राज ठाकरे पर अंकुश लगाने के लिए बिहार में हो रही राजनीति अब आपसी रंजिश का अखाड़ा बन गई है...बिहार के राजनेता राज ठाकरे के बहाने अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हुए हैं। इन नेताओं को राहुल राज की मौत का
फायदा उठाने में भी शर्म नहीं आ रही है। इन्हे तो बस हर बात में राजनीति करने की आदत सी पड़ गई है।
बिहार के लोगों को शुरू में ये लगा कि ये राजनेता उनके लिए केन्द्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं...लेकिन उनका ये भ्रम जल्दी ही टूट गया...उन्हे अब ये विश्वास हो गया है कि अपनी लड़ाई उन्हे खुद ही लड़नी है। महाराष्ट्र की सड़कों पर जिन दिनों उत्तर भारतीयों का खून बहाया जा रहा था उन दिनों ये राजनेता अपनी-अपनी बिलों में घुसकर हुंकार भर रहे थे...जब उन्हे लगा कि इस मामले में केन्द्र सरकार भी बैकफुट पर आ गई तो उन्होने समय का फायदा उठाते हुए बिल से बाहर निकलकर शेर बनने की कोशिश शुरू कर दी...पर जोर-आजमाईश की पहली ही बारिश में
उनके ऊपर चढ़ा शेर का रंग धुल गया। खुद को बिहार के लोगों का हमदर्द बताने वाले नीतीश कुमार, लालू प्रसाद
यादव, और राम बिलास पासवान जैसे राजनेता अब इस्तीफ़े की राजनीति करने पर उतारू हो गए हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय पर अमल करते हुए जनता दल (U) ने अपने पांच सांसदों के इस्तीफ़े लोकसभा
अध्यक्ष के पास भेज दिए...इससे पहले नीतीश कुमार ने बिहार के सांसदों से केन्द्र पर दबाव डालने के लिए
इस्तीफा देने की अपील की थी...जिसके जवाब में रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार के सांसदों को इस्तीफ़ा
देने के लिए १५ नवंबर तक का समय दिया था..रेल मंत्री को ये उम्मीद था कि जेडी (U) केसांसद पीछे हट जाएंगे...
लेकिन अब नीतीश कुमार के इस पैंतरे ने उनके सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं...उनके लिए अब एक तरफ
कुआं है तो दूसरी तरफ खाई..अगर वो अपने सांसदों के साथ इस्तीफ़ा दे देते हैं तो यूपीए सरकार अल्पमत हो जाएगी और अगर वो इस्तीफ़ा नहीं देते हैं तो बिहार में उनकी किरकिरी हो जाएगी...इसलिए उन्होने एक नया पत्ता
खेलते हुए नीतीश कुमार को अपने विधायकों समेत इस्तीफ़ा देने की चुनौती दे डाली...लालू जी को शायद ये लगता होगा कि अगर उन्होने केन्द्र से इस्तीफ़ा दे दिया तो उनके कुर्सी प्रेम का क्या होगा...इसलिए वो इस्तीफ़ा देने से पहले बिहार में अपनी कुर्सी की उम्मीद जगा लेना चाहते हैं।
बिहार में एक तीसरा धड़ा है केन्द्र में मंत्री पद संभाल रहे राम बिलास पासवान का...ये वही शख्स हैं जिन्होने हाजीपुर से रिकॉर्ड मतों से अपने प्रतिद्वन्दी को हराया था। इतने बड़े जनाधार वाले नेता भी इस इस्तीफ़े की राजनीति से अधूते नहीं रहे॥वो खुद तो इस्तीफ़े की राजनीति को बकवास ठहरा रहे हैं लेकिन ये जरूर चाहते हैं कि नीतीश कुमार अपने विधायकों के साथ इस मामले में इस्तीफ़ा दे दें...इसका सीधा सा मतलब है कि केन्द्र में काबिज रहते हुए भी वो बिहार में अपनी सरकार बनाने के सपने देख रहे हैं।
इस पूरे मामले में बीजेपी ने तो अपने पत्ते नहीं खोले हैं...पर बिहार प्रदेश कांग्रेस ने महाराष्ट्र में काबिज कांग्रेस
सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। कुल मिलाकर इतना कहा जा सकता है कि इस इस्तीफ़े की राजनीति में
राज ठाकरे पर अंकुश लगाने की चाहत कम..अपना-अपना हित साधने की कोशिश ज़्यादा है। तो हे उत्तर भारतीय
बिहारी लोगों अब भी वक्त है अपने अधिकारों के लिए जाग जाओ...इस भुलावे में बिलकुल मत रहो कि कोई राजनेता आकर आपके अधिकारों की लड़ाई लड़ेगा। यही संदेश मैं मराठी मानुषों को भी देना चाहुंगा कि आप जिस राज ठाकरे की राजनीति को अपना समर्थन दे रहे हैं उससे आपका हित नहीं होने वाला...जरा सोचिए अगर आपके राज्य में चल रही फैक्ट्रीयों को झारखंड से मिलने वाले कच्चे माल की सप्लाई रोक दी गई तो क्या होगा ?...आपके
उद्योग धंधों के उत्पादों का अगर उत्तर भारत के बाजारों ने बहिष्कार कर दिया तो क्या होगा ? उत्तर भारत में काम
कर रहे आपके भाई बन्धुओं के साथ भी अगर बुरा बर्ताव किया जाए तो क्या होगा ? हरियाणा में पांच सौ मराठी
परिवारों को सुरक्षा के लिए पुलिस में गुहार लगानी पड़ी...ये जानकर आपको कैसा लग रहा है ? अगर राज ठाकरे को ये सब गोरख धंधा करने के बाद सत्ता मिल भी गई तो आपको क्या मिलेगा ? आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह आतंकवादियों की कोई जात नहीं होती वैसे ही नेताओं की भी कोई जात नहीं होती और ना ही कोई समुदाय होता है...इसलिए समय रहते जाग जाएं...ये मराठी मानुष और उत्तर भारतीय के फासले को मिटा दें...अगर
आप कहीं भी इज्जत से रहना चाहते हैं तो आपको, दूसरों की भी इज्जत करनी पड़ेगी
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3 comments:
क्षमा कीजिए अगर समकालीन बिहारी नेता इतने होशियार होते तो ऐसा आधुनिक बिहार बनता ही क्यों | आज बिहार को नए नेता और नए जन आन्दोलन की आवश्कता है |
यही बिहार की असली तस्वीर है, आप देखियेगा राज ठाकरे को तो मराठी लोग नहीं जितवायेंगे या सत्ता सौंपेंगे, लेकिन बिहारी लोग फ़िर से उन्हीं बेशर्म नेताओं को सत्ता सौपेंगे…जो इस्तीफ़ों की नौटंकी कर रहे हैं और पहले ही बिहार को गर्त में धकेल चुके हैं, आने वाले कुछ महीनों/सालों में यह मुख्य अन्तर दिखाई देगा महाराष्ट्र और बिहार की "राजनैतिक संस्कृति" में…
भगवान करे सुरेश जी की महाराष्ट्रा के बारे में की भविष्यवाणी सही साबित हो। बाकि आप ने सही कहा ये नेता और आतंकवादी किसी के नहीं होते
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