Friday, 28 August 2009

अनोखी बंदूक

आपने बहुत सी ऐसी बंदूकें देखी होंगी जिससे निकली गोली किसी की जान ले सकती है। हालांकि वहां पर एक चीज से उसके प्रभाव क्षेत्र में फर्क आता है...और वो है उस बंदूक में इस्तेमाल की जा रही गोली...जी हां बंदूक में गोली डालने से पहले बंदूक चलाने वाला अपने मकसद के मुताबिक एक निश्चित मारक क्षमता वाली गोली का इस्तेमाल करता है। लेकिन आज हम जिस अनोखी बंदूक के बारे में आपको बता रहे हैं...उसमें बिलकुल अलग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।


तो आईए आपको बताते हैं कि दरअसल ये बंदूक दूसरी आधुनिक बंदूकों से किस तरह से अलग और इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है कि अमेरिका की सेना भी इस बंदूक को पाना चाह रही है। आपको बता दें कि ये बंदूक मौके और हालात के मुताबिक काम करती है। अगर आप चाहते हैं कि इस बंदूक से निकली गोली किसी की जान ले ले तो ऐसा हो सकता है और अगर आप चाहते हैं कि बंदूक की गोली किसी को केवल घायल ही करे तो ऐसा ही होगा इन सबके अलावा अगर आप चाहते हैं कि आपके निशाने पर जो शख़्स है उसे बहुत हल्का सा जख़्म ही आए तो ऐसा भी मुमकिन हो सकता है। लेकिन आपको अपने इरादे के मुताबिक अलग-अलग गोलियों का इस्तेमाल नहीं करना होगा बल्कि एक ही बंदूक से एक ही मारक क्षमता वाली गोली से आप अलग-अलग काम ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो किसी भीड़ को काबू में करने के लिए उनपर इस बंदूक से रबड़ की गोलियां भी बरसा सकते हैं.


अब सवाल ये उठता है कि एक ही बंदूक से एक साथ इतने अलग-अलग काम कैसे लिए जा सकते हैं...तो आईए आपको इसकी तकनीक के बारे में बताते हैं। दरअसल इस बंदूक में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिससे आप किसी भी गोली के गति को नियंत्रित कर सकते हैं..अगर आप किसी की जान लेना चाहते हैं तो आपको गति की सीमा को उच्चतम स्तर पर रखना होगा और उसके बाद अपने इरादे के मुताबिक गोली की गति की सीमा को कम कर सकते हैं। हालांकि बंदूक के शौकीनों को ये जानकर काफी निराशा होगी कि इस बंदूक को भारतीय बाज़ार में आने में काफी समय और अड़चनों को पार करना होगा..

Wednesday, 26 August 2009

गणपति की शिकायत

कल रात मेरे पास गन्नू भाई मुंह पर स्वाइन फ्लू का मास्क लगाकर आए..अरे आप कन्फ्यूज मत होईए..गन्नू भाई से मेरा आशय गणपति बप्पा से है.. तो चलिए मुलाक़ात की बात को आगे बढ़ाते हैं.. गन्नू भाई काफी थके हुए पसीने से तर-बतर थे.. उन्होने अपनी पीठ पर काफी बड़ा सा बैग टांगा हुआ था.. लेकिन एक बात जो मुझे काफी अजीब लगी, वो था उनका 8 पैक एब्स..उसे देखकर मैं काफी हैरान था क्यों कि मेरे मन में जो उनकी छवि थी उसमें उनकी अच्छी खासी तोंद निकली हुई थी...मुझे चौंकते हुए देखकर उन्होने अपनी पीठ पर से अपना भारी बैग उतारा और धम्म से सोफे पर पसर गए... मैने उन्हे पानी पिलाया और खाने के लिए थाली भरकर लड्डू परोस दिया... पानी तो उन्होने पी लिया लेकिन लड्डू खाने से मना कर दिया..बाद में उन्होने बताया कि आजकल वो डायटिंग कर रहे हैं...

मुझे लगा कि मेरे स्वागत सत्कार से वो प्रसन्न हो गए होंगे और अब वो अपने भारी बैग से निकालकर मुझे कुछ तोहफे देंगे... ऐसा ख़्याल आते ही मैं हसरत भरी नज़रों से उनके बैग की ओर एकटक देखने लगा... गन्नू भाई तो अंतर्यामी हैं उन्होने मेरे भाव को ताड़ लिया और अपना बैग खोलने लगे... जैसे-जैसे उनके बैग की गांठ खुलती जा रही थी वैसे-वैसे मेरे दिल की धड़कने तेज होती जा रही थी.. मन ही मन मैने दिल्ली के पॉश इलाके में पांच सौ गज का प्लॉट खरीद लिया था..और जबतक उनके बैग की आखिरी गांठ खुलती तबतक मैने उस प्लॉट पर एक आलीशान बंगला और उस बंगले के गैरेज में दो-तीन लंबी गाड़ियां पार्क कर चुका था..

आख़िरकार इंतजार की घड़ियां ख़त्म हुई.. गन्नू भाई ने उस बैग से सामान निकालना शुरू किया... उन सामानों को देखकर मेरे अरमानों पर एक साथ ना जाने कितना लीटर पानी फिर गया था... उस पानी में मेरा पांच सौ गज का प्लॉट, आलीशान बंगला और लंबी गाड़ियां एक झटके में बह गए.. ऐसा लग रहा था जैसे मैं बिहार के सुपौल ज़िले में खड़ा हूं और एक बार फिर कोसी नदी ने अपना रास्ता बदल कर सबकुछ अपने में समेट लिया हो... अचानक गन्नू भाई की थकी हुई आवाज से मैं अपने ख़्यालों से वापस आया...मेरे सामने गन्नू भाई अपने बैग से निकाले गए, एके-47, बैट, टीम इंडिया की जर्सी, फुटबॉल जैसे अनगिनत सामानों के साथ खड़े थे.. मैने जब उनसे उन सामानों के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि ये सब सामान उनके अति उत्साहित भक्तों ने दिया है...

उन्होने बताया कि कैसे गणेश उत्सव के दौरान कुछ नया करने की होड़ में उनके भक्तगण उनको कलयुगी बनाने पर तुले हुए हैं.. हद तो तब हो गई जब उनके कुछ भक्तों ने उन्हे मूषकराज से उठा कर डायनासोर पर बैठा दिया... मैने भी थोड़े मजाकिया अंदाज में गन्नू भाई से पूछ ही लिया कि उन्हे डायनासोर पर बैठने में परेशानी क्यों हो रही है..क्यों कि उनका डिल-डौल तो डायनासोर पर बैठने के लिए बिलकुल फिट है..मुझे लगा कि शायद गन्नू भाई डायनसोर की उबड़-खाबड़ पीठ से परेशान हो रहे होंगे..लेकिन ऐसा नहीं था उनकी शिकायत थी पृथ्वीलोक पर हो रही पार्किंग की समस्या से..उन्होने बताया कि डायनासोर के मुक़ाबले चूहे को पार्क करना काफी आसान है.. और चूहे पर सवारी करना सस्ता भी है। इस बारे में वो आगे कुछ बताते इससे पहले ही मैने उनसे मेरे घर पधारने की वजह पूछ ली...लेकिन इस सवाल पर गन्नू भाई की प्रतिक्रिया को देखकर लगा जैसे वो इसी सवाल का इंतजार कर रहे थे..

उन्होने सवाल ख़त्म होते ही बताया कि कैसे इंसानों की नित नई जिम्मेदारी संभालते-संभालते वो परेशान हो गए हैं...जब भी कोई नई मुसीबत आती है तो इंसान गणेश उत्सव में मुंह लटकाए हुए उनके पास पहुंच जाते हैं और फिर उन्हे कभी, बैट पकड़ा देते हैं तो कभी आतंकवादियों से लड़ने के लिए एके-47 थमा देते हैं..और तो और उन्हे ऐसे मॉडर्न पोशाक पहना देते हैं कि स्वर्ग लोक में जहां देखो वहीं देवतागण उनकी खिल्ली उड़ाते नज़र आते हैं.. गन्नू भाई ने ये भी बताया कि उन्हे गणेश उत्सव के दौरान क्यों डायटिंग करनी पड़ रही है.. उन्होने बताया कि कैसे मूर्तिकार उनके ऊपर प्लास्टर ऑफ पेरिस थोप कर उनको और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं...और इसी पीओपी के कारण वो पूरे दस दिन कुछ नहीं खा पाते हैं...

गन्नू भाई चाहते थे कि मैं मीडिया के माध्यम से इस मामले में जागरुकता फैलाऊं ताकि उनके भक्तजन अपनी समस्याओं का ठीकरा उनपर फोड़ने के बजाए अपने स्तर पर भी उनसे निपटने की कोशिश करें...वैसे भगवान तो अंतर्यामी हैं ही उन्हे कुछ बताने की जरूरत भी नहीं.. वो तो बिना बताए ही अपने भक्तों का कष्ट हर लेते हैं...फिर उनके प्रतिमा से खिलवाड़ करना आस्था के साथ खिलवाड़ करने जैसा ही है..मैं गन्नू भाई से कुछ और सवाल पूछ पाता उससे पहले ही बारिश शुरू हो गई..जबतक मैं कुछ समझ पाता..मेरी आंख खुल गई और सामने हाथ में पानी का गिलास लिए हुए मेरी भतीजी खड़ी थी... तब जाकर मुझे लगा कि गणपति बप्पा से मेरी मुलाक़ात महज एक सपना था

Tuesday, 25 August 2009

चेहरा बनेगा रिमोट


आज मैं आपको बताने जा रहा हूं एक ऐसे टीवी के बारे में जो आपकी पसंद और नापसंद को समझ लेता है और आपके मन मुताबिक कार्यक्रम आपको दिखाता है यानि इस टीवी में रिमोट कंट्रोल की जरूरत नहीं होती है..ये टीवी उनके लिए उपयोगी साबित हो सकता है जो टीवी पर आ रहा उबाऊ कार्यक्रम देखना नहीं चाहते हैं..भारत का टीवी जगत अभी तक पूरी तरह परिपक्व नहीं हुआ है..यही वजह है कि दूरदर्शन से शुरू हुआ ये सफर आज सैकड़ों चैनल तक पहुंच चुका है लेकिन आज भी एक कार्यक्रम के सफल होते ही सारे चैनल उसके पीछे भेड़चाल की तरह चल पड़ते हैं...कभी धार्मिक कार्यक्रमों की धूम होती है तो कभी सास-बहू के किस्से चल निकलते हैं...


इन सब से निजात पाने के लिए वैज्ञानिकों ने जो कारनामा किया है वो आपको चौंका देगा...उन्होने शुरूआती तौर पर एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे कोई भी टीवी या कंप्यूटर आपके चेहरे को देखकर निर्देश लेगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने आम आदमी के चेहरे पर आने वाले हाव भावों का गहन अध्यन किया और उसे आंकड़ों की शक्ल में उतारकर कंप्यूटर और टीवी में डाल दिया। वैज्ञानिकों ने लोगों के चेहरों पर आने वाले हाव भाव को जानने के लिए एक छोटा सा विडियो कैमरा उस कंप्यूटर और टीवी पर लगा दिया। इसके बाद उन्होने परीक्षण के तौर पर उस टीवी के आगे अपने चेहरे पर हाव भाव लाए और दूसरे ही पल टीवी ने चेहरे से मिल रहे संकेतों को पहचानकर उसके मुताबिक काम करना शुरू कर दिया। वैज्ञानिकों ने अपने ईजाद को सफल बनाने के लिए आम इंसानों के चेहरे पर आने वाले हाव-भाव को 6 वर्गों में बांटा है, जो हैं गुस्सा, नाराज़गी, डर, खुशी, उदासी और आश्चर्य। इन भावों के आने पर आम इंसान के चेहरे की बनावट में कैसे-कैसे बदलाव आते हैं इसका उन्होने गहन अध्यन करके उसे आंकड़ों की शक्ल में ढ़ाल दिया। इतना कुछ करने के बाद वैज्ञानिकों को अपने मन मुताबिक परिणाम मिलने लगे। अब वो अपने इस ईजाद को और बेहतर बनाने की मुहिम जुट गए हैं। और हम ये आशा कर सकते हैं कि जल्दी ही वैज्ञानिकों की ये ईजाद हमारे हाथों में भी आ जाएगी...

Monday, 24 August 2009

समुद्र देवता की चेतावनी

सेटेलाइट से अंटार्कटिक के एक ख़ास हिस्से के लिए गए चित्रों ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। इस चित्र के मुताबिक अंटार्कटिक का एक हिस्सा जो कि विलकिन्स आइस सेल्फ़ के नाम से जाना जाता है वो कुछ ही वर्षों में उससे अलग हो जाएगा। 16,000 वर्ग किलोमीटर लंबे चौड़े ये आइस सेल्फ़ उत्तरी आयरलैंड के बराबर है। विलकिन्स आइस सेल्फ़ में पिछली शताब्दी में लगभग कोई परिवर्तन नहीं हुआ था लेकिन 1990 के बाद से इसमें तेजी से परिवर्तन होने लगा...वर्तमान में छारकोट आईलैण्ड से लगे हुए इस आइस सेल्फ़ का वो हिस्सा जो इसे आईलैण्ड से जोड़े हुआ था पिघलने लगा है। अब हालात ये है कि विलकिन्स आइस सेल्फ़ केवल 2.7 किलोमीटर चौड़ी पट्टी से आईलैण्ड से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिकों ने भी जब आइस सेल्फ का मुआयना किया तो सेटेलाइट से लिए गए चित्र को सही पाया। इससे पहले 1990 में वैज्ञानिकों ने ये अनुमान लगाया था कि विलकिन्स आइस सेल्फ़ आने वाले 30 साल में आईलैण्ड से अलग हो जाएगा लेकिन उनका ये अनुमान ग़लत निकला अब ये घटना उनके अनुमान से भी पहले ही घटित हो जाएगी।

अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है और आने वाले दिनों में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा...वैज्ञानिकों ने इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को ही जिम्मेदार ठहराया है लेकिन आइस सेल्फ का एक बड़ा हिस्सा ऐसे वक्त में टूटा है जब उस इलाके में तापमान काफी नीचे था...ऐसे में वातावरण के तापमान से बर्फ के पिघलने की आशंका कम हो जाती है...एक दूसरे अनुमान के मुताबिक वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दक्षिणी समुद्र से आने वाले गर्म पानी के कारण ही आइस सेल्फ के हिस्से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिक इस घटना से काफी चिंतित हैं क्यों कि इससे पहले भी 6 छोटे-छोटे आइस सेल्फ़ अंटार्कटिक से टूट कर अलग हो चुके हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इन घटनाओं से समुद्र के जलस्तर में भी फर्क आएगा। वैज्ञानिकों ने इस शताब्दी के अंत तक जलस्तर में 28 से 43 सेंटीमीटर के इज़ाफे का अनुमान लगाया था लेकिन अब एक ताज़े शोध के मुताबिक समुद्र का जलस्तर एक से डेढ़ मीटर तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो दुनिया भर में समुद्र किनारे के शहरों में समुद्र का पानी घुस जाएगा। इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होगा बांग्लादेश जिसके क़रीब आधे शहर समुद्र की भेंट चढ़ जाएंगे...साथ ही चीन में भी करोड़ों की आबादी को विस्थापित करने की नौबत आ जाएगी। समुद्र के जलस्तर बढ़ने से होने वाले परिणाम से हमारा देश भी अछूता नहीं बचेगा...क्योंकि हमारे देश के भी कई शहर समुद्र के किनारे बसे हुए हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि हम आने वाले समय को बेहतर बनाने के लिए आज सतर्क हो जाएं और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए अपने स्तर पर ही सही लेकिन कोशिश जरूर करें..

Saturday, 22 August 2009

शनि के चंद्रमा पर पानी

शनि के चंद्रमा पर पानी है....जी हां आपने ठीक पढ़ा...शनि के चंद्रमा पर पानी है...दरअसल शनि के इस चंद्रमा का नाम इनसेलाडस है और वैज्ञानिकों ने यहां पर पानी होने की संभावना व्यक्त की है। वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर कैसीनी नामक अंतरिक्ष यान की भेजी गई जानकारियों के आधार पर पहुंचे हैं। ये अंतरिक्ष यान इनसेलाडस के बिलकुल क़रीब से गुजरा था और वहां से उसने इस उपग्रह के सतह की कई तस्वीरें ली साथ ही कई ऐसी जानकारियां इकट्ठी की जिससे वहां पर पानी होने के संकेत मिलते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक कैसीनी ने शनि ग्रह के ई रिंग में सोडियम की मौजूदगी का पता लगाया है जो इनसेलाडस से आया था। आपको बता दें कि शनि के चारों तरफ जो रिंग मौजूद है उसे वैज्ञानिकों ने 6 भागों में बांटा है और उसे A,B,C,D,E,F का नाम दिया था। इन्ही में से ई रिंग में सोडियम के मौजूद होने का प्रमाण मिला है। इस मामले में वैज्ञानिक तमाम शोधों के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इनसेलाडस में बिना पानी की मौजूदगी के ये सोडियम शनि के ई रिंग में नहीं पहुंच सकते थे। इसी आधार पर जब वैज्ञानिकों ने कैसीनी के भेजे गए चित्रों का विश्लेषण किया तो उन्हे शनि के चंद्रमा पर वाष्प और बर्फ के कण दिखे जो उपग्रह पर बने एक गीजर के कारण बन रहे थे। ये गीजर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बन रहे दरारों में साफ-साफ देखे गए। उपग्रह का उत्तरी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव के मुकाबले ज़्यादा पुराना और गड्ढ़ों से भरा हुआ है।

इससे पहले भी शनि के ही एक दूसरे उपग्रह टाइटन पर भी पानी और जीवन के संकेत मिले थे...वैज्ञानिक उसपर भी शोध करने में जुटे हुए हैं। आपको बता दें कि अभी तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक शनि के लगभग 61 उपग्रह हैं और इसमें से ही एक छोटा उपग्रह इनसेलाडस भी है। वैज्ञानिकों ने कैसीनी से मिली जानकारी के आधार पर ये संभावना व्यक्त की है कि इनसेलाडस के ऊपरी बर्फीली सतह से कई मीटर नीचे पानी का जबरदस्त भंडार है जो एक छोटे समुद्र की तरह हो सकता है। वैज्ञानिकों ने अपने अनुमान का परीक्षण करने के लिए शनि के इस उपग्रह पर और अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी शुरू कर दी है। वैज्ञानिकों ने पानी मिलने की सूरत में वहां पर जीवन की संभावनाओं को तलाशने की दिशा में भी शोध करना शुरू कर दिया है।

Thursday, 20 August 2009

आज भी मौजूद हैं डायनासोर


क्या आपको पता है कि डायनासोर आज भी मौजूद हैं...ये सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है लेकिन ये सौ फीसदी सच है.. डायनासोर, ये शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों डायनोस और साउरोस को मिलाने से बना है। इसका मतलब होता है डरावनी छिपकली। ये शब्द सबसे पहले 1842 में सामने आया और इसके बाद प्रचलित हो गया। आज हम जिस डायनासोर की बात कर रहे हैं उसने आज से तकरीबन 23 करोड़ साल पहले से लेकर साढ़े 6 करोड़ साल पहले तक पूरी धरती पर राज किया। इसके बाद कुछ कारणवश इनकी पूरी प्रजाति विलुप्त हो गई। हालांकि इनके विलुप्त होने को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है लेकिन यहां हम उस घटना को प्रलय मानकर चल रहे हैं।


अब सवाल ये उठता है कि उस प्रलय से बचकर कुछ डायनासोर आज भी कैसे ज़िदा हैं। दरअसल क़रीब 3400 प्रजातियों वाले इस डायनासोर में तो कुछ 60 मीटर लंबे चौड़े थे तो कुछ का आकार आज के मुर्गे के बराबर भी था। इसमें से कुछ उड़ सकते थे तो कुछ पानी में तैर सकते थे। कुल मिलाकर इनके अंदर काफी विभिन्नताएं थीं। वैज्ञानिकों के अंदर ये धारणा थी कि मगरमच्छ और घड़ियाल, डायनासोर के ही परिवर्तित रूप हैं लेकिन उनकी ये धारणाएं ग़लत साबित हुई...हालांकि ये जरूर है कि इनका आपस में काफी नज़दीकी संबंध है।


वैज्ञानिकों ने जब डायनासोर के अस्थियों और हड्डियों से प्रोटीन को निकाल कर विश्लेषण किया तो उन्हे ये जानकर हैरानी हुई कि ये प्रोटीन आज के कुछ पक्षियों से काफी मिलते थे। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने एक एनिमेशन के माध्यम से डायनसोर के पक्षी बनने तक के सफर को बयां किया..पहले वर्ष 2003 में वैज्ञानिकों ने डायनासोर की हड्डियों में से मिले प्रोटीन का विश्लेषण किया और बाद में वर्ष 2005 में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के t-rex हड्डियों से मिले मुलायम ऊत्तकों का विश्लेषण किया...दोनों विश्लेषणों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि डायनासोर की थेरोपॉड प्रजाति धीरे-धीरे पक्षी में परिवर्तित हो गई होगी। इस आधार पर उन्होने आज के पक्षियों का विश्लेषण किया... जिसमें उन्होने शुतरमुर्ग और उसके समवर्ग पक्षियों और डायनासोर की थेरोपॉड प्रजाति की शारीरिक बनावट और उनके अंदर मौजूद तत्वों में काफी समानताएं पाई।

Wednesday, 19 August 2009

अचानक बदल जाएगा मौसम

दुनिया भर के मौसम में अचानक बदलाव आएगा लेकिन ये अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरीके से अपना प्रभाव दिखलाएगा। ये चेतावनी हम नहीं बल्कि वो वैज्ञानिक दे रहे हैं जो पिछले सौ साल के मौसम में आए बदलाव का वैज्ञानिक पद्धति से अध्यन कर रहे हैं। उन्होने पिछले कई साल में कई इलाकों के तापमान में आए परिवर्तन का भी गहन अध्यन किया है। इसके आधार पर उन्होने उस अनुमान को ठुकरा दिया है जिसमें मौसम में धीरे-धीरे बदलाव आने की बात कही गई थी।

वैज्ञानिकों ने इसके लिए अमेरिका के अलास्का और दक्षिण अफ्रीका के कुछ इलाकों के मौसम में तेजी से आए बदलाव का उदाहरण दिया है। दक्षिण अफ्रीका के कुछ इलाकों में तो 1960 में इतनी तेजी से मौसम में बदलाव आया कि वहां की उपजाऊ ज़मीन रेगिस्तान में तब्दील हो गई। अभी के ताज़ा उदाहरण में नार्वे और आयरलैंड को भी शामिल किया गया है जहां पर बहुत तेजी से मौसम में बदलाव आ रहा है।

वैज्ञानिकों ने यूरोप, उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस, अफ्रीका, खाड़ी देशों, बांग्लादेश और भारत के कई इलाकों को चिन्हित किया है जहां के मौसम में तेजी से बदलाव आ सकता है। और अगर हम अपने भारत की बात करें तो कई इलाकों इसका आंशिक असर भी दिखने लगा है। शोध के मुताबिक बारिश में सामान्य से दस प्रतिशत की गिरावट सूखा आने के संकेत दे सकते हैं। मौसम में आने वाले ये बदलाव दस से बीस साल तक जारी रह सकता है। वैज्ञानिकों ने इस बदलाव के लिए ग्लोबल वार्मिंग के अलावा समुद्री हवाओं के रुख में आ रहे बदलाव को बड़ी वजह बताया है।

समुद्री हवाओं के तेजी और रुख में ये बदलाव समुद्र के किसी छोर में एक हल्के से परिवर्तन से हो सकता है। वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक शीत युग के लिए भी इसी हवा को जिम्मेदार ठहराया है। समुद्री हवाओं में आने वाला ये बदलाव सतही हवाओं में भी परिवर्तन ला सकता है जिससे मौसम में बदलाव आना स्वाभाविक ही होगा। लेकिन वैज्ञानिकों के इस चेतावनी को हमें सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए ताकि हम इस बदलाव को आने से पहले ही उसे रोक दें...क्यों कि अगर ऐसा होता है तो पिछली घटनाओं की तरह ही करोड़ों लोग प्रभावित होंगे...इसमें से लाखों की मौत हो सकती है और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है।

Tuesday, 18 August 2009

एलियंस से संवाद

कई वैज्ञानिकों का ये दावा है कि एलियंस तरंगों की भाषा समझते हैं... और उनकी इसी समझ ने उन्हें तरंगों का पैग़ाम भेजने के लिए उत्साहित किया...नासा ने मशहूर बैंड बीटल्स का गीत आकाशगंगा में भेज दिया है। उद्देश्य ये है कि शायद हमारे सौरमंडल के बाहर कोई सुन ले और प्यार का ये तराना उसको पसंद आ जाये। ये गीत पोलर स्टार यानि ध्रुव तारे की तरफ भेजा गया। जहां उसे पंहुचने में 431 प्रकाश वर्ष लगेंगे।
4 फरवरी 1968 को बीटल्स ने अपना मशहूर गीत एक्रोस द यूनीवर्स को रिकार्ड किया। इसने दुनिया भर में धूम मचा दी। चालीस साल बाद इसी दिन नासा ने इस गीत को यूनिवर्स में भेज दिया....। इसकी गति करीब 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड होगी....। लेकिन इस गति से चलते हुए भी इसको 431 वर्ष लग जाएंगे....। यानि अगर ये मान भी लिया जाए कि ध्रुव तारे पर अगर कोई इस गीत को सुनेगा भी....तब तक धरती पर करीब 6 पीढ़ियां गुजर जाएंगी और अगर कोई सुनकर जवाब भी देगा....तो जवाब आने में इसका दोगुना यानि करीब 900 साल लग जाएंगे....। तो यह सबकुछ प्रकाश गति पर चलेगा...। जाहिर है इतने लंबे समय में कोई भी एलियन धरती पर जिंदा पहुंच सके....इसकी गुंजाईश बहुत कम है। लेकिन इन सबसे परे नासा फिलहाल इसे बड़ी उपलब्धि मानकर चल रहा है। पहले वो तरंगें एस्ट्रोनॉट्स के लिये भेजा करते थे। अब इसका उपयोग एलियंस के लिए भी किया गया है....तो ऐसे में अपनी धुन का उपयोग होने पर बीटल्स ग्रुप के पॉल मैकार्टनी भी इसे बडी उपलब्धि मान रहे हैं।

Sunday, 16 August 2009

एलियंस का रहस्य

एलियंस की मौजूदगी कहां कहां हो सकती है...ये जानकारी हासिल करने के लिए दुनिया के तमाम वैज्ञानिक जुटे रहे हैं ये कहानी तब से शुरू हुई जब पहला इंसानी कदम ने चांद को छुआ
दुनिया में पहली बार चांद पर कदम रखने वाले अमेरिकी नागरिक नील आर्मस्ट्रांग ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि चांद पर बाकायदा एलियन की कॉलोनी है ...उन्होंने यह भी कहा था कि एलियंस ने उन्हें इशारों में लौटने का संकेत भी किया था ...नील ने ये भी कहा कि मैं उनके बारे में ज्यादा बात कर दुनिया में दहशत नहीं फैलाना चाहता..लेकिन इतना जरुर था कि उनके शिप हमारे शिप से आकार में काफी बड़े थे। उनकी टेक्नोलॉजी हमसे ज्यादा विकसित लगी।

1969 से लेकर 1972 तक अमेरिका के छह अपोलो मिशन चांद पर गए। बताया जाता है कि अंतरिक्ष यात्री जब चांद पर पहुंचे....तो सबसे पहले उनका वास्ता..वहां पहले से बसे दूसरे ग्रह के जीवों से यानि एलियंस से पड़ा, जिन्होंने अमेरिकियों को चांद छोड़कर जाने की चेतावनी दी...। ये खबर रुसी अखबार प्रावदा ने रुस के एक टीवी न्यूज़ चैनल पर एक डोक्यूमैंट्री के हवाले से प्रसारित भी की। प्रावादा ने शक जताया कि जो भी चांद पर पहुंचा उन सभी का एलियंस से पाला पड़ा लेकिन नासा ने पुरी दुनिया से लगातार ये बात छुपाए रखी। जबकि नासा का कहना है कि अपोलो मिशन से जुड़े कई द्स्तावेज, तस्वीरें और फुटेज खो गई है जबकि सूत्र कहते हैं कि तस्वीरें खोने की बात महज सी आई ए का एक बहाना है। प्रावादा के मुताबिक अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों ने अपनी ओर से मैसेज सेंटर को जो मैसेज भेजे थे उनमें यू एफ ओ यानि अन आईडेंटिफाईड फ्लाईंग ऑब्जेक्ट्स देखे जाने और चांद पर कुछ उजड़ी हुई बस्तियां देखे जाने की बात है लेकिन इन कम्यूनिकेशन डॉक्यूमेंट्स को गायब कर दिया गया .

ध्यान देने की बात है कि 1972 के बाद कोई भी व्यक्ति चांद पर नहीं गया ...तो सवाल ये उठता है कि नित नए खोज करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों सहित नासा ने आखिर चांद पर दूसरे लोगों को भेजना क्यों बंद कर दिया है ... 1972 से लेकर 2008 तक ...नासा ने चांद पर किसी को क्यों नहीं भेजा ...तो क्या इस बात से जाहिर नहीं होता कि हो न हो ...अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चांद पर जो कुछ देखा उसे दुनिया से छुपाने की कोशिश कर रहे हों या फिर ऐसा तो नहीं कि एलियंस से निपटने के लिए नासा नई तैयारियों में जुटा है .. जाहिर सी बात ये भी है कि इस सच को छुपाने में अमेरिका कहीं न कहीं अपने हित की भी सोच रहा है ...पर अहम सवाल अब भी वहीं रह जाता है कि आखिर अमेरिका का इसमें कौन सा हित छिपा है ...

हाउस वाइफ को मिलेगा 6 हज़ार रुपये महीना

हाउस वाइफ की आमदनी 6 हज़ार रुपए प्रति महीना कर दी गई है...ये फ़ैसला तीस हजारी कोर्ट ने किया है...इसके लिए उसने सुप्रीम कोर्ट के 'लता वाधवा बनाम स्टेट ऑफ बिहार' मामले के फ़ैसले को आधार बनाया है...इसके लिए महिला की उम्र सीम 34-59 साल रखी गई है.. तीस हज़ारी कोर्ट ने ये फ़ैसला 1989 में एक सड़क दुर्घटना में मारी गई एक महिला को मुआवज़ा देने के लिए सुनाया...कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को 6 हज़ार रुपए प्रति माह के हिसाब से मृतक के परिजनों को क़रीब साढ़े 7 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया है...

इस ख़बर की शुरुआती पंक्तियों को पढ़ते वक्त मैने सोचा कि लगता है हमारे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ये सरकार को ये नया प्रावधान सुझाया है...फिर मुझे लगा कि इस ख़बर से मुझे खुश होना चाहिए की दुखी...क्यों कि मुझे इतना तो यकीन था कि सरकार हाउस वाइफ को 6 हज़ार रुपए महीना तो देने से रही...हां ये जरूर हो सकता है कि सरकार इसी बहाने उनपर इन्कम टैक्स देने का दबाव बना दे..और फिर उनसे मिले राजस्व को नेताओं की मौज मस्ती पर उड़ा दे...खैर मेरी सांस में सांस तब आई जब देखा कि ये मामला महज मुआवजे का है और कोर्ट ने एक अनुमान के आधार पर हाउस वाइफ की ये आमदनी बताई...हां उसने इतना जरूर किया सुप्रीम कोर्ट के 3 हज़ार रुपए प्रति महीने की आमदनी के फ़ैसले को बदलते हुए 6 हज़ार प्रति महीने कर दिया...चलिए कम से कम न्यायपालिका को तो महंगाई का अहसास हुआ

Saturday, 15 August 2009

गंगा मैय्या की विदाई

भारत की मोक्षदायिनी गंगा नदी सूखने की कगार पर है। वैज्ञानिकों के भविष्यवाणी को अगर सही माने तो जीवन दायिनी गंगा अब कुछ ही वर्षों की मेहमान है। और जब ऐसी स्थिति आएगी तो हमें अपने पाप धोने के लिए गंगा का पानी नसीब नहीं होगा। क्या गंगा मैया इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगी...ये जानने के लिए पहले गंगा नदी के उदगम के बारे में जानना होगा

हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से निकल कर करीब 200 किलोमीटर का सफर तय करके गंगा नदी गोमुख होते हुए हरिद्वार पहुंचती है। इससे पहले गंगा नदी में 6 नदियों का विलय होता है...अलकनंदा नदी विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा से मिलती है...उसके बाद थोड़ा आगे चलकर नंदप्रयाग में नंदाकिनी नदी का विलय होता है...कर्णप्रयाग में पिंडर नदी मिलती है...रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी से मिलन होता है... आखिर में देव प्रयाग में भागिरथी से मिलकर गंगा नदी अपने वास्तविक रूप में आती है और शिवालिक पहाड़ी से होती हुई हरिद्वार में अवतरित होती है।

इसके बाद ये नदी क़रीब 2,510 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस दौरान ये मुरादाबाद, रामपुर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, और राजशाही जैसे शहरों से होकर गुजरती है। इसमें से हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं से काफी जुड़े हुए हैं। ये गंगा नदी भारत की लगभग आधी आबादी के लिए जीवन दायिनी बनी हुई है। कहीं इसके पानी का इस्तेमाल पीने के लिए हो रहा है तो कहीं इससे निकाली गई नहरों से सिंचाई की जा रही है। और अगर धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो हिन्दुओं ने इसे माता का दर्जा दिया है और वे इसकी पूजा करते हैं। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थों में भी इस नदी का जिक्र मिलता है।

अब वही गंगा मैया इतिहास के पन्नों में सिमटने की तैयारी कर रही है और इसकी वजह है हमलोगों के पाप जो ग्लोबल वार्मिंग बनकर पल पल इसे आखिरी मुकाम की ओर ढ़केल रहे हैं। जी हां वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग को ही गंगा नदी के सूखने की वजह बताई है। उनके मुताबिक गंगा नदी जिस गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है वो तेजी से पिघल रहा है। गंगा नदी का क़रीब 70 फीसदी पानी इस ग्लेशियर से आता है और ये हर साल 50 यार्ड की रफ़्तार से पिघल रहा है। जो कि दस साल पहले किए गए अनु्मान से दोगुना है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्लेशियर के पिघलने की रफ़्तार इस तरह से जारी रही तो 2030 तक ये ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल जाएगा और सूखने लगेगी गंगा नदी। वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक उस स्थिति में गंगा नदी मौसमी नदी बनकर रह जाएगी...जो केवल बरसात के मौसम में ही नज़र आएगी। अगर ऐसा कुछ होता है तो जरा सोचिए उस पूरी आबादी का क्या होगा जो इस जीवन दायिनी और मोक्ष दायिनी के सहारे जी रहे हैं साथ ही उन करोड़ों लोगों का क्या होगा जिनकी आस्था इस नदी से जुड़ी हुई है....इसलिए यही सही वक्त है कि हम सचेत हो जाएं और गंगा नदी को बचाने का संकल्प लें...

Friday, 14 August 2009

सिकुड़ता ग्रह


आईए आज हम आपको बताते हैं कि बुध ग्रह पर क्या हलचलें चल रही है। क्यों इस ग्रह को लेकर वैज्ञानिकों के बीच गहमा गहमी बढ़ गई है। क्या ये ग्रह छोटा हो रहा है...क्या ये ग्रह धीरे-धीरे ख़त्म हो जाएगा...और इससे हमारी धरती पर क्या प्रभाव पड़ सकता है

बुध ग्रह...सूर्य के सबसे नजदीक का ग्रह...इस ग्रह को सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने में केवल 88 दिन ही लगते हैं। इस ग्रह का आकार पृथ्वी का लगभग एक तिहाई है लेकिन ये चंद्रमा से थोडा़ बड़ा है। बुध ग्रह चुंकि सूर्य के काफी नजदीक है इसलिए इसके सतह पर तापमान काफी ज़्यादा रहता है लेकिन इसका गुरुत्वाकर्षण शक्ति काफी कम होने के कारण इसके दिन और रात के तापमान में ही करीब 600 डिग्री का फर्क रहता है। मार्च 1975 से पहले तक ये ग्रह एक अबूझ पहेली बना हुआ था...पर मैरीनर नाम के एक अंतरिक्ष यान ने इस ग्रह के पास पहुंचकर उसके बारे में काफी जानकारियां वैज्ञानिकों को मुहैया कराई.. जिससे ग्रह के बारे में काफी भ्रांतियां ख़त्म हो गई। लेकिन तब भी उस अंतरिक्ष यान ने बुध ग्रह के केवल 45 फीसदी हिस्से का मुआयना किया था।


अब जो हम आपको बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आपको काफी हैरानी होगी...दरअसल नासा के मैसेंजर अंतरिक्ष यान ने इसी साल जनवरी में बुध ग्रह की कई तस्वीरें और जानकारियां धरती पर भेजी है...जिसके विश्लेषण के बाद वैज्ञानिकों को काफी हैरतअंगेज परिणाम मिले हैं। उसके मुताबिक ग्रह पर ज्वालामुखी विस्फोटों का काफी लंबा इतिहास रहा है...जिसके कारण ग्रह पर काफी लंबी चौड़ी खाईयां बन गई है ये खाईयां 4-5 फीट से लेकिर 1000 किलोमीटर की परिधि वाली हैं। ग्रह पर सब ओर लावा ही लावा छाया हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस ग्रह से आए दिन उल्का पिंड टकराते रहते हैं जिससे भी ग्रह की ये हालत हुई है। वैज्ञानिकों को ये जानकर भी काफी हैरानी हुई है कि ये पूरा ग्रह अब धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है...इस ग्रह के आकार में वैज्ञानिकों की सोच से ज़्यादा सिकुड़न आई है। ये ग्रह लगभग डेढ़ किलोमीटर छोटा हो गया है...और ऐसा इस ग्रह के कच्चे लोहे के जमने से हुआ है। हालांकि मैसेंजर ने इस ग्रह का लगभग 75 प्रतिशत हिस्से का ही मुआयना किया है लेकिन इस दौरान जो सबसे चौकाने वाला तथ्य सामने आया है वो है ग्रह के वातावरण में मिले सिलीकन, सोडियम और पानी के कण...वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्रह में पानी के कण मिलना अपने आप में काफी चौंकाने वाली बात....वैसे वैज्ञानिकों के पास इसके बारे में काफी तर्क हैं। और जहां तक इस ग्रह पर होने वाली हलचलों का धरती पर प्रभाव पड़ने का सवाल है तो...वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर इसका कोई असर नहीं होगा।...अब इंतजार है वर्ष 2011 का जब मैसेंजर अपनी यात्रा के दौरान एक बार फिर बुध ग्रह के पास पहुंचेगा और फिर उस ग्रह के कई रहस्यों पर से पर्दा उठेगा....

Thursday, 13 August 2009

छोटा हो रहा है दिमाग

किसी ने शायद ठीक ही कहा है..."खाली दिमाग शैतान का घर"...लेकिन अगर हमने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो ये घर छोटा हो सकता है...जी हां वैज्ञानिकों का यही कहना है कि अगर हमने अपने दिमाग से काम नहीं लिया और उसे खाली छोड़ दिया तो वो धीरे-धीरे छोटा हो जाएगा।
आईए अब हम आपको बताते हैं कि ये कैसे संभव होगा....दरअसल हम जो फैसले लेते हैं उसमें दिमाग के दो हिस्सों की अहम भूमिका होती है...ये हमपर निर्भर करता है कि हम दिमाग के किस हिस्से से ज़्यादा काम लेते हैं...इसके लिए हमें दिमाग के काम करने के तरीके को समझना होगा...दिमाग के जो हिस्से फैसले लेने का काम करते हैं उसमें से एक होता है सब-कॉर्टिकल ब्रेन और दूसरा हिस्सा है उसको चारो तरफ घेरे हुए आउटर कॉर्टेक्स। सब-कॉर्टिकल ब्रेन से हम जल्दबाजी वाले फैसले लेते हैं जैसे किसी जानवर के हमला करने की स्थिति में..किसी गर्म चीज के छू जाने पर...या फिर ऐसी कुछ स्थिति में जब तुरत फैसला लेना जरूरी होता है...लेकिन ऐसी स्थिति में कई बार दिमाग का ये हिस्सा ग़लत फ़ैसले भी ले लेता है। सब-कॉर्टिकल ब्रेन के बाहरी भाग में मौजूद आउटर कॉर्टेक्स से कोई भी फ़ैसला काफी सोच समझ कर और कई जानकारी जुटा कर लिया जाता है लेकिन इससे फैसला लेने में थोड़ा वक्त चाहिए होता है। कोई भी नीतिगत और महत्वपूर्ण फैसला लेना दिमाग के इसी हिस्से का काम होता है। दिमाग का ये हिस्सा मानव जाति के विकास के शुरूआती दिनों में नहीं था...और धीरे धीरे काफी समय बीतने के बाद दिमाग के इस हिस्से का विकास हुआ....अब वैज्ञानिकों ने जो ताज़ा शोध किया है उसके मुताबिक हमारी जीवन शैली में जिस तरह से बदलाव आ रहा है उससे दिमाग के एक हिस्से से हम बहुत कम काम ले रहे हैं...अगर ऐसी स्थिति लगातार बनी रही तो हो सकता है कि वो हिस्सा धीरे-धीरे छोटा होने लगे।

आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के एक दल ने अपने ताज़ा शोध में कई चौंकाने वाले आंकड़े जुटाए हैं जिसके मुताबिक कई बुजुर्गों का दिमाग उन्होने छोटा पाया। जांच करने पर पाया गया कि उन बुजुर्गों ने दिमाग लगाने वाले ज़्यादा काम नहीं किए थे। इस आधार पर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अगर दिमाग को छोटा होने से बचाना है तो एक आम आदमी को भी ज़्यादा से ज़्यादा दिमाग का इस्तेमाल करते रहना चाहिए। इसके लिए उन्हे दिमागी कसरत, पहेलियों का खेल, नई भाषा सीखने और अन्य दिमागी काम में अपने आप को व्यस्त रखना चाहिए

Wednesday, 12 August 2009

सच का सामना

आजकल एक निजी चैनल पर चल रहा एक कार्यक्रम "सच का सामना" काफी चर्चा में है..लेकिन कई बार किसी प्रतियोगी के सच्चे बात को मशीन झूठा बता देता है...आज मैं आपको बताता हूं इसके पीछे की सच्चाई, कि क्यों कोई शख़्स सच बोलने के बावजूद झूठा बन जाता है..आप ये भी जानना चाहेंगे कि आखिर वो क्या वजह है जिससे हम अनजाने में भी झूठ बोल जाते हैं...यहां तक की कई बार हमें ही पता नहीं होता है कि हम जो बोल रहे हैं दरअसल वो झूठ है

इन सारी उलझनों का जवाब है आपका दिमाग...जी हां आपने बिलकुल ठीक पढ़ा...झूठ बोलकर आपको धोखा कोई और नहीं बल्कि आपका दिमाग ही दे रहा है। आईए आपको बताते हैं कि ये कैसे मुमकिन होता है...दरअसल हमारा दिमाग कंप्यूटर की तरह काम नहीं करता...और किसी भी बात को याद करने का उसका तरीका कंप्यूटर से बिलकुल अलग है। वैज्ञानिकों के एक शोध के मुताबिक जब भी हम किसी बात को याद रखने के लिए अपने दिमाग को आदेश देते हैं तो दिमाग उसे अपने हिप्पोकैम्पस नाम के हिस्स में सुरक्षित रख लेता है। और जब उस जानकारी को दोबारा याद करने की कोशिश करते हैं तो वो जानकारी दिमाग से सीधे नहीं निकलता है बल्कि दिमाग उस जानकारी को फिर से लिखता है और इस दौरान वो पूरी जानकारी दिमाग के एक दूसरे हिस्से में सेरिब्रल कॉर्टेक्स में आ जाती है। जिससे ये पूरी जानकारी दिमाग के पुराने हिस्से से बाहर आ जाती है। और अगर हमने उसे बार-बार याद करने की कोशिश नहीं की तो वो पूरी जानकारी फिर से दिमाग के उस सुरक्षित हिस्से में नहीं जा पाती है...जिससे समय समय पर उसमें कुछ और भी जानकारियां जुट जाती है...नतीज़ा होता है कि दिमाग अब पुरानी जानकारियों को नई जानकारियों के साथ आपके सामने पेश करता है...और यहीं से शुरू होता है उसके झूठ बोलने का सिलसिला...

और जब दिमाग की ये ख़ुराफ़ात बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो वो एक बीमारी का शक्ल ले लेती है जिसे हम एम्नेशिया कहते हैं....लेकिन साधारण तौर पर एक साधारण आदमी से दिमाग कई बार झूठ बोलता है...और यही वजह है कि आप....कई जगहों...कई लोगों के नाम...कई घटनाओं...और कई अन्य चीजों के बारे में दिमाग का कहा मानकर ग़लत जानकारी दे देते हैं।

मिल गई एक और धरती

पूरे विश्व में जिस तरह से जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है उससे ये लगने लगा है कि जल्दी ही पूरी जनसंख्या को सभालने के लिए हमारी धरती छोटी पड़ जाएगी...इसी को देखते हुए वैज्ञानिकों ने नई धरती की खोज शुरू कर दी है..और इस खोज में उन्हे काफी हद तक सफलता भी मिली है..तो आईए आपको बताते हैं इस नई धरती के बारे में...इस धरती की खोज को वैज्ञानिक बहुत बड़ी कामयाबी मान रहे हैं। लेकिन अभी उनका शोध बहुत शुरुआती दौर में है। वैज्ञानिकों की शोध को अगर सच माने तो ये नई धरती अपनी धरती से काफी मिलती जुलती है...

वैज्ञानिकों के कई वर्षों की कड़ी मेहनत का नतीज़ा है ये धरती। इस धरती की आयु है एक से डेढ़ करोड़ वर्ष। हालांकि इस धरती की उम्र अपनी धरती से काफी कम है। लेकिन दोनों ही ग्रहों में काफी समानताएं पाई गई हैं। धरती से क़रीब 430 प्रकाश वर्ष दूर मिले इस ग्रह का पता नासा के स्पीट्जर स्पेस टेलिस्कोप से चला है...ये टेलिस्कोप धरती से बाहर अंतरिक्ष में स्थित है और इन्फ्रारेड लाईट की पद्धति पर काम करती है। इसी टेलिस्कोप की सहायता से वैज्ञानिकों ने इस नई धरती के बारे में कई दिलचस्प जानकारियां इकट्ठी की है। हालांकि इससे पहले भी ऐसे कुछ ग्रहों का पता चला था... लेकिन उन ग्रहों में धरती से इतनी समानता नहीं थी। हम आपको जिस नई धरती के बार में बता रह हैं वो भी सूर्य की तरह के ही एक तारे के चारो तरफ धूमती है...साथ ही साथ ये अपने अक्ष पर भी धरती के समान ही धुर्णन करती है। इसके अलावा इस ग्रह की अपने तारे से दूरी भी पृथ्वी और सूर्य की दूरी के बराबर ही है। सबसे चौंकाने वाली जानकारी जो इस ग्रह के बारे में पता चली है वो है इस ग्रह पर पानी पाए जाने की संभावना... क्योंकि पृथ्वी के समान ही वायुमंडल वाले इस ग्रह का बाहरी आवरण बर्फ से ढ़का हुआ है।
पृथ्वी से मिल रही समानताओं ने वैज्ञानिकों को ये सोचने पर भी मजबूर कर दिया है कि क्या इस नई धरती पर भी जीवन है। और अगर यहां जीवन है तो वो किस अवस्था में है। और अगर वो काफी विकसित है तो क्या यहीं से धरती पर उड़न तश्तरियां आती हैं। इन्ही सब संभावनाओं को खंगालने के लिए वैज्ञानिक इस ग्रह पर और शोध करने में जुट गए हैं। लेकिन इन सब के बीच जो सबसे बड़ी अड़चन है...वो है इस नई धरती की पृथ्वी से दूरी....ये दूरी अरबों किलोमीटर होने के कारण...इस ग्रह के आस-पास किसी अंतरिक्ष यान का पहुंचना मौजूदा तकनीक के मुताबिक असंभव सा लग रहा है...