Monday, 3 November 2008

राज की बात...

राज ठाकरे ने एक बार फिर बिल से बाहर आकर शेर बनने की कोशिश की। दरअसल उन्हे अब एहसास होने लगा है कि आने वाले दिनों में उनके साथ भी वही हो सकता है जो आज वो उत्तर भारतीयों के साथ कर रहे हैं। उन्होने
प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी बात रखने की कोशिशकी॥इसमें राज ठाकरे ने सबसे पहले छठ का मुद्दा ही उठाया। उन्होने ये साफ कर दिया कि उनकी पार्टी छठ पूजा का विरोध नहीं करेगी और बिहारी लोग परंपरागततरीके से छठ
पूजा मना सकते हैं...साथ ही उन्होने चेतावनी भरे लहजे में ये जरूर कह दिया कि छठ पूजा का इस्तेमाल राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
अब कोई राज ठाकरे से ये तो पूछे की वो बिहारियों को छठ पूजा करने की इजाजत देने वाले होते कौन हैं...क्याबिहारियों को छठ पूजा मनाने के लिए उनकी मर्जी की जरूरत है ? राज ठाकरे ने राहुल राज की हत्या को सही ठहराया लेकिन धर्मदेव की हत्या से अपना पल्ला झाड़ लिया...लेकिन यहां उन्होने उस घटना का जरूर जिक्र किया जिसमें चार मराठियों को दूसरे राज्यों के लोगों ने ट्रेन से बाहर फेंक दिया था। राज ठाकरे साहब क्या ये मान लेना चाहिए कि धर्मदेव की हत्या इसी घटना का प्रतिशोधथा...और हो सकता है कि धर्मदेव के हत्यारों को जाने-अनजाने आपके दिए गए ऐसे बयानों ने प्रेरित किया होगा।
राज ठाकरे ने राहुल राज को गोली मारने के लिए पुलिस की तारीफ की। हो सकता है कि राज ठाकरे को ऐसा लग होगा कि ठीक ही हुआ एक बला टल गई। इस मामले में उन्होने ये भी कहा कि राहुल राज के राज्य के बारे में पुलिसकर्मियों को कुछ पता नहीं था...तो जनाब आपको बता दें कि पुलिस से सामना होने के पहले और उसके दौरान भी राहुल राज चीख-चीख कर ये बोल रहा था कि वो पटना से आया है और राज ठाकरे की जान लेना चाहता
है। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के उनकी सुरक्षा व्यवस्था हटाने के फैसले की
जमकर आलोचना की। हो सकता है राहुल राज की शक्ल में उत्तर भारतीयों की साहस का अंदाजा होते ही राज ठाकरे को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी हो।
राज ठाकरे ने गोवा और असम में बिहारियों के साथ हो रहे बुरे बर्ताव का भी जिक्र किया और महाराष्ट्र के मामले को तूल देने के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया। राज साहब को यहां ये बताना भी जरूरी हो जाता है कि इस तरह की हरकत चाहे जहां भी की गई हो मीडिया समेत समाज के हर वर्ग ने इसका विरोध किया है। लेकिन क्या किसी गलत परंपरा को दूसरी गलत परंपरा से तुलना करके सही ठहराया जा सकता है ? राज ठाकरे ने पिछले दिनों इस मामले में बिहार के नेताओं की प्रधानमंत्री से मुलाकात का हवाला देकर महाराष्ट्र के 48 सांसदों के पौरुष को ललकारा... राज साहब यहां आपकी सेहत के लिए ये बताना जरूरी है कि बुरे काम में आपको कोई सहयोग नहीं करेगा।
राज ठाकरे साहब इसके लिए जरूर बधाई के पात्र हैं कि वो महाराष्ट्र में मराठी लोगों के सम्मान और अस्मिता की रक्षा करने की बात करते हैं...पर उन्हे कम से कम एक पुरानी कहावत तो याद रखनी चाहिए किसी भी लकीर के नीचे उससे बड़ी लकीर खींच कर उसे छोटा किया जा सकता है इसके लिए ये जरूरी नहीं है कि पहली लकीर को मिटा कर छोटा किया जाए। तो राज साहब आपमराठियों के मान सम्मान की रक्षा कीजिए॥इस काममें हम भी आपके साथ हैं लेकिन उत्तर भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करके उनके मान सम्मान को तो ठेस मत पहुंचाईए।

4 comments:

P.N. Subramanian said...

राज ठाकरे के बेवकूफी पूर्ण बयानों से दूसरे प्रदेशों में रहने वाले हमारे मराठी बंधुओं की सुरक्षा ख़तरे में पद गयी है. राज को दंडित किया जाना अती आवश्यक है.

Unknown said...

मराठी लोगों के सम्मान और अस्मिता की रक्षा करने की बात करना बेमानी है. पहली बात, कोई भी मराठी लोगों के सम्मान और अस्मिता का अपमान नहीं कर रहा. दूसरी बात, जो राज ठाकरे कर रहे हैं वास्तव में उस से मराठी लोगों के सम्मान और अस्मिता का अपमान होता है.

Surendra Rajput said...

राज ठाकरे सिर्फ अपनी राजनीति चमकने के लिए पुरे देश को क्षेत्रवाद की राजनीति में धकेलना चाह रहे हैं. ये देश की एकता के लिए खतरा हो सकता है. इसे कठोरता से रोक लगानी चाहिए .
आपका लेख अच्छा लगा.

mukul raj said...

न्यूजरूम
मजमा लगता है हर रोज़,
सवेरे से,
खबरों की मज़ार पर
और टूट पड़ते हैं गिद्दों के माफिक
हम...हर लाश पर
और कभी...
ठंडी सुबह...
उदास चेहरे,
कुहरे में कांपते होंठ-हाथ-पांव,
और दो मिनट की फुर्सत...
काटने दौड़ती है आजकल
अब शरीर गवाही नहीं देता सुस्ती की...
न दिन में और न रात में...
जरूरी नहीं रहे दोस्त...
दुश्मन...
अपने...
बहुत अपने
ज्यादा खास हो गयी है
फूटी आंख न सुहाने वाली
टेलीफोन की वो घंटी...
जो नींद लगने से पहले उठाती है...
और खुद को दो चार गालियां देकर...
फिर चल पड़ता हूं...
चीड़ फाड़ करने...
न्यूजरुम में...
न्यूजरूम
मजमा लगता है हर रोज़,
सवेरे से,
खबरों की मज़ार पर
और टूट पड़ते हैं गिद्दों के माफिक
हम...हर लाश पर
और कभी...
ठंडी सुबह...
उदास चेहरे,
कुहरे में कांपते होंठ-हाथ-पांव,
और दो मिनट की फुर्सत...
काटने दौड़ती है आजकल
अब शरीर गवाही नहीं देता सुस्ती की...
न दिन में और न रात में...
जरूरी नहीं रहे दोस्त...
दुश्मन...
अपने...
बहुत अपने
ज्यादा खास हो गयी है
फूटी आंख न सुहाने वाली
टेलीफोन की वो घंटी...
जो नींद लगने से पहले उठाती है...
और खुद को दो चार गालि