Wednesday, 29 October 2008

जाग जाओ कॉल सेंटर वालों...

अगर आप किसी बीपीओ यानि कॉल सेंटर में काम करतें हैं तो आने वाले समय के लिए सतर्क हो जाईए।
क्यों कि हो सकता है कि आने वाला समय आज की तरह सुनहरा ना हो
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओबामा के बयानों से तो कम से कम ऐसा ही लगता है। उन्होने प्रचार अभियान के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वो अमेरिका में नए रोजगार पैदा करने के लिए माहौल बनाएंगे और आउटसोर्सिंग पर रोक लगाएंगे। ओबामा के इस बयान के पीछे अमेरिका का माली हालत जिम्मेदार है जहां पर बाजार की मंदी के बीच बेरोजगारी ने पिछले पांच वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। फिलहाल वहां पर बेरोजगारी दर 6।1 फीसदी पर पहुंच गई है और देश भर में क़रीब 21 फीसदी लोग बेरोजगार हैं। ऐसी स्थिति में लगातार गिर रहा शेयर बाजार अमेरिकी लोगों की हताशा को और बढ़ा रहा है।
और जैसा कि आप जानते ही हैं कि नेता चाहे भारत के हों या फिर अमेरिका के, सबका नस्ल एक ही होता है। अमेरिका के नेता ओबामा ने भी अपनी नस्ल के दूसरे नेताओं की तरह ही जनमानस की हताशा को वोट बैंक में तब्दील करने का जुगाड़ खोज लिया। अगर ओबामा दूसरे नेताओं की तरह राज योग मिलने के बाद अपना वादा भूल गए...तब तो भारत के नौजवानों पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा...लेकिन अगर वो अपने वादे को निभाने पर उतारू हो गए...तब भारत में मकड़ जाल की तरह फैल चुके बहुराष्ट्रीय कॉल सेंटर में काम कर रहे लोगों का क्या होगा।
जिस तरह इस साल कई निजी एयरलाइन्स में काम कर रहे लोगों की दिवाली का दिवाला निकल गया, कहीं ऐसा ना हो कि अगली दिवाली में कॉल सेंटर के लोगों को अपनी नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़े। ऐसी स्थिति में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्यों का तो ज़्यादा कुछ नहीं बिगड़ेगा...क्यों कि वहां पर अब भी कॉल सेंटर में काम करने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा नहीं है लेकिन ऐसे हालात में मुंबई और दिल्ली जैसे विकसित शहरों का क्या होगा जहां के युवाओं में इन कॉल सेंटरों का सबसे ज़्यादा क्रेज है। ये क्रेज इसलिए भी ज़्यादा है क्यों कि ये युवा कॉल सेंटर की अपनी पहली ही नौकरी में इतना वेतन पाने लगते हैं जितना पाने के लिए उनके पिता ने ना जाने कितनी ठोकरें खाई होंगी। ये अलग बात है कि उनके पिता उनसे ज़्यादा शिक्षित और ज़्यादा काबिल हैं।
अब सवाल ये भी उठता है कि अगर मुंबई में कॉल सेन्टरों पर ताला लटक गया तो राज ठाकरे इसके लिए किसे दोषी ठाहराएंगे और किन लोगों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ेंगे और ऐसी स्थिति में अगर मुंबई के मराठी मानुष रोजगार की तलाश में देश के दुसरे हिस्सों में ख़ासकर उत्तर भारत में गए तो क्या राज ठाकरे उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करेंगे।
खैर ये बातें तो मुद्दे से भटकने वाली हो गई....पर वो सवाल अब भी वहीं पर है कि अगर भारत में कॉल सेंटर का करोबार बंद हो गया तो क्या ऐसी स्थिति से निपटने के लिए देश के नीति निर्धारक और कॉल सेंटर में काम कर रहे लोग मानसिक और आर्थिक स्तर पर तैयार हैं ?

3 comments:

संगीता पुरी said...

कोई तकनीकी ज्ञान या डिग्री नहीं रखनेवाले बेरोजगारों को नौकरी प्राप्‍त करने के लिए काल सेंटर एक बडा सहारा बना हुआ है। यदि यह बंद हुआ , तो उन नवयुवकों के सामने बडी समस्‍याएं आएंगी , जो इससे जुडे हुए हैं।

Anonymous said...

अच्छा है....... वैसे भी उन्हें कोई परिवार नहीं पालना है, अभी उनकी सारी कमाई पब, डिस्को, रेस्टोरेंट, मल्टीप्लेक्स, डिजाइनरवियर में ही जाती है, यह बंद भी हो जाए तो कोई भूखा नहीं मरेगा. कॉल सेंटर्स में काम करने वाले 100% युवा मध्यवर्ग या उच्च मध्वर्ग से आते हैं, ये सिर्फ़ जेबखर्च निकालने के लिए कॉलेज बंक मारकर नौकरी करते हैं. आगे फाइनेंशियल सपोर्ट के लिए अभिभावक हैं ही.

Udan Tashtari said...

आने वाला दुरुह है-सतर्कता परम धर्मोः. आपने सचेत किया.