Wednesday, 29 October 2008

एक और निठारी...

28 अक्टूबर को जब देश भर में दिवाली मनाई जा रही थी...तो दिल्ली में यमुना पार के 254 घरों में अंधेरा छाया था..क्यों कि उनके घर को जो चिराग रौशन कर सकता था...वो महानगर की चकाचौंध में ना जाने कहां खो गया
था।
यहां हम बात कर रहे हैं उन घरों की जहां से पिछले चार महीनों में 254 बच्चे लापता हो गए हैं। ये चार महीनों
का वक्त है जून से लेकर अक्टूबर तक का...। ये आंकड़े हैं पुलिस रिकॉर्ड के...यहां आपको बता दें कि जो आंकड़े हम आपको बता रहे हैं वो ऐसे बच्चों के हैं जिनके बारे में पुलिस के पास ना तो कोई सुराग है और ना ही वो उन बच्चों का पता लगाने की कोशिश कर रही है। अगर हम लापता होने वाले कुल च्चों की बात करें तो ये आंकड़ा 875 तक पहुंच जाता है।
गृह मंत्रालय का भी इस दिशा में ध्यान खींचने की कोशिश की गई। गृह मंत्रालय ने इन मामलों की पड़ताल की और
बयान जारी कर दिया कि लापता हुए ज़्यादातर बच्चे ग़रीब तबकों के हैं...और उसके बाद छा गई लम्बी खामोशी...उस खामोशी के पीछे से रह-रह कर आवाजें आ रही थी..."कांग्रेस का हाथ ग़रीबों के साथ"..."हमारी
मुख्यमंत्री कैसी हो, शीला दीक्षित जैसी हो"...इन नारों को सुनते ही मुझे एहसास हो गया कि चुनाव का मौसम आ गया है और ऐसी स्थिति में दस जनपथ का चक्कर लगा रहे राज्य के मंत्रियों से किसी तरह की मदद की उम्मीद करना बेमानी है और प्रशासनिक अमलों में भी मदद के लिए लगाई गई गुहार चुनाव की तैयारियों की गहमा-गहमी
दब कर रह गई।
पुलिस विभाग के पास भी सुरक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने का निर्देश आ चुका था...ऐसे में ग़रीब तबके के बच्चों का ध्यान किसे रहता है...ये बात है कि पिछले दिनों जब एक रसूखदार का कुत्ता खो गया था तो उसे ढ़ूंढ़ने के लिए पुलिसकर्मियों ने अपनी पूरी क़ाबिलियत झोंक दी थी। तो क्या हम ये मान लें कि ग़रीब इंसानों के जान की कीमत कुत्तों से भी कम है।
पुलिस विभाग की ऐसी ही लापरवाही नोएडा के निठारी इलाके में भी सामने आई थी और जब उसका खुलासा हुआ...तब तक कई बच्चों की बलि चढ़ चुकी थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद भी एक मां हैं॥क्या हम उनसे लापता हुए उन 254 के लिए ममता की उम्मीद कर सकते हैं। इन सबके अलावा यमुना पार के उन्ही इलाकों की बात करें तो उन्ही चार महीनों में 828 लोगों की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी थाने में दर्ज है...उसमें से अब भी 400 लोग ऐसे हैं जिनके बारे में पुलिस कोई सुराग नहीं जुटा पाई है।
अगर इन दोनों मामलों को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो यही सवाल उठता है कि क्या इन इलाकों में
कोई ऐसा गिरोह आ गया है जो एक साजिश के तहत लोगों का अपहरण कर रहा है..या फिर इसकी वजह कुछ और
है...हालांकि इन मामलों में अभी पक्के तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत दुखद समाचार है। पता लगना ही चाहिए कि आखिर किसकी कारस्‍तानी है ये।

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक....दुखद....