकर था और इसमें क्षेत्रवाद की कोई भूमिका नहीं थी।

दो दृश्य..दोनों ही जगह मामले में काफी समानता... लेकिन एक ही प्रशासन और एक ही उपमुख्यमंत्री के नजरिए में दो ध्रुवों जितना फासला। क्या इस मामले में जीआरपी के जवानों ने इसलिए दखल नहीं दिया क्यों कि इस बार पीड़ित कोई उत्तर भारतीय था ?

क्या मुंबई पुलिस ने 18 घंटे तक इसलिए मामला दर्ज नहीं किया क्यों कि इस बार आरोपित मराठी थे ? क्यों इस बार उपमुख्यमंत्री आर आर पाटील को धर्मदेव की हत्या करने वाले लोग ख़तरनाक नहीं लगे केवल इसलिए क्यों
कि वो राज ठाकरे के चमचे थे ?
क्यों विलासराव देशमुख को कड़ी कार्रवाई करने का बयान देने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल के फोन का इंतजार करना पड़ा ? क्यों जीआरपी के अधिकारियों को रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की फटकार सुनने के बाद
होश आया ? इन सब दबावों के बाद तुरत में ऐसे क्या सुराग हाथ लग गए कि शक के आधार पर बीस लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया ? क्या ये गिरफ़्तारी पहले भी हो सकती थी ? अगर ऐसे राजनीतिक दबाव नहीं बनाए जाते तो क्या बीस लोगों की गिरफ्तारी हो पाती ?
खैर मेरे सवालों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है...और मुझे ये भी पता है कि मुंबई के हुक्मरान और प्रशासन इन सवालों के गोलमोल जवाब दे भी देंगे...लेकिन क्या ये लोग गोरखपुर में इंतजार कर रहे धर्मदेव के उस छोटे से बेटे को मना पाएंगे- जो दिवाली पर घर नहीं आने से अपने पापा से कुट्टी होकर बैठ गया है ? क्या ये लोग धर्मदेव की विधवा की सूनी मांग का सिंदूर और टूटे हुए सपनों को वापस ला पाएंगे ? कहते हैं कि पुराने जमाने में राजयोग पाने के लिए लोग पशुओं की बलि देते थे लेकिन अब राज ठाकरे जैसे मुट्ठी भर थाकथित नेता अपने राजयोग केलिए इंसानों की बलि दे रहे हैं। अब तो मेरी आस्था महाराष्ट्र के हुक्मरानों से उठ चुकी है पर भगवान से मैं ये विनती जरूर करूंगा कि या तो राज ठाकरे जैसे नेता को सदबुद्धी दे दो या फिर उसके राजयोग का रास्ता साफ कर दो ..ताकि कम से कम इस नरबलि का सिलसिला तो रुके।

1 comment:

चलते चलते said...

ऐसी हरकतों से राजनीति में लंबी पारी नहीं खेली जा सकती। आज हमारे देश को सरदार वल्‍लभभाई पटेल की जरुरत है। यदि आज सरदार हमारे बीच होते तो मजाल नहीं थी कि कोई ऐसी हरकत कर पाता।