Monday 3 November, 2008

अब तो हद हो गई...

अब तो लगने लगा है कि महाराष्ट्र में दोगलों का राज हो गया है...जो मुंह पर कुछ और पीठ पीछे कुछ और कहता है।
मुंबई में रोज उत्तर भारतीयों की हत्या हो रही है और रोज ही वहां के हुक्मरान इन घटनाओं को आपसी रंजिश बताने पर तुले हुए हैं। कभी पवन की मौत पर सफाई दी जाती है..कभी राहुल राज की हत्या को जायज ठहराया जाता है तो कभी धर्मदेव राय के प्रकरण को महज सीट की लड़ाई बताया जाता है। कुल मिलाकर महाराष्ट्र के हुक्मरान ये मानने को तैयार नहीं है कि मुंबई में जिस कदर चुन-चुन कर उत्तर भारतीयों को मारा जा रहा है वो
क्षेत्रवाद की आग है। इसी कड़ी में नया नाम जुड़ा है उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले के जयमंगल का...जिसकी मौत
एक अस्पताल में हो गई। इस उत्तर भारतीय को भी राज ठाकरे के फैलाए उन्माद का ही खामियाजा भुगतना
पड़ा।
जयमंगल मुंबई में सब्जी का ठेला लगाता था जो मनसे कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया और उन्होने जयमंगल को सुना दी सजा-ए-मौत। ऐसा ही कुछ हुआ मलाड़ इलाके में भी जहां राज ठाकरे के कुछ चमचों ने उत्तर भारतीयों पर कहर बरपा दिया। इस दौरान पूरे मामले की तस्वीर उतार रहे एक उत्तर भारतीय रिपोर्टर दीनानाथ तिवारी को भी उपद्रवियों के गुस्से का शिकार बनना पड़ा।
उन्होने इस पत्रकार को इस कदर पीटा की वो गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं। ऐसा नहीं है कि इस घटनाक्रम के दौरान वहां पुलिस मौजूद नहीं थी बल्कि ये सारा उपद्रव थाने के आगे ही हो रहा था। इस घटना को अंजाम दे रहे
थे मनसे के पार्षद की अगुवाई में राज ठाकरे के कुछ चमचे। मुंबई पुलिस के फुर्तीले और बहादुर जवान (जैसा कि
राहुल राज की हत्या के बाद उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल ने कहा था ) मूक तमाशबीन की तरह हाथ बांधे इस
तमाशे को देख रहे थे। उन्हे भी इसमें मजा आ रहा था क्यों कि उन्हे बिना टिकट के ही मौत का तमाशा देखने को मिल रहा था। ये पुलिसकर्मी जब एक पत्रकार को भी बचाने से पहले उसकी नस्ल की पड़ताल करते हैं तो इनसे
मुंबई में रह रहे आम उत्तर भारतीयों की सुरक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है। आने वाले कुछ ही दिनों में उत्तर भारतीयों का बहुत ही ख़ास पर्व छठ है और इस मौके पर भी उत्तर भारतीयों की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्ही पुलिसकर्मियों को सौंपी गई है।
एक तरफ जहां रोज ही किसी ना किसी उत्तर भारतीय के मारे जाने की ख़बर आ रही है तो ऐसे वातावरण में शांतिपूर्वक तरीके से छठ पर्व मनाने की उम्मीद कैसी की जा सकती है। और अगर उस मौके पर एक साथ जमा
हुए उत्तर भारतीयों के धैर्य का बांध टूट गया तो क्या शहर में अमन चैन के बहाल रहने की गारंटी दी जा सकेगी। जब
भाई ही भाई के खून का प्यासा हो जाए तो क्या ऐसे में मौके की ताक में बैठे बाहर के दुश्मन इसका फायदा नहीं
उठा लेंगे। इतनी छोटी सी बात अगर मेरे जैसे तुच्छ आदमी के दिमाग में आ सकती है तो ये बात मराठियों का नेता होने का दंभ भर रहे राज ठाकरे के भेजे में क्यों नहीं घुस रही है। अगर वो खुद को इतना ही बड़ा नेता मानते
हैं तो वो उन ताकतों को क्यों नहीं महाराष्ट्र से खदेड़ देते हैं जो समय-समय पर बम धमाकों से भारत मां के सीने को छलनी कर रहे हैं। क्या उनके अंदर इतनी कूबत नहीं है या फिर एयर कंडीशन के कमरे में बैठकर उनका खून इतना सर्द हो गया है कि उससे केवल नफरत की की फसल उगाई जा सकती है। राज ठाकरे को तो मैं खुली चुनौती देना चाहता हूं कि अगर महाराष्ट्र के चप्पे-चप्पे पर उनकी इतनी ही पकड़ है तो केवल एक आतंकवादी को ही पकड़ के बताएं। या फिर धर्मदेव के पिता की बात मानकर खुद को उत्तर भारतीयों के हवाले कर दें । आपको बता दें कि
धर्मदेव के पिता ने महाराष्ट्र सरकार के दो लाख के मुआवजे की पेशकश कोठुकरा दिया है और उन्होने राज ठाकरे की जान के बदले में महाराष्ट्र सरकार को बीस 20 रुपए का मुआवज़ा देने की पेशकश की

3 comments:

Hindustani said...

क्या कहे मित्र.. इन बातों को सुन कर, टीवी पर देखा कर मन रोने को आता...
आज देश में हो रही इन घटनाओ के सामने स्वयं को बहुत बेबस और लाचार महसूस करता हूँ .
आज के नेताओ को तो बस अपने वोट से मतलब है मगर कल जब हमारी आने वाली पीढी हमसे पूछेगी कि जब ये सब हो रहा था तो हमने क्या किया ?
हमने इसे क्यूँ नहीं रोका तो हम क्या जवाब देंगे. दिल में तो आता हैं कि इन नेताओ का खून कर दूँ मगर अपनी जिम्मेदारियों के कारण विवश हूँ.
आज सरकार सवयम नेताओ के बल पर बनती है हमारे वोट की शक्ति बस कहने मात्र रह गई हैं

एक विवश नागरिक

P.N. Subramanian said...

समझ में नहीं आता कि हम सब कब तक विविश बने रहेंगे.

Udan Tashtari said...

एक घुटन का अहसास!!