Thursday, 7 May 2009

ज़िंदगी यूं भी....


ज़िंदगी यूं भी बसर होती है
बिन चरागों के सहर होती है

कोई बादल साया परस्त नहीं होता
धूप होती है, क़हर होती है

पानी कहां गया ये किसे मालूम
मेरे खेतों में तो नहर होती है

कोई रंग नहीं आसमां पे तो क्या
ज़िंदगी बेरंग सही मगर होती है

वक्त के हाथों में हर शक्स थमा है
यहां किसको किसकी ख़बर होती है

हुकूकों को वही हासिल किया करते हैं
हालात पे जिनकी नज़र होती है

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