Monday 9 March, 2009

हाय ये बैंक

आज फिर तीसरी बार मेरे मोबाईल की घंटी घनघनाई...लेकिन मैं मोबाईल उठाने में टालमटोल करता रहा...क्योंकि मुझे मालूम था कि किसका फोन आया है...अब आपको लग रहा होगा कि मैं फोन करने वाले को टालना चाहता था...पर ऐसा नहीं है...दरअसल उस वक्त मेरे बगल में मेरी बीवी मौजूद थी...आप अब भी गलत समझ रहे हैं...ये मेरी किसी गर्लफ्रेंड का भी फोन नहीं है...पर फोन करनेवाली गर्ल जरूर है...चलिए अब इस राज से पर्दा उठा ही देता हूं....दरअसल मेरे मोबाईल पर वो फोन उसी बैंक से आया है जिसका क्रेडिट कार्ड मैं इस्तेमाल करता हूं...

पिछले तीन महीने से बैंक से रोज दो तीन कॉल तो आ ही जाते हें..और फोन पर मादक आवाज उभरती है...कि सर आपके क्रेडिट कार्ड का 506 रुपया बकाया है...जितनी जल्दी हो उसका पेमेंट करा दीजिए...पहली बार तो मैं उसे कोई जवाब भी नहीं देता हूं...आप ही सोचिए..अगर मैंने पहली बार में ही जवाब दे दिया तो बातचीत वहीं खत्म नहीं हो जायेगी...फोन पर फिर वही मदभरी आवाज आती है...और फिर मैं बड़े ही शालीनता से उसकी बातों का जवाब देता हूं...आखिर इंप्रेशन जो झाड़ना हैं...क्योंकि मुझे याद नहीं आता कि आज तक कभी किसी लड़की ने मेरे से उते प्यार से बात की हो...

मन तो करता है कि फोन करनेवाली लड़की की हर बात मान लूं...आखिर 506 रुपए में रखा ही क्या है...पर फिर सोचता हूं कि ऐसा करने से कहीं बाचतीत का सिलसिला खत्म ही ना हो जाए...वैसे अगर सही गलत को भी आधार बनाया जाए तब भी मुझे लड़की की बात नहीं माननी चाहिए...क्योंकि बैंक जिस पैसे के लिए मुझे बार-बार फोन कर रहा है उसका कोई वजूद ही नहीं है...बैंक भी मानता है कि बिल बनाने में उससे गलती हुई है...फिर भी घूम-फिरकर बात फिर वही ढाक के तीन पात की हो जाती है...

बैंक वालों ने भी चुपके-चुपके पेनाल्टी पर पेनाल्टी लगा कर मेरे बिल का कॉलम बड़ा कर दिया है...बैंक वाले पेनाल्टी पर पेनाल्टी इस तरह से लगा रहा हैं जैसे बर्गर में बड़ा पाव के बीच में आलू की टिक्की, चीज़, टमाटर और प्याज की स्लाइल एक से ऊपर एक लगाई जाती है...लेकिन मुझे ताज्जुब इस बात पर होता है कि बैंक वालों का मुंह इतना कैसे फैल जाता है कि वो एक बार में ही मोटे से मोटा बर्गर खाने के लिए बेताब हो जाते हैं...

एक दो बार तो बैंक के किसी भद्र पुरुष ने भी मुझे तकादा करने के लिए फोन किया...लेकिन मेरी जली कटी सुनकर उसने फोन रख दिया...उसके बाद से कभी किसी पुरूष ने मुझे फोन करने की जुर्रत नहीं की...अब तो रोज़ ही दो तीन बार इस बैंक की भद्र महिलाएं मुझे फोन करके सर-सर करती रहती हैं...मैं फोन पर थोड़ा अकड़ता हूं...और वो महिलाएं ऐसे मान मनौव्वल करती हैं जैसे...

खैर छोड़िए...इस जैसे...में क्या रखा हैं...भले ही ये बैंक अपनी गलती छुपाने के लिए मुझसे अनाप-शनाप पैसे वसूलने में लगा हुआ है...पर वो जिस प्यार से मेरी गर्दन पर मीठी छुरी फेर रहा है...उससे तो मैं वैसे ही मर मिटा हूं...इसी मामले से मुझे पता चल गया कि क्यों ये बैंक अपनी महिला कर्मियों की इनती तनख्वाह देते हैं...

अगर आप थोड़े से जागरूत हैं तो आप बैंकों के पिछले रिकॉर्ड जरूर देखिए...इन रिकॉर्डों से आपको पता चल जाएगा कि पिछले दिनों इन बैंकों ने मंदी के बहाने कितने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया...मजे की बात ये है कि इसमें बहुत कम ही महिला कर्चमारी थीं...

अब ऐसा लगने लगा है कि इसी मंदी की मार अब बैंक वाले अपने उपभोक्ताओं पर डालना चाहते हैं....वो किसी न किसी बहाने अपने उपभोक्ताओं से ज्यादा से ज्यादा वसूली कर लेना चाहते हैं....और इस काम में वो अकेले नहीं हैं...बल्कि उनके साथ पूरी व्यवस्था है...हो सकता है कि आपके अकाउंट में पैसा होते हुए भी आपका चेक बाउंस ही जो जाए...वजह पूछने पर आपको कुछ ऐसा बता दिया जाएगा जिसके बारे में आपकी जानकारी शून्य हो...ऐसा भी हो सकता है कि आपके पोस्ट पेड फोन के बिल में आपको चेक बाउंस और लेट फीस का कॉलम भी दिख जाए...और जब आप अपने बैंक से पूछें तो वो इससे साफ-साफ इंकार कर दे... और फिर इस बिल को सुधरवाने में आपको इतनी भागदौड़ करनी पड़ेगी कि आपको लगेगा कि इससे अच्छा तो पेनाल्टी ही दे दिया जाए...

खैर मैं तो इन बातों में दिमाग ही नहीं लगाता हूं...मैं तो उतना हीं पैसे दे रहा हूं जीतना वाजिब है और साथ ही बैंक से आने वाले फोन का मजा भी ले रहा हूं...बैंक वालों को क्या पता की मैं उनसे भी ब्याज वसूल रहा हूं...

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