Thursday, 6 November 2008

मेरी सैलरी कम कर दो...

एक तारीख कब का बीत चुका है...फिर भी मेरे चेहर पर शिकन है...आम तौर पर ऐसा नहीं होता था लेकिन पिछले
चार पांच महीने से ऐसा ही हो रहा है। वो भी क्या दिन थे जब महीने की पहली तारीख को मेरी जेब गर्म हो जाती थी आजकल तो ये गर्माहट जेब से निकलकर सिर पर चढ़ गया है। महज चार पांच महीने पहले तक पहली तारीख को ही मेरे मोबाइल पर चिर परिचित अंदाज में एक मैसेज आ जाता था कि आपके अकाउंट में पैसों की बारिश हो गई है...पर अब तो महीने के चार-पांच तारीख तक बैंक से पूछने पर अकाल का ही संदेश मिलता है...
इस बार तो मामला ही अलग हो गया है मेरे साथ काम करने वालों की जेब गर्म हो चुकी है लेकिन मैं दूर से ही उसके जेब में लपकते अंगारों को देख रहा हूं...सैलरी विभाग से पूछने पर पता चला कि जिन लोगों की सैलरी 25 हज़ार से कम थी उनको सैलरी दे दी गई है...उस वक्त मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि क्या अच्छे काम की बदौलत पदोन्नती पाकर मैने कोई गुनाह तो नहीं कर दिया...उसी पल मेरे मन में विचार आया कि अपने बॉस से कह दूं कि प्लीज मेरी सैलरी कम कर दीजिए...शायद ऐसा कहने से मैं भी उन लोगों की श्रेणी में आ जाऊं जिस श्रेणी के लोगों को पहली या दूसरी तारीख तक वेतन मिल जाता है।
मैं ऑफिस में बैठा हूं लेकिन अभी से शाम 8 बजे घर में होने वाले शीतयुद्ध की ठंडक को महसूस कर पा रहा हूं...आज मैं भगवान से मना रहा हूं कि काश मेरे बॉस मुझे २४ घंटे का ओवर टाइम करने के लिए कह दें...ताकि जब मैं ड्यूटी के बाद कल अपनी सैलरी लेकर घर लौटूं तो बीवी से नज़रें तो मिला सकूं। और बॉस पर एक एहसान भी हो जाएगा...
इस वक्त अगर मेरे दिमाग को स्कैन कर लिया जाए तो शायद अकांउट्स वालों को एक ऐसा सॉफ्टवेयर मिल जाए जिससे एक साथ कई बैलेंस सीट बनाया जा सकता है। इस वक्त मेरे दिमाग में एक साथ क्रेडिट कार्ड, होम लोन, घर का बजट, बिजली का बिल, फोन का बिल और ना जाने किस-किस मद का खाता खुला हुआ है...इन सब खातों पर मेरा दिमाग एक साथ आंकड़ों का खेल, खेल रहा है। ऐसे ही कुछ लम्हे होते हैं जब मैं दिमाग को अपने पुराने दोस्तों के फोन नंबर खोजने का काम सौंप देता हूं...लेकिन इस काम के साथ उसे ये निर्देश भी दे देता हूं कि केवल ऐसे ही दोस्तों के नंबर खोजे जाएं जिसके हालात मेरे जैसे ना हों और जिसके अकाउंट में शीत युग का आगमन ना हो गया हो।
ऐसा नहीं है कि मेरे नाते रिश्तेदार मेरी सहायता नहीं कर सकते...पर उनसे सहायता मांग कर मैं अपनी नाक नीची नहीं करना चाहता हूं ये अलग बात है कि उनसे दूर बीच बाज़ार में हर महीने की एक तारीख को मेरी नाक कटती रहती है। मैं जिस सोसायटी में रहता हूं वहां काफी सभ्रांत लोगों का बसेरा है...जाहिर सी बात है कि वो लोग मुझे भी सभ्रांत ही समझते हैं...मैं भी उसका झूठा लबादा ओढ़े गाड़ी से ऑफिस आता-जाता हूं। हद तो तब हो गई जब सोसायटी के कर्मचारी लोग मेरे घर पर दिवाली की बख्शीश मांगने आ पहुंचे...उन्हे तो खुल्ला नहीं होने का बहाना करके टाल दिया लेकिन अब हर दूसरे दिन मुझे ये संयोग बनाना पड़ता है कि जब भी वो मेरे घर का कॉलबेल बजाते हैं तो मैं बाथरूम में होता हूं ये अलग बात है कि उस वक्त तक मैं नहा धोकर ऑफिस जाने के लिए तैयार बैठा होता हूं॥मेरी बीवी रोज-रोज उन्हे टाल कर थक सी गई है...पर उसे क्या पता कि रोज शाम... मैं उसे भी सोसायटी के कर्मचारी की तरह ही टालता रहता हूं...ऑफिस से लौटने के बाद कभी मेरे सिर में दर्द होने लगता है तो कभी काफी थका हुआ महसूस करता हूं...रविवार के दिन तो मेरा बीमार पड़ना लगभग तय ही होता है...जब ये सब बहाने पुराने हो जाते हैं तो फिर मैं कभी बैंक का एटीएम ख़राब कर देता हूं या फिर कोई ऐसी तकनीकी घटना हो जाती है जिसके बारे में मुझे भी पता नहीं होता है।
अब तो मुझे अपने बेटे का डायपर खरीदते वक्त भी ऐसा लगता है जैसे उसका पॉटी डायपर पर ना गिरकर मेरे अरमानों पर गिर रहा हो...उसके सूसू ने तो मेरे सपनों को भी गीला कर दिया है। बाप बनने से पहले मैं सोचता था कि मैं अपने होने वाले बच्चे को वो हर खुशी दूंगा जो मुझे नसीब नहीं हुई...पर अब मुझे अपने पिता की मजबूरी का एहसास होने लगा है। मैने बीवी को शादी की पहली सालगिरह पर जो सोने की छोटी सी बाली दी थी उसकी किश्त अभी तक चुका रहा हूं और ये सोचकर परेशान भी हूं कि इस किश्त के ख़त्म होते ही शादी की दूसरी सालगिरह आ जाएगी। मेरी बीवी अभी से बेटे के, पहले जन्मदिन को धूमधाम से मनाने की योजना बना रही है लेकिन शायद उसे पता नहीं है कि उससे ज़्यादा मेहनत मैं उसकी योजना को ठंडे बस्ते में डालने के लिए कर रहा हूं। मैने तो सोच लिया है कि जन्मदिन के दिन बीवी को अध्यात्म का हवाला देकर और पाश्चात्य संस्कृति की बुराई करके...बस पूजा करके भगवान से अपने बेटे की अच्छी और लंबी जिंदगी की कामना कर लूंगा।
एक तारीख को सैलरी नहीं मिलने के कारण मैं सैलरी विभाग में इतनी बार मत्था टेकने जाता हूं कि वहां के अधिकारी भी मुझे पहचानने लगे हैं...कई कर्मचारी तो मेरे दोस्त भी बन गए हैं....कौन कहता है कि समय पर सैलरी नहीं मिलना काफी दुखद होता है ?

4 comments:

Anonymous said...

MUBARAK HO ...PAR AAP BAAP KAB BANE?

सतीश पंचम said...

अच्छी पोस्ट। कुछ बातों को व्यंग्य के मुलम्मे मे लपेट कर काफी अच्छे तरीके से रखा गया है। कुछ इन्ही हालात से गुजरे एक शख्स की कहानी Bill Liversidge नाम के लेखक ने अपनी किताब A Half Life Of One मे लिखी है, फिलहाल यह Online है, आप भी पढ सकते हैं। इसमे एक आम इंसान के रोजगार न मिल पाने पर अपने पत्नी और बच्चों से बिछडने का खतरा आन पडता है और पत्नी है कि वो अपने पति से बेहद प्यार करती है...लेकिन हालात एसे बन जाते हैं कि आगे चलना मुश्किल हो जाता है....घर पर आने वाले नौकरी के कॉल लेटर तक को वह शख्स इसलिये छुने से डरता है, क्योंकि उसे लगता है इसमे मेरी गिरफ्तारी का वारंट न हो...और इसी बीच वह बेहद खतरनाक कदम उठा लेता है,....बेहद रोमांचकारी इस नॉवेल को पढने पर समय का पता चलना मुश्किल है । जरूर पढें -A Half Life Of One- A free online novel about an ordinary man under extraordinary pressure. -

PD said...

बहुत बढिया.. एक काम किजिये.. अपने बॉस से कहिये कि वो आपको 25 से ज्यादा जितना भी मिलता है वो मेरे एकाऊंट में डाल दे.. :)

चलते चलते said...

हकीकत को उतार रहे है आप शब्‍दों में अपने इस ब्‍लॉग पर। कई लोग इस हकीकत का सामना कर रहे हैं।