Sunday 20 September, 2009

डरना मना है

क्या आपको बता है आजकल अमेरिकी फौज के जवान काफी डरे हुए हैं ...यही वजह है कि अमेरिका के डॉक्टर उन्हे निडर बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। अमेरिकी फौजियों के अंदर जो भय समाया हुआ है वो हमारे और आपके अंदर नहीं है लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि कुछ लोगों को छोड़ दें तो बाकि पूरी मानव जाति किसी ना किसी डर से भयभीत है। अब सवाल ये है कि क्या कुछ ऐसा हो सकता है कि लोगों के भीतर बैठा डर गायब हो जाए...इराक और अफगानिस्तान से वापस स्वदेश लौट रहे अमेरिकी फौज के क़रीब 20 फीसदी जवानों में एक अजीब सा डर देखने को मिल रहा है। उनके भीतर के इस डर को ख़त्म करने के लिए उनका विशेष तरीके से इलाज़ भी किया जा रहा है। इसी तरह से एक शोध के मुताबिक हर साल पूरी दुनिया के क़रीब 4 करोड़ लोग किसी अनजाने डर के शिकार हो रहे हैं। और यही डर कई बीमारियों को जन्म दे रहा है।


अब हम आपको बताते हैं कि दरअसल ये डर आता कहां से है...क्या इसका वजूद किसी ख़ास वजह से है...जी हां हमारे और आपके अंदर जो डर समाया हुआ है...वो हमारे ही दिमाग की उपज है...ये डर दिमाग के एक ख़ास हिस्से में मौजूद एमीगडाला नाम के एक न्यूरॉन की देन है। इस हिस्से का पता कुछ साल पहले एक शोध के माध्यम से चला था। डॉक्टर और वैज्ञानिक इस शोध के आधार पर किसी डरे हुए व्यक्ति या फोबिया के शिकार किसी मरीज को एक ख़ास तरह की ट्रेनिंग देते थे। जिसके दौरान जिस वजह से वो शख्स डर या फोबिया का शिकार हो रहा है उससे उसे बराबर दो चार कराया जाता था और उसके डर को दूर करने की कोशिश की जाती थी लेकिन एक नए शोध के मुताबिक ये ट्रेनिंग भी कुछ ख़ास हालात पर निर्भर करता है...और वो हालात नहीं होने की सूरत में उस शख़्स के अंदर बैठा डर ख़त्म नहीं होता है। इसी समस्या का समाधान खोज रहे वैज्ञानिकों को एमीगडाला के उस हिस्से का पता चल गया है जो किसी भी डर को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ITC न्यूरॉन नामक इस हिस्से का काम दिमाग को भेजे जा रहे डर के संकेत को रोकना है। दरअसल ये हिस्सा दिमाग में बने हुए डर की याद्दाश्त को ख़त्म नहीं करता है बल्कि एक अलग भयमुक्त याद्दाश्त का निर्माण करता है।


यही वजह कि कुछ लोग जिस वजह से डरते हैं वही वजह दूसरे के लिए डरने का कारण बने ऐसा जरूरी नही हैं। या ये भी हो सकता है कोई शख़्स पहले जिस वजह से डरता हो वो कुछ समय बाद उस वजह से ना डरे। ऐसा होता है इसी ITC न्यूरॉन की सक्रिय भूमिका से....वैज्ञानिक अब इसी कोशिश में लगे हुए हैं कि क्या कभी ऐसे हालात बनाए जा सकते हैं जब इस ITC न्यूरॉन की सक्रियता को किसी तरह से बढ़ाया या घटाया जा सके । अगर वैज्ञानिकों ने अपनी कोशिश से ऐसा कुछ करने में सफलता पा ली तो वो दिन दूर नहीं कि जब निडर बनने के लिए भी बाज़ार में दवाई मिलने लगे। वैसे आजकल अमेरिकी सैनिकों को डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की देख रेख में वैसे हालात से गुजारा जा रहा है जिससे उनके अंदर का डर ख़त्म किया जा सके..

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