Tuesday 11 November, 2008

मां मर गई

आज मैं आप लोगों से एक इंसान का दर्द बांटना चाहता हूँ ...मेरा एक मित्र है।आज दोपहर में मेरे फोन पर ये संदेश आया कि मेरे मित्र की मां अस्पताल में आईसीयू में भर्ती है।मैं उस वक्त ऑफिस में था ..फिर भी उस मित्र के दर्द का अहसास होते ही मैं अपने आप को ऑफिस में रोक ना सका और पहुंच गया उसअ स्पताल में जहां मेरे मित्र की मां पल-पल, सांस दर सांस मौत से ज़िदगी छीनने की लड़ाई लड़ रही थीं...पर यमराज की ताकत के आगे उनकी एक ना चली...उन्होने उसके सामने अपने घुटने टेक दिए...
लेकिन
धरती के भगवान(डॉक्टर) ने हार नहीं मानी और लगातार यमराज कोचुनौती देते रहे। उनकी कोशिशों को देखकर मेरे मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा उमड़ आई...अगर मैं उस पल अस्पताल से लौट आता तो शायद उस डॉक्टर का स्थान मेरेदिल में एक भगवान का ही होता...पर ऐसा हीं हुआ...थोड़ी ही देर में सूत्रों से पता चला कि मां को बचाने की कोशिश केवल एक तमाशा थी...वो तमाशा जिसके लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं...और इस तमाशे में तमाशबीन बना था मेरा मित्र...जिसके दिल के किसी कोने में उसकी मां अब भी
ज़िंदा
थी।
डॉक्टरों ने मेरे मित्र से इस तमाशे के एवज में एक मोटी रकम वसूल की...जिसे चुकाने के लिए मेरे मित्र को ना जाने किस-किसके आगे हाथ फैलाना पड़ा...डॉक्टरों के बिल पर ज़िंदा उसमां की ख़ातिर मेरे मित्र ने जो कर्ज लिए थे उसे चुकाने के लिए उसे ना जाने कितने महीनों तक बार-बार मरना पड़ेगा। इस दौरान ईलाज के लिए मां कोचढ़ाए गए खून का भी हिसाब-किताब किया जा रहा था। डॉक्टरों ने बताया कि मां को चढ़ाए गए 6यूनिट खून केए वज में मेरे मित्र पर प्रति यूनिट500 रुपए की देनदारी बनती थी। इसके विकल्प के तौर पर डॉक्टर ने 6यूनिट खून दान करने का रास्ता सुझाया। मित्र के परिचितो ने डॉक्टरों की ये फरमाईश पूरी की ।मेरे मित्र को लगा कि चलो कम से कम तीन हज़ार रूपए तो बच गए...पर डॉक्टरों ने दान किए गए इन6 यूनिट खून की जांच के तौर पर 450 रूपए प्रति यूनिट की दर से बिल बना दिया। अब आप ही सोच सकते हैं कि इंसानों का खून कितना सस्ता हो गया...महज़ 50रुपए प्रति यूनिट।
पैसो को अगर दर किनार भी कर दिया जाए तो इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बर्बाद हुए वक्त का कौन जिम्मेदार होगा...मेरा मित्र भी विवश था क्यों कि डॉक्टरों नेउसकी मां को बंधक बना लिया था। खैर पैसों के लेन-देन की प्रक्रिया आख़िर कार ख़त्म हुई...पर डॉक्टरों ने कानूनी प्रक्रिया की एक पूरी फेर हिस्तमेरे मित्र के हाथों में थमा दी (मां की मौत एक दुर्घटना की वजह से हुई थी) मेरा मित्र अपनी मां का अंतिम संस्कार अपने परिजनों के बीच पटना में करना चाहता था...इसलिए उसके लिए इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करना मजबूरी थी। इस सब के बीच उसे इतनी फुर्सत नहीं मिल पा रही थी कि वो मां की मौत को महसूस कर पाता। वो दुर्घटना की वजहों को अब भी मुझे सुना रहा था और अपनी मां की गलतियों पर खीझ रहा था..उसे लग रहा था कि अगर मां ने गलती नहीं की होती तो उसके साथ ये दुर्घटनान हीं होती...हो सकता है मेरे मित्र को उस वक्त भी ये अहसास नहीं हो पा रहा होगा कि उसकी मां अब हर दुख दर्द से काफी दूर जा चुकी है...अगले कुछ घंटो में उस मां का अंतिम संस्कार भी हो जाएगा....पर मैं अगले कई महीनों तक अपने उस मित्र को मरता हुआ देखूंगा...शायद अब हमें अपना गम मनाने के लिए भी फीस चुकानी पड़ेगी और फिर उसके लिए कानून के रखवालों से इज़ाजत मांगनी पड़ेगी

3 comments:

ghughutibasuti said...

क्या कहा जाए ? बहुत बार यदि डॉक्टर कोशिश में कमी रखें तो मरीज के रिश्तेदार उन्हें पीट डालते हैं । अस्पताल और पैसों का तो चोली दामन का साथ है । कुछ सलीके की बीमा योजना होनी चाहिए । मनुष्य पैसों को रोए या माँ को ! ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए ।
घुघूती बासूती

Anil Kumar said...

कलियुग में सभी कमीने हो चले हैं, चाहे वह डाक्टर हो या पुजारी। कोई नहीं बचा है। आइये इस प्रकरण से कुछ सीख लें और अपना कर्म भरपूर ईमानदारी और कर्मठता से करने का प्रण लें!

चलते चलते said...

राम नाम सॉरी नोट राम की लूट है, लूट सके तो लूट। डॉक्‍टर इतने कमीने हैं कि पोर्स्‍टमार्टम से लेकर लाश सौंपने तक के पैसे वसूल कर रहे हैं। सरकारी अस्‍पताल हो या निजी..सभी जगह यही हाल है। मैं तो सोचता हूं कि ऐसे हादसे के समय पिस्‍तौल पास में होनी चाहिए और डॉक्‍टर को ही मुर्दाघर में लंबा कर देना चाहिए। आपके दोस्‍त के साथ जो हादसा हुआ, उसके लिए दुख है। लेकिन मैं आपको एक बात बता दूं आप मानें या न मानें, ऐसे कई कमीने कमाऊं पूतों की औलादें मानसिक विकलांग होती है या इनके साथ भी बड़े हादसे होते हैं। जो बोएगा वहीं काटेगा....। चिंता न करें इस डॉक्‍टर का आप हाल लेते रहें, उसके साथ बडा हादसा होना तय है।