पहले राजनीति का चेहरा थोड़ा ही सही बेहतर हुआ करता था....राजनेताओं का एक स्तर होता था...आज की तरह कोई घालमेल नहीं....लेकिन दौर बदला..नस्लें बदलीं...औऱ...हालात...पलटी खा गए..औऱ राजनीतिक विचारधारा का एक अनूठा अध्याय एकाएक सामने खुल गया...वो राजनीति जिसकी विचारधारा ही नपुंसक
है.....
राजनीति में नपुंसक विचारधारा का आना क्या हुआ कि कुछ ऐसे चेहरे सामने आ गए...जिन्हें आज कल टीवी चैनलों पर सबसे ज्यादा दिखाया जा रहा है....मामला चाहे राज का हो या ममता का...इन्हें इलेक्ट्रानिक मीडिया ने
भरपूर कवरेज दी..औऱ इसी कवरेज का फायदा इन्होंने भुनाया भी......
बात अगर राज ठाकरे की करें....तो उनकी राजनीति ना पुरुषों वाली है औऱ ना ही महिलाओं वाली....वो एक अजीब सी राजनीति है....जिसे कह सकते हैं नपुंसक राजनीति.....इसमें ना तो अच्छा सोचा जाता है ना ही बुरे की फिक्र होती है.....बस देखा जाता है तो क्षणिक फायदा....अब इस छोटे से फायदे में कितने ही लोगों का नुकसान हो जाए...कोई फर्क नहीं ...कम से कम राज ठाकरे का सिद्धांत तो यही कहता है....इनके समर्थन में नारायण राणे भी आ गए....आखिर कुंए के मेढक को साथी मिल ही गया....राज की जो सोचने की दिशा है.....उसमें कुंठा अधिक है....औऱ कुंठा की अधिकता ही जाने अनजाने प्रतिशोध का रुप ले लेती है...वो प्रतिशोध जिसका हकीकत से कोई वास्ता ही नहीं....
हाल में रेलवे की भर्ती परीक्षा के दौरान उत्तर भारतीय युवकों के साथ जो वहशियाना सलूक एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने किया वो साफ करता है....एमएनएस की मानसिक दशा गंभीर है...मराठियों को कौन रोकता है...केंद्र में नौकरी पाने से....कोई नहीं....अखाड़े में उतरने का इतना शौक है...तो पहले तैयार तो हों लें....नौकरी चाहिए...लेकिन नौकरी के लिए जद्दोजहद से परहेज....अंगूठा छाप रहें लेकिन क्लास वन अधिकारी बनने की चाहत.....कैसे संभव है....दम हो तो तथाकथित मराठी मानुष अपना टैलेंट शो करें....फिर दूसरे पर सवाल उठाएं....यूपी और बिहार...के लोग..मेहनती है...उन्हें ज़िंदगी की जंग लड़नी आती है...इसी लिए वो सफल हैं....वो जीवन जीने के घटिया तरीके नहीं पनाते...जैसा कि राज के मराठी गुंडे करते हैं.....
बॉलीवुड में कई नामचीन कलाकार है जो दिल्ली यूपी और बिहार से हैं......सब जानते हैं....उनको पिछाडने का दम हो तो आओ आगे लेकिन योग्यता के साथ...सचिन मुंबई के है....किसी यूपी बिहार के आदमी ने उनका विरोध नहीं किया...औऱ करे भी क्यों...वो देश के लिए खेलते हैं....और महाराष्ट्र देश के बाहर नहीं है....यही बात राज को नहीं समझ में आती.....आज मुंबई में सैंकड़ों की तादात में टैक्सी ड्राईवर हैं....जो यूपी बिहार के हैं .....मज़दूर हैं.....डिब्बेवाले....रिक्शे वाले हैं.....क्या इनके बगैर महाराष्ट्र आगे बढ़ सकता है.....किसी राज्य या ज़मीन पर पैदा हो जाने से वो राज्य आपकी विरासत नहीं हो जाती...राज्य पूरे देश का है.....महाराष्ट्र को महाराष्ट्र बनाया किसने देश के तमाम हिस्सों से आये चंद युवाओं ने....औऱ आज जब महाराष्ट्र तरक्की की नित नई सीढ़ियां तय कर रहा है...तो बाकी देश के योगदान का कोई मायने नहीं...
राजठाकरे महाराष्ट्र के दूसरे शिवाजी बनने की कोशिश कर रहे हैं....लेकिन वो भूल रहे हैं...कि ना तो उनके पास शिवाजी महाराज जैसी तीक्ष्ण बुद्धि नहीं.....अंत इतना ही...भगवान राज ठाकरे को हीं मालूम वो क्या रहे हैं.....हो सके तो उनको उनके पापों से मुक्त कर देना....और भगवान आप करोगे भी....क्यों कि आप ही तो हो जो इंसानों में फर्क नहीं करते.....
Thursday, 23 October 2008
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2 comments:
आपसे सहमत हूँ ..अच्छा आलेख है.
भावुक क्षणों का लेखन विवेक से वंचित रह जाता है. बातें सब सही हैं, किंतु नपुंसकत्व को रेखांकित नहीं करतीं.राजनीतिक मंच पर यह परों वाली चींटियाँ हैं, जो उड़ान भरने के स्वप्न जी रही हैं.
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