Monday 5 October, 2009

जीवन की उत्पत्ति का रहस्य

क्या आपने कभी सोचा है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई...शायद ये आपके लिए ये एक बड़ा रहस्य होगा...तो आईए जीवन की उत्पत्ति के रहस्यों पर से उठाते हैं पर्दा। दरअसल इस रहस्य पर से पर्दा उठाया है यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने। धार्मिक मान्यताओं से हटकर इन वैज्ञानिकों ने जीवन और उसके उत्पत्ति के बीच की कड़ी को ढूंढ़ निकाला है...जीवन की उत्पत्ति कैसे और कब हुई...जीवन का मूल आधार क्या है...क्या ये कोई दैवीय कृपा है या फिर वायुमंडलीय परिवर्तन का नतीज़ा। जीवन की उत्पत्ति से जुड़े इन्ही सवालों का जवाब ना जाने कब से ढ़ूढ़ा जा रहा था। वैज्ञानिकों की लगातार खोज और शोध का नतीजा अब जाकर सामने आया है।

इन वैज्ञानिकों ने अब दावा किया है कि जीवन की उत्पत्ति अंतरिक्ष से आए उल्का पिंडो की वजह से हुई है। उन्होने इसके पीछे आस्ट्रेलिया में 1969 में टकराने वाले मरचीसन नाम के उल्का पींड के टुकड़ों को आधार बनाया है। वैज्ञानिकों को इन टुकड़ों में एमीनो एसीड नाम का वो तत्व मिल गया है जो किसी भी जीवन का मूल तत्व है। डीएनए और आरएनए में इस तत्व का जो स्वरूप होता है वो धरती पर कहीं नहीं मौजूद था। इन दोनों में कार्बन जिस रूप में मौजूद होता है वो केवल अंतरिक्ष में ही मिलता है। इसे आधार बना कर जब वैज्ञानिकों ने शोध शुरू किया तो उन्हे ऐसे कई उल्का पिंडों के टुकड़े मिले जिसमें जीवन का आधार तत्व मौजूद था।

इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने जो नतीजा निकाला है उसके मुताबिक करोड़ों साल पहले जब पृथ्वी अपने निर्माण के शुरूआती दौर में था तो उस दौरान कई उल्का पिंडों की टक्कर पृथ्वी से हुई। इसी टक्कर के दौरान इन उल्का पिंडों में मौजूद जीवन के तत्व पृथ्वी पर आए और कई रासायनिक परिवर्तनों के बाद पानी के समावेश से जीवन की शुरुआती उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिकों की एक दूसरी दलील के मुताबिक धरती से टकराने वाले ये उल्का पिंड....टकराने से पहले कई तारों के आसपास से गुजरे जिससे उसमें मौजूद जीवन के तत्व में काफी बदलाव हुए और आख़िरकार धरती पर गिरने के बाद जीवन के इस मूल तत्व में कुछ और बदलाव आए और धीरे-धीरे कलान्तर में इसी तत्व से जीवन की उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे उल्का पिंड कई और ग्रहों पर गिरे हैं और अगर वहां भी जीवन की उत्पत्ति के लिए अनुकूल वातावरण मिला होगा तो वहां भी जीवन की उत्पत्ति से इंकार नहीं किया जा सकता है...

5 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

वैज्ञानिक विषय पर लिखने के लिए धन्यवाद और बधाई!

शरद कोकास said...

क्रपया इस जनकारी का स्त्रोत बताये यह जानकारी कहाँ छपी है किस साइंटिफिक जरनल मे है ? यह शोध कहाँ हुआ ? किन किन वैज्ञानिकों ने किया ? यह कब पुब्लिश हुआ ? किन लोगो ने इसे मान्यता दी आदि आदि । मै आपका आभारी रहूंगा ?

surjeet singh said...

शरद जी ये पूरा शोध किसी एक साइंटिफिक जरनल में प्रकाशित नहीं हुआ...बल्कि अलग-अलग वैज्ञानिकों के शोधों को पढ़ने और उसका मंथन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं...और इसकी पुष्टी पहले भी कई वैज्ञानिक कर चुके हैं

bipin said...

आपका कथन बिग बाँग थेओरी से मिलता जुलता है सारे गृह सूरज के ही टुकड़े है जो छिटक गए और अब अपनी धुरी पर एक ओरबिट मे घूम रहे है पहले कई वर्षो टूल बारिश होती रही फिर उसमे सेल्फ डुप्लिकटिंग मॉलिक्यूल से जीव की उत्तपत्ति हुई
कभी प्लूटो आठवा गृह हो जाता है कभी नौवा

Unknown said...

सर. में जानना चाहता हूं कि पृथ्वी पर जीव कैसे आया। बस कोई बुक हो तो कृपया मुझे बताएं में आपका आभारी रहूँगा