पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता देने से संबंधी प्रस्वात केंद्र सरकार को भेजा था...महाराष्ट्र सरकार चाहती थी कि क़ानूनों को इस तरह से बदल दिया जाए जिससे बिना विवाह किए पर्याप्त समय से साथ रह रही महिला को पत्नी जैसी मान्यता मिल सके....हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने इस 'पर्याप्त समय' को परिभाषित नहीं किया था...
महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव भेजा था कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) में इस तरह से संशोधन किया जाए जिससे 'पर्याप्त समय' से चल रहे 'लिव-इन' को विवाह जैसी मान्यता मिल सके....महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि आपराधिक दंड संहिता की धारा 125 में संशोधन करके 'लिव-इन' में रह रही महिलाओं को पत्नी की तरह के अधिकार दे दिए जाएँ....यदि क़ानून में यह संशोधन हो जाता है तो 'लिव-इन' में रह रही महिला को विवाह टूटने की स्थिति में मिलने वाले सारे अधिकार हासिल हो जाएंगे जिसमें गुज़ारा भत्ता और बच्चों की परवरिश शामिल है...
लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिपको कानूनी मान्यता देने वाले प्रस्ताव को राज्य महिला आयोग के पास
भेजने का एलान किया है....लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने वाले प्रस्ताव पर सरकार लोगों के विरोध के आगे झुकती दिखाई दे रही है।...
अब महाराष्ट्र सरकार से सवाल ये है कि आखिर लिव-इन रिलेशनशिप का कानून चाहिए किसको....महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वो गांवों में रहनेवाली महिलाओं को ध्यान में रखकर ये कानून बनाना चाहती थी...सरकार की माने तो गांवों में कई पुरुष पहली पत्नी के रहते दूसरी स्त्री के साथ रहने लगते हैं...कुछ समय बाद वो दूसरी स्त्री को छोड़ देते हैं....उन्ही दूसरी स्त्रियों के भले के लिए महाराष्ट्र सरकार ये कानून बनाने की कवायद कर रही थी...ऐसा महाराष्ट्र सरकार का कहना है...
लेकिन क्या वाकई गांवों में ऐसा होता है...हमे लगता है कि महाराष्ट्र सरकार की नज़र में ऐसा गांव मुबंई मे बॉलीवुड़ कहे जाने वाले इलाक़े में पाया जाता है...क्योंकि आम लोगों को गांवों और कस्बों से लिव-इन की ख़बरें तो नहीं मिलती... हां बॉलीवुड़ नाम के गांव से जरूर समय समय पर ऐसी ख़बरें आती रहती है....तो क्या महाराष्ट्र सरकार वाकई बॉलीवुड़ नाम के गांव की स्त्रियों के कल्याण की बात सोच रही थी...
दूसरा सवाल ये है कि क्या वाकई में हम इतने आगे बढ़ गए हैं कि हमें लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून की जरूरत आन पड़ी है...क्या भारत अब गांवो का देश नहीं रह गया है...क्या भारत अब कृषि प्रधान देश नहीं रह गया है...आम तौर पर लिव-इन रिलेशनशिप शहरों में देखने को मिलता है...शहरों में भी उच्च मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के लोगों का शगल है ये लिव-इन रिलेशनशिप...सर्विस सेक्टर में काम करनेवाले लोगों के बीच ज्यातादर पाया जाता है लिव-इन...तो क्या महाराष्ट्र सरकार इन्ही कुछ लोगों को ध्यान में रखकर ये कानून बनाने जा रही थी...
सरकार बताए तो सही की आखिर किसे चाहिए लिव इन रिलेशनशिप का कानून...
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3 comments:
जो रहते है. चाहे वे संख्या में कम हो या ज्यादा.. उनके लिये.. आखिर बुरा क्या है.. ये " लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता" के लिये कम पर लिव-इन रिलेशनशिप के अधिकार के लिये है..
लेकिन बह्स तो होनी चाहिये..
वास्तविक झगड़ा तो गांव में होने वाली लिव-इन से ही शुरु हुआ था।
जनाब इस कानून की जरूरत उन महिलाओं को है जिन्हें मर्द इस्तेमाल करके छोड़ देते हैं...जरा गहराई से सोचिए लिव इन रिलेशनशिप में धोखेबाजी का नुकसान किसको उठाना पड़ता है...
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