भारतीय राजनीति में एक कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि दोस्त और दुश्मन कभी स्थायी नहीं होते हैं....लोकसभा चुनावों की घोषणा ने इस कहावत को दोबारा सही साबित कर दिया है..
उड़ीसा में ग्यारह साल पुराना बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन टूट गया है...वहां वामपंथी दलों, जेएमएम और एनसीपी के विधायकों की मदद से नवीन पटनायक की सरकार बच गई है...नवीन पटनायक की पार्टी अभी ये तय नहीं कर पाई है कि वो लोकसभा चुनाव में किसके साथ गठबंधन करेगी....पश्चिम बंगाल में भी गठबंधन के लिए कई बार नाकाम कोशिश कर चुकी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने इस बार लोकसभा का चुनाव साथ पड़ने का फ़ैसला किया है...कहना न होगा की तृणमूल कांग्रेस के इस फ़ैसले ने एनडीए के साथ उसके अलगाव को साफ कर दिया है...असम में भी असम गण परिषद और बीजेपी ने कांग्रेस को हराने के लिए कमर कस ली है...आंध्रप्रदेश में तेलगुदेशम और तेलंगाना राष्ट्र समिति कभी एक दूसरे को पानी पी पीकर गरियाते थे...लेकिन आज लोकसभा चुनाव में दोनों एक दूसरे का हाथ थामे हुए हैं...महाराष्ट्र में दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधन में दरार जगजाहीर हो चुकी है...शिवसेना-बीजेपी में दरार उस वक्त खुलकर सामने आ गई जब शिवसेना ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी को समर्थन देने का ऐलान किया...शिवसेना और एनसीपी की नजदीकी से कांग्रेस भी असहज हो गई है...दरअसल शरद पवार एक तरफ कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं..दूसरी तरफ शिवसेना जिसके ख़िलाफ़ वो चुनाव लड़ने उससे भी मधुर संबंध चाहते हैं...औऱ चुनाव के बाद के फायदे के लिए तीसरे मोर्चे को भी अंदरखाने समर्थन देते रहना चाहते हैं....
सबसे बड़ा दंगल उत्तर प्रदेश का है...उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं...अगर किसी एक दल या गठबंधन को राज्य में एकमुश्त कामयाबी मिलती है तो वो दल केंद्र में सत्ता की चाबी अपनी जेब में रख सकता है... प्रदेश में बीएसपी की सरकार है...बीएसपी तीसरे मोर्चे में शामिल होने की घोषणा तो करती है लेकिन प्रदेश में किसी के साथ सीटों का तालमेल नहीं करने का एलान भी लगे हाथ कर रही है...विपक्ष में बैठे मुलायम सिंह के लिए ये चुनाव जीवन-मरण का सवाल बने हुए हैं...लिहाजा किसी भी सूरत में कामयाबी पाने के लिए मुलायम सिंह ने बेमेल गठबंधन तैयार कर लिया है...कभी धुर कांग्रेस विरोध की बदौलत अपनी पहचान बनाने वाले नेताजी ने अब कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर लिया है...मंदिर आंदोलन के दौरान रामभक्तों के ख़िलाफ़ सख्त रुख अपनाने वाले मुलायम आज तब के सबसे बड़े रामभक्त कल्याण सिंह के साथ गलबहियां करते घूम रहे हैं....
और अब बात तीसरे मोर्चे की...यूपीए और एनडीए का विकल्प बनाने के नाम पर वामदलों के समर्थन से ये गठबंधन खड़ा हुआ है...गठबंधन के प्रमुख नेताओं का नाम ले तो सबसे पहले नाम आता है चंद्रबाबू नायडू का...नायडू साहब वाजपेयी के शासनकाल में एनडीए के सबसे चर्चित समर्थक थे...आंध्र में नायडू हारे और देश में एनडीए गठबंधन की हार हुई तो उन्हें अचानक से धर्मनिरपेक्षता की याद आ गई...सो एनडीए से बाहर हो गए...कांग्रेस से हाथ नहीं मिला सकते क्योंकि आंध्र में उसी से सत्ता की लड़ाई है...इसलिए तीसरे मोर्चे के हाथ डटे हुए हैं...सपना केंद्र में मोर्चे की सरकार बनवाने और आंध्र में वामपंथियों के सहयोग से कुर्सी पर कब्जा करना है...
तीसरे मोर्चे के दूसरे और कहें तो सबसे चर्चित नेता है जनता दल सेक्युलर के पूर्व प्रधानमंत्री श्री देवेगौड़ा साहब...इनकी राजनीति और सिद्धांत सिर्फ कुर्सी है...कर्नाटक के इस दिग्गज के कुर्सी औऱ पुत्र मोह को देश की जनता देख चुकी है...कर्नाटक में कभी कांग्रेस और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं...बीजेपी के साथ गए तब भी इनका दल सेक्युलर ही बना रहा...अब लोकसभा चुनाव का समय है...एक बार लक काम कर गया था प्रधानमंत्री बन चुके हैं ...इसलिए इस बार चुनाव के पहले ही तीसरे मोर्चे में शामिल हो रेस में बने रहना चाहते हैं...
तीसरे मोर्चे में कई और दिग्गज भी शामिल है...भजनलाल...जनाब का नाम लेते ही कांग्रेस की याद आ जाती है...लेकिन हरियाणा की गद्दी हाथ से गई तो अपनी पार्टी बना ली...अब तीसरे मोर्चे में शामिल हैं....अरसे तक स्वयंसेवक रहे बाबूलाल मरांडी भी अब तीसरे मोर्चे के साथ ताल मिला रहे हैं...
इन सबसे अलग वाम मोर्चे की कहानी है...हमेशा कांग्रेस विरोधी राजनीति करनेवाले ये मोर्चा हाल तक बीजेपी के विरोध के नाम पर केंद्र सरकार को समर्थन देता रहा था...जिस पश्चिम बंगाल, केरल औऱ त्रिपुरा में वाम मोर्चा का जनाधार है वहां उसका मुक़ाबला हमेशा कांग्रेस से ही रहा है...लेकिन विरोध में जीतने के बाद भी उदार हृदय के वामपंथियों ने अरसे तक डॉ मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दिया...जब परमाणु डील पर डील नहीं बनी तो देश की याद आ गई...सराकर को विरोध किया और अब तीसरे मोर्चे का गठन करवा दिया है..
लेकिन लाख टके की बात ये है कि क्या चुनाव के बाद ये सभी समीकरण वैसे ही रहेंगे जैसे दिख रहे हैं...क्या गारंटी है की उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी अजीत सिंह चुनाव के बाद किसी और के साथ नहीं जा सकते हैं...क्या गारंटी हैं कि तमिलनाडु में तीसरे मोर्चे की झंडाबदार जयललिता चुनाव के बाद यूपीए और एनडीए में से किसी एक से साथ हाथ नहीं मिला सकती हैं....क्या चुनाव के बाद भी चंद्रबाबू नायडू तीसरे मोर्चे के साथ बने रहेंगे...क्या कर्नाटक में नए समीकरण बनते ही देवेगौड़ा तीसरे मोर्चा का हाथ झटक बीजेपी या कांग्रेस के साथ नहीं जा सकते हैं...क्या उड़ीसा में अपनी पार्टी की सीटें कम पड़ने पर नवीन पटनायक दोबारा बीजेपी के गले नहीं मिल सकते हैं...
दोस्तों मौसम चुनाव का है....चुनावी आसमान पर कई सतरंगी और बेमेल गठबंधन दिख रहे हैं...इंतज़ार करें लोकसभा चुनाव के नतीजों का...फिर देखिए किस तरह देश और जनता के नाम पर आज एक दूसरे को कोस रहे नेता कल कैसे रंग बदलते है..
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