Wednesday 12 August, 2009

सच का सामना

आजकल एक निजी चैनल पर चल रहा एक कार्यक्रम "सच का सामना" काफी चर्चा में है..लेकिन कई बार किसी प्रतियोगी के सच्चे बात को मशीन झूठा बता देता है...आज मैं आपको बताता हूं इसके पीछे की सच्चाई, कि क्यों कोई शख़्स सच बोलने के बावजूद झूठा बन जाता है..आप ये भी जानना चाहेंगे कि आखिर वो क्या वजह है जिससे हम अनजाने में भी झूठ बोल जाते हैं...यहां तक की कई बार हमें ही पता नहीं होता है कि हम जो बोल रहे हैं दरअसल वो झूठ है

इन सारी उलझनों का जवाब है आपका दिमाग...जी हां आपने बिलकुल ठीक पढ़ा...झूठ बोलकर आपको धोखा कोई और नहीं बल्कि आपका दिमाग ही दे रहा है। आईए आपको बताते हैं कि ये कैसे मुमकिन होता है...दरअसल हमारा दिमाग कंप्यूटर की तरह काम नहीं करता...और किसी भी बात को याद करने का उसका तरीका कंप्यूटर से बिलकुल अलग है। वैज्ञानिकों के एक शोध के मुताबिक जब भी हम किसी बात को याद रखने के लिए अपने दिमाग को आदेश देते हैं तो दिमाग उसे अपने हिप्पोकैम्पस नाम के हिस्स में सुरक्षित रख लेता है। और जब उस जानकारी को दोबारा याद करने की कोशिश करते हैं तो वो जानकारी दिमाग से सीधे नहीं निकलता है बल्कि दिमाग उस जानकारी को फिर से लिखता है और इस दौरान वो पूरी जानकारी दिमाग के एक दूसरे हिस्से में सेरिब्रल कॉर्टेक्स में आ जाती है। जिससे ये पूरी जानकारी दिमाग के पुराने हिस्से से बाहर आ जाती है। और अगर हमने उसे बार-बार याद करने की कोशिश नहीं की तो वो पूरी जानकारी फिर से दिमाग के उस सुरक्षित हिस्से में नहीं जा पाती है...जिससे समय समय पर उसमें कुछ और भी जानकारियां जुट जाती है...नतीज़ा होता है कि दिमाग अब पुरानी जानकारियों को नई जानकारियों के साथ आपके सामने पेश करता है...और यहीं से शुरू होता है उसके झूठ बोलने का सिलसिला...

और जब दिमाग की ये ख़ुराफ़ात बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो वो एक बीमारी का शक्ल ले लेती है जिसे हम एम्नेशिया कहते हैं....लेकिन साधारण तौर पर एक साधारण आदमी से दिमाग कई बार झूठ बोलता है...और यही वजह है कि आप....कई जगहों...कई लोगों के नाम...कई घटनाओं...और कई अन्य चीजों के बारे में दिमाग का कहा मानकर ग़लत जानकारी दे देते हैं।